Sunday, April 22, 2018

Tripura Mizoram Journey-8


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आईजॉल की उंचाई,रैएक टॉप पर

7 मार्च 2018 बुधवार (सुबह 9.00)

स्टेट गेस्ट हाउस आईजोल

नाश्ते की टेबल पर आलू पराठों के इंतजार में डायरी लिख रहा हूं। अब कुछ बातें मिजोरम के बारे में। मिजोरम पिछले करीब डेढ सौ सालों से मिशनरीज के प्रभाव में आते आते पूरी तरह ईसाई राज्य बन गया है। मिजो भाषा के लिए रोमन लिपि को ही अपना लिया गया है। बीती रात से पिछली रात हम सिलचर में भी मिजोरम के गेस्ट हाउस में ही थे। बडी बात यह थी कि सिलचर के सर्किट हाउस के प्रत्येक कमरे में बाईबिल रखी हुई थी।
यहां आईजोल पंहुचे तो यहां भी स्टेट गेस्ट हाउस के काउण्टर पर ही धर्म प्रचार के पर्चे लिपलैट आदि रखे हुए थे। कमरों में भी बाईबिल रखी हुई है। यहां तौ जैसे सरकार या राज्य का अधिकृत धर्म ईसाई धर्म है। शहर में ढेरों बडे बडे चर्च है। हांलाकि हमें एक मन्दिर और मस्जिद भी दिखाई गई।
टेबल पर नाश्ता लग चुका है,इसलिए पहले नाश्ता किया जाए।



7 मार्च 2018 बुधवार (रात 9.25)

