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इस यात्रा क िवचित्रिताओं रतलाम से ही शुरु हो गई थी। रतलाम में ट्रेन छूटते छूटते बची थी। दौडते हुए ट्रेन
पकडी थी। अगली सुबह यानी 28 फरवरी को पहले तो एयरपोर्ट मैट्रो में बैग छूट गया था। वह बैग मिला तो हमारी अगरतला की फ्लाईट छूट गई थी। इसी दिन शाम को संतोष जी का मोबाइल चोरी हो गया था। 1 मार्च को फ्लाईट पकड ली,लेकिन फिर कोलकाता में अगली फ्लाईट छूटते छूटते बची।
हमने सोचा था कि अब शायद समस्याएं समाप्त हो गई है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अगरतला में हम स्टेट गेस्ट हाउस सोनार तारी पंहुच गए थे। लेकिन हमारा रिजर्वेशन सर्किट हाउस में था। काफी मशक्कत के बाद वहां पंहुचे थे। अब अगरतला से सिलचर जाना था। ट्रेन का कन्फर्म रिजर्वेशन मिल गया। हम बडे खुश थे कि बडे आराम से सिलचर पंहुच जाएंगे। वहां सर्किट हाउस भी बुक हो चुका था। लेकिन अभी दिक्कतें समाप्त नहीं हुई थी।
कल शाम को जब सर्किट हाउस पंहुचे,तो हमारे ड्राइवर बीएल डे ने कहा कि वह सुबह हमें स्टेशन तक छोड देगा। उसने कहा कि ट्रेन पौने ग्यारह की है। हमने कहा कि सवा ग्यारह की है,क्योंकि इ टिकट में यही डिपार्चर टाईम था। यही सोचनकर हमने सर्किट हाउस से दस बजे निकलने की योजना बनाई थी। शाम को ही सर्किट हाउस के कुक को बता दिया था कि सुबह नौ बजे नाश्ता करेंगे। आलू के पराठे। हम सुबह 9.10 पर नाश्ते की टेबल पर पंहुच गए थे। ध्यान में आया कि ट्रेन रात साढे आठ बजे सिलचर पंहुचेगी। रास्ते में भूख लगेगी तो क्या करेंगे? सर्किट हाउस में पराठे की बजाय रोटी सब्जी का नाश्ता किया और पराठे पैक करवा लिए।
सर्किट हाउस से निकलने में करीब 10.20 हो गए। ड्राइवर डे दादा ने फिर कहा कि ट्रेन पौने ग्यारह की है। हमने फिर टिकट दिखाया जिसमें डिपार्चर टाइम सवा ग्यारह का दर्ज था।
गाडी में सवार हुए और करीब 10.50 पर स्टेशन पंहुच गए। गाडी में बैठे बैठे ही मुझे स्टेशन का डिस्प्लै बोर्ड नजर आ गया। हमारा ड्राइवर सच कह रहा था। हमारी ट्रेन पौने ग्यारह बजे रवाना हो चुकी थी।समझ में ही नहीं आया कि यह कैसे हो गया..? शिकायत करने पंहुचे। स्टेशन मैनेजर अमित साहा के पास जाकर बताया तो उसने कहा कि यह सिस्टम की गडबडी है।मैने पूछा कि अब क्या करें? वह कोई जवाब देता इससे पहले ही एक बुजुर्गवार अपनी पत्नी के साथ वहां आ गए। उनकी भी यही समस्या थी। तभी बीएसएप के दो लोग और आ गए। सभी के पास कन्फर्म टिकट थे और इन पर डिपार्चर टाइम सवा ग्यारह का दर्ज था। बुजुर्गवार खुद को रिटायर्ड एसपी बता रहे थे। उन्होने स्टेशन मैनेजर को तगडा दम दिया। उनसे कहा कि ट्रेन को अगले स्टेशन पर रुकवाईए। लेकिन ट्रेन नहीं रोकी गई। बुजुर्गवार स्टेशन मैनेजर को दिल्ली मुंबई की हूल दे रहे थे। मैनेजर ने उनकी बात किसी छोटे अफसर से करवाई। गर्मागर्मी हुई,लेकिन कोई हल नहीं निकला।
आखिरकार मैने इन्टरनेट पर खोजकर लामडिंग रेलवे डिवीजन के सीनीयर कमर्शियल मैनेजर को फोन लगाया। उन्होने समस्या समझ ली। उन्होने कहा कि हम राजधानी से बदरपुर चले जाएं,फिर वहां से सिलचर की व्यवस्था करवाएंगे। बहरहाल,अब हम बिना किसी गलती के यहां ट्रेन का इंतजार कर रहे हैं। शाम साढे छ: बजे राजधानी यहां से चलेगी। हम कुल आठ यात्री हैं। बदरपुर से सिलचर करीब एक घण्टे का रास्ता है। वहां से आईडोल सात-आठ घण्टे का रास्ता है। कल सारा दिन बस में धक्के खाने हैं।
राजधानी रात साढे दस पर बदरपुर पंहुचेगी। देर रात को सिलचर कैसे पंहुचेंगे,पता नहीं। सुबह जल्दी सिलचर से निकलना है। कोशिश यही करेंगे कि रात में ही सिलचर पंहुच जाएं। देखते है क्या होता है...?
