Thursday, November 23, 2017

satopant Swrgarohini yatra-1 स्वर्ग की सीढियां चढने की चाहत-1

सतोपंत स्वर्गारोहिणी यात्रा (7 सितम्बर 2017 से 19 सितम्बर 2017)

सतोपंत स्वर्गारोहिणी की खतरनाक यात्रा पर जाने का आइडिया सबसे पहले एडवोकेट मित्र प्रकाश राव पंवार ने दिया था। पिछले साल कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान उत्तराखण्ड के आईजी संजय गुंजियाल से मित्रता हुई,तब उनसे इस यात्रा का जिक्र किया था और उन्होने कहा था कि तुम जब भी आना चाहो आ जाओ,इस यात्रा की सारी व्यवस्थाएं मैं करवाउंगा। इसके अलावा 2015 में उत्तराखण्ड के चारधाम की यात्रा के दौरान भी यह तय हुआ था कि दो साल बाद संतोष  जी त्रिपाठी का जन्मदिन बद्रीनाथ में मनाया जाएगा। इन सारे कारणों से इस बार सतोपंत स्वर्गारोहिणी की कठिन यात्रा की योजना बनी।
साल में कई बार जब भी गुंजियाल जी से चर्चा हुई,मैने कहा कि सितम्बर में मै यात्रा पर आउंगा और उन्होने हर बार कहा कि आ जाओ। बहरहाल इस यात्रा पर जाने के लिए कुछ अधिक लोग तैयार हो गए। मूल रुप से मै.दशरथ जी पाटीदार,प्रकाश पंवार,संतोष त्रिपाठी और मन्दसौर से आशुतोष नवाल तो जाने ही वाले थे,मन्दसौर से एक अन्य मित्र भी जाने की जिद कर रहा था। इधर भारतीय किसान संघ के प्रान्तीय संगठन मंत्री महेश जी चौधरी ने भी दशरथ जी से कह दिया कि चाहे कुछ हो जाए,वे इस यात्रा में जरुर जाएंगे। इस तरह सात लोग हो गए। हम चाहते थे कि संख्या छ: से अधिक न हो। मन्दसौर से आशुतोष के मित्र को जैसे तैसे नहीं आने के लिए राजी कर लिया। लेकिन इधर आखरी वक्त पर सैलाना से अनिल मेहता अड गए कि वे भी यात्रा पर जाएंगे। इस तरह फिर से आंकडा सात पर जा पंहुचा। यह भी तय हो चुका था कि ये यात्रा चार पहिया वाहन से ही की जाएगी। इसके लिए रामद्वारे की स्कोर्पियों गाडी उपलब्ध थी। लेकिन समस्या यह थी कि उसकी पीछे की सीटें आमने सामने है और पहाडों में यात्रा के लिए जरुरी है कि गाडी में बैठने वाले की नजरें सामने की ओर हो। यानी कि सीटें फ्रन्ट फेसिंग हो। इसका हल आखरी वक्त में टोनी(उदित अग्रवाल) ने किया। गाडी की पिछली सीटों पर प्लाय काट कर लगाई गई ताकि आखरी सीट पर बैठने वाले भी सामने की ओर मुंह करके बैठ  सके। हमारी यह यात्रा 7 सितम्बर 2017 से शुरु हुई और 19 सितम्बर 17 की रात डेढ बजे रतलाम आकर समाप्त हुई।

