Sunday, July 16, 2017

J & K Journey 2 कश्मीर यात्रा-2/ आतंक के असर में घाटी का सफर

6 जून 2017 मंगलवार (सुबह 6.30)

व्हायएचएआई कैम्प/हरवन,श्रीनगर

कल का पूरा दिन गाडी के सफर में ही बीता। सुबह उठने में देरी हो गई थी। सुबह 7.50 पर नींद खुली। स्नानादि से निवृत्त होते होते साढे नौ हो गए थे। सर्किट हाउस के कुक औंकारचंद ने नाश्ते में कलाडी और ब्रेड बटर बनाने का प्रस्ताव रखा था। उसका कहना था कि कलाडी उनके क्षेत्र की विशेष चीज है,जो दूध से बनाई जाती है।
यह पनीर जैसी कोई चीज थी,जिसे ब्रेड की स्लाइस के बीच रखा गया था। साथ में ब्रेड बटर तो था ही। कलाडी स्वाद में तो कुछ खास नहीं था,लेकिन पेट के लिए भारी था। नाश्ता करके मैं और कमलेश निकले,श्रीनगर जाने की व्यवस्था करने के लिए। सिटी बस में बैठकर उधमपुर के एमएच बसस्टैण्ड पंहुचे। पूछने पर पता चला कि श्रीनगर सीधे कोई बस नहीं जाती। हांलाकि ऐसा संभव नहीं था। लेकिन जो भी हो,हम बसस्टैण्ड से पिछले चौराहे पर प्राइवेट टैक्सी स्टैण्ड पंहुचे। यहां हमें कहा गया कि केवल श्रीनगर ड्राप करने का छ: हजार रु. लगेगा और यदि तीन चार दिन का टूर बनाकर गाडी लोगे तो साढे तीन हजार रु. प्रतिदिन भाडा लगेगा। हमने हिसाब लगाया। यही उचित लगा कि गाडी ही ले लेना चाहिए। सत्रह हजार रु.में पांच दिन की यात्रा तय हुई और हम गाडी लेकर सर्किट हाउस जा पंहुचे। गाडी लेने का एक बडा कारण यह भी था कि सर्किट हाउस शहर से दूर था।  पहाडों में आटो जेसी व्यवस्थाएं आसानी से नहीं मिलती। अगर हम बस या शेअरिंग वाली टैक्सी से श्रीनगर जाते तो हमें सारा भारी सामान लेकर बस स्टैण्ड जाना पडता,जो कि बेहद मुश्किल काम था। दूसरी समस्या श्रीनगर की थी। हमारी यूथ होस्टल कैम्प श्रीनगर से 21 किमी दूर है। टैक्सी वाले का कहना था कि वन साइड ड्राप में वे हमें लाल चौक पर उतार देंगे। उधमपुर से श्रीनगर अब भी आठ से दस घण्टे का रास्ता है। अभी सुबह के साढे दस हो गए थे। इस लिहाज से श्रीनगर पंहुचने में अंधेरा हो जाना तय था। रात के अंधेरे में 21 दूरी के लिए वाहन ढूंढना कितना कठिन होता है।
बहरहाल,10.40 पर हम सर्किट हाउस से निकले। चाननी नौशेरा टनल बनने से रास्ता छोटा हुआ है,कुछ समय भी बचने लगा है। लेकिन जो भी समय लगता है ,वह भी बहुत ज्यादा है। नौ किमी लम्बी इस टनल से हमारी गाडी गुजरी। पिछली बार जब आए थे,जवाहर टनल को ही काफी बडी टनल माना जाता था। लेकिन अब जवाहर टनल से तीन-चार गुना लम्बी,अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस यह टनल बन चुकी है। इस टनल से निकले। टेढे मेढे.उंचे नीचे,रास्तों पर हिचकोले खाती गाडी चलती रही। नेशनल हाईवे होने के बावजूद यह रास्ता बेहद खराब है। जगह जगह डामर उखडा हुआ है और गड्ढे हैं।
    शाम करीब साढे चार पर जवाहर टनल पार की। जवाहर टनल पार करते ही ढलान शुरु हो जाती है और कश्मीर घाटी प्रारंभ हो जाती है। टनल से निकलने के बाद एक स्थान पर कश्मीर घाटी का पहला दृश्य नजर आता है। यहां रुक कर फोटो लिए।  इसके आगे रास्ता समतल और सीधा था। अब गाडी तेज चल रही थी। फिर भी श्रीनगर पंहुचते पंहुचते साढे आठ हो गए। श्रीनगर से हरवान पंहुचते पंहुचते सवा नौ बज चुके थे। यहां आकर फौरन टेण्ट लिए। भोजन चालू ही था। फ्रैश होकर भोजन किया।
    श्रीनगर के पूरे रास्ते में चप्पे चप्पे पर सीआरपीएफ के जवान मुस्तैदी के साथ खडे नजर आते है। हांलाकि पूरे रास्ते और यहां श्रीनगर आने के बाद कतई ऐसा नहीं लग रहा है कि यहां कोई तनाव है। लोगों का कामकाज सामान्य तौर पर चल रहा है। लोगों ने सीआरपीएफ और सेना की मौजूदगी पर ध्यान देना भी शायद छोड दिया है।
    रात को भोजन समाप्त होते होते यहां बारिश शुरु हो गई। बारिश कुछ देर तो तेज गति से गिरी फिर कुछ धीमी हुई। लेकिन इस बारिश के कारण जहां भोजन पाण्डाल गिर गया वहीं मौसम में ठण्डक घुल गई। अभी सुबह भी रुक रुक कर बारिश हो रही है। मौसम बेहद सर्द हो गया है।
 आज सुबह आठ बजे घूमने निकलेंगे।