फिलहाल हमारे पास कोई काम नहीं है। अभी कुछ देर बाहर घूम कर आए है। अब ट्रेन के चलने तक यहीं रहना है। इसलिए त्रिपुरा के बारेमें जो कुछ जाना समझा,वह बता दिया जाए।
जब हम त्रिपुरा में राजधानी अगरतला में उतरे थे,एयरपोर्ट पर आटो वाले लूटपाट सी कर रहे थे। हमें सिर्फ साढे सात किमी दूर जाना था। आटो वाले ज्यादा दाम मांग रहे थे। हम दो आटो करके स्टेट गेस्टहाउस पंहुचे थे।
त्रिपुरा में आने के बाद,जिस किसी से बात हुई,हर कोई सीपीएम के खिलाफ नजर आया। आटोवाला,इ रिक्शावाला,दुकानदार,होटलवाला,सर्किट हाउस के कर्मचारी भी। हर कोई कह रह रहा था कि सीपीएम बिदा होगी और बीजेपी आएगी। हर कोई मतगणना के दिन हिंसा की आशंका से आशंकित था। हमने जबाव डालकर ड६ाइवर को बुलवाया था।
परिणाम आने के बाद,दूरस्थ गांवों के भीतचर जो खुशी और उत्साह देखने को मिला,वह अद्भुत था। यह देखकर समझ में आया कि लोग सीपीएम से कितने पीडीत थे। हमारा ड्राइवर हर सफर में पूरे रास्तेभर सीपीएम की हार की कामना कर रहा था। मेरा अनुमान था कि यहां हिन्दुत्व का जागरण हो रहा है। त्रिपुरा हिन्दू बहुल राज्य है। यहां की जनता वास्तव में त्रस्त थी। धार्मिक भावनाएं बेवजह आहत की जाती थी। कोई विकल्प नहीं होने से जनता क्या करती..? जैसे ही विकल्प मिला,जैसे ही बीजेपी आई,लोगों ने इसे हाथों हाथ अपना लिया। सर्किट हाउस का हमारा कर्मचारी बता रहा था कि कई सारे लोग अगर बीजेपी हार जाती तो हमेशा के लिए त्रिपुरा छोड जाते। कई सारे लोग जो त्रिपुरा छोड कर चले गए थे,सरकार बदलने की वजह से वापस लौट आए। कल शाम सीएम की रैली के दौरान सडक़ किनारे खडे आम लोगों के चेहरों पर यह साफ नजर आ रहा था कि लोगों में कितनी खुशी है।,डक़ किनारे खडी महिलाएं और युवतियां जुलूस के गानों की धुन पर नाच कर अपना समर्थन जता रही थी। होली के रंग और पटाखों का भरपूर उपयोग हो रहा था। यदि यहां सीपीएम जीत जाती तो निश्चय ही बडे पैमाने पर हिंसा होती। बहरहाल,यहां के लोग ऐसी खुशी मनाते दिखे,जैसे उन्हे आजादी मिल गई हो।
जब से हम अगरतला आए,यहां के बाजार बन्द ही मिले। एक मार्च को बाजार थेडे खुले थे,लेकिन दो मार्च को होली की वजह से बन्द थे। तीन मार्च को परिणाम के बाद हिंसा की आशंका थी। 4 मार्च को रविवार भी था और हिंसा की आशंका भी थी। आज अगरतला की सडक़ों पर ट्रैफिक देखने को मिला। वरना हालत यह थी कि कल करीब साढे तीन सौ किमी की यात्रा के दौरान हाईवे पर भी वाहनों की आवाजाही ना के बराबर थी।
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पहले प्लेन छूटा,अब ट्रेन.......
