Monday, January 30, 2017

Kailash Mansarovar Yatra -5 कैलाश मानसरोवर यात्रा- 5 (31 अगस्त-1 सितम्बर 2016)

31 अगस्त 2016 बुधवार
जुनझुई पू कैम्प / दोपहर 3.00 (आईएसटी)


कैलाश यात्रा का सबसे कठिन दुर्गम कहा जाने वाला हिस्सा आज हमने सफलतापूर्वक पार कर लिया। डेराफुक से यहां जुनझुई पू आने में के लिए डोलमा पास पार करना पडता है और कुल मिलाकर करीब पच्चीस किमी की पदयात्रा करना पडती है। डोलमा दर्रा 18600 फीट की उंचाई पर है,जहां आक्सिजन अत्यन्त विरल है। यहां चार कदम चलने भर से दम फूल जाता है।डेराफुक के हमारे कैम्प से डोलमा दर्रे तक का रास्ता 9 किमी का खडी चढाई का रास्ता है। इसे सूर्योदय से पहले पार कर लेना ही उचित होता है,क्योंकि सूर्योदय के बाद जैसे जैसे दिन चढता है,यहां मौसम बिगडने लगता है।
कल रात को हमने विचार किया था कि यदि निकलते समय बारिश हुई या मौसम बिगडा तो हम आगे बढने की बजाय फिर से डारचेन पंहुच जाएंगे। सुबह करीब साढे तीन पर उठे। देखा कि मौसम बिलकुल साफ था। आसमान में तारे चमक रहे थे। लिपूलेख के अनुभव से सबक लेते हुए,मैने नित्यकर्म से पूर्णत: निवृत्त होकर ही यात्रा पर चलने का निश्चय किया था।
कैम्प में दूध दलिया का नाश्ता दिया गया। नाश्ता करके साढे चार पर चलना प्रारंभ किया। विरल आक्सिजन में टार्च की रोशनी में कडाके की ठण्ड के बीच कदम कदम बढाते बढाते चलते रहे। थोडा सा उजाला फैला,सामने एकदम खडी चढाई थी। मुझे लगा यही डोलमा पास है। यह खडी चढाई खत्म हुई,फिर काफी सारा समतल सा रास्ता सामने आया। यह रास्ता आगे जाकर दाहीनी ओर मुड रहा था और छोटी चढाई नजर आ रही थी। लगा कि यह मोड और चढाई पार करते ही डोलमा पास पार हो जाएगा। लेकिन चढाई खत्म हुई,मोड खत्म हुआ,सामने फिर एक चढाई आ गई। फिर तो जैसे यह क्रम चलता ही गया। घुमावदार खडी चढाई जो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी। आशुतोष और मैं लगभग साथ साथ ही चल रहे थे। दस-दस कदम चलकर रुकना पड रहा था। उंचाई बढने के साथ,नीचे पैरों में बर्फ आ रही थी और इसकी वजह से फिसलन भी हो रही थी। सांस फूलते जाने के बावजूद चलते रहे। करीब तीन घण्टे बाद,साढे सात बजे हम डोलमा पास के टाप पर पंहुचे। अब सामने थी खडी ढलान। उंचाई पर जाते जाते मुझे सर में हलके से भारीपन का एहसास हुआ। सामने जैसे ही ढलान नजर आई,मै कदम जमा जमा कर तेजी से उतरने लगा। डोलमा पास से पार होते ही दाई ओर काफी नीचे गौरी कुण्ड नजर आता है। गहरा हरा पानी,मन मोह लेता है। कहते हैं गौरी यहां स्नान करती थी। श्रध्दालुजन इसका पानी अपने साथ ले जाते है। कुछ तो खुद नीचे जाकर पानी लाते है,जबकि कुछ पोर्टर को अतिरिक्त धनराशि देकर यह जल मंगवाते है। गौरीकुण्ड से गुजरते हुए मैने मोबाइल से फोटो लिए। इसी बीच दिल्ली के अमित सिंघल ने उसके विडीयो कैमरे से शूंटिंग की। मैने उसके कैमरे से उसकी शूटिंग की।
