Sunday, July 16, 2017

J & K Journey 3 कश्मीर यात्रा-3/ आतंक के असर में घाटी का सफर

9 जून 2017 शुक्रवार

दोपहर ढाई बजे
पीडब्ल्यूडी डाक बंगला,उधमपुर।

    कल दोपहर श्रीनगर घूमने के दौरान सबसे पहले हमारे ड्राइवर सोहनसिंह ने मुझे बताया कि कश्मीर में गडबडी हो रही है। हमें रात में ही निकल लेना चाहिए। बाद में कुछ और लोगों से पता चला कि शुक्रवार को कश्मीर में बन्द का आव्हान है। ऐसे में हमने तय किया कि सुबह जल्दी साढे पांच बजे कश्मीर से निकल पडेंगे। हम साढे पांच बजे वहां से निकले और दोपहर डेढ बजे यहां पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस के आरामदायक कमरों में आ गए। यहां आकर ही डायरी से जुडने का मौका मिल पाया है।


8 जून 2017 गुरुवार

     कल की शुरुआत सुबह साढे पांच पर जागरण से हुई थी। बीती रात मौसम साफ रहा था। आज हमें श्रीनगर में ही घूमना था। कैम्प से निकलते निकलते पौने नौ बज गए थे। सबसे पहले हम आदि शंकराचार्य मन्दिर पंहुचे। आदिगुरु शंकराचार्य ढाई हजार वर्ष पहले अपने भारत भ्रमण के दौरान जब कश्मीर घाटी में आए थे,तब
उन्होने श्रीनगर की सबसे उंची पहाडी पर शिवलिंग स्थापित कर कुछ समय तपस्या की थी। 1566 में शाहजहां ने इस मन्दिर को नष्ट कर दिया था। बाद में महाराजा गोपादित्य ने इसका जीर्णोध्दार किया। गाडी से पहाडी के उपर पंहुचने के बाद करीब ढाई सौ सीढियां चढकर मन्दिर पर पंहुचना होता है। पत्थरों से बना मन्दिर छोटा है,लेकिन सुन्दर है। इस पहाडी से डल झील और पूरे श्रीनगर का विहंगम दृश्य दिखाई देता है,जो बहुत ही सुन्दर है।
    मन्दिर का दर्शन करने के बाद परी महल देखने पंहुचे। इसका निर्माण दारा शिकोह ने करवाया था। यह छ: मंजिला निर्माण है और हर मंजिल की छत पर बेहद खुबसूरत बगीचा बनाया गया है। ये मंजिले भी सीढीनुमा है।हम नीचे तक देखकर आए। परीमहल से भी श्रीनगर का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। चारों ओर पहाडियां औव इनके बीच में डल झील और श्रीनगर।  यहां कई विडीयो बनाए। परीमहल के नजदीक ही चश्मे
शाही है। पहाड से उतरते एक झरने पर उद्यान बना दिया गया है। कहते है यहां का पानी बडा गुणकारक है। हम चश्म-ए-शाही के भीतर पंहुचे।  पेडों की घनी छांव और हरी मखमली घांस।  सुन्दर मनमोहक फूल। यहीं भोजन करने का निश्चय किया। कैम्प से लाए हुए सब्जी पराठे का भोजन किया। अभी करीब दो बज गए थे। भोजन से निवृत्त होने के बाद निशात बाग देखने पंहुचे।  निशातबाग बेहद विशाल सीढीनुमा उपवन है,जिसके बीचोबीच में प्राकृतिक झरने को फौवारों के साथ नीचे तक लाया गया है। फौव्वारों के दोनो ओर एक जैसे पेड,फूलों की क्यारियां इतने करीने से लगाए गए हैं कि नजरे अटक कर रह जाती है। निशात बाग के बीचोबीच बहने वाले झरने के साथ आगे बढते जाने पर एक के बाद एक उंचे स्तर आते हैं। बाग के आखरी में सबसे उंचे स्तर पर पहाडी से उतरने वाला झरना एक सुन्दर से कुण्ड में उतारा गया है। इस कुण्ड में भी फौव्वारें लगाए
गए हैं जो पानी के प्राकृतिक बहाव और तेज गति के कारण चलते है। इस कुण्ड में कुछ स्कूली लडके तैर रहे थे। उन्हे देखकर कमलेश का भी मन नहाने का हो आया। चिंतन की भी इच्छा नहाने की थी लेकिन वह हिचकिचा रहा था। फिर कमलेश को देखकर वह भी राजी हो गया। कमलेश की दोनो बालिकाओं ने भी पानी में जी भर कर उछलकूद की। यहां करीब दो घण्टे गुजार कर हम बाहर निकले।
मैं टैक्सी ड्राइवर के पास पंहुचा,तो उसने एक स्थानीय व्यक्ति के हवाले से बताया कि शोपियां में कोई एनकाउण्टर हुआ है और कल हडताल होगी। ड्राइवर ने कहा हमें रात में ही चल देना चाहिए। मैने कहा कि अभी हालात देखेंगे,तब कोई फैसला लेंगे।
     निशात बाग के बाद हमारा अगला लक्ष्य था डल झील। डल झील के चिनार घाट पर हमने पांच पांच सौ रु.में दो शिकारे लिए औव डल झील घूमने निकले। करीब एक घण्टे की शिकारा राइड में नाव पर चलती कई दुकानें हमारे पास आई। हाउस बोटों के पास से गुजरते हुए हम तैरते बाजार में पंहुचे। कपडों की एक दुकान के भीतर