6 जून 2017 मंगलवार (रात 9.50)

व्हाएचएआइ कैम्प हरबन


हमारे टेण्ट के बाहर बूंदाबांदी इस तरह चल रही है,जैसे बरसात के दिन आ गए हो। कल रात हम कैम्प में पंहुचे ही थे कि बारिश शुरु हो गई थी।  इस बूंदाबांदी ने हमे परेशान कर दिया। गनीमत यह रही कि आज दिन में जब घूम रहे थे,तब बैहतरीन धूप खिली हुई थी।
    सुबह की शुरुआत चार बजे हुई थी,जब मैं बारिश के बीच लघुशंका निवारण के लिए उठा था।  लौटने के बाद
पचास मिनट तक करवटें बदलता रहा। पांच बजे उठा। नित्यकर्म से निवृत्त होकर इडली सांभर का नाश्ता किया।  कैम्प के अन्य लोगों के लिए मिनी बस बुलवाई गई थी। हमारे पास अपनी महंगी गाडी थी। कैम्प के लोग पहलगाम जा रहे थे। हमने भी वही जाने का निर्णय लिया। फिर से वही रास्ता। जम्मू हाईवे पर करीब चालीस किमी चलने के बाद पहलगाम का रास्ता कटता है। करीब चार घण्टे का सफर करके हम पहलगाम पंहुचे। यहां एक हजार रु.प्रति व्यक्ति के हिसाब से छ: घोडे किए। घोडे वाले पहले पांच पाइं्ट दिखाने के ढाई हजार रु.मांग रहे थे। फिर एक हजार में राजी हुए। करीब तीन घण्टे हमने घोडे की यात्रा की। इस दौरान एक झरना और कई दर्शनीय स्थल प्राकृतिक दृश्य देखे। पहलगाम घाटी अद्भूत सुन्दर है। घोडे की यात्रा भी बेहद रोमांचक थी। बारिश की वजह से मिट्टी वाले पहाडों पर फिसलन हो गई थी। घोडं के फिसलते हुए हमने ये चढाईयां और उतराईयां पार की। ढेरों विडीयो और मोबाइल फोटो बनाए। सोनू का स्पेशल कैमरा लेकर आया था। इस कैमरे में खींचे गए विडीयो का डिस्प्लै नहीं मिल रहा है। पता नहीं विडीयो और फोटो बने भी है या नहीं।
    करीब तीन घण्टे कश्मीर की मनमोहक घाटियों में भ्रमण करके नीचे लौटे। अब भूख लग आई थी। पौने चार बज चुके थे। ड्राइवर सोहन सिंह ने कहा कि गाडी थोडा आगे चलकर रोकेंगे। करीब दो किमी आगे बढने पर एक सुन्दर बगीचा नजर आया,जहां हमने भोजन करने का तय किया। सुबह कैम्प से पराठे और चने की सब्जी लेकर आए थे। भूख तेज लगी थी। बगीचे में बैठ कर भोजन किया। भोजन करके बाहर आए,तो एक पश्मीना शाल बेचने वाला मंजूर एहमद पास में आया। मैने कहा कि पश्मीना शाल खरीदने की हमारी स्थिति नहीं है। उससे पश्मीना शाल के बारे में बात कर रहा था कि पास में खडा एक थोडा अधैड उम्र का ड्राइवर पास आ गया। बातें चलते चलते कश्मीर समस्या पर जा पंहुची। उसने वही पुराना तर्क दिया कि हम कश्मीरी है और कश्मीर अलग मुल्क है। हमें आजादी चाहिए। हम लेकर रहेंगे। थोडी देर उसकी बातें सुनी,थोडे जवाब दिए। मैने कहा कि हमारे लिए तो कश्मीर भी हमारा ही मुल्क और घर है। इसीलिए हम कश्मीर आए है। उसने कहा आपका माइंडसेट ऐसा है। मैने कहा यही दिक्कत तुम्हारी है। तुम्हारा माइण्ड सेट भी  ऐसा ही है। हमारे पास समय नहीं था,हमे श्रीनगर लौटना था। उन लोगों से नमस्ते करके हम वहां से निकले। रास्ते में कुछ जगहों पर गो इण्डिया गो बैक भी लिखा हुआ नजर आ गया। एक जगह बुरहान वानी के लांग लिव लिखा हुआ था। मन खट्टा हो गया। इस कश्मीरियों को सख्ती से ही ठीक किया जा सकता है। इस्लाम के असर में ये लोग अलग मुल्क की बातें करते है। इनमें से जो भारतीय बनने को राजी हो,उन्हे भारतीयता में शामिल करना चाहिए,जो राजी नहीं है,उन्हे जूते देकर इलाज करना चाहिए।
    रात करीब 8.10 पर कैम्प में लौटे। भोजन चालू हो चुका था। फ्रैश होकर भोजन किया। आई और प्रतिमा ताई को फोन किया। भोजन करने के बाद अब सोने की तैयारी। कल गुलमर्ग जाना है। सुबह पांच बजे दिन शुरु होगा।

