Sunday, July 16, 2017

J & K Journey 4 कश्मीर यात्रा-4/ आतंक के असर में घाटी का सफर

11 जून 2017 रविवार

सुबह 9.10

कोच न.बी-4/ 35 जामनगर एक्सप्रेस

कटरा रेलवे स्टेशन


    सुबह तो ठीक हुई थी कि लेकिन यात्रा की शुरुआत विवाद से हुई। हमने ट्रेन का समय एक घण्टे पहले का
बताया था कि ताकि भगडद ना हो और आराम से ट्रेन पकड सकें। सुबह साढे सात पर नाश्ता करके आटो लेने के लिए गए। आटो वाले सौ की बजाय दो सौ रु.मांग रहे थे। मुझे गुस्सा आया,मैने पुलिस हेल्पलाइन नम्बर पर फोन लगाया। यह नम्बर पुलिस थाने का था।
थाने के कर्मचारी ने कहा कि आप थाने आ जाईए। हम थाने पर पंहुचे,एक लिखित शिकायत की। थाने से एक कान्स्टेबल हमारे साथ आया,जिसने सौ सौ रुपए में दो आटो करवाए। इस मशक्कत में करीब आधा घण्टा लगा। इस दौरान वैदेही का फोन आ गया कि तुमने एक घण्टे पहले का टाईम क्यो बताया? उसका स्वास्थ्य खराब हो रहा है। यात्रा शुरु करते वक्त भी उसे बुखार आने लगा था,अभी भी बुखार आ रहा है। शायद यही वजह रही कि वो बेवजह नाराज हो रही थी और यात्रा का अंतिम हिस्सा बेवजह मूड खराब करने लगी।        
    बहरहाल,गाडी ठीक समय पर चल चुकी है। अब कल दोपहर से अब तक का घटनाक्रम।
  कल उधमपुर पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस पर साढे नौ बजे हम नाश्ते के लिए बैठे। बढिया आलू पराठे दही का नाश्ता किया। रेस्ट हाउस का हिसाब करने के लिए करीब पैंतालिस मिनट का इंतजार करते रहे। हिसाब करते और बिल अदा करने में सवा ग्यारह बज गए। हमें भी कोई जल्दी नहीं थी। बिल अदा करके आटो लेने निकले। हमें दो आटो चाहिए थे,लेकिन आटो एक ही था। उसने दो चक्कर लगाने की बात कही। करीब साढे ग्यारह बजे हम बस स्टैण्ड पर थे। कमलेश पहले ही पंहुच गया था। उसने बस तय कर ली थी। बस स्टैण्ड पंहुचकर सामान रखा कि थोडी ही देर में करीब बारह बजे बस रवाना हो गई। शहर में रेंगती हुई चल रही बस पहले आधे घण्टे तक धीरे धीरे चलती रही।  फिर कुछ तेज हुई लेकिन जगह जगह रुकती रही। करीब पौने दो बजे बस कटरा बस स्टैण्ड पर पंहुची। हमारा आशीर्वाद काम्प्लेक्स बसस्टैण्ड पर ही था। तुरंत ही अपने उस हाल में पंहुच गए,जहां हमें पलंग दिए गए थे। वैष्णोदेवी श्राईन बोर्ड द्वारा तीर्थ यात्रियों की सुविधा के व्यापक इंतजाम किए गए हैं।  हजारों यात्रियों को ठहराने के लिए कम दरों पर डोरमैट्री और कमरे उपलब्ध है। इसकी आनलाइन बुकींग भी होती है। कमरे उपलब्ध नहीं थे इसलिए मैने डोरमैट्री में सात पलंग बुक करवा लिए थे।  श्राईन बोर्ड के इस आशीर्वाद काम्प्लेक्स में डोरमैट्री के बडे बडे हॉल है। प्रत्येक हाल में 62 पलंग है। चार मंजिला इस भवन में पांच सौै से अधिक यात्री ठहर सकते हैं। क्लाक रुम व कम्बल निशुल्क दिए जाते है। कम्बल के लिए सिक्यूरिटी राशि जमा करना पडती है।
