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कल सुबह से शुरु हुई विचित्रताएं आधी रात तक जारी रही। रेलवे वालों की मदद से हम राजधानी ट्रेन में सवार होकर रात पौने ग्यारह बजे बदरपुर पंहुच गए। राजधानी का सफर था इसलिए पता ही नहीं चला कि कब
बदरपुर पंहुच गए। हमारे साथ बीएसएफ के दो कर्मचारी भी थे,जिन्हे सिलचर ही जाना था। अब हम कुल छ: लोग थे।
सिलचर स्टेशन पर ही बीएसएफ वालों को एक बीएसएफ वाला और मिल गया। अब हम सात हो गए। बदरपुर से सिलचर आने के लिए आटो,आल्टो जैसे विल्पों पर बात करते हुए इको (मारुति) को तय किया जोकि २ बारह सौ रुपए में हम सातों को सिलचर छोडने को राजी हुआ था। अब समस्या यह थी कि सात व्यक्ति और सामान इस गाडी में कैसे आएगा? गाडी वाले ने पीछे की एक सीट पर सामान जमाया और थोडी सी बची हुई जगह में एक बीएसएफ वाला ठंस गया। चार लोग बीच वाली सीट पर जैसे तैसे फंस गए। संतोष जी और मैं ड्राइवर के साथ आगली सीट पर टिके। मुझे हैण्डब्रैक के उपर बैठना पडा। करीब पैंतालिस मिनट का सफर था। यह सफर जैसे तैसे पूरा हो गया। हम निश्चिंत थे कि सिलचर में सर्किट हाउस बुक है। शाम को वहां फोन भी कर दिया था कि रात को देर हो जाएगी। ठीक बारह बजे हम सिलचर जा पंहुचे। इको वाला सीधे सलिचर सर्किट हाउस ले गया। विशाल भवन,सामने बगीचा। पहले द्वार पर ताला लगा हुआ था।अगले दरवाजे पर आए तो यहां भी ताला था। मैने सर्किट हाउश पर फोन किया तो उसने कहा भीतर आ जाइए। मैने कहा कि गेट पर ताला लगा हुआ है। उसने कहा कि गेट पर बीएसएप वाला होगा,वह खोल देगा। लेकिन गेट पर तो कोई नहीं था। दीवार कूद कर मैं और अनिल भीतर पंहुच गए। पूरी बिल्डिंग सांय सांय कर रही थी।कहीं कोई नहीं था। बिल्डिंग का पूरा एक चक्कर लगा लिया। इको वाला थोडी देर तो खडा रहा,फिर बीएसएफ वालों को लेकर चला गया। सुनसान सडक़ें,आधीरात का वक्त। सर्किट हाउस में कोई दरवाजा खोलने को राजी नहीं। अब क्या करें..?
फिर से सर्किट हाउस फोन किया,उसने कहा आप भीतर आ जाईए। मैं तो भीतर ही हूं। वह बोला,मुझे तो नजर ही नहीं आ रहे हो। अचानक मुझे लगा कि हमें इस सर्किट हाउस में नहीं आना था। उससे पूछा कि क्या यहां दो सर्किट हाउस है। मैं यहां आसाम के सर्किट हाउस में खडा हूं,उसने कहा यह मिजोरम सरकार का सर्किट हाउस है,जहां हमारी बुकींग थी। अब सारा चक्कर समझ में आया। उससे पूछा तुम्हारा सर्किट हाउस कहां है? उसने कहा ड्राइवर से मेरी बात करवाओ। लेकिन ड्राइवर अब कहां था? वह तो जा चुका था। मैने कहा अभी थोडी देर में बात करवाता हूं। वह बोला क्या पूरी रात आपके लिए जागता रहूं। स्थिति विकट थी। अपना सामान खींचते हुएसर्किट हाउस से आगे बढे। एक बन्द होते रेस्टोरेन्ट पर तीन-चारलोग नजर आए। उनसे पूछा तो उन्होने बताया कि मिजोरम सर्किट हाउस सनाई रोड पर है। आगे से आटो मिल जाएगा।
आगे बढे। अभी रात के साढे बारह हो चुके थे। सामने एक नया आश्चर्य नजर आया। रात साढे बारह बजे कुछ लोग एक शव को लेकर जा रहे थे। आधीरात को शव यात्रा..। कमाल है। हम आटो की तलाश में थे। जल्दी ही आटो मिल गया। डेढ सौ रुपए में चारों इस पर सवार हुए.सनाई रोड पर बढ गए। आटोवाले को सनाई रोड पता था लेकिन सर्किट हाउस कहां है,यह उसे नहीं पता था। सनाई रोड पंहुचकर फिर से सर्किट हाउस पर फोन लगाया,आटो वाले की बात करवाई। सर्किट हाउस नजदीक ही था। अब हम सर्किट हाउस पंहुच गए थे। दो अच्छे कमरे हमारा इंतजार कर रहे थे। रात की एक बज चुकी थी। तुरंत सोने का फैसला किया।
