Tuesday, April 10, 2018

Tripura Mizoram journey-4

नीरमहल का सौन्दर्य और बांग्ला बार्डर की फ्लैग सैरेमनी


3 मार्च 2018 शनिवार (दोपहर 3.10)

सर्किट हाउस अगरतला

आज की सुबह हम लोग साढे सात बजे तैयार होकर गाडी में बैठ गए थे। कल तक हमसें कहा जा रहा था कि मतगणना का दिन होने से आज के दिन हमें बाहर नहीं निकलना चाहिए। कल शाम आईबी एसपी दीक्षित जी ने भी कहा था कि हिंसा की आशंका हो सकती है। हमारा ड्राइवर भी यही कह रहा था,लेकिन हमने दबाव डाला तो वह आने को तैयार हो गया।


सुबह जैसे ही सर्किट हाउस से निकले,नाश्ते की इच्छा थी। लेकिन आज पूरा अगरतला बन्द है। एक रेस्टोरेन्ट पर पंहुचे,लेकिन वहां कुछ भी नहीं था। फिर एक दूसरे होटल पर पंहुचे,जहां मैदे की पुडियां और सब्जी का नाश्ता बनता है,लेकिन इस होटल ने भी हाथ खडे कर दिए। उन्होने कहा कि पूडी तो मिल जाएगी,लेकिन सब्जी नहीं है। पुडी मिठाई से खाना पडेगी। इससे अच्छा तो यह था कि हम यहां उपलब्ध बंगाली मिठाईयां ही खा लेते। यही हमने किया भी। दशरथ जी ने दो पुडियां मिठाई से खाई। बाकी हम तीनो ने मिठाई(चमचम और कलाकन्द) खाया। यही आज का नाश्ता था।
मिठाई का नाश्ता करके हम चले,सीधे नीरमहल के लिए। नीरमहल यहां से करीब पचास किमी दूर है। रुद्रसागर नामक एक बडे तालाब के बीच में बनाया गया यह नीरमहल मेलाघाट कस्बे में है। नीरमहल यहां के माणिक्य राजाओं ने 1930 में एशोआराम के लिए बनवाया था।
हम करीब दस बजे रुद्रसागर के किनारे पंहुचे। नीरमहल तक नाव में सवार होकर जाना पडता है। यहां टिकट काउण्टर पर कोई नहीं था। सारे कर्मचारी बगल के कमरे में टीवी देख रहे थे। हमने रिजल्ट पूछे तो पता चला कि सीपीएम और भाजपा के बीच कांटे का मुकाबला चल रहा है।
हमने एक डोंगी को बुक किया,क्योकि आज किसी टूरिस्ट के आने की संभावना नहीं थी। वैसे यहां तीस रु.प्रति व्यक्ति टिकट लगता है,लेकिन यात्री नहीं होने से हमें सात सीटर चप्पू से चलने वाली नाव लेना पडी,इसका किराया दो सौ दस रु.था।
नाव में सवार होकर हम नीरमहल पंहुचे।  पंहुचने में करीब बीस मिनट लगे। नाव में बैठकर विडीयो बनाते रहे। नीरमहल बडे हुन्दर तरीके से बनाया गया है। किनारे से यह जितना सुन्दर दिखता है,उतना ही खूबसूरत यह भीतर से भी है। भीतर पंहुचकर कई विडीयो बनाए। करीब  आधे घण्टे यहां रुके और राजाओं के एश-ओ-आराम के इस साधन को देखते रहे। नीरमहल के गेट पर मौजूद कर्मचारी मोबाइल पर टीवी न्यूज देख रहे थे। वे त्रिपुरा का लोकल बंगाली भाषा का चैनल देख रहे थे। जब उनसे परिणाम पूछा तो उन्होने सीपीएम की बढत बताई। सीपीएम को 33 पर और भाजपा को 27 पर बढत मिलने की खबर थी। इस लिहाज से त्रिपुरा में भाजपा हारती हुई दिख रही थी। लौटते वक्त यही बात होती रही। हमारा ड्राइवर मन से भाजपा की जीत चाहता था। हम उसके मजे लेने की सोच रहे थे। लेकिन कहानी बदल चुकी थी। किनारे पर पंहुचे,तो ड्राइवर बडा खुश नजर आया। हमने पूछा क्या हुआ,उसने बताया कि भाजपा जीत रही है। हम तो हैरान रह गए। लेकिन कुछ ही देर में साफ हो गया कि वह सही कह रहा था। पटाखों की आवाजे आने लगी। लोगों में भाजपा की जीत का उत्साह नजर आने लगा था। गांव गांव में लोगों के हुजूम इक_ा हो रहे थे। भाजपा के झण्डे,केसरिया गुलाल,धूम धडाका। जिधरसे निकले,लोग होली और दीवाली साथ में मना रहे थे।कहीं कही युवाओं की फौज भाजपा के झण्डों के साथ नाचते हुई दिख रही थी। गांव की महिलाओं और युवतियों में भी जीत की खुशी साफ दिखाई दे रही थी। एक जगह लोगों की भारी भीड थी। भाजपा के चुनाव प्रचार वाले गीतों पर लोग नाच रहे थे। दशरथ जी भी गाडी से उतरकर उनके साथ नाचने लगे। मैने विडीयो बनाया। हमारा ड्राइवर बीएल डे भी बेहद खुश था।








