देवाधिदेव के विश्रामस्थल उनाकोटि में
4 मार्च 2018 रविवार (रात 10.00)
अगरतला सर्किट हाउस
आज का पूरा दिन करीब साढे तीन सौ किमी की यात्रा करके उनाकोटि की अद्भूत,आश्चर्यजनक मूर्तियां देखकर हम वापस लौट चुके हैं। आज त्रिपुरा की आखरी रात है। कल सुबह ग्यारह बजे हम ट्रेन से सिलचर के लिए रवाना हो जाएंगे। वहां से आईजॉल जाएंगे। इसवक्त हम भोजन कर चुके है।अब आज की कहानी। कल शाम यह तय हुआ था कि सुबह साढे छ: बजे निकलेंगे। सुबह साढे छ: तो नहीं लेकिन सात बजे हम सभी लोग तैयार होकर डे दादा की गाडी में सवार हो गए।
डे दादा ने बताया कि वे हमारे लिए अपने घर से रोटियां बनवाकर लाए हैं ताकि हम नाश्ता कर सकें। वे आठ रोटियां लाए थे। हर व्यक्ति के लिए दो रोटियां। उन्होने कहा सब्जी नहीं है,सब्जी बाहर से खरीदेंगे। इसी का परिणाम था कि हम आज अगरतला से सुबह सात बजे सीधे उनाकोटि के लिए रवाना हो गए. नाश्ता रास्ते में कहीं करेंगे।
हम अगरतला से चले। करीब सवा घण्टे समतल सडक़ पर चलने के बाद बारामुरा का घाट आया। यह घाट पार करके हम करीब नौ बजे तैलियापुरा पंहुचे। यहां माहौल में मछली की दुर्गन्ध बसी हुई थी। लेकिन यहीं हमारे ड्राइवर डे दादा ने गाडी रोकी। जहां हमें नाश्ते के बाद चाय मिल सकती है। 67 वर्षीय हमारे ड्राइवर डे दादा रोटियों के साथ केरफल(केले) की सब्जी भी लाए थे। यह सब्जी बेहद स्वादिष्ट थी। यहीं एक होटल से डे दादा ने सब्जी खरीदी,हांलाकि यह सब्जी उतनी अच्छी नहीं थी,जितनी कि डे दादा के घर से आई केले की सब्जी स्वादिष्ट थी। यहां नाश्ता किया,चाय पी और आगे बढे।
कुछ किमी चलकर अठारामुरा का घाट आया। अब पहाडी टेढा मेढा और घुमावदार रास्ता था। करीब पौने ग्यारह बजे हम अगरतला से 86 किमी दूर कुमारघाट कस्बे में पंहुचे। अबी हमारी मंजिल करीब 70 किमी और दूर थी। कुमारघाट में चाय पीकर आगे बढे। सडक़ के दोनो तरफ घना जंगल,बांस और सुपारी के पेड। गांवों के घर। अधिकांश घरों के बाह पोखर बने हुए,सभी में पानी। घरों की रचना बेहद सुन्दर। ग्रामीण परिवेश के बांस की चटाईयों से बने घर,चारों ओर सुनियोजित तरीके से लगाए गए सुपारी के सुन्दर लम्बे पेड। घर ऐसे लगते है जैसे फाईव स्टार रिजोर्ट हो। इन रास्तों पर चलते हुए आगे बढे। फिर से पहाडी घुमावदार रास्ते। एक ओर नदी बह रही है। उनाकोटि किला (कोयला) शहर जिले में स्थित है। किला शहर पार करके आगे बढे। करीब पौने बारह बजे हम उनाकोटि पंहुच चुके थे।
अब उनाकोटि का भ्रमण करना था। गाडीसे उतरे और चल पडे उनाकोटि के अद्भूत और आश्चर्यजनक शिल्प देखने। उनाकोटि का अर्थ है एक करोड से एक कम। यहां पहाडों में भगवान शिव विष्णु,गणेश आदि देवताओं की विशाल प्रतिमाएं उत्कीर्ण की गई है। इन्हे दो हजार से पांच हजार वर्ष पुराना माना गया है। इन्हे देखना जीवन की अद्भुत उपलब्धि के समान है। हजारों सालों पहले इन चट्टानों के कठोर पत्थरों को छील कर किस तरह इतने अद्भुत शिल्प तराशे गए होंगे? यह सामान्य बुध्दि से समझ में नहीं आ पाता।
उनाकोटि के सम्बन्ध में कई धार्मिक और पौराणिक मान्यताएं है। कहते है कि इस स्थान पर देवी-देवताओं की