7 जून 2017 बुधवार

रात ग्यारह बजे

व्हायएचएआई कैम्प,हरबन श्रीनगर।


    टेण्ट की लाइट बन्द करके सोने लगा था कि अचानक याद आया,आज का वृत्तान्त तो लिखा ही नहीं है। लाइट जलाई,डायरी लेकर लिखना शुरु कर दिया। अभी कुछ देर पहले वैदेही ने देखा,मेरे बांये कान के नीचे पीछे की ओर त्वचा में कुछ इन्फेक्शन सा हो रहा है। उसका कहना था कि मकडी रगड गई है। मुझे तो खैर पता ही नहीं चला। एक एन्टीएलर्जिक गोली खाई। उस स्थान पर बोरोप्लस भी लगाया। सुबह देखेंगे क्या होता है?
आज की सुबह उठने में थोडी देर हो गई। सुबह साढे पांच पर उठा,लेकिन नाश्ता आदि समय पर कर लिया।  स्नान के लिए गर्म पानी का इंतजार काफी लम्बा हो गया था। पानी मिला भी तो गुनगुना और काफी कम। बिना साबुन के स्नान किया। आज नाश्ते में ब्रेड पकौडे,कार्नफ्लैक्स,दूध दलिया और उबले अण्डे थे। उबले अण्डे अपने किसी काम के नहीं थे। बाकी का नाश्ता दबा के किया। आज गुलमर्ग जाना था। सुबह 8.50 पर निकले। करीब तीन घण्टे का रास्ता। डेढ घण्टा समतल और फिर पहाडी इलाका। गुलमर्ग स्कैटिंग स्कीइंग के लिए आदर्श स्थान है।
    कश्मीर में हर कहीं लूटपाट है। ड्राइवर ने कहा गुलमर्ग में उपर बहुत ठण्ड होगी,इसलिए ठण्ड से बचने के ओव्हरकोट व जूते किराये पर ले लो। ये वैसा ही था,जैसा हिमाचल में रोहतांग पर होता है। मैं इनर पहन कर शाल लेकर गया था। दुकानदारों ने बहुत जबर्दस्ती की,लेकिन मैने कुछ नहीं लिया। बाकी सभी के लिए सूट व जूते एक हजार रु.में किराये पर लिए। ये सामान लेकर चले। अब पहाडी पर उपर चढना था। यहां से निसार एहमद नामक गाइड भी ले लिया। उसे छ:सौ रुपए में तय किया था। गुलमर्ग टैक्सी स्टैण्ड पर उतरते ही कई सारे घोडे वाले हम पर टूट पडे। लेकिन हमने तय किया था कि बिना घोडे के केबल कार गण्डोला तक जाएंगे।
मात्र डेढ किमी का रास्ता था। बडी आसानी से पैदल चल कर केबल कार तक पंहुचे।  यहां सात सौ रु. प्रति व्यक्ति के मान से केबल कार के टिकट लिए। यहां केबल कार दो उचंाईयों तक जाती है। फस्र्ट लेवल में नीचे कुछ नीचे उतार दिया जाता है। दूसरे लेवल में करीब चौदह हजार फीट की उंचाई पर ले जाया जाता है। वहां सिफ७ और सिर्फ बर्फ होती है। हमने फस्र्ट लेवल के टिकट लिए थे। केबल कार से उपर पंहुचे। बर्फ के पहाडों तक पंहुचने के लिए यहां से करीब डेढ किमी पहाड पर चढना था। यहां भी घोडे वालों ने घेर लिया। मैं कमलेश और चिन्तन तो पैदल ही चले। बाकी के लिए तीन घोडे पांच सौ रु.