अब हमारे सामने लगातार ढलान थी। यह ढलान करीब पांच किमी की थी। मै तेजी से उतरता रहा। करीब नौ बजे ढलान खत्म कर नीचे बने एक होटल पर पंहुचा। सुबह हमें रेडी टू इट मैगी के डिब्बे दिए गए थे। अब इस डिब्बों के उपयोग का समय था। मेरा डिब्बा भी आशुतोष के बैग में था और वह उतरने में पिछड गया था। मैं उसका इंतजार करता रहा। उसके आने पर दोनो डिब्बे खोले। इन डिब्बों में गर्म पानी डालना पडता है।  दो युवान के बदले गर्म पानी मिला। चार युवान में हमारा नाश्ता तैयार हुआ।  नाश्ता करने के बाद फिर तेजी से बढा। अब पूरा रास्ता लगभग समतल था। छोटी छोटी चढाई और ढलान थे,लेकिन रास्ता बेहद लम्बा था। हमें करीब पन्द्रह किमी की दूरी तय करना थी। रास्ते में कुछ देर के लिए हल्की बर्फबारी भी हुई। मैं डोलना पास पार करके इतना उत्साहित था कि लगातार तेज चलता रहा और करीब साढे बारह पर कैम्प पंहुच गया। आशुतोष काफी पिछड गया था।
रास्ते में मैने कई अद्भुत दृश्य देखे। कुछ बौध्द धर्मावलम्बी साष्टांग दण्डवत करते हुए कैलाश की परिक्रमा कर रहे थे। वे एक कदम बढते,फिर दण्डवत करते,उठते,फिर एक कदम आगे रखकर दण्डवत करते। मैने मोबाइल से इनके विडीयो बनाए। कुछ शिल्पकार पत्थरों पर तिब्बती भाषा में मंत्र आदि उकेर रहे थे। एक युवा शिल्पी ने पांच पत्थर दिखाए और बताया कि इन पर तिब्बती भाषा में ओम नम: शिवाय लिखा है। मैने फोटो लिया और उसे एक युवान दिया।
मै जैसे ही कैम्प पर पंहुचा,एलओ गुंजियाल सा. ने मेरा स्वागत किया। मैने पूछा कि मैं परीक्षा में पास हुआ या नहीं? उन्होने कहा,बिलकुल,पास विथ डिस्टिंक्शन। उन्ही की सलाह पर मैने रेडबुल नामक एनर्जी ड्रिंक  दस युवान में लिया। करीब एक घण्टे बाद आशुतोष भी आ गया। वह काफी थका हुआ लग रहा था। उसे भी एनर्जी ड्रिंक पिलाया।
 थोडी ही देर बाद हमारे रसोईयों ने पोहे का नाश्ता परोस दिया। नाश्ता किया। बाहर बेहतरीन धूप खिली हुई है। ठण्ड तो है लेकिन धूप के कारण असर नहीं दिखा पा रही है। कैम्प के चारों और भूरे मटमैले पहाड सिर उंचा किए खडे हुए हैं। नाश्ता करने के बाद अधिकांश यात्री अपने कमरों में दुबक गए।  कुछ बाहर घूम रहे हैं। कुछ ही देर पहले रसोईयों ने वेज सूप वितरित किया है। आज भी भोजन एक ही बार होगा,लेकिन इस भोजन में दाल चावल सब्जी रोटी सबकुछ होगा।
कल की यात्रा बेहद आसान है। बताया गया है कि समतल रास्ता है और मात्र छ: किमी पैदल चलना है। वहां बस मिल जाएगी,जो हमें डारचेन ले जाएगी। डारचेन में अपना लगेज बस में लादकर मानसरोवर की परिक्रमा के लिए कुगु पंहुचेंगे। यह पूरी परिक्रमा बस से होगी।

