Thursday, November 23, 2017

Satopant Swargarohini Yatra-3 स्वर्ग की सीढियां चढने की चाहत-3

(तीसरा दिन) 10 सितम्बर 2017  रविवार /सुबह 7.30
होटल तुलसी,रुद्रप्रयाग

आज हमें बद्रीनाथ पंहुचना है। कल रास्ते में ही तय किया था कि गाडी की छत पर बान्धा हुआ सामान सीधे बद्रीनाथ में ही खोलेंगे। सारा सामान गाडी पर ही बंधा हुआ रहने देंगे। इसका नतीजा यह है कि हमारा सारा जरुरी सामान भी हमारे पास नहीं है। सिर्फ अण्डर वियर पहनकर इस वक्त बैठा हूं और डायरी लिख रहा हूं।

आज संतोष त्रिपाठी का जन्मदिन है। इसी दिन दो साल पहले बद्रीनाथ में ही तय किया था कि 2017 का संतोष जी का जन्मदिन बद्रीनाथ में ही मनाएंगे।  इस समय यहां आने की पहली वजह तो यही थी। लेकिन बीती रात जब हम लोग भोजन की तैयारी में थे,तो संतोष जी ने कहा कि जन्मदिन का सैलीब्रेशन बद्रीनाथ की बजाय एक दिन पहले यहीं रुद्रप्रयाग में किया जाए। संतोष जी का जन्मदिन बिना केक काटे मनाया। संतोष जी ने भी इसमें पूरा हिस्सा लिया।
उधर दशरथ जी का स्वास्थ्य सुधरने को राजी नहीं है। सर्दी जुकाम ने उन्हे परेशान कर दिया है। उन्हे दवाईयां भी दे रहे हैं लेकिन कोई फर्क नहीं पड रहा है। अब रास्ते में उ्हे किसी डाक्टर को ही दिखाना पडेगा।
महेश जी सुबह भ्रमण पर निकले तो उन्हे यहां दो स्वयंसेवक मिल गए। वे दोनो स्वयंसेवक महेश जी के साथ कमरे पर आए। उनसे कुछ देर चर्चा होती रही।
10 सितम्बर 2017 रविवार/रात 11.00)
पुलिस रेस्ट हाउस बद्रीनाथ

सुबह जब रुद्रप्रयाग से चले,तो बिना नाश्ता किए चले। सोचा था कि कुछ आगे जाकर अल्पाहार करेंगे। सुबह आठ बजे निकलने का तय किया था। सवा आठ बजे गाडी होटल से निकल गई। सारे लोग तैयार थे। हम चल पडे।  महेश जी को कोई दवाई लेना थी। सुबह जो दो स्वयंसेवक आए थे,उनमें से एक मेडीकल स्टोर पर ही काम करता था। वह रास्ते में मिल गया। उसने महेश जी को वह दवा दिलवा दी। करीब पौन घण्टे बाद नगरासू नामक स्थान आया,जहां कई होटल थे। वहीं एक होटल पर रुक कर आलू प्याज गोभी के पराठे बनवाए। जमकर  नाश्ता किया। यहां से दस बजे चले। करीब दो घण्टे बाद लंगासू नामक गांव में उसी होटल पर रुके जहां दो साल पहले संतोष जी का जन्मदिन मनाया था और चावल की खीर बनवाई थी। यह होटल भाजपा के एक नेता का था। दशरथ जी के पास पुरानी हेण्डबुक थी,जिसमें उसका नाम पता भी दर्ज था। उसे बुलाया,बातचीत की। उसके आग्रह पर चाय पी। यहां से आगे बढे।
मेरा अंदाजा था कि हम दो ढाई बजे तक बद्रीनाथ पंहुच जाएंगे,लेकिन ऐसा हुआ नहीं। पहाडी रास्ते इतने आसान नहीं होते। बहरहाल,जोशीमठ से निकलकर,गोविन्दघाट से पहले जेपी ग्रुप के हाइड्रल पावर प्लान्ट के नजदीक एक स्थान पर रुके। यहां से बद्रीनाथ मात्र बीस किमी दूर था। यहां रुककर चाय बिस्कीट्स का एक डोज लिया। आगे बढे। अब पूरा रास्ता चढाईवाला था।