भी गए,लेकिन यहां के हैण्डीक्राफ्ट्स बेदह महंगे है और सामान्य व्यक्ति की पंहुच के बाहर है। बाजार में निकल कर झील के बीच बने नेहरु गार्डन में पंहुचे। यहां दस पन्द्रह मिनट गुजार कर फिर से शिकारे पर सवार हुए। अब वापसी का समय था। शांत झील में धीरे धीरे चलते हुए फिर से चिनार घाट पर पंहुच गए।
    दिन भर साफ मौसम अब करवट बदलता दिख रहा था। तेज हवाएं चलने लगी थी। हमें अभी शालीमार गार्डन देखना था। शाम के करीब छ: बज गए थे। हवाएं तेज हो रही थी और किसी भी वक्त बारिश शुरु होने का अंदेशा था। फिर भी हम शालीमार गार्डन पंहुचे। टिकट लेकर भीतर गए। यह भी वैसा ही सुन्दर है,जैसा निशात बाग था,लेकिन यह एक ही स्तर पर है और समतल है। शालीमार गार्डन में थोडा ही भीतर पंहुचे थे कि मोटी मोटी बूंदे गिरने लगी।  हम लोग दौडते हुए वाहन तक पंहुचे। वाहन में सवार हुए कि तेज बारिश शुरु हो गई। कैम्प तक पंहुचते पंहुचते सात बज गए थे। वैदेही को चाय पीना थी,लेकिन रास्ते में कही भी चाय नहीं मिली। कैम्प के सामने ही चाय की एक दुकान थी। अब बारिश धीमी हो गई थी। हम चाय पीने पंहुचे। यहां भी दुकानदार ने बताया कि शोपियां में कुछ हुआ है। कल हडताल होगी। अब हम इस निर्णय पर पंहुच गए थे कि सुबह जल्दी पांच बजे निकल पडेंगे। कैम्प में लाइट बन्द थी। सुबह जल्दी निकलना था इसलिए पैकिंग रात को ही करना थी। टार्च की रोशनी में पैकिंग की और रात का भोजन भी जल्दी ही कर लिया। रात करीब साढे नौ बजे तो सोने की तैयारी कर ली। रात दस बजते बजते तो हम नींद के हवाले हो गए।