एक सभा हुई थी और भगवान शिव, बनारस जाते समय यहां रुके थे,और तभी से इस स्थान का नाम उनाकोटि पड़ गया। उनाकोटि में पहाड़ों की चट्टानों पर बनाए गए नक्काशी के शिल्प और पत्थर की मूर्तियां हैं।जिसका आधार भगवान शिव और गणेश जी हैं। 30 फुट ऊंचे शिव की विशालतम छवि खड़ी चट्टान पर उकेरी गई है, जिसे ‘उनाकोटिस्वर काल भैरव’ कहा जाता है। इसके सिर को 10 फीट तक के लंबे बालों के रूप में उकेरा गया है। इसी के पास शेर पर सवार माता देवी दुर्गा का शिल्प चट्टान पर उकेरी हुई है, वहां दूसरी तरफ मकर पर सवार देवी गंगा का शिल्प भी है। यहां नंदी बैल की जमीन पर आधी उकेरे हुए शिल्प भी हैं।जो शिल्पकला के लिहाज से अद्भुत है। भगवान भोलेनाथ के शिल्पों से कुछ ही दूरी पर भगवान गणेश की तीन बेहद शानदार मूर्तियां हैं। चार-भुजाओं वाले गणेशजी की दुर्लभ नक्काशी के एक तरफ तीन दांत वाले साराभुजा गणेश और चार दांत वाले अष्टभुजा गणेशजी की दो मूर्तियां बनी हुई हैं।साथ ही तीन आंखों वाला एक शिल्प भी है, जिसके बारे में माना जाता है कि वह भगवान सूर्य या विष्णु भगवान के हैं। इतना ही नहीं चतुर्मुख शिवलिंग, नांदी, नरसिम्हा, श्रीराम, रावण, हनुमान, और अन्य अनेक देवी-देवताओं के शिल्प और मूर्तियां भी यहां बनी हुई है।
जैसे ही चलना शुरु किया,मेरी दाई ओर,भगवान शिव का विशाल चेहरा नजर आया। इसका विडीयों बनाया,फोटो खींचे। यहां से सीढियों से डेढ-दो सौ फीट नीचे उतरना था। सीढियों से उतरने लगे। दाहीनी ओर एक के बाद एक तीन बडे चेहरे। कई सारे शिल्प। सीढियां जहां खत्म हुई,वहीं से सामने अगले पहाड पर चढना था। फिर से कई सौ फीट उपर चढना था। एक-एख करके सीढियां चढे। पैरों में तकलीफ के बावजूद संतोष जी भी उपर चढ आए। इस क्षेत्र में पहाडों से गिरी कुछ मूर्तियों को पहाड के उपर एक कमरे में सुरक्षित रखा गया है। इस कमरे में हनुमान,शिव,राम,विष्णु आदि की खण्डित मूर्तियां है।
यहां से फोटो विडीयो बनाकर नीचे उथरे। फिर पहाड की तलहटी में पंहुचे। यहां से फिर उपर चढना था। धीरे धीरे उपर चढना शुरु किया। आधा रास्ता उपर चढे थे कि एक बोर्ड नजर आया,गणेश और शिवलिंग नीचे है। मैने अनिल से कहा कि कुछ मूर्तियां और है। अनिल ने कहा कि रास्ते में जो शिवलिंग था यह बोर्ड उसी का है। हम लोग सीढियां चढकर उपर आ गए। उसी स्थान पर,जहां से चलना शुरु किया था। उपर आए,तो हमारे ड्राइवर डे दादा ने पूछा कि नीचे जाकर गणेश और शिवलिंग देखे कि नहीं। डे दादा ने शिवलिंग के फोटो भी दिखाए।
हम फिर नीचे उतरे। कई सौ सीढियां उतर कर सैकडों फीट नीेचे पंहुचे। नीचे उतर कर पहाड पर उत्कीर्ण गणेश जी की विशालकाय प्रतिमा को देखा। फोटो विडीयो बनाए। अभी और नीचे जाना था। नीचे पंहुचे तो शिवलिंग के दर्शन हुए। यहां से घने जंगल में जाने की पगडण्डी बनी हुई थी। इस पगडण्डी पर आगे बढे। दोनो ओर घनघोर जंगल,उंचे पहाड। संकरी पगडण्डी पर आगे बढते रहे। करीब डेढ किमी आगे चलने पर एक अद्भुत शिवलिंग के दर्शन हुए। पशुपतिनाथ की तर्ज पर शिवलिंग के चारो ओर चार प्रतिमाएं उत्कीर्ण की गई थी। उन्हे सृष्टिकर्ता ब्रम्हा के रुप में भी देखा जा सकता है। इससे और आगे भी मूर्तियां थी,लेकिन हमें इसकी जानकारी नहीं थी। हम लौटे पडे। कई सौ सीढियां चढकर उपर पंहुचे। हम थक कर चूर हो चुके थे। घडी इस वक्त दो बजा रही थी। यहां की एक दुकान पर चाय बिस्कीट्स का भोग लगाया।