शाम 7.30 (आईएसटी)
जुनझुई पू कैम्प


शाम के साढे सात हुए है। पहाडों पर अभी कुछ ही देर पहले अंधेरा उतरा है। हमारे यात्रादल के सभी साथी छ: बजे भोजन करने के बाद भजन कीर्तन कर के सो चुके हैं। मैं,आशुतोष,हमारे एलओ गुंजियाल सा.तनु मित्तल,रुपा लखन दान,हम लोग एलओ साहब के साथ ज्ञान चर्चा कर रहे थे। फिर हमने भी भोजन किया। रात साढे आठ पर दवाएं लेना है,लेकिन यहां माहौल आधी रात का हो चुका है। एक घण्टा और जागना है। सुबह प्रस्थान करना है। मोबाइल नेटवर्क तलाशने के लिए मैं काफी देर बाहर बर्फीली हवाओं में घुमा,लेकिन नेटवर्क नहीं मिला। अब सोने की तैयारी।

1 सितम्बर 2016 गुरुवार
कुगु,मानसरोवर/ दोपहर 3.15 (आईएसटी) (15160 फीट)

जिस कमरे में हम ठहरे है,उसकी खिडकी से मानसरोवर और कैलाश निरन्तर दिखते रहते है।
आज की सुबह चार बजे जुनझुई पू में हुई थी,जहां बेहद गंदे सुविधाघर में नित्यक्रिया निपटा कर आंखो पर पानी के छींटे मारकर हम चल पडे थे। मेरा पोर्टर जुम्बाल आ गया था। मैने कल ही की तरह कैमरे का बैग,बडे बैग में डाला और बैग उसे थमा दिया। आज की ट्रेकिंग महज छ: किमी की थी। वह भी लगभग समतल। छोटी छोटी चढाईयां थी,जो हमारे लिए बेहद सामान्य थी।  हम करीब सात बजे छ: किमी की दूरी तय करके वहां पंहुच गए थे,जहां से हमें बस मिलने वाली थी। वहां पंहुचते ही हमारी कैलाश परिक्रमा पूरी होगई। वहां मोबाइल का नेटवर्क पूरा मिल रहा था। मैने वैदेही,आई और प्रतिमा सब को फोन लगाया,लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया। थोडी देर बाद आई का फोन आ गया। मैने यात्रा की जानकारी दे दी। यात्रियों को ले जाने के लिए दो बसें आना थी। एक आ चुकी थी,दूसरी का इंतजार चल रहा था। पहला बस में आशुतोष ने हम दोनो का सामान टिका दिया था। लेकिन मैं फोन लगाने के चक्कर में था,तभी वह बस चल पडी। अब मैं एलओ सा.के साथ अगली बस के इंतजार में लग गया। और भी कई साथी यात्री दूसरी बस के इंतजार में थे।  काफी देर इंतजार के बाद दूसरी बस आई। यह बस हमें डारचेन के उसी होटल में ले गई,जहां हमारा लगेज पडा था। पहली बस पहले से वहां मौजूद थी। करीब आधे घण्टे में बसों में लगैज चढाया गया। यहां से बसें चल पडी मानसरोवर परिक्रमा के लिए। मानसरोवर के साथ साथ कुछ पक्का और कुछ कच्चा रास्ता है। परिक्रमा पथ पर वाहन करीब 90 किमी चलते रहे। बीच में होरा नामक स्थान पर सब्जियां खरीदने के लिए बसें रोकी गई। होरा एक छोटा सा कस्बा है और चाइनीज आर्मी का बेसकैम्प है। होरा के एक स्टोर से दो दिन के लिए सब्जियां खरीदने के बाद बसें चल पडी। भारतीय समय के मुताबिक हम करीब ग्यारह बजे इस स्थान पर पंहुचे। यहां एक कमरे में पांच बिस्तर लगे हैं। शौचस्थान कामन है। स्नान के लिए स्नान गृह नहीं है। स्नान के लिए गर्म पानी की व्यवस्था भी नहीं है।
पिछले तीन दिनों से किसी यात्री ने स्नान नहीं किया है। सबने यहीं मानसरोवर में स्नान करने की योजना बनाई थी। लेकिन मैने स्वास्थ्य को देखते हुए ठण्डे पानी के स्नान से दूर रहने में ही भलाई समझी। पानी की बोटल में पानी भरकर जैसे तैसे दाढी बनाई। फिर मानसरोवर पर जाकर हाथ मुंह धोए।  तीन दिनों से कपडें भी नहीं बदले थे। यहां कपडे भी बदले।
मानसरोवर वास्तव में अद्भुत है। यहां की दृश्यावलियों को दुनिया का कोई कैमरा वैसे नहीं दिखा सकता,जैसे कि आंखे देखती है। झील पलपल रंग बदलती है। झील के इस किनारे पर हम हैं और सामने वाले किनारे पर कैलाश। आज कैलाश का अधिकतर हिस्सा बादलों में ढंका हुआ है। केवल निचला कुछ हिस्सा नजर आ रहा है।
