Sunday, July 16, 2017

J & K Journey -1 यात्रा वृत्तान्त -24 कश्मीर यात्रा-1 / आतंक के असर में घाटी का सफर

कैलाश मानसरोवर की यात्रा सफलतापूर्वक संपन्न करने के करीब आठ महीनों बाद अब मौका था सपरिवार
कश्मीर यात्रा का। 4 जून को विवाह की वर्षगांठ होती है और कोशिश ये होती है कि विवाह की वर्षगांठ किसी दर्शनीय स्थल पर मनाई जाए। इस बार कश्मीर भ्रमण की योजना बनाई। श्रीनगर में यूथ होस्टल्स के फेमिली कैंपिंग प्रोग्राम की तारीखें देखी और मित्रों से इस यात्रा पर जाने के लिए पूछा।
कई वर्षों बाद कमलेश यात्रा पर जाने को राजी हुआ। मन्दसौर से आशुतोष ने भी इस यात्रा में चलने पर हामी भरी। मलय का बी.टेक पूरा होने वाला था। वह भी कश्मीर चलने को राजी था। इस तरह यूथ होस्टल्स के कैम्प के लिए मैने चार बुकींग करवाई। लेकिन इस यात्रा पर गए सिर्फ दो परिवार। आशुतोष के माता पिता ने कश्मीर के हालात देखते हुए उसे रोक ही लिया,जबकि मलय की आईएएस कोचिंग शुरु हो रही थी,इसलिए उसने भी जाना रद्द कर दिया। आखिर में,मै और कमलेश अपने परिवारों सहित वहां पंहुचे। यह यात्रा 3 जून 2017 को प्रारंभ होकर 12 जून 2017 को समाप्त हुई।

4 जून 2017 रविवार (सुबह 10.25)

कोच न. बी 2/35,जम्मूतवी एक्सप्रेस


विवाह की पन्द्रहवीं वर्षगांठ। ये सालगिरह हमने जम्मू कश्मीर यात्रा में मनाने का निश्चय किया था। इस यात्रा की योजना करीब तीन माह पूर्व बनाई थी। यूथ होस्टल के फेमिली कैम्पिंग में जाने की योजना थी। इस यात्रा में मेरे साथ कमलेश पाण्डेय और आशुतोष ने सहमति जताई थी। करीब तीन माह पूर्व ही हमने यूथ होस्टल के फैमिली कैम्पिंग के लिए रजिस्ट्रेशन करवा लिया था। रेलवे का आरक्षण भी करवा लिया था।
    जब योजना बनी थी,तब और उसके काफी समय बाद तक कश्मीर शांत था,लेकिन पिछले करीब एक डेढ महीने से कश्मीर अशांत है। सुरक्षा बलों पर पथराव की घटनाएं बढ गई हैं। अभी छ: दिन पहले ही आतंकी सबजार के एनकाउण्टर के बाद पूरी घाटी में करीब पचास स्थानों पर पथराव की घटनाएं हुई है। श्रीनगर में कफ्र्यू भी लग गया। रतलाम मन्दसौर में भी हर दिन कश्मीर की खबरें आ रही थी और इसका नतीजा यह हुआ कि आखरी समय पर आशुतोष ने इस यात्रा में आना रद्द कर दिया। उसका कहना था कि उसके माता-पिता राजी नहीं है। वैसे हमने भी यह सोचा था कि अगर कश्मीर में समस्याएं जारी रही,तो पटनीटाप और हिमाचल में किसी स्थान पर घूमेंगे,लेकिन यात्रा रद्द करने का तो सवाल ही नहीं था। फिर एक जून को श्रीनगर में यूथ होस्टल कैम्प के प्रभारी से बात हुई,तो उनका कहना था कि यहां कोई दिक्कत नहीं है। आप आराम से आईए। बहरहाल,हम 4 बडे और तीन बच्चे,मैं वैदेही,चिंतन,कमलेश,रचना,अवनी और पीहू कुल सात लोग इस यात्रा पर जा रहे हैं।
 यात्रा की शुरुआत कल शाम छ: बजे से हुई। सवा पांच बजे घर से निकले। प्रतिमा ताई छोडने आई थी। ट्रेन में हमारे ही कोच में आशीष मेहता भी मिल गया। आशीष भी सपरिवार जा रहा था। वह दिल्ली तक जाने वाला था। ट्रेन चली,थोडी ही देर बाद रतलाम के टीटी पीएन मलिक ने कमलेश का रेलवे कार्ड नहीं होने की बात पर काफी परेशान किया। कमलेश की एक बर्थ बी-4 कोच में थी। टीसी मलिक ने पहले तो बर्थ की व्यवस्था बी-2 में ही करवा दी,लेकिन बाद में प्रेस कार्ड न होने की बात को लेकर काफी विवाद किया। साढे आठ तक यह खींचतान चलती रही। फिर जाकर मामला शांत हुआ। रात को करीब सवा नौ बजे भोजन किया। काफी देर तक जागते रहे और बाद में करीब साढे ग्यारह पर सोने की तैयारी की।
    हम आज शाम को उधमपुर पंहुचेंगे। उधमपुर में सर्किट हाउस बुक है। उधमपुर में रात गुजार कर कल सुबह श्रीनगर के लिए रवाना होंगे। 10 जून की सुबह तक श्रीनगर में रहने की योजना है। 10 जून की सुबह वहां से निकलेंगे और शाम तक कटरा पंहुचेंगे। फिर वैष्णो देवी के दर्शन कर 11 जून की सुबह इसी ट्रेन से रतलाम वापसी करेंगे।