    कमरे में सामान टिका कर यह तय हुआ कि जल्दी ही वैष्णोदेवी के लिए निकलेंगे। लेकिन इससे पहले जानकारियां जुटाने के लिए मैं और कमलेश बाहर निकले। बस स्टैण्ड पर बने श्राईन बोर्ड के पर्यटक सूचना केन्द्र के एक कर्मचारी ने बताया कि अध्र्दकुंवरी से बैटरी कार मिलती है,जो प्रति व्यक्ति तीन सौ रु.लेती है। हमने तय किया कि अध्र्द कुंवारी तक पैदल जाएंगे और वहां से बैटरी कार ले लेंगे।
    हम बस स्टैण्ड पर ही थे कि आसमान में बादल छाने लगे और जल्दी ही बारिश शुरु हो गई। यात्रा शुरु करने की योजना हमें रोकना पडी। लेकिन गनीमत यह रही कि बारिश ज्यादा देर नहीं हुई और जल्दी ही मौसम साफ हो गया। अब हम यात्रा की तैयारी करने लगे। मेरी सोच थी कि उपर ठण्ड होगी,इसलिए एक एक गर्म कपडा रखना चाहिए। चिंतन का बैग खाली करके इसमें गर्म कपडे रखे। बाकी का सारा सामान नीचे क्लाक रुम में जमा करवाया। इसी समय मुझे महसूस हुआ कि फ्रैश हो जाना चाहिए। मै फ्रैश होने गया। लौटा और हम यात्रा के लिए चल पडे।
     आशीर्वाद काम्प्लेक्स से वैष्णो देवी का प्रवेश द्वार लगभग ढाई किमी है। यह दूरी हमने पैदल ही तय की। प्रवेश में ज्यादा दिक्कत नही ंआई। हम जल्दी ही चैकिंग से निपट कर भीतर पंहुच गए। ठीक 5.10 पर हमने यात्रा प्रारंभ की।  मेरा हिसाब किताब यहीं गडबड हो गया।  मेरा सोचना था कि हम करीब दो घण्टे में अध्र्दकुंवरी पंहुच जाएंगे। अगले दो घण्टे में बैटरी कार से उपर जाकर फिर से अध्र्दकुंवरी लौट आएंगे और अगले दो घण्टे में नीचे पंहुच जाएंगे। इस हिसाब से हमें करीब एक बजे तक दर्शन करके अपने कमरे में लौट आना चाहिए था। लेकिन मेरे हिसाब में यहीं गडबडी हुई कि दोनो महिलाएं बेहद धीमी साबित हुई। वैदेही तो बीमार भी थी। रचना भी धीमे धीमे ही चल रही थी। कमलेश अपनी छोटी बेटी पीहू को कभी उठाकर तो कभी पैदल चलाकर चल रहा था। महिलाओं की धीमी गति के कारण अध्र्दकुंवारी पंहुचते पंहुचते साढे आठ हो गए थे।
    मैं और चिंतन सबसे पहले सोचे गए टाइम के मुताबिक करीब साढे सात पर अध्र्दकुंवारी पंहुच गए थे। यहां पंहुचकर झटका यह लगा कि बैटरी कार का टिकट काउण्टर बन्द था और यहां लम्बी लाईन लगी थी। टिकट काउण्टर पर सूचना लगी हुई थी कि बैटरी कार की सुविधा सिर्फ वृध्द,विकलांग और बीमार लोगों के लिए है। हम टिकट काउण्टर के सामने ही बाकी लोगों का इंतजार कर रहे थे। करीब आधे पौने घण्टे  इंतजार करते रहे। वैदेही से फोन पर बात हुई कि हम अन्नपूर्णा भोजनालय के सामने इंतजार कर रहे हैं। उसने कहा हम काफी नीचे है,धीरे धीरे आएंगे। आप लोग दर्शन कर लो।  हम इनका नीचे ही इंतजार कर रहे थे कि ये महिलाएं बीच की एक सीढी पकड कर सीधे अध्र्दकुंवारी मन्दिर पंहुच गई। फोन करने पर बडे गर्व से कहने लगी कि हम तो मन्दिर के सामने आ चुकीं है। इस दौरान चिंतन को भूख लगने पर एक वडा सांभर खिलाया,फिर पीहू ने भी एक वडा खाया। अब हम करीब दो सौ मीटर आगे अध्र्दकुंवारी मन्दिर के लिए चले। करीब सवा नौ बजे मन्दिर के सामने दोनो महिलाएं हमें मिली। इस समय पौने दस हो गए थे। मन्दिर पर पता चला कि गर्भजून गुफा और मन्दिर में जाने के लिए अलग से पर्ची लेना पडती है। वैदेही और रचना को अन्य यात्रियों से पता चला कि वे सुबह से पर्ची लेकर बैठे है,उनका अब तक नम्बर ही नहीं लगा है।  