यात्रीदल के लोग,झील के किनारे पूजापाठ करने लगे। मैं मानसरोवर देखता रहा। अचानक मैं,झील के बिलकुल किनारे पर जाकर बैठ गया। झील में उठ रही लहरों की ध्वनि और सामने बादलों से ढंके कैलाश पर्वत को देखते देखते ध्यान की स्थिति बनने लगी। लेकिन इस ध्यान में पूजा पाठ की ध्वनियां खलल डाल रही थी। मैं वहां से उठकर इन आवाजों से दूर जाकर बैठ गया। यहां ध्यान लग गया और बडा आनन्द आने लगा। काफी देर तक मैं ध्यान में रहा,लेकिन फिर शरीर कष्ट देने लगा। पीठ में अकडन सी आने लगी। पैर भी दर्द करने लगे। मन उठने का नहीं था,लेकिन उठना पडा। तब समझ में आया कि यह क्षेत्र पूजा पाठ का नहीं,बल्कि साधना और तपस्या के लिए उपयुक्त क्षेत्र है। यहां कोई भी ध्यानस्थ हो सकता है। झील से कमरे पर लौटे। करीब दो बजने को थे। पुलाव का भोजन किया। भोजन के बाद दोबारा कैमरा लेकर झील पर पंहुच गए। फिर ध्यान किया। इस बार आशुतोष ने भी ध्यान किया। अब मौसम बदल चुका था। धूप की जगह बादलों ने ले ली थी और वातावरण ठण्डा हो गया था। थोडी देर झील पर रुके । फोटो लिए और फिर लौट आए।
कमरों के बाहर खुले मैदान में बिलियर्डस की टेबलें लगी है। इस पूरे क्षेत्र में,छोटे-छोटे गांवों में भी पुल और बिलीयर्डस का चलन है। वहां डारचेन जैसे छोटे कस्बे में भी सड़क पर बिलियर्डन की टेबलें लगी हुई थी,जिसे लोग एक रकम चुका कर खेलते है। हम जब लौटे तो बिलियर्ड्स की टेबल पर तनु मित्तल,और गुंजियाल सा. का गेम चल रहा था। जगजीत तनु का साथ दे रहा था। थोडी देर इस खेल का मजा लिया और कमरे में आ गए।
मानसरोवर के तट पर यात्रियों के ठहरने के लिए बनाए गए इस होटलनुमा जगह का नाम तो अभी पता नहीं चला है,लेकिन यह एक बौध्द गोम्पा के परिसर में बना है। सड़क पर बडा सा मेन गेट बना है,जिस पर बौध्द धर्म के प्रतीकचिन्ह बने हैं। इस गेट से बस भीतर घुसती है,तो बाईं ओर गोम्पा है,जबकि दाईं ओर एक गेट इस होटल में प्रवेश का है। गेट से भीतर घुसते ही,दाई ओर सामूहित सुविधाघर बने हैं और उसी के पास कीचन है। सामने की तरफ यात्रियों के ठहरने के कमरे बने हुए हैं,जिनमें हम ठहरे हैं। कमरों के पीछे की ओर मानसरोवर है। प्रत्येक कमरे के पिछले हिस्से में बडी सी खिडकी लगाई गई है,ताकि प्रत्येक यात्री चौबीसों घण्टे मानसरोवर और कैलाश के दर्शन  करते रह सके। यहां हमें कल दिन और रात भी रहना है। परसों सुबह हम तकलाकोट के लिए निकलेंगे। इस तरह मानस की परिक्रमा बस से पूरी होगी।
 अब फिर से धूप निकल आई है। आशुतोष नींद निकाल रहा है,जबकि मुझे नींद नहीं आ रही है। मैं वापस कमरे से बाहर निकलने की सोच रहा हूं।
    कुगु कैम्प की पहली शाम बडी अच्छी रही। हमारे रसोईयों में से एक स्मार्ट लडका टशी,सम्पर्क में आया। उसका वास्तविक नाम सचिन है। टशी बहुत अच्छा गायक है। बिलियर्ड्स खेलता है। उसने कई गाने सुनाए,जो मैने रेकार्ड भी किए। टशी ने बताया वहृ मूलरुप से धारचूला का रहने वाला है। धारचूला में उसके माता पिता रहते हैं। वह दिल्ली के एक माल में काम करता है। यात्रा के दिनों में तीन चार महीनों के लिए यहां आ जाता है। इस बार वह जाब छोडकर आया है। दिल्ली लौटकर नए सिरे से काम ढूंढेगा। वह बारहवीं तक पढा है,जबकि उसका छोटा भाई गढवाल में बी टेक कर रहा है। हमारे एलओ गुंजियाल सा.उसके मामा लगते है।
 ये लडके गजब की क्षमता वाले है। वे हमारे  यात्रा दल के साथ रसोईयों का काम तो करते ही हैं,पोर्टर का काम भी करते हैं। जब यात्रा चल रही होती है,वे यात्रियों का बोझा ढोते है और कैम्प में पंहुच कर भोजन की व्यवस्था में जुट जाते हैं। चाय,नाश्ता भोजन सबकुछ बनाते है। बर्तन भी साफ करते है। भोजन भी परोसते हैं। ये लोग यात्रा के दिनों में कांट्रेक्ट पर भारत से चीन आते है। सरकारी यात्रा के साथ साथ निजी यात्रा दलों में भी यही दोहरा रोल निभाते है।