5 जून 2017 सोमवार (सुबह साढे आठ)

पीडब्ल्यूडी सर्किट हाउस,उधमपुर


कल की रात ट्रेन ने काफी कुछ गडबड कर दिया। जम्मूतवी पांच घण्टे की देरी से यहां उधमपुर पंहुची। जिस
ट्रेन को शाम चार बजे पंहुचना था,वह रात साढे नौ पर आई। स्टेशंन के बाहर ही एक टाटा सूमो मिल गई,जिसने तीन सौ रुपए में हमें सर्किट हाउस छोड दिया।  सर्किट हाउस और शहर रेलवे स्टेशन से काफी दूर है। यदि वाहन ना हो तो यहां आना बेहद मुश्किल है। सर्किट हाउस पंहुचते पंहुचते दस बज चुके थे। दिन भर ट्रेन का सफर। सुबह से स्नान तक नहीं हुआ था। सर्किट हाउस बेहद सुन्दर और व्यवस्थित है। यहां के कमरे देखकर मन प्रसन्न हो गया। कमरों में पंहुचकर स्नान आदि करते करते पौने ग्यारह हो गए। यहां के कुक ओंकारचंद और कर्मचारी दिल मोहम्मद आदि ने रात ग्यारह बजे भोजन परोसा। दाल,चावल,सब्जी,रोटी। बेहद अच्छा,स्वादिष्ट। भोजन से निवृत्त होकर सोने की तैयारी।
अब श्रीनगर जाना है। थोडी देर हो चुकी है। पहले सोचा था साढे आठ पर तैयार हो जाएंगे  लेकिन देर हो गई। अब यहां से बस स्टैण्ड पंहुचकर श्री नगर के लिए गाडी करना है। फिर यहां से रवानगी।

6 जून 2017 मंगलवार (सुबह 6.30)