प्रति घोडे के हिसाब से लिए। ये चढाई हमारे लिए कठिन नहीं थी। बर्फ के पहाडों पर पंहुचे। बर्फ पर चलकर और उपर जाना था,जहां एक झरना बहता है। यहां फिर स्लेज गाडी वाले हम पर टूट पडे। साढे तीन हजार,ढाई हजार कहते कहते बारह सौ रुपए में सभी को स्लेज से ले जाने के लिए तैयार हो गए। हम लोग तो बिना स्लेज के ही उपर झरने तक पंहुच गए। यहां कई सारे फोटो बनाए। इस झरने को हजार जडी बूटी वाला झरना कहते है। झरने का पानी बाटल में भरा। तभी स्लेज गाडी वाले आ गए। चूंकि बात पहले कर ली थी इसलिए स्लेज पर सवार होकर पलक झपकते ही नीचे आ गए। घोडे वाले यात्रियों को फिर से घोडों पर बैठाया। हम पैदल ही नीचे गण्डोला तक आए। गण्डोला में सवार होकर नीचे जा पंहुचे। अब हमें गाडी तक पैदल चल कर जाना था। थोडी ही देर में पैदल चलते चलते गाडी तक जा पंहुचे। अब भूख लग आई थी। जल्दी खाना खाना था। गाइड को साथ लेकर नीचे उस दुकान तक पंहुचे,जहां बर्फ से बचने के लिए स्नो सूट लिए थे। स्नो सूट जमा करवाए। गाइड को छ: सौ का भुगतान करके गाडी आगे बढा दी। रास्ते में गाइड नासिर से कश्मीर के बारे में बात होती रही। वह अपने आपको राष्ट्रवादी बता रहा था। उसका कहना था कि राजनीति की वजह से माहौल अशान्त है।
    बहरहाल,लौटते समय हमारा ड्राइवर उसी होटल में ले गया,जहां जाते समय हमने चाय पी थी। इसी होटल में कैम्प से लाए हुए पराठे सब्जी का भोजन किया। चाय पी। इसी दौरान वहीं की एक दुकान का कर्मचारी आकर हमसे बातें करने लगा। यह भी खुद को राष्ट्रवादी बता रहा था। उसका कहना था कि महज दो प्रतिशत लोग आजादी की बातें करते है। वरना कश्मीर का भारत में रहे बगैर उध्दार नहीं है।
    इस होटल में भोजन चाय करके जब निकले तो 4.50 हो गए थे। मेरा अंदाजा शाम सात बजे तक पंहुचने का था। हम करीब साढे सात बजे कैम्प में पंहुचे।
    कैम्प में पंहुचे कि रतलाम मन्दसौर की खबरें मिलने लगी। भोजन करते करते भी मोबाइल पर चर्चा होती रही। भोजन के बाद एसपी से चर्चा हुई। यूएनआई में प्रशान्त जी को अपडेट किया। अब रात के साढे ग्यारह बज चुके है। अब सोने की तैयारी। कल तो लोकल ही घूमना है।

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