9 जून 2017

    आज सुबह चार बजे उठ गए,क्योंकि पांच बजे रवाना होना था। यह तय किया था कि स्नान उधमपुर पंहुचकर ही करेंगे। उधमपुर पीड्ब्ल्यूडी रेस्ट हाउस पर बात हो चुकी थी,इसलिए यही तय किया कि आज उधमपुर पंहुचकर ठीक से आराम करेंगे और कल सुबह कटरा निकलेंगे। यदि आज सीधे कटरा जाते तो होटल ढूंढना पडता,फिर परसों तक रुकने की वजह से बोरियत अलग होती।
    सुबह व्हायएचएआई कैम्प से निकलते निकलते साढे पांच हो गए थे। माहौल में कहीं कोई गडबड नजर नहीं आ रही थी। सब कुछ सामान्य था,लेकिन ड्राइवर डरा हुआ था। उसका कहना था कि रास्ते में पामपोर और अनन्तनाग में पथराव हो सकता है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। पामपोर के बाहर एक दुकान पर ड्राइवर ने गाडी रोकी। उसका कहना था कि ड्रायफ्रूट्स अगर खरीदना है तो यहां से खरीद लीजिए। इस दुकान पर हमसे पहले महाराष्ट्र के कुछ लोग मौजूद थे। उन्होने खरीददारी की। फिर हम लोगों ने कुछ अखरोट व अन्य चीजे खरीदी।
सुबह करीब साढे बजे जवाहर टनल से करीब पन्द्रह किमी पहले काजीगुण्ड में टोल गेट से पहले ड्राइवर ने एक छोटे से ढाबे पर नाश्ता करने के लिए गाडी रोकी। हमने भी यहीं नाश्ता करने का मन बनाया और मैदे के घटिया से आलू पराठे खाए। जवाहर टनल के उस पार सबकुछ ठीक है। अगले आधे घण्टे में हम जवाहर टनल पार कर चुके थे। वापसी का हमारा सफर दोपहर डेढ बजे उधमपुर के पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस पर आकर खत्म हुआ। यहां ड्राइवर को भुगतान किया और कमरों में आकर चाय पी। अब कल यहां से सुबह दस बजे के आसपास कटरा के लिए रवाना होंगे। कटरा में दर्शन पर्ची और ठहरने की व्यवस्था सबकुछ तैयार है। 11 जून को वहीं से ट्रेन में सवार होंगे।
     करीब सत्रह साल बाद मैं कश्मीर आया। पिछले चार दिनों में जो कुछ देखा सुना उससे तो यही लगा कि सब कुछ वैसा ही है। कुछ भी नहीं बदला। पिछली बार भी यहां के लोग कहते थे कि हमें आजादी दे दो। अब भी यही कहते है। पहले भी पर्यटकों से कहते थे कि हमें न पाकिस्तान से मिलना है,ना हिन्दूस्तान से। हमें अलग कश्मीर चाहिए। वही के वही तर्क। ये कश्मीरी गंवार और जाहिल लोग है। इन सत्रह सालों में जो एक फर्क नजर आया वो ये कि हर कश्मीरी पर्यटकों को यह विश्वास दिलाता है कि पर्यटकों को कोई खतरा नहीं है। पर्यटकों से ही उनकी रोजी रोटी चल रही है,इसलिए वे पर्यटकों का सम्मान करते हैं।  गुलमर्ग का हमारा गाईड कह रहा था कि यदि आतंकी भी आपके सामने आएंगे तो यही कहेंगे कि आपको कोई परेशानी तो नहीं है। घोडे वाले से लेकर मजदूरी करने वाले तक हर व्यक्ति अपने आपको राजनैतिक तौर पर बडा जागरुक बताएगा। कश्मीर के हालात के वर्णन के लिए मीडीया को गाली देगा। कल शाम को चाय बनाने वाला हकला हकला कर यही कह रहा था कि मीडीया की वजह से पर्यटकों में डर फैलता हंै और वे कश्मीर आने से डरने लगे है। इसलिए यहां पर्यटकों की संख्या बेहद घट गई है।