स्टेट गेस्ट हाउस आईजोल

ठीक बारह घण्टों के बाद डायरी से जुड पाया हूं। सारा दिन डायरी साथ लेकर घूमते रहे,लेकिन मौका ही नहीं था कि डायरी लिख पाता।
पहले तो,नाश्ते की टेबल का हाल। हमने चार प्लेट आलू पराठे और दही का आर्डर दिया था। आलूके पराठे में नमक कम था,मिर्ची भी नहीं थी। लेकिन पराठे बेहद बडे थे। यानी कि एक ही पराठा पेट भरने के लिए पर्याप्त था। नाश्ते के थोडी ही देर पहले,घोटीकर का फोन आया था कि आज अनिल का जन्मदिन है। नाश्ते की टेबल पर ही सबको बताया। अनिल को जन्मदिन की शुभकामनाएं दी।हमने इससे पहले ,बीती शाम जिस ड्राइवर को घूमने के लिए तय किया था,वह भी आ गया अपनी मारुति ८०० लेकर। भरपेट नाश्ता किया ताय पी। अब हम जैसे तैसे फंस फंसा कर मारुति में सवार हो गए। हमारी मंजिल थी रैएक टाप। इसका उच्चारण बडा ही कठिन है। अंग्रेजी में इसे लिखते है,आर ई ए आई के।
हम आईजोल के गेस्ट हाउस से निकले। आईजोल की सडकों पर भारी ट्रैफिक है। पहाडी शहर की सडक़ें बेहद संकरी है और ट्रैफिक जबर्दस्त। लेकिन यहां की खासियत यह है कि लोग बडे ही अनुसासित है। कार या टैक्सी वाले आगे निकलने की होड में कोई भी बिलकुल नहीं रहता। अगर आगे की गाडी रुक गई,तो पीछे वाली भी रुक जाएगी। पीछे वाला कतई आगे निकलने की कोशिश नहीं करेगा। दोपहिया वहान पर कोई भी चालक बिना हैलमेट के नहीं चलता। प्रत्येक दोपहिया वाहन चालक भले ही युवक को या युवती,हर कोई हैलमेट लगाए हुए हैं। दोपहिया वाहन वाले भी आगे निकलने के चक्कर में नहीं रहते। अगर ट्रैफिक रुका हुआ हो तो दो पहिया वाहन भी रुक जाते है। कोई हार्न तक नहीं बजाता। आईजोल के ट्रैफिक में फंसते निकलते आगे बढे। रैकेक पीक का पूरा रास्ता बहुत अच्छा है। सडक़ सिंगल है,लेकिन बेहतरीन बनी हुई है। ट्रैफिक ना के बराबर।  आईजोल से निकले तो करीब बीस किमी लगातार ढलान। फिर लगातार चढाई। मारुति का हमारा ड्राइवर आरसा(आर एस ए) चढाई में तेज गाडी चला रहा था। हम करीब पौने एक बजे रैएक टाप के नजदीक पंहुचे। नीचे गांव हैं। यहां से पानी की बोटल बिस्कीट्स आदि लिए।
गाडी काफी आगे तक गई। लेकिन इसके आगे पैदल रास्ता। घनघोर जंगल वाले पहाड पर चढाई वाला रास्ता। संतोष जी भी हमारे साथ चलना शुरु हुए,लेकिन रास्ता बेहद लम्बा,चढाई वाला और कठिन था। करीब आधे घण्टे बाद हमने संतोष जी से कहा कि वे वापस लौट जाए। संतोष जी लौटने को तैयार हो गए,हम तीनों आगे बढ गए।
पहाडी रास्ता बेहद लम्बा था। आगे जाकर तो रास्ता बेहद खतरनाक हो गया। पहाड के बिलकुल किनारे पर सीढियां बनाई गई है। सीढियों की दूसरी ओर हजारों फीट गहरी खाई है। सीढियों पर कोई रैलिंग भी नहीं है। एक कदम अगर गलत पडा तो मौत तय है। सीढियां घूमती हुई काफी उपर तक जाती है। रैएक टाप अभी और आगे था। हम करीब एक-डेढ किमी पहले ही रुक गए। टाप तक केवल दशरथ जी और हमारा ड्राइवर आरसा भी गया। हम जहां रुके थे,वहीं कई सारे फोटो और विडीयो बनाए।
एक बज चुका था। मेरा अंदाजा था कि हम एक घण्टे में उपर आए हैं तो आधे घण्टे में नीचे उतर जाएगे। हम करीब पौने दो बजे तक नीचे उतर आए। संतोष जी वहीं हमारा इंतजार कर रहे थे। कार में सवार हुए। दो-तीन किमी आगे एक दुकान में आरसा चाऊ  खाने के लिए रुक गया। इसी होटल पर हम सभी ने चाय पी। करीब दो बजे हम यहां से चल पडे। दोपहर करीब सवा तीन बजे हम आईजोल पंहुच गए। अब अनिल को एसबीआई के एटीएम की जरुरत थी। ड्राइवर को बता दिया था कि एटीएम पर जाना है,लेकिन वह भूल गया। गेस्ट हाउस पर पंहुचने के बाद जब एटीएम का जिक्र किया,तो वह फिर टैक्सी लेकर चला। एकाध किमी आगे जाकर एसबीआई एटीएम पर अनिल ने दस हजार  और मैने पांच हजार रु.निकाले। इसी दौरान बाजार में मिजो सामग्री की एक दुकान पर जाकर कपडे और बांस से बनी वस्तुएं देखी और बांस से बना एक एक पर्स खरीदा।
अब शाम हो चुकी थी। गेस्ट हाउस पर आकर भोजनादि की चिन्ता में लगे। रिसेप्शन पर आर्डर दिया। पहले नौ बजे भोजन करने को कहा था लेकिन कमरे में आकर भोजन का समय बदलने की सूचना दी और आठ बजे भोजन करने का समय बताया। हमें भोजन करने नीचे जाना था,लेकिन आज गेस्ट हाउस में बडा आयोजन था। इसी वजह से भोजन व्यवस्था प्रभावित हो रही थी। हमें भोजन नीचे डाइनिंग हाल में करना था,लेकिन भोजन कमरे में ही भेज दिया गया। हमने शानदान भोजन किया। घर पर वैदेही से बात हो गई है। अब सोने की तैयारी...।
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