5 मार्च 2018 सोमवार (दोपहर 1.50)
अगरतला रेलवे स्टेशन,अगरतला
यह यात्रा विचित्रिताओं से भरी हुई है। इस समय हमें अगरतला सिलचर पैसेंजर में होना था,लेकिन हम अगरतला रेलवे स्टेशन के वीआईपी लाउंज में बैठे हुए है।इस यात्रा क िवचित्रिताओं रतलाम से ही शुरु हो गई थी। रतलाम में ट्रेन छूटते छूटते बची थी। दौडते हुए ट्रेन
पकडी थी। अगली सुबह यानी 28 फरवरी को पहले तो एयरपोर्ट मैट्रो में बैग छूट गया था। वह बैग मिला तो हमारी अगरतला की फ्लाईट छूट गई थी। इसी दिन शाम को संतोष जी का मोबाइल चोरी हो गया था। 1 मार्च को फ्लाईट पकड ली,लेकिन फिर कोलकाता में अगली फ्लाईट छूटते छूटते बची।
हमने सोचा था कि अब शायद समस्याएं समाप्त हो गई है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अगरतला में हम स्टेट गेस्ट हाउस सोनार तारी पंहुच गए थे। लेकिन हमारा रिजर्वेशन सर्किट हाउस में था। काफी मशक्कत के बाद वहां पंहुचे थे। अब अगरतला से सिलचर जाना था। ट्रेन का कन्फर्म रिजर्वेशन मिल गया। हम बडे खुश थे कि बडे आराम से सिलचर पंहुच जाएंगे। वहां सर्किट हाउस भी बुक हो चुका था। लेकिन अभी दिक्कतें समाप्त नहीं हुई थी।
कल शाम को जब सर्किट हाउस पंहुचे,तो हमारे ड्राइवर बीएल डे ने कहा कि वह सुबह हमें स्टेशन तक छोड देगा। उसने कहा कि ट्रेन पौने ग्यारह की है। हमने कहा कि सवा ग्यारह की है,क्योंकि इ टिकट में यही डिपार्चर टाईम था। यही सोचनकर हमने सर्किट हाउस से दस बजे निकलने की योजना बनाई थी। शाम को ही सर्किट हाउस के कुक को बता दिया था कि सुबह नौ बजे नाश्ता करेंगे। आलू के पराठे। हम सुबह 9.10 पर नाश्ते की टेबल पर पंहुच गए थे। ध्यान में आया कि ट्रेन रात साढे आठ बजे सिलचर पंहुचेगी। रास्ते में भूख लगेगी तो क्या करेंगे? सर्किट हाउस में पराठे की बजाय रोटी सब्जी का नाश्ता किया और पराठे पैक करवा लिए।
सर्किट हाउस से निकलने में करीब 10.20 हो गए। ड्राइवर डे दादा ने फिर कहा कि ट्रेन पौने ग्यारह की है। हमने फिर टिकट दिखाया जिसमें डिपार्चर टाइम सवा ग्यारह का दर्ज था।
गाडी में सवार हुए और करीब 10.50 पर स्टेशन पंहुच गए। गाडी में बैठे बैठे ही मुझे स्टेशन का डिस्प्लै बोर्ड नजर आ गया। हमारा ड्राइवर सच कह रहा था। हमारी ट्रेन पौने ग्यारह बजे रवाना हो चुकी थी।समझ में ही नहीं आया कि यह कैसे हो गया..? शिकायत करने पंहुचे। स्टेशन मैनेजर अमित साहा के पास जाकर बताया तो उसने कहा कि यह सिस्टम की गडबडी है।मैने पूछा कि अब क्या करें? वह कोई जवाब देता इससे पहले ही एक बुजुर्गवार अपनी पत्नी के साथ वहां आ गए। उनकी भी यही समस्या थी। तभी बीएसएप के दो लोग और आ गए। सभी के पास कन्फर्म टिकट थे और इन पर डिपार्चर टाइम सवा ग्यारह का दर्ज था। बुजुर्गवार खुद को रिटायर्ड एसपी बता रहे थे। उन्होने स्टेशन मैनेजर को तगडा दम दिया। उनसे कहा कि ट्रेन को अगले स्टेशन पर रुकवाईए। लेकिन ट्रेन नहीं रोकी गई। बुजुर्गवार स्टेशन मैनेजर को दिल्ली मुंबई की हूल दे रहे थे। मैनेजर ने उनकी बात किसी छोटे अफसर से करवाई। गर्मागर्मी हुई,लेकिन कोई हल नहीं निकला।
आखिरकार मैने इन्टरनेट पर खोजकर लामडिंग रेलवे डिवीजन के सीनीयर कमर्शियल मैनेजर को फोन लगाया। उन्होने समस्या समझ ली। उन्होने कहा कि हम राजधानी से बदरपुर चले जाएं,फिर वहां से सिलचर की व्यवस्था करवाएंगे। बहरहाल,अब हम बिना किसी गलती के यहां ट्रेन का इंतजार कर रहे हैं। शाम साढे छ: बजे राजधानी यहां से चलेगी। हम कुल आठ यात्री हैं। बदरपुर से सिलचर करीब एक घण्टे का रास्ता है। वहां से आईडोल सात-आठ घण्टे का रास्ता है। कल सारा दिन बस में धक्के खाने हैं।
राजधानी रात साढे दस पर बदरपुर पंहुचेगी। देर रात को सिलचर कैसे पंहुचेंगे,पता नहीं। सुबह जल्दी सिलचर से निकलना है। कोशिश यही करेंगे कि रात में ही सिलचर पंहुच जाएं। देखते है क्या होता है...?