पिछली बार 2015 में जब आए थे,रास्ता था ही नहीं। इस बार सड़क का काफी हिस्सा बन चुका है था,लेकिन काफी सारा हिस्सा कच्चा और खतरनाक था। पिछली बार जब आए थे,अंधेरा घिर चुका था,अब दिन के उजाले में चल रहे थे। कई जगहों पर पहाडी झरने सड़क के उपर से बह रहे थे। ठीक चार बजे हम बद्रीनाथ में थे।
 जगजीत ने बद्रीनाथ में ठहरने की व्यवस्था के लिए एक फोन नम्बर एसएमएस किया था। उस नम्बर पर बात हुई। यह नम्बर एसडीआरएफ के इन्स्पेक्टर केएस आर्य का था। आर्य सा. से बात हुई। उन्होने बताया कि हमारे ठहरने की व्यवस्था पुलिस रेस्ट हाउस में है। थोडी ही देर में पुलिस रेस्ट हाउस के केयर टेकर दिगम्बर राव का भी फोन आ गया। पुलिस रेस्ट हाउस पंहुचे। यहां सारा सामान उतारा। थोडी ही देर में केएस आर्य भी यहां पंहुच गए। पता चला कि  ऋषिकेश से हमारे आने की सूचना यहां पंहुची ही नहीं थी,इसलिए उन्होने ट्रेकिंग की कोई व्यवस्था अब तक नहीं की थी। जबकि हमें यहां से पोर्टर गाईड और कुक के साथ भोजन सामग्री व अन्य व्यवस्थाएं जुटाना थी। समय कम था। आर्य सा.ने एक दो लोगों को फोन लगाए। एक टूर आपरेटर अंकित यहां आया। उसने कहा कि वह थोडी देर में व्यवस्थाएं जुटा कर फोन करेगा।  हमें बद्रीनाथ जी के दर्शन भी करना थे। पुलिस थाने पर हमारे आने की सूचना थी। एक जवान हमें दर्शन कराने आ गया था। यह तय हुआ कि एक डेढ घण्टे में हम दर्शन कर लौटेंगे,तब तक आर्य सा. अंकित के जरिये पोर्टर गाईड आदि की व्यवस्था कर लेंगे।
हम लोग,छ: बजे दर्शनोंके लिए चल पडे। पुलिस जवान हमारे साथ था,इसलिए कोई समस्या नहीं थी। तप्त कुण्ड पर बाल्टी व लोटा आ गया। अभी कुण्ड का पानी बेहद गर्म था। कुण्ड में उतर कर स्नान संभव नहीं था। बाल्टी से पानी लेकर लोटे से स्नान किया। दर्शन करने पंहुचे। वीआईपी व्यवस्था में दर्शन किए। मंदिर से निकल कर कई सारे फोटो व सेल्फी ली।
 लौटने लगे तभी दशरथ जी ने कहा कि उन्हे डाक्टर को दिखाना है। उनका सर्दी जुकाम नियंत्रण में नहीं आ  रहा था। पूछने पर पता चला कि सरकारी अस्पताल का डाक्टर वहीं रहता है। वह देखकर ईलाज कर देगा। मैं दशरथ जी और अनिल अस्पताल के लिए रवाना हुए। बाकी लोग,रेस्ट हाउस जाने के लिए निकले। अस्पताल,मन्दिर के पुल से काफी दूर विपरित दिशा में था। हम लोग वहां पंहुचे। डाक्टर को दिखाया। उसने अब दशरथ जी को एजीथ्रोमाईसिन दे दी। उसने दशरथ जी से यह भी कहा कि आप ट्रेकिंग पर मत जाईए। ऐसी अवस्था में ट्रैकिंग करना ठीक नहीं होगा। दवाईयां लेकर बाहर निकले। सामने सीढियां थी,जो हमें सीधे बध्रीनाथ के एकमात्र पुल पर पंहुचा रही थी। हम चले,थोडी ही देर में हृांफने लगे,क्योंकि आक्सिजन अब विरल होना शुरु हो चुकी थी। हम जैसे ही रोड पर पंहुचे,बाकी के सारे साथी भी वहीं मिल गए। ये लोग रास्ता भटक कर इधर उधर घूम रहे थे।
 सारे लोग रेस्ट हाउस के लिए चल पडे। अभी अनिल को एक गर्म इनर खरीदना था। एक दुकान पर पंहुचे। इनर लिया और रेस्ट हाउस पर लौट आए। यहां आते ही आगे की तैयारियों में जुट गए।
  इसी दौरान जगजीत का फोन आ गया। मैने बताया कि हम लोग कुक पोर्टर आदि की व्यवस्था ढूंढ रहे है। जगजीत ने कहा व्यवस्थाएं हो जाएगी,चिंता करने की जरुरत नहीं है।
 लेकिन सवा आठ तक कोई व्यवस्था नहीं हो  पाई थी। हमने तय किया कि ट्रैकिंग कल की बजाय परसों शुरु करेंगे। यही निर्णय एसडीआरएप के आर्य सा. को बता दिया। अब यह तय हो चुका है कि ट्रेकिंग कल की बजाय परसों से शुरु करेंगे। कल चरण पादुका  तक जाकर आएंगे। थोडी प्रैक्टिस भी हो जाएगी और समय भी मिल जाएगा। यह तय होने के बाद हम थोडे निश्चिंत हो गए।  यह सूचना जगजीत को भी दे दी। एसडीआरएफ के आर्य सा. को भी दे दी। अब तक आर्य सा. चार पोर्टर की व्यवस्था कर चुके थे। उनका कहना था कि जिन पोर्टर्स को हायर किया है उन्हे कुछ राशि एडवान्स देना पडेगी। दो हजार रु.एडवान्स दे दिया।
 यह सब तय होने के बाद भोज किया और घूमने निकल गए। घूम कर आने के बाद अब डायरी लिख रहा हूं। कल हम चरण पादुका के दर्शन करने जाएंगे।
घर पर वैदेही,आई सबसे बात भी हो चुकी है। अब नींद हमला कर रही है।
शुभ रात्रि.......।
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