2 सितम्बर 2016 शुक्रवार
कुगु कैम्प मानसरोवर


मानसरोवर तट पर दूसरा दिन यज्ञ के साथ बीता। सुबह की शुरुआत आलू पराठे के नाश्ते से हुई। मौसम बहुत बढिया था। शानदार धूप खिली हुई थी। मानसरोवर का रंग बार बार बदल रहा था। मैं कैमरा लेकर मानसरोवर पर पंहुचा। ढेर सारे फोटो लिए। फिर आशुतोष झील पर स्नान करने आ गया। उसका विडीयो बनाया। तभी एलओ श्री गुंजियाल सा.,जगजीत और तनु मित्तल वहां आ गए। फिर उनके साथ आया। हमने कई फोटो खींचे।
कल ही यह तय हो गया था कि आज यज्ञ किया जाएगा। उत्तर प्रदेश से आए पं. आशुतोष मुकर्जी ने बडे ही विधि विधान से यज्ञ करवाया। यात्रादल के प्रत्येक व्यक्ति ने यज्ञ में आहूतियां दी। यह यज्ञ विश्व शांति के लिए तो था ही,2013 में उत्तराखण्ड में हुई त्रासदी के मृतकों की आत्मा की शांति के लिए भी था।
हमारे यात्रा दल के एलओ उत्तराखण्ड के आईजी संजय गुंजियाल ने 2013 की त्रासदी में राहत और बचाव कार्यों में प्रमुख भूमिका निभाई थी। उन्होने वहां हजारों मृतकों का अंतिम संस्कार किया था। चर्चाओं के दौरान उन्होने बताया था कि कर्मकाण्ड में कम विश्वास के बावजूद उन्होने हरिद्वार जाकर सभी मृतकों का तर्पण किया था। उनकी इच्छा थी कि मानसरोवर पर भी उन मृतकों का तर्पण किया जाए। आज वैदिक मंत्रोच्चार के साथ यज्ञ किया गया। यहां घूमने आए कई तिब्बतियों के लिए यह यज्ञ कौतूहल का विषय था,और वे आसपास जमा हो गए थे। अंत में पूर्णाहुति के बाद उन्हे भी प्रसाद बांटा गया। यज्ञ की वजह से भोजन भी विलम्ब से हुआ। भोजन मे आलू की सब्जी पूडी और हलवा बनाया गया था।
 मानसरोवर तट पर आज हमारा अंतिम दिन है। सर्दी जुकाम के चलते मैं इन दोनो दिन स्नान से दूर ही रहा। कल तो मानसरोवर में जाकर हाथ मुंह धो आया था। आज तो वह भी नहीं किया। मैने २९ अगस्त को मानसरोवर में डुबकी लगाई थी। इसके बाद से आज तक स्नान नहीं किया। अब कल तकलाकोट में पंहुचकर ही स्नान किया जा सकेगा।

रात 8.00(आईएसटी)

चीनी समय के मुताबिक इस समय रात के साढे दस बज चुके हैं। आज दोपहर में मुझे बुखार आ गया था। हम लोग करीब एक किमी चलकर मानसरोवर का जल बाटलों में भरकर लाए थे। इसके बाद बुखार के कारण बडी थकान लगी। फ्लेक्सान और फेबरेक्स गोलियां खाकर करीब दो ढाई घण्टे में बुखार से छुटकारा पाया। शाम करीब छ: बजे (आईएसटी) चाय और पकौडे परोसे गए। बताया गया कि यही आज की डिनर है। मेरा स्वास्थ्य इजाजत नहीं दे रहा था कि मैं पकौडे खाउं। मैने चखने के लिए एक गोभी का पकौडा खाया और चाय पी। हमें लगेज भी पैक करके देना था। लगेज शाम को ही बसों में लाद दिया गया। लगेज बांधने की मशक्कत की। फिर लेटा रहा। शाम होते होते तबियत कुछ सुधरी। कल सुबह पांच बजे(आईएसटी) यानी चाइना टाइम से साढे सात बजे निकलना है। बसों से हम तकलाकोट जाएंगे,जहां एक रात रुक कर अगली सुबह लिपूलेख पास को पार कर भारत में प्रवेश करेंगे।
29 अगस्त से आज 2 सितम्बर तक के पांच दिन में हमने कैलाश और मानसरोवर की परिक्रमा की। लेकिन व्यवस्थाओं के लिहाज से ये बेहद कठिन दिन थे। चीनी सरकार ने रास्ते में ठहरने की जो व्यवस्थाएं की है,वे बेहद घटिया है। ठहरने के स्थानों पर शौचस्थान की व्यवस्था बेहद खराब है। यहां कुगु में भी सार्वजनिक सुविधाघर है,जो बेहद गन्दे और बदबूदार है। स्नान आदि के लिए तो कोई व्यवस्था है ही नहीं। श्रध्दा से भरे यात्री सारी असुविधाओं और प्रतिकूलताओं के बावजूद यात्रा करते हैं। चीनी व्यवस्थाओं का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि तकलाकोट के पुलान होटल के कमरों में पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है। खैर हमें कल के दिन उस होटल में शौच स्नान आदि की अच्छी सुविधा मिल जाएगी। अब कल से वापसी की यात्रा शुरु होगी।
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3 सितम्बर 2016 शनिवार
होटल पुलान (दोपहर 1.00 आईएसटी)
12930 फीट