हमारी मंजिल अब कस्बावारी माता का मन्दिर था। यह मन्दिर भारत बांग्लादेश की सीमा पर है। यह मन्दिर 525 वर्ष पुराना है। उस समय के माणिक्य राजा ने इसका निर्माण करवाया था। यहां भी सारी दुकानें बन्द थीं। हमने मन्दिर के दर्शन किए। मन्दिर के सामने ही बडा चौकोर तालाब है। तालाब की दूसरी तरफ बांग्लादेश की सीमा है। पूरी सीमा पर फेन्सिंग है। कोई आ  जा नहीं सकता। इसी तरफ एक कोने में एक चबूतरे पर तीन-चार युवक भाजपा की जीत का जश्न मना रहे थे। इनमें से दो की यहीं दुकानें है। उनसे मिले। हर कोई बेहद खुश है। पच्चीस साल के सीपीएम राज से हर कोई परेशान और दुखी था। थोडी ही देर में यहां कई सारे युवाओं की टोली आ गई। ये सब भी जीत का जुलूस निकाल रहे थे। पीना,खाना,नाच,गाना सबकुछ चल रहा था।
करीब डेढ बजे हम अगरतला के ििलए लौटे। रास्ते में जगह जगह जश्न मनता देखा। करीब दो बजे अगरतला में पंहुचे। शहर की तमाम दुकानें बन्द हैं। होटल भी नहीं खुले हैं। हमें भोजन करना था। ढूंढते ढूंढते एक गुजराती भोजनालय मिला। यह परिवार ७५ वर्षों से त्रिपुरा में है। यहां मैदे की रोटियों के साथ दाल,सब्जी आदि थे। भोजन किया और तीन बजे सर्किट हाउस आ गए।
ड्राइवर ने बताया था कि भाघा बार्डर की तरह यहां भी बार्डर गेट पर फ्लैग सैरेमनी होती है,जिसे देखने हर दिन सैकडों लोग पंहुचते है। यह बार्डर एक तरह से अगरतला शहर से ही सटी हुई है। हमें चार बजे इस बार्डर के लिए निकलना था। इस बार्डर को अखाउरा बार्डर कहते है। बार्डर की दूसरी तरफ बांग्लादेश का अखौरा या अखाउरा गांव है। सर्किट हाउस से हम चार की बजाय सवा चार पर निकले। रास्ते में भाजपा के एक विजय जुलूस के कारण रास्ता जाम था। दस मिनट वहां लग गए। जब हम अखाउरा बार्डर पंहुचे,तो ध्वज उतारे जा रहे थे। हम यह परेड देखने से चूक गए थे। हांलाकि ध्वज उतारने के बाद के दृश्य हमने कैमरे में कैद किए। परेड करने वाले सैनिकों से हाथ मिलाए। उन के साथ फोटो भी लिए। इस परेड को देखने बांग्लादेश के महिला पुरुष भी आते है। यह लगभग बाघा बार्डर जैसा ही दृश्य होता है। यहां दर्शकों की संख्या बाघा बार्डर की तुलना में कम रहती है।
 पूरी परेड नहीं देख पाने का मलाल लिए हम लौटे। सवा पांच तक तो हम फिर से सर्किट हाउस में थे। सोचा सामने स्थित रवीन्द्र कानन में घूमते है,लेकिन मतगणना के कारण वह भी बन्द था।






कल की योजना बना ली गई है। कल हम उनाकोटि जाएंगे। उनाकोटि यहां से 170 किमी दूर है। पूरा दिन आने जाने में लगेगा। परसों ट्रेन से सिलचर जाएंगे और वहां से आईजाल जाएंगे। इस तरह छ: मार्च को हम आईजॉल में होंगे।

3 मार्च 2018 शनिवार (रात 10.10)

अगरतला सर्किट हाउस

हम भोजन कर चुके है। सोने की तैयारी है। कल सुबह 6.30 पर निकलना है। उनाकोटि जाना है। शाम को जब घूमफिर कर लौटे थे,तो आईजॉल जाने की चर्चाएं चल रही थी। तभी  तय किया था कि आईजॉल जाने के लिए सिलचर तक ट्रेन से जाएंगे,ताकि इस क्षेत्र की रेलवे को भी समझ सके। इसी सोच के चलते कमरे में आते ही लैपटाप पर आईआरसीटीसी  खोला। देखा कि आरक्षण उपलब्ध था। मैने फौरन चार टिकट सिलचर के बुक कर लिए। ट्रेन दोपहर सवा ग्यारह बजे अगरतला से चलेगी तो रात आठ बजेसिलचर पंहुचेगी। अब समस्या सिलचर में रुकने की थी। इन्टरनेट की मदद से सिलचर पुलिस थाने का नम्बर खोजा। वहां से सर्किट हाउस का नम्बर लिा और बडी आसानी से दो कमरे बुक हो गए। अब कोई समस्या नहीं होगी,जब पंहुचेंगे,रुकने की जगह तय है।
दोपहर में और शाम को भी आईबी एसपी योगेश दीक्षित जी से बात हुई थी। उनका कहना था कि शाम को मिलेंगे,लेकिन शाम तक वे व्यस्त रहे। फोन पर रात को बात हुई,उन्होने कहा कि वे कल रात को मिलेंगे।
भोजन के बाद हम टहलने निकले। मेरी स्लीपर उपर के कमरे में थी। मैं नंगे पांव चल रहा था। करीब एक किमी घूमकर वापस लौटे। थोडी देर नीचे के कमरे में रुके। अब उपर आए हैं। घर पर वैदेही से बात हो गई है। अब सोने की तैयारी.....।

अगला भाग पढने के लिए यहां क्लिक करें

No comments:

Post a Comment

अयोध्या-3 /रामलला की अद्भुत श्रृंगार आरती

(प्रारम्भ से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे )  12 मार्च 2024 मंगलवार (रात्रि 9.45)  साबरमती एक्सप्रेस कोच न. ए-2-43   अयोध्या की यात्रा अब समाप्...