(पहला दिन) 8 सितम्बर 2017 शुक्रवार
मिलन मोटल,जयपुर -दिल्ली हाई वे

सुबह 7.51
कश्मीर यात्रा के 86 दिन बाद फिर से नई यात्रा दोस्तों के साथ। वास्तव में इस यात्रा के बारे में ठीक दो साल पहले बद्रीनाथ में ही सोचा था। फिर पिछली बार कैलाश यात्रा में आईजी गुंजियाल सा.ने इस यात्रा की सारी व्यवस्थाएं कराने का वादा किया था। प्रकाश पंवार कई सालों से कह रहा था। तो आखिरकार बद्रीनाथ के उपर
सतोपंत स्वर्गारोहिणी जाने का कार्यक्रम बन ही गया। आईजी साहब से बात हुई। उन्होने भी कहा आ जाओ। पहले ट्रेन से जाने का इरादा था,फिर गाडी से जाने का हो गया। पहले चार-पांच लोगों ने तय किया था,संख्या बढकर अब सात हो चुकी है।
इस यात्रा में दशरथ जी पाटीदार,प्रकाश राव पंवार,संतोष त्रिपाठी,भारतीय किसान संघ के महेश जी चौधरी,मन्दसौर से आशुतोष नवाल सैलाना से अनिल मेहता और मैं स्वयं हम सात लोग जा रहे है। अनिल इस यात्रा में आखरी दिन जुडा।
यात्रा कल प्रारंभ हुई थी। हमने सात सितम्बर को सुबह नौ बजे निकलने का निश्चय किया था। लेकिन एडवोकेट चैम्बर्स पर स्वागत और नाश्ता करते करते दस बज गए थे। दस बजे कोर्ट चौराहे से निकले तो सैलाना में अनिल को लेने पंहुचे। सैलाना से पिपलौदा जावरा होते हुए दोपहर करीब साढे बारह बजे हम मन्दसौर पंहुचे। मन्दसौर में आशुतोष ने लगेज बान्धने के लिए रस्सी और तिरपाल ले ली थी। सारा लगेज गाडी के उपर बान्धा। मन्दसौर से निकलने में डेढ बज गया। पिपलीया में आशुतोष की बहन और जीजा जी(काबरा जी) बस स्टैण्ड पर स्वागत के लिए खडे थे। उन्होने कचौरियां और मिठाई का नाश्ता गाडी में रखवा दिया।
हमारा लक्ष्य दिल्ली तक पंहुचने का था,लेकिन हमें काफी देर हो चुकी थी। दिल्ली पंहुचना संभव नहीं था। हमने तय किया था कि जयपुर से निकल कर कहीं ठहर जाएंगे। जयपुर दिल्ली बायपास बहुत लम्बा है। काफी देर तक बायपास पर चलने के बाद जब हाईवे शुरु हुआ तो पहले ही होटल पर रुकने के लिए गाडी रोकी। यह होटल ज्यादा महंगा था। सोचा कहीं आगे रुकेंगे। हमने सोचा था कि साढे आठ पर ही रुक जाएंगे,लेकिन अब सवा नौ हो रहे थे। करीब एक दर्जन होटलों ने हमें निराश किया। जिस होटल में गए वहां या तो एक ही कमरा था या कमरा ही नहीं था। 10 बजे सनशाईन नामक होटल पर पंहुचे। कमरे यहां भी नहीं थे,लेकिन सोचा कि यहीं रुक कर भोजनादि करते हैं,फिर आगे बढते हैं। अब यहां से रात ग्यारह बजे आगे बढे। गाडी चलती रही। आखिरकार हमारी तलाश रात डेढ बजे इस होटल पर आकर खत्म हुई। यहां दो कमरे लिए। सो गए।
अब यहां से हरिद्वार निकलने की तैयारी। अधिकांश लोग तैयार हो चुके है। मैं भी तैयार होने वाला हूं।