आज की हमारी सुबह मानसरोवर तट कुगुकैम्प (15160 फीट) पर हुई थी। हम सुबह 5.00 (आईएसटी) यानी चाइना टाइम साढे सात बजे  कुगु से रवाना हुए। सुबह सवा चार पर उठा,फ्रैश हुआ और फिर नाश्ता किया। सुबह कुगु में दूध और कार्नफ्लेक्स का हलका नाश्ता था। हमारा लगेज हम कल ही दोपहर को पैक कर चुके थे। चाइना टाइम 7.55 पर हमारी दो बसें  तकलाकोट के लिए रवाना हुई।
 बीती रात सर्दी जुकाम की दवाई खाकर नौ-साढे नौ पर सोने का उपक्रम किया था। कमरे में आशुतोष के अलावा तीन अन्य लोग चैन्ने से मुरुगा पूपति,महाराष्ट्र से सुनील धम्मानी और  राजस्थान के महावीर राखेचा जी सो चुके थे। मैने सरसों के तेल की मालिश की और सोने लगा। कुछ ही देर में मुझे लगा कि मैं सांस नहीं ले पा रहा हूं। मैं हैरान था कि साढे अठारह हजार फीट की ऊं चाई घूम कर लौटने के बाद मुझे हाईअल्टीट्यूड का असर कैसे हो सकता है? मैने कमरे का दरवाजा थोडा सा खोल दिया। लेकिन कोई फर्क नहीं पडा। फिर उठकर मानसरोवर की तरफ पडने वाली खिडकी का पल्ला खोल दिया। अब कमरे में हवा बहने लगी। पूरे कमरे में ठण्डक भरा गई। लेकिन मुझे हो रही समस्या समाप्त हो गई। अब मैं सामान्य तौर पर सांस ले रहा था। पता नहीं कब नींद लग गई। सुबह चार बते कमरे के साथियों ने जगाया। 4.20 पर मैं उठा और तुरंत तैयार हो गया।
 हम निर्धारित समय पर बस में सवार हो गए।  तभी पं. आशुतोष मुकर्जी ने बताया कि आज कैलाश पूर्ण स्वरुप में दर्शन दे रहे हैं। कई लोग देखने गए। मैं भी गया। अब तक की पूरी यात्रा में कैलाश पर्वत पूरा कभी भी दिखाई नहीं दिया था।  हर वक्त बस बादल छाए हुए थे। लेकिन अभी कैलाश पूरा नजर आ रहा था। हांलाकि रोशनी अभी अपर्याप्त थी। सुबह अभी हुई नहीं थी,फिर भी मैने एक दो फोटो लिए। हमारी बसें वहां से आगे बढी और मानसरोवर के किनारे किनारे चलने लगी।आकाश में सूर्य बढते जा रहे थे और उधर कैलाश की चमक बढती जा रही थी। लेकिन रास्ता कच्चा और उबड खाबड था। इसलिए बस में से फोटो लेना संभव नहीं था। हमें बताया गया था कि हम एक ऐसे स्थान पर पंहुचेंगे जहां से कैलाश,मानसरोवर और राक्षस ताल एक साथ नजर आएगे। हमारी बसें एक पहाडी पर चढ रही थी। जैसे ही हमारी बसें पहाडी के टाप पर पंहुची,सबकुछ नजर आने लगा। हमारी दाहीनी ओर मानसरोवर दिखाई दे रहा था,जबकि बाई ओर राक्षस ताल। इन दोनों के बीच में बहुत दूर कैलाश का चमकता शिखर नजर आ रहा था। यहां के खूब सारे फोटो लिए।
यहां से तकलाकोट के रास्ते में आगे बढने लगे। वहीं शहीद जोरावर सिंह की समाधि पर पंहुचे। जोरावर सिंह काश्मीर के राजा का सेनापति था,जो मानसरोवर और कैलाश को भारत में मिलाने के लिए युध्द करता रहा। वह सफल नहीं हुआ,लेकिन उसकी वीरता के किस्से आज भी गांव गांव में सुनाए जाते हैं। यहां से हमारी बसें सीधे तकलाकोट के लिए रवाना हो गई। हमारी बसें तकलाकोट कस्बे में पंहुची,लेकिन यहां उतरे नहीं। बस वहां से होरचक नामक गांव में पंहुची,जहां प्राचीन राम मन्दिर है। सभी यात्री राम मन्दिर का दर्शन करने के लिए भीतर पंहुचे।