अब दस बज गए थे। मैने कहा कि जब यहां दर्शन में दस बारह घण्टे लग रहे हैं तो निश्चित ही उपर गुफा में भी यही हालत होगी। ऐसे में गुफा तक जाने में कोई फायदा नहीं है। यहां से लौट जाना चाहिए। दर्शन नहीं कर पाने की बात से रचना मायूस हो गई। लेकिन मैने समझाया कि हमें सुबह ट्रेन पकडना है।
     इन्ही बातों के बीच मन्दिर से थोडा नीचे उतर कर एक होटल में घटिया सा खाना खाया। होटल वाला आधी कच्ची आधी पक्की रोटियां परोस रहा था। जैसे तैसे थोडा सा खाया। अब कमलेश इस जुगाड में लगा था कि हम किसी तरह घोडे पर उपर जाकर दर्शन कर लें। कुछ यात्रियों से पूछने पर उन्होने बताया कि दर्शन बडी आसानी से हो जाएंगे। अब घडी पौने ग्यारह का वक्त बता रही थी। मैने सलाह दी कि उपर जाने की बजाय लौट जाना ही बेहतर होगा,लेकिन कमलेश नहीं माना। उसने घोडे वालों से पूछताछ की। अधिकांश घोडे वाले नीचे जाने को राजी थे,उपर जाने को कोई राजी नहीं था। कई घोडे वालों से बातचीत के बाद एक घोडे वाला राजी होने लगा लेकिन वह एक घोडे के आठ सौ रुपए मांग रहा था। कमलेश छ: सौ पर राजी था। घोडे वाला कम करने को राजी ही नहीं था। बडी देर बाद वह सात सौ रुपए में राजी होने लगा। लेकिन तब तक मैने कमलेश पर जोर डाला कि अब नीचे लौटने में ही हमारा भला है।  गुफा के दर्शनों के लिए अलग से कार्यक्रम बना लेंगे। मेरे दबाव डालने पर वह लौटने के लिए राजी हो गया। 
    अब रात के बारह बज रहे थे। हम लौटने लगे। पीहू तो कमलेश की गोदी से उतरने को राजी ही नहीं थी। लिहाजा वह पीहू को कंधे पर बैठाकर तेजी से उतरने लगा।  मैं और चिंतन भी  तेजी से उतरने में सक्षम थे,लेकिन महिलाओं की वजह से हमें भी धीरे चलना पड रहा था। वैदेही और रचना की हालत अब खराब हो रही थी। घोडे वाले मुहमांगी कीमत मांग रहे थे। दोनो महिलाएं दर्द से कराहती कांखती चींटी की चाल से उतरने लगी। अभी थोडी ही देर हुई थी कि कमलेश का फोन आ गया कि वह गेट पर पंहुच गया है। वह गेट पर ही हमारा इंतजार कर रहा था। इधर महिलाओं की गति और भी धीमी पडती जा रही थी। करीब पौने एक बजे हम नीचे चरण स्पर्श मन्दिर तक पंहुच पाए। दोनो महिलाओं ने इस मन्दिर के दर्शन किए। मेरा विचार था कि अब सौ डेढ सौ रुपए में घोडे करके इन्हे बैठाना ही अच्छा होगा। इसी बीच,थकान दूर करने की इलेक्ट्रानिक कुर्सियों पर वैदेही रचना और अवनी को बैठाया।  