Thursday, November 23, 2017

Satopant Swargarohini Yatra-9 स्वर्ग की सीढियां चढने की चाहत-9


(नौंवा दिन) 15 सितम्बर 2015 शुक्रवार (दोपहर 12.00)
लक्ष्मीवन

लक्ष्मीवन की घाटी में एक टीले पर हम पांच लोग हमारे कुक देवेन्द्र के साथ रुके हुए है। आशुतोष पीछे आ रहा है। यह हमारी वापसी की यात्रा है। यह यात्रा हमने आज सुबह साढे आठ बजे चक्रतीर्थ से प्रारंभ की थी।
 चक्रतीर्थ से लक्ष्मीवन की वापसी जाने की अपेक्षा कुछ आसान है,क्योकि हम नीचे उतरते जाते है। हांलाकि यह रास्ता पूरी यात्रा का सबसे दुर्गम रास्ता है। रास्ते का वर्णन एक बार फिर से करने की इच्छा है।

चक्रतीर्थ की घाटी से निकलने के लिए पहले एक छोटी चढाई चढना पडती है। यह चढाई आगे नीचे ढलान पर जाती है। ढलान वाले रास्ते में सिर्फ पत्थर है। इन पत्थरों पर पांव रखते रखते आगे बढते है,तो सहधारा के झरने शुरु हो जाते है। जाते वक्त ये झरने मेरी बाई ओर थे। इस बार दाई ओर है। झरने जिस घाटी में उतरते है,उसी घाटी में चलते हुए घाटी की बगल में खडी एक एक पहाडी की कगार पर चलना होता है। पहाड की यह कगार बेहद संकरी है। इस संकरी कगार की दोनो तरफ खतरनाक ढलान है।यदि पांव फिसला तो सैकडों फीट नीचे पंहुच सकते है। इस कगार पर लौटते वक्त दाई ओर एक के बाद एक झरने नजर आते है। झरनों का सिलसिला खत्म होता है और यह कगार भी खत्म होने लगती है। इस कगार से उतर कर पहाडों के नीचले हिस्से से पत्थरों पर चलते हुए इन पहाडों को पार करना होता है। मैं एक दो बार पत्थरों पर फिसला भी। पहाडों पर दाई ओर घूमते हुए कम से कम तीन पहाडों को पार करने के बाद लक्ष्मीवन की घाटी नजर आने लगती है। यहीं बाई ओर नीचे की ओर अलकनन्दा बहती हुई नजर आती है। इसी क्षेत्र को अलकापुरी कहते है। यहीं से अलकनन्दा का उद्गम है। अभी जिस टीले पर मैं बैठा हूं उसके पीछे लक्ष्मीवन है,जहां ताड के कई वृक्ष है। नीचे रौद्र्र रुप में अलकनन्दा बह रही है। उसका शोर हम यहां सुन पा रहे हैं।


अलकापुरी क्षेत्र के नजदीक पंहुचने पर दशरथ जी ने नदी पार कर दूसरी ओर से वसुधारा झाने की इच्छा जताई। सिर्फ महेश जी उनके साथ जाने को राजी हुए। ये लोग करीब एक-डेढ किमी चलकर नदी के पास तक पंहुचे,लेकिन नदी पार करने की हिम्मत नहीं हुई। आखिरकार लौट कर आ गए। अब हम यहां से चलने की तैयारी में है। हल्की बूंदाबांदी होने लगी है। अब यहां से चलने की तयारी। आशुतोष भी पंहुच चुका है। अब हम यहां से माणा के लिए चलेंगे।