     हांलाकि कुछ लोग राष्ट्रवादी भी मिले। गुलमर्ग से लौटते समय चाय की दुकान पर बैठे तो बगल की कपडे की दुकान वाला युवक हमे बताने लगा कि हिन्दुस्तान के बिना कश्मीर का भला नहीं होने वाला। वह कह रहा था कि आजादी की बात करने वाले महज दो प्रतिशत लोग है। ये कम पढे लिखे जाहिल लोग है,जो आजादी की बातें करते हैं। वरना तो अधिकांश लोग भारत के साथ ही रहना चाहते हैं। इसी तरह गुलमर्ग वाला गाईड भी यही कह रहा था कि उसका सगा भाई फौज में है। वह तो खुद को भारतीय ही मांनता है। लेकिन उसी गुलमर्ग में जब मैने घोडे वाले से घोडे लेने से इंकार कर दिया तो कहने लगा कि आप की वजह से ही हमारी कमाई होती है। आप घोडे नहीं लोगे तो हम क्या करेंगे। मैने फिर भी इंकार किया तो कहने लगा,जब हमें कमाई नहीं देना है,तो आजादी क्यो नहीं दे देते? वे इस तरह जताते है जैसे भारत पर एहसान कर रहे हो। कश्मीर आकर उन लोगों को कमाई देना जैसे हमारा दायित्व है। निश्चित रुप से घोडे चलाने वाला वह युवह अधिक पढा लिखा तो होगा नहीं। यात्रा के दौरान कई जगहों पर गो इण्डिया गो बैक,हमे आजादी चाहिए और यहां तक कि वेलकम पाकिस्तान भी लिखा देखा। यही समझ में आया कि इन लोगों के दिमागों को बदलने के लिए लम्बे समय तक प्रयास करना जरुरी है।ये जाहिल लोग उर्दु अरबी पढते है। इतिहास की इन्हे जानकारी नहीं है। ये खुद को भारतीय तो मानते ही नहीं,कश्मीर को भी अपनी बपौती मानते है। इन्हे यह भी नहीं पता कि कुछ सौ बरसों पहले इनके बाप दादे भी हिन्दू ही थे.जिन्हे अत्याचार करके मुस्लिम बनाया गया था। मुस्लिम होने की वजह से ही इनकी सोच अलगगाववादी है। इनकी प्रारंभिक शिक्षा में ही इन्हे यह सब सिखा दिया जाता है। जरुरत इस बात की है कि मदरसों में पढाए जाने वाले देश विरोधी पाठ हटाकर देशभक्ति,राष्ट्रीयता के संस्कार दिए जाए। जो  वेलकम पाकिस्तान कहता है,उसे सख्ती से कुचल दिया जाए। यह मुद्दा राजनैतिक तो कतई नहीं है। धारा 370 के तहत सर्वाधिक स्वायत्तता होने के बावजूद,अरबों खरबों की वित्तीय मदद के बावजूद ये असंतुष्ट ही है। आप उन्हे चाहे जो दे दो,वे कभी संतुष्ट नहीं होंगे। उन्हे तो संतुष्टि तभी मिल सकती है,जब वे कश्मीर को इस्लामिक राज्य बना ले। ऐसे में जरुरी है कि गडबडी फैलाने वाले,चाहे वे आतंकी हो,अलगाववादी हो या फिर नासमझ छात्र उन्हे सख्ती से दबाया जाए और जो मुख्यधारा में राष्ट्र के साथ चलने को राजी हो,उन्हे प्रोत्साहित किया जाए। धारा 370 हटना भी जरुरी है। इनमें से पढने वाले छात्र-छात्राओं को देश के अलग अलग क्षेत्रों मे ले जाकर अन्य लोगों से मिलवाया जाए,तब उन्हे पता चलेगा कि आखिर भारत क्या है और कैसा है? कश्मीर के नब्बे प्रतिशत लोग ऐसे है होंगे जो कभी देश के अन्य हिस्सों में नहीं गए है। घाटी में रहने वाले इन मूर्खों को पता ही नहीं है कि पहाडों के दूसरी ओर कितनी बडी संख्या में मुसलमान रहते है और कितने व्यवस्थित रहते है। ये पहाड के पीछे अंधों के गांव जैसा मसला है। इन्हे बाहर की दुनिया दिखानी होगी,तब ये जानेंगे कि घाटी के बाहर भी दुनिया है।

10 जून 2017 शनिवार

सुबह 9.30
उधमपुर पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस

    कल शाम को भोजन जल्दी हो गया था। रेस्टहाउस पर बढिया भोजन करने के बाद रात साढे दस तक सौ गए थे। सुबह साढे पांच पर उठा। नित्यकर्म,स्नान आदि से निवृत्त होकर बाजार का चक्कर लगाने पंहुचा। आज हमें कटरा जाना है,जहां वैष्णो देवी के दर्शन करना है। प्राइवेट टैक्सियों के भाव आसमान पर थे।  बस जहां कटरा जाने के मात्र पैंतीस रु. लेती है,मारुति वैन वाले साढे ग्यारह सौ,तेरह सौ रु.मांग रहे थे। यही तय किया कि आटो लेकर रेस्ट हाउस जाएंगे और आटो से बसस्टैण्ड पंहुच जाएंगे। इस बहाने थोडी सामान्य आम यात्रा का मजा भी ले लेंगे। फिलहाल सामान पैक हो चुका है। नाश्ते का इंतजार है। नाश्ता करके रवानगी होगी।

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