8 सितम्बर 2017 शुक्रवार (रात 11.05)
पीएसी 40 बटालियन आफिसर्स मेस हरिद्वार

आज सुबह ठीक ठीक समय पर करीब सुबह पौने दस बजे शाहपुरा के मिलन मोटल से निकल गए। सुबह आलू पराठे का तगडा नाश्ता कर चुके थे। हमारे सामने दो रास्ते थे। या तो दिल्ली होकर हरिद्वार जाएं या दिल्ली छोडकर रोहतक होकर हरिद्वार जाएं। रोहतक वाला रास्ता लम्बा था,लेकिन इससे जाने में भी समय उतना ही लगना था। क्योंकि दिल्ली का ट्रैफिक खतरनाक है। दिल्ली में महेश जी का एक परिचित था,जो रास्ते में ही था। उससे महेश जी की बात हो गई थी। यह तय किया कि दिल्ली होकर ही जाते है। यहीं गलती हो गई। दिल्ली हर किसी के बस में नहीं है। दिल्ली से पहले महेश जी के परिचित धर्मेन्द्र जी के घर पंहुचे। उनके घर पंहुचने में भी थोडी दिक्कतों का सामना करना पडा। गुरुग्राम में धर्मेन्द्र जी के घर पर चाय पी । इस वक्त साढे बारह हो चुके थे। करीब एक बजे यहां से निकले। दिल्ली शहर को पूरा पार करना था। जीपीएस चालू करके चलने लगे,लेकिन फ्लाय ओव्हर वाली दिल्ली में रास्ता चूक जाना सामान्य बात है। एक टर्न छूट गया। इसका खामियाजा हमें डेढ घण्टे की देरी के रुप में चुकाना पडा। हमें धौलाकुंआ होकर जाना था। एक टर्न चूक गए। फिर चले आगे से सही रास्ता पकडने की कोशिश की।  दिल्ली के डरावने ट्रैफिक में दशरथ जी गाडी चला रहे थे।  उनकी तबियत भी







थोडी थोडी गडबडा रही थी। छींके और सर्दी। थोडी देर सही रास्ते पर चले। फिर एक मोड चूक गए। इसका खामियाजा 8-10 किमी अतिरिक्त चलने के रुप में सामने आया। जिस रास्ते पर बढे थे,उसी से पलट कर आना पडा। अब हमने तय किया कि जो जीपीएस बता रहा है,उसी पर चलेंगे।  नई दिल्ली के चाणक्यपुरी,आरके पुरम जैसे इलाकों से होते हुए साढे तीन पर हमें गाजियाबाद का हाईवे मिला। अब गाडी मैं चला रहा था। हाईवे मिलने के थोडी देर बाद एक ढाबे पर रुक कर चाय पी। जीपीएस यहां से चार घण्टे की दूरी बता रहा था। अब रास्ता सही था। तेज गाडी चलाई। आठ बजे की बजाय साढे सात पर हरिद्वार के नजदीक पंहुच गए। आईजी संजय गुंजियाल जी ने व्हाट्सएप पर मैसेज दिया था कि जगजीत को-आर्डिनेट करेगा। जगजीत से फोन पर चर्चा हुई। जगजीत ने बताया हरिद्वार में हमारे रुकने की व्यवस्था 40 पीएसी बटालियन के सर्किट हाउस में है। उसने बटालियन के कमाण्डेन्ट को फोन भी कर दिया था। हरिद्वार के नजदीक पंहुच कर कमान्डेन्ट को फोन कर दिया। फिर गुंजियाल सा. से भी बात हुई। उन्होने बताया कि वे अभी गोवा में है,बारह या तेरह सितम्बर को उत्तराखण्ड पंहुचेंगे।  जगजीत ने बताया कि वह
कल ऋ षिकेश में सारे सामान के साथ मिलेगा। आठ बजे हम हमारे ठहरने की जगह आ पंहुचे। शानदार एसी कमरे। आते ही फ्रैश हुए।
वर्ष 2015 में चारधाम यात्रा में हमारे साथ गए ड्राइवर सुभाष पाल को सुबह ही फोन कर दिया था। दोपहर में उसका फिर से फोन आ गया। रेस्ट हाउस पंहुचते ही उसे भी फोन कर दिया। करीब साढे नौ बजे वह भी आ गया। पौने ग्यारह तक उससे बातें होती रही। वह सुबह फिर आएगा। कल सुबह करीब साढे नौ पर यहां से ऋषिकेश के लिए रवाना होंगे।

दूसरे दिन की यात्रा पढने के लिए यहां क्लिक करें

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