व्हायएचएआई कैम्प/हरवन,श्रीनगर


कल का पूरा दिन गाडी के सफर में ही बीता। सुबह उठने में देरी हो गई थी। सुबह 7.50 पर नींद खुली। स्नानादि से निवृत्त होते होते साढे नौ हो गए थे। सर्किट हाउस के कुक औंकारचंद ने नाश्ते में कलाडी और ब्रेड बटर बनाने का प्रस्ताव रखा था। उसका कहना था कि कलाडी उनके क्षेत्र की विशेष चीज है,जो दूध से बनाई जाती है। यह पनीर जैसी कोई चीज थी,जिसे ब्रेड की स्लाइस के बीच रखा गया था। साथ में ब्रेड बटर तो था ही। कलाडी स्वाद में तो कुछ खास नहीं था,लेकिन पेट के लिए भारी था। नाश्ता करके मैं और कमलेश निकले,श्रीनगर जाने की व्यवस्था करने के लिए। सिटी बस में बैठकर उधमपुर के एमएच बसस्टैण्ड पंहुचे। पूछने पर पता चला कि श्रीनगर सीधे कोई बस नहीं जाती। हांलाकि ऐसा संभव नहीं था। लेकिन जो भी हो,हम बसस्टैण्ड से पिछले चौराहे पर प्राइवेट टैक्सी स्टैण्ड पंहुचे। यहां हमें कहा गया कि केवल श्रीनगर ड्राप करने का छ: हजार रु. लगेगा और यदि तीन चार दिन का टूर बनाकर गाडी लोगे तो साढे तीन हजार रु. प्रतिदिन भाडा लगेगा। हमने हिसाब लगाया। यही उचित लगा कि गाडी ही ले लेना चाहिए। सत्रह हजार रु.में पांच दिन की यात्रा तय हुई और हम गाडी लेकर सर्किट हाउस जा पंहुचे। गाडी लेने का एक बडा कारण यह भी था कि सर्किट हाउस शहर से दूर था।  पहाडों में आटो जेसी व्यवस्थाएं आसानी से नहीं मिलती। अगर हम बस या शेअरिंग वाली टैक्सी से श्रीनगर जाते तो हमें सारा भारी सामान लेकर बस स्टैण्ड जाना पडता,जो कि बेहद मुश्किल काम था। दूसरी समस्या श्रीनगर की थी। हमारी यूथ होस्टल कैम्प श्रीनगर से 21 किमी दूर है। टैक्सी वाले का कहना था कि वन साइड ड्राप में वे हमें लाल चौक पर उतार देंगे। उधमपुर से श्रीनगर अब भी आठ से दस घण्टे का रास्ता है। अभी सुबह के साढे दस हो गए थे। इस लिहाज से श्रीनगर पंहुचने में अंधेरा हो जाना तय था। रात के अंधेरे में 21 दूरी के लिए वाहन ढूंढना कितना कठिन होता है।
बहरहाल,10.40 पर हम सर्किट हाउस से निकले। चाननी नौशेरा टनल बनने से रास्ता छोटा हुआ है,कुछ समय
भी बचने लगा है। लेकिन जो भी समय लगता है ,वह भी बहुत ज्यादा है। नौ किमी लम्बी इस टनल से हमारी गाडी गुजरी। पिछली बार जब आए थे,जवाहर टनल को ही काफी बडी टनल माना जाता था। लेकिन अब जवाहर टनल से तीन-चार गुना लम्बी,अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस यह टनल बन चुकी है। इस टनल से निकले। टेढे मेढे.उंचे नीचे,रास्तों पर हिचकोले खाती गाडी चलती रही। नेशनल हाईवे होने के बावजूद यह रास्ता बेहद खराब है। जगह जगह डामर उखडा हुआ है और गड्ढे हैं।
    शाम करीब साढे चार पर जवाहर टनल पार की। जवाहर टनल पार करते ही ढलान शुरु हो जाती है और कश्मीर घाटी प्रारंभ हो जाती है। टनल से निकलने के बाद एक स्थान पर कश्मीर घाटी का पहला दृश्य नजर आता है। यहां रुक कर फोटो लिए।  इसके आगे रास्ता समतल और सीधा था। अब गाडी तेज चल रही थी। फिर भी श्रीनगर पंहुचते पंहुचते साढे आठ हो गए। श्रीनगर से हरवान पंहुचते पंहुचते सवा नौ बज चुके थे। यहां आकर फौरन टेण्ट लिए। भोजन चालू ही था। फ्रैश होकर भोजन किया।
    श्रीनगर के पूरे रास्ते में चप्पे चप्पे पर सीआरपीएफ के जवान मुस्तैदी के साथ खडे नजर आते है। हांलाकि पूरे रास्ते और यहां श्रीनगर आने के बाद कतई ऐसा नहीं लग रहा है कि यहां कोई तनाव है। लोगों का कामकाज सामान्य तौर पर चल रहा है। लोगों ने सीआरपीएफ और सेना की मौजूदगी पर ध्यान देना भी शायद छोड दिया है।
    रात को भोजन समाप्त होते होते यहां बारिश शुरु हो गई। बारिश कुछ देर तो तेज गति से गिरी फिर कुछ धीमी हुई। लेकिन इस बारिश के कारण जहां भोजन पाण्डाल गिर गया वहीं मौसम में ठण्डक घुल गई। अभी सुबह भी रुक रुक कर बारिश हो रही है। मौसम बेहद सर्द हो गया है।
 आज सुबह आठ बजे घूमने निकलेंगे।

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