यह मन्दिर और गोम्पा करीब एक हजार साल पहले बना था। कहानी यह है कि एक बार सात साधु कैलाश का दर्शन के लिए निकले तो उन्होने यहां आकर एक व्यक्ति से कैलाश का रास्ता पूछा। ग्रामीण व्यक्ति ने नक्शा बनाकर कैलाश का रास्ता उन्हे समझा दिया। ये सातों साधु कैलाश जाने के पहले उस ग्रामीण को सात झोले थमा गए। बाद में उन झोलों में सोना निकला। ग्रामीण ने यह सोना राजा को सौंप दिया। उधर दूसरी ओर एक पंहुचा हुआ लामा,तांगे में सवार होकर इस स्थान से गुजर रहा था कि अचानक तांगा यहां रुक गया। तांगे वाले ने उतर कर देखा तो यहां कुछ गडा हुआ था।  लामा ने उतरकर देखा तो एक सिंहासन जैसी आकृति गडी हुई थी और इस पर राम,लक्ष्मण और सीता की प्रतिमाएं बनी हुई थी। लामा इसे देख रहा था कि आकाशवाणी हुई कि बस तुम्हारी खोज पूरी हुई,यहीं रुक जाओ। लामा वहीं रुक गया। बाद में लामा और राजा की भोंट हुई तो लामा को सारी बात समझ में आ गई। राजा ने सातों साधुओं से मिला सोना लामा को सौंप दिया। फिर यहां राम लक्ष्मण सीता की मूर्तियां ठोस सोने से बनवाकर स्थापित की गई। साथ ही बौध्द मठ भी बनाया गया। इसी घटना के कारण यहां का नाम होरचक पडा। होर का अर्थ है खोज और चक का अर्थ है पूरी होना। यहां लामा की खोज पूरी हुई इसलिए यह स्थान होरचक कहलाया। यह घटना करीब एक हजार साल पुरानी है। फिर करीब पांच सौ वर्ष पूर्व हिन्दू बौध्द विवाद जैसा कुछ हुआ,जिससे इस मूर्तियों की क्षति हुई। वर्तमान में यहां स्थापित मूर्तियों के सिर सोने के है,जबकि शेष हिस्सा चांदी का। इस मन्दिर में घोर अन्धकार में परिक्रमा की जाती है। कहते हैं कि जो जितना पापी होता है,उसे उतना ही अधिक भय लगता है। मैने भी यह परिक्रमा की। मुझे तो कोई डर नहीं लगा। कई लोग परिक्रमा में गए ही नहीं।
राम मन्दिर की दाई ओर शाक्य मुनि गौतम बुध्द का मन्दिर है।मन्दिर में प्रवेश करते ही सामने भगवान बुध्द की विशाल प्रतिमा है। इस प्रतिमा के बाई तथा दाई ओर बने कमरों में भगवान बुध्द की विभिन्न मुद्राओं में बनी प्रतिमाएं है। यहां मैने कई फोटो खींचे।
इस मन्दिर की प्रबन्ध समिति द्वारा सभी यात्रियों को सफेद दुपट्टे पहना कर स्वागत किया गया और चाय पिलाई गई। यहां से हम वापस होटल पुलान लौटे। अभी भारतीय समयानुसार करीब पौने दस बजे हैं। आने के बाद स्नान,दाढी इत्यादि का काम निपटाना था। देखा तो स्नान के लिए साबुन नहीं था। नीचे बाजार में जाकर बडी मुश्किल से साबुन खरीदा। स्नान किया। हमारा लगेज हमारे साथ ही आया था,जिसे हमें भोजन करने के बाद वापस देना था। बैग खोला तो पता चला कि मानसरोवर के जल की एक बाटल लीक कर गई थी। उसे नए सिरे से पैक किया और सो गए।
मानसरोवर यात्रा में लगेज को लेना,खोलना और वापस पैक करना बडी ही मशक्कत का काम है। आपका मुख्यलगेज वाटरप्रूफ बोरों में बांधकर देना पडता है,जो एक या दो दिन में आपको वापस मिलता है। उसे खोलकर जरुरत का सामान निकालना व बैकपैक का सामान बैग में भरकर पैक करना हर दूसरे दिन की बडी मशक्कत है। हम लगेज पैक कर चुके है। यह अब हमें गुंजी में वापस मिलेगा।