वापसी का सफर। अब गाडी दशरथ जी ने संभाल ली थी। कल डे दादा गाडी देने को राजी ही नहीं था। आज वह राजी हुआ। थोडी ही देर बाद वह दशरथ जी की तारीफें करने लगा। जिस रास्ते से गए थे,उसी रास्ते से वापस लौटे। शाम करीब पौने सात बजे हम अगरतला पंहुच चुके थे।
अभी हम अगरतला से करीब पन्द्रह किमी दूर थे कि तभी आईबी एसपी योगेश दीक्षित जी को फोन आ गया। आज उनसे मुलाकात करना थी। मैने बताया कि हम जल्दी ही सर्किट हाउस पंहुच जाएंगे। लेकिन हम जैसे ही अगरतला में प्रविष्ट हुए,सामने सडक़ पर भाजपा का एक विजय जुलूस नजर आया। पीछे से हमें लगा कि यह जीत का छोटा मोटा जुलूस होगा,लेकिन थोडी ही देर जुलूस के पीछे चलने पर सबकुछ साफ हो गया। हमारी गाडी के पीछे भी कई वाहन लग चुके थे। अब पीछे नहीं लौटा जा सकता था। यह जुलूस काफी लम्बा था। सबसे पीछे केसरिया कुर्ते पहने युवाओं की टोली डीजे की धुन पर थिरकते हुए चल रही थी। डीजे पर बीजेपी आलो रे आलो रे,बीजेपी की जय,नरेन्द्र मोदी की जय आदि गीत बजाए जा रहे थे।
इस टोली के आगे बडी संख्या में युवक युवतियां मोटर साइकिलों पर चल रही थी। जब मैं गाडी से उतर कर आगे बढा,तो देखा कि कुछ खुले चारपहिया वाहनों में भी महिला पुरुष चल रहे थे। सबसे आगे एक खुले राहन में एक नेता लोगों के अभिवादन स्वीकार करते हुए चल रहे थे। आगे जाकर देखा तो समझ में आया कि अरे. ये तो त्रिपुरा के होने वाले सीएम है,जोकि जनता का आभार व्यक्त करने के लिए अगरतला की सडक़ों पर घूम रहे हैं। इस जुलूस में भारी भीड थी। वाहनों के काफिले में हमारा वाहन भी फंस चुका था।
त्रिपुरा के आम नागरकिों में उत्साह का पारावार नहीं है। लोगों का कहना है कि बीजेपी जीती तो उन्हे जैसे आजादी मिल गई है। उत्साह का आलम यह था कि सडक़ों के दोनो ओर अगरतलावासी महिला पुरुषों का हुजूम जमा था। जुलूस में शामिल लोग गुलाल के बादलोंके बीच नाच रहे थे,तो ,डक़ किनारे खडे लोग भी नाचकर तालियां बजाकर उनका साथ दे रहे थे। हमारे वाहन का ड्राइवर भी इतना उत्साहित था कि नाचने के लिए वाहन से उतरकर चला गया।
जुलूस के कानफोडू शोर के बीच आईबी एसपी का फिर से फोन आ गया। वे बेहद व्यस्त थे लेकिन हमसे मिलने के लिए रुके हुए थे। मैने ड्राइवर डे दादा को बोला कि हमें तुरन्त सर्किट हाउस पंहुचना होगा। इसी बीच दसरथ जी भी वाहन से उतर कर जीत के जश्न में शामिल हो गए। उन्होने भी नृत्य किया। लेकिन अब हमें इस जुलूस ने निकलना था। ड्राइवर से गाडी,सडक़ से जुडी एक गली मेंं मोडने को कहा। यह लम्बी गली आगे एख संकरी सडक़ तक पंहुचती थी। ड्राइवर को आशंका थी कि आगे का रास्ता जाम मिलेगा,लेकिन हमारे दबाव देने पर वह चल पडा और आखिरकार हम करीब साढे सात बजे सर्किट हाउस पंहुच गए। आते ही आईबी एसपी दीक्षित जी को फोन लगाया।
दीक्षित जी जल्दी ही मिलने आ गए। वे हद से ज्यादा व्यस्त थे। उन्हे फौरन निकलना था। वे आए,परिचय हुआ। दीक्षित जी मूलत: बीकानेर के है और जयपुर में सैटल है। वे करीब नौ माह से त्रिपुरा में है। अब बोर होने लगे हैं। त्रिपुरा छोडना चाहते है। खैर..। वे जल्दी ही बिदा हो गए। हम भोजन की तैयारियों में लग गए।
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