पन्द्रह मिनट की मालिश के ये लोग पचास रुपए लेते है। लेकिन इन कुर्सियों पर बैठने वालों को भारी राहत महसूस होती है। इनके ना ना करने पर भी इन्हे कुर्सियों पर बैठाया। इसी दौरान एक घोडे वाले बात हुई। चार सौ रुपए में दो घोडों पर तीनों को बैठाकर आगे रवाना किया। इन्हे लग रहा था कि अब थोडा ही रास्ता बचा है,जबकि करीब ढाई किमी रास्ता बाकी था और इसे पार कर पाना इनके लिए बैहद कठिन था।  अगर इन्हे पैदल ले जाया जाता तो रात के तीन बज जाते। घोडों की वजह से हम रात दो बजे गेट पर पंहुच गए। वैदेही,रचना और अवनी को घोडों पर बैठाकर मैं और चिंतन तेजी से नीचे चले।  चिंतन ने तो कमाल ही कर दिया। कपडों का बैग और कैमरा लेकर  वह सबसे तेजी से आगे चल रहा था। लौटने में भी वह बिना थके आगे ही चल रहा था। 
    हम दो बजे गेट पर पंहुच गए।  कमलेश इंतजार ही कर रहा था। दो-दो सौ रुपए में आटो करके हम जल्दी से आशीर्वाद काम्प्लेक्स पंहुच गए। रात के ढाई बज चुके थे। अब चिंतन को भूख लगी थी। मैने कहा मै देखता हूं कि क्या हो सकता है? बस स्टैण्ड पर कुछ दुकानें खुली थी। एक दुकान पर दो पैकेट मैगी बनवाकर और चाय लेकर पंहुचा। चिंतन और वैदेही ने मैगी खाई। अब तीन बज चुके थे। मैं साढे तीन पर सोया।
सभी को ट्रेन का समय आठ बजे का बताया था कि ताकि सुबह हडबडी ना हो। सुबह साढे पांच पर वैदेही ने मुझे जगाया। वह पांच बजे उठ गई थी। सुबह सात बजे तक स्नान आदि से निवृत्त होकर नीचे पंहुच गए। सामान भी नीचे रख दिया। श्राईन बोर्ड के भोजनालय में हम चारों ने वडा सांभर  चाय का नाश्ता किया। हमने सोचा था कि किसी होटल से पराठे पैक करवा कर ले चलेंगे। वही देखने और आटो लेने बस स्टैण्ड पर पंहुचे। ढाबे होटल चालू नहीं हुए थे। एक ढाबे पर पराठे बन रहे थे,लेकिन ध्यान में आया कि मैदे के पराठे ठण्डे होने पर खाए नहीं जाएंगे। इसलिए भोजन पैक करवाने का आईडिया रद्द किया। जब आटो लेने गए तो आटो वाले डेढ सौ रु.से कम लेने को राजी ही नहीं थे। पुलिस की मदद से आटो लेकर आशीर्वाद पंहुचे तो भडकी हुई वैदेही ने नीचे आने में काफी देर लगाई। पौने नौ बजे स्टेशन पंहुचे। हडबड जैसा माहौल बन ही गया था। हमें कटरा से उधमपुर का जनरल टिकट लेना था,लेकिन हडबडी में भूल ही गए।
    गाडी प्लेटफार्म पर खडी थी। कोच बिलकुल आखरी में था। कोच में बैग टिकाया । अब 8.50 हो गए थे। मैं दौडते हुए गया,लम्बी दौड लगाकर 7 जनरल टिकट टिकट लिए। टिकट लेकर आया कि गाडी चल दी।  अब उधमपुर निकल चुका है। टीसी उधमपुर के बाद ही आया। अब लग रहा है कि टकट नाहक ही खरीदे। ट्रेन में आते ही वैदेही सीट पर सौ चुकी है,उसे बुखार आ रहा है। ट्रेंन रतलाम की ओर दौड रही है। कल की सुबह रतलाम में होगी।

12 जून 2017 सोमवार

सुबह 8.45

जामनगर एक्स.कोच न. बी 4


    सफर समाप्ति पर। ट्रेन की खिडकी से बांगरोद का आईल डिपो नजर आ रहा है। ट्रेन धीमी गति से चल रही है। अपना सारा सामान बैग में रख चुके है। कुछ ही मिनटों के बाद हम रतलाम में होंगे।
सितम्बर में अगली यात्रा की तैयारी.......।


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