रात 11.00 (आईएसटी)/1.30 चाईना टाईम
होटल पुलान तकलाकोट


दिन में करीब एक बजे भोजन किया था। शाम को साढे चार बजे यानी चाईना टाईम सात बजे फिर से भोजन की आवाज लग गई। सब लोग हैरान थे कि इतनी जल्दी क्यो? बताया गया कि शाम 7.30(चाईना टाइम) यानी भारतीय समय के पांच बजे चीन सरकार की तरफ से अंतिम यात्रा जत्थे का बिदाई समारोह है। हमारे किचन वाली बिल्डिंग की पहली मंजिल पर यह कार्यक्रम था। भोजन करके नासिक से आए सीए फणिराज के साथ बाजार जाकर उसे एक सिगरेट का पैकेट खरीदवाया,जो उसे अपने किसी मित्र को भेंट करना था। बाजार से लौटा,कमरे में जाकर फ्रैश हुआ। कार्यक्रम के हाल में पंहुचा। यहां चीनी विदेश मंत्रालय के अधिकारी श्री नवांग और उनके तीन-चार सहयोगी मौजूद थे। हमारा गाइड गुरु सीरींग दुभाषिये का काम कर रहा था। श्री नवांग ने चीनी भाषा में यात्रियों को सम्बोधित किया। श्री नवांग का कहना था कि भारत चीन के मैत्री सम्बन्धों के चलते,हर साल यात्रियों के लिए सुविधाएं बढाई जा रही है। डोराफुक और जुनझुई  पू में पहले यात्रियों के ठहरने की अच्छी व्यवस्था नहीं थी,लेकिन अब व्यवस्थाएं बहुत अच्छी कर दी गई है। अब इसे और सुधारा जा रहा है। आगामी एक दो वर्षों में व्यवस्थाएं और अच्छी कर दी जाएगी। उन्होने यात्रियों से उनके सुझाव भी मांगे। यात्रियों की ओर से रुपा ने अंग्रेजी में कुछ मुद्दे उठाए। रुपा ने कहा कि ठहरने के कैम्पस में शौचस्थान की व्यवस्थाएं ठीक नहीं है। गन्दगी है। पेयजल की व्यवस्था ठीक नहीं है।  डोलमा पास पर मेडीकल सुविधा होना चाहिए।  फिर एलओ संजय गुंजियाल ने हिन्दी में संक्षिप्त उद्बोधन में चीन को धन्यवाद दिया। उन्होने भी कुछ सुझाव दिए।  चीन सरकार की इस बिदाई पार्टी में प्रत्येक यात्री के सामने कोकाकोला,पेप्सी,केले,सेवफल, ढेर सारी चाकलेटें रखी गई थी। यात्रियों से कहा गया कि वे इसे ग्रहण करे। मैने और आशुतोष ने ढेर सारी चाकलेटें जेबों में भर ली,ताकि घर पर बच्चों को दी जा सके। बिदाई समारोह में चीनी दल के कुछ लोगों ने गीत सुनाए। यात्रियों ने थोडा सा कीर्तन किया। चीनी अधिकारी ने भी चीनी भाषा में एक गीत सुनाया। समारोह के अंत में यात्रियों को चीन सरकार की ओर से स्मृति चिन्ह के रुप में कैलाश पर्वत का एक कैलेण्डर भेंट किया गया। साथ ही सभी को सपेद दुपट्टे औढा कर सम्मानित किया गया। मुझे बताया गया कि पिछले वर्षों तक यात्रियों को चीनी सरकार की ओर से अच्छे मजबूत बैग व अन्य उपयोगी व महंगी सामग्रियां भेंट की जाती थी,लेकिन इस साल सिर्फ कैलेण्डर देकर बिदा कर दिया गया। कार्यक्रम के बाद एलओ सा.हमें बाजार घुमाने ले गए। एक चीनी रेस्टोरेन्ट में चीनी वेज सब्जी व जडी बूटी से बना पेय आदि खिलाए पिलाए। रात करीब ग्यारह बजे हमारा दिन समाप्त हुआ।

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