15 सितम्बर 2017 (रात 10.50)
पुलिस रेस्ट हाउस बद्रीनाथ

कहानी वहीं से शुरु,जहां छोडी थी। लक्ष्मीवन से चले तो यह तय किया था कि अगले स्टाप चमकोली में रुक कर चाय/काफी पिएंगे। हमारे पोर्टर आ चुके थे। एक दो चढाई उतराई के बाद चमकोली पंहुच गए। पोर्टर भी आ गए थे। स्टोव निकालकर कुक देवेन्द्र ने काफी बनाने की तैयारी की। सामने पहाड पर काफी उंचाई पर एक झरना बह रहा था। एक पोर्टर वहां से थोडा सा पानी भर कर लाया। काफी मिली नहीं तो चाय ही बनाई गई। चाय पी। साथ में मौजूद सेव और मिक्चर भी खाया। यहां करीब डेढ बज गए। अब माना अधिक दूर नहीं था। दो बजे यहां से चले। अंदाजा तीन बजे पंहुच जाने का था। लेकिन रास्ता अब भी आसान नहीं था। पत्थरों में भी चलना था और पहाड पर बनी संकरी पगडण्डी पर भी चलना था।  बाईं ओर करीब सौ फीट नीचे अलकनन्दा बह रही थी।। पगडण्डी इतनी संकरी थी कि केवल एक पांव ही रखा जा सकता है। यदि थोडा सा भी फिसले तो नीचे अलकनन्दा में तैराकी करना पड सकती है। चढाई अब अधिक नहीं थी। पहाडी पर तरह तरह के फूल और वनस्पतियां लेकिन पगडण्डी खतरनाक। तीन चार पहाडों को पार करके आगे बढे। अब माना गांव दिखाई देने लगा था। मोबाइल का नेटवर्क अब भी नहीं आया था। दशरथ जी,महेश जी और प्रकाश आगे जा चुके थे। आशुतोष पीछे आ रहा था। गाइड सूरज उसके साथ था। शाम ठीक चार बजे हम वहां पंहुचे,जहां से यात्रा शुरु की थी।  हमारे पोर्टर भी वहां आ चुके थे। रेस्टहाउस से गाडी मंगवाने के लिए एसडीआरएफ के कुन्दन आर्य जी को फोन किया। लेकिन पता चला कि दशरथ जी रेस्टहाउस पंहुच चुके हैं और गाडी लेकर आ रहे हैं।  सवा चार पर हम भी रेस्टहाउस पंहुच गए। रेस्टहाउस पर एसडीआरएफ के एसआई जगमोहन भी पंहुच चुके थे। यात्रा की व्यवस्था करने वाला अंकित भी वहां पंहुच चुका था। रेस्टहाउश पर पंहुचते ही एसडीआरएफ से लिया हुआ सारा सामान उन्हे सुपुर्द किया। अंकित को यात्रा व्यय का इकतीस हजार रु.का भुगतान किया। एसडीआरएफ का सारा सामान गाडी में डालकर बसस्टैण्ड स्थित उनके आफिस पर जाकर जमा किया। इसी बीच दशरथ जी को
ध्यान आया कि उनकी जर्किन लापता है। फिर ध्यान आया कि जर्किन तो वे माना में वहीं खडी एक मोटर साइकिल पर छोड आए हैं। तुरंत गाडी लेकर वहां पंहुचे। कमाल की बात यह कि जर्किन मिल गई। ये लोग लौटे। सभी ने स्नान किया। एसडीआरएफ एसआई जगमोहन भी फिर से रेस्टहाउस पर आ गए थे। उनके साथ बैठे,चर्चाएं की। जगमोहन ने भोजन भी हमारे साथ ही किया। आज रेस्ट हाउस पर सेव की सब्जी बनाई गई थी। अब सोने की तैयारी। माणा पंहुचने के दौरान आईजी गुंजियाल सा. और जगजीत भाई से बात हो गई थी। आईजी साहब से हुई चर्चा के मुताबिक कल यहां से जल्दी निकल कर सीधे ऋषिकेश पंहुचेंगे। रात्रि विश्राम वहीं कर परसो संभव हुआ तो राफ्टिंग करेंगे। शाम को आईजी सा.से मुलाकात होगी। परसो आगे बढेंगे।
दसवें दिन की यात्रा पढने के लिए यहां क्लिक करें

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