5 मार्च 2018 (दोपहर 3.00 बजे)
वीआईपी लाउंज अगरतला
हमें राजधानी से बदरपुर जाना है। ट्रेन शाम साढे छ: पर चलेगी। रेलवे कर्मचारी हमें भिजवानने की व्यवस्था में लगे है। इस ट्रेन से बाएसएप की पूरी कंपनी जाने वाली है। बीएसएप के जवान अपने सामान के साथ अभी से स्टेशन पर आ चुके हैं। पहले हमें लगा था कि ट्रेन खाली जाएगी,लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बीएसएप वालों के कारण ट्रेन फुल हो जाएगी। हमारा क्या होगा..? पता नहीं। बाएसएप वाले इसी ट्रेन से पहले गुवाहाटी जाएंगे और फिर वहां से दिल्ली।फिलहाल हमारे पास कोई काम नहीं है। अभी कुछ देर बाहर घूम कर आए है। अब ट्रेन के चलने तक यहीं रहना है। इसलिए त्रिपुरा के बारेमें जो कुछ जाना समझा,वह बता दिया जाए।
जब हम त्रिपुरा में राजधानी अगरतला में उतरे थे,एयरपोर्ट पर आटो वाले लूटपाट सी कर रहे थे। हमें सिर्फ साढे सात किमी दूर जाना था। आटो वाले ज्यादा दाम मांग रहे थे। हम दो आटो करके स्टेट गेस्टहाउस पंहुचे थे।
त्रिपुरा में आने के बाद,जिस किसी से बात हुई,हर कोई सीपीएम के खिलाफ नजर आया। आटोवाला,इ रिक्शावाला,दुकानदार,होटलवाला,सर्किट हाउस के कर्मचारी भी। हर कोई कह रह रहा था कि सीपीएम बिदा होगी और बीजेपी आएगी। हर कोई मतगणना के दिन हिंसा की आशंका से आशंकित था। हमने जबाव डालकर ड६ाइवर को बुलवाया था।
परिणाम आने के बाद,दूरस्थ गांवों के भीतचर जो खुशी और उत्साह देखने को मिला,वह अद्भुत था। यह देखकर समझ में आया कि लोग सीपीएम से कितने पीडीत थे। हमारा ड्राइवर हर सफर में पूरे रास्तेभर सीपीएम की हार की कामना कर रहा था। मेरा अनुमान था कि यहां हिन्दुत्व का जागरण हो रहा है। त्रिपुरा हिन्दू बहुल राज्य है। यहां की जनता वास्तव में त्रस्त थी। धार्मिक भावनाएं बेवजह आहत की जाती थी। कोई विकल्प नहीं होने से जनता क्या करती..? जैसे ही विकल्प मिला,जैसे ही बीजेपी आई,लोगों ने इसे हाथों हाथ अपना लिया। सर्किट हाउस का हमारा कर्मचारी बता रहा था कि कई सारे लोग अगर बीजेपी हार जाती तो हमेशा के लिए त्रिपुरा छोड जाते। कई सारे लोग जो त्रिपुरा छोड कर चले गए थे,सरकार बदलने की वजह से वापस लौट आए। कल शाम सीएम की रैली के दौरान सडक़ किनारे खडे आम लोगों के चेहरों पर यह साफ नजर आ रहा था कि लोगों में कितनी खुशी है।,डक़ किनारे खडी महिलाएं और युवतियां जुलूस के गानों की धुन पर नाच कर अपना समर्थन जता रही थी। होली के रंग और पटाखों का भरपूर उपयोग हो रहा था। यदि यहां सीपीएम जीत जाती तो निश्चय ही बडे पैमाने पर हिंसा होती। बहरहाल,यहां के लोग ऐसी खुशी मनाते दिखे,जैसे उन्हे आजादी मिल गई हो।
जब से हम अगरतला आए,यहां के बाजार बन्द ही मिले। एक मार्च को बाजार थेडे खुले थे,लेकिन दो मार्च को होली की वजह से बन्द थे। तीन मार्च को परिणाम के बाद हिंसा की आशंका थी। 4 मार्च को रविवार भी था और हिंसा की आशंका भी थी। आज अगरतला की सडक़ों पर ट्रैफिक देखने को मिला। वरना हालत यह थी कि कल करीब साढे तीन सौ किमी की यात्रा के दौरान हाईवे पर भी वाहनों की आवाजाही ना के बराबर थी।
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