बातचीत से पता चला था कि आईजोल के लिए गाडियां सुबह नौ बजे निकलती है। हमें आट बजे तैयार होना पडेगा। आज सुबह आठ बजे ठण्डे पानी से नहाकर बाहर मुख्य सडक़ पर आए,तो बगल में ही रोडकिंग सूमो सर्विस का आफिस नजर आया। जल्दबाजी में इसी में चार टिकट बुक करवा लिए। पता चला कि हमें आखरी सीट पर बैठना है। हमने विरोध किया तो वह संतोष जी को बीच की सीट देने को राजी हो गया। टिकट लेकर नाश्ता करने चल पडे। उधर त्रिपुरा में भी और यहां भी नाश्ते में सिर्फ मैदे की पुडी,पराठे और साथ में आलू मटर की सब्जी होती है। मैदा खाने की बिलकुल भी इच्छा नहीं थी।लेकिन मैने और दशरथ जी ने एक-एख पराठा खाया। मात्र बीस रु.खर्च हुए। अनिल और संतोष जी ने चाय बिस्कीट खाने का फैसला किया। आसल में जिस गुमटी में पराठे बन रहे थे,वहां अण्डे भी पडे थे और मछली भी कटी हुई पडी थी। इसी से दोनो भाई बिचक गए। दशरथ जी और मैं सोच रहे थे कि आईजोल में इनका क्या होगा..? वैसे आईजोल में स्टेट गेस्ट हाउस में कमरे बुक हो चुके हैं इसलिए शायद भोजन की दिक्कत नहीं आएगी।
हम सुबह 9.25 पर सिलचर से चले थे। रोडकिंग के आफिस पर थोडा विवाद किया तो संतोष जी को पीछे की बजाय बीच की सीट पर जगह दे दी गई। मुझे,दशरथ जी और मेहता जी को गाडी की अंतिम सीट पर बैठना था। हमारा लगेज उपर बांध दिया गया। थोडा धैर्य रखते तो स्थितियां बदल सकती थी,लेकिन हम डरे हुए थे इसलिए इसी गाडी को तय कर लिया। पीछे की सीट पर बैठते ही समझ में आ गया कि छ:-सात घण्टे की यात्रा नारकीय यातनाएं भुगतने जैसी रहेगी।
सिलचर से गाडी चली। बीस-तीस किमी समतल सडक़ पर चलने के बाद पहाडी रास्ता शुरु हुआ। करीब ग्यारह बजे मिजोरम की बार्डर आ गई। ड्राइवर ने सबके आईडी मांगे। हम सबने दे दिए। सबके स्वीकार हो गए,केवल अनिल का आईडी कार्ड स्वीकार नहीं हुआ। अनिल से कहा गया कि उसे इनर लाइन परमिट लेना पडेगा। बगल में ही इनर लाइन परमिट बनाने की व्यवस्था थी। डेढ सौ रु.लेकर उन्होने इनर लाइन परमिट बना दिया। परमिट लेकर बगल वाली पोस्ट पर गए तो उन्होने बीस रु.और लिए,तब जाकर हम मिजोरम में प्रवेश के लायक हो पाए।
सुबह 9.25 से शुरु हुआ सफर करीब सवा बजे बीच के एक गांव में रुका। इस दौरान पूरा रास्ता पहाडी था। रास्ते में मिजोरम के ग्रामीण जीवन की झलक देखते हुए चल रहे थे। बहरहाल,बीच रास्ते के इस होटल में भोजन यानी राईस (चावल) की व्यवस्था थी। नानवेज वालों के लिए तो था ही,प्योर वेज वाले लोगों के लिए सत्तर रु. की प्लेट राईस प्लेट थी। जिसमें दाल चावल के अलावा आलू और गोभी की सब्जी आधा पापड,सलाद आदि था। दशरथ जी ने एक प्लेट मंगवा ली। होटल वाले ने देखा कि हम चार है,तो वह चार प्लेट ले आया। दो प्लेट लौटा दी। मैने कहा कि मैं थोडे से चावल खा सकता हूं। अनिल भी राजी था। संतोष जी तो मछली मटन देखकर घबरा चुके थे। खैर,हमने एख राईस प्लेट में दोनो ने खाना खाया। फिर भी चावल बच गए। दशरथ जी ने पूरी प्लेट निपटाई। अभी पौने दो हो रहे थे। हमें बताया गया कि यहां से अभी साढे तीन घण्टे का सफर और है। लेकिन सफर इतना लम्बा नहीं था। यहां से ढाई घण्टे का सफर और था। कठिनाईयां झेलते हुए हम सफर करते रहे और शाम चार बजे हम आईजोल के प्रवेश द्वार पर थे। लेकिन जैसा पहाडी शहरों में होता है,सडक़ पर जाम लगा हुआ था। हम करीब पांच बजे टैक्सी स्टैण्ड पर पंहुचे। हमें उतार दिया गया और कहा गया कि स्टेट गेस्ट हाउस जाने के लिए टैक्सी करना पडेगी। हमने टैक्सी की। स्टेट गेस्ट हाउस पीछे यानी कि जिस रास्ते पर हम चलकर आ चुके थे,वहीं था। टैक्सी में सवार हुए और करीब साढे पांच बजे हम स्टेट गेस्ट हाउस पंहुच गए। यहां हमारे दो कमरे रिजर्व थे। यहां आते ही चाय मंगवाई। यात्रा शुरु हुई तब से इतनी अच्छी चाय कहीं नहीं मिली थी। चाय पीने के बाद थोडा घूमने का इरादा था।
हमें बताया गया कि आईजोल में शाम छ: बजे बाजार बन्द हो जाते है। स्टेट गेस्ट हाउस के रिसेप्शन पर ही एक टैक्सी वाले से बात की। तीन हजार रु. में पूरे दिन के लिए टैक्सी भी बुक कर ली। उसी टैक्सी वाले ने अभी इस वक्त आईजोल घुमाने के लिए चार सौ रुपए में एक टैक्सी बुक करवाई है। इस टैक्सी में सवार होकर आईजोल घूमने निकले। शाम सात बजे तक पूरा शहर बन्द हो जाता है। टैक्सी वाले ने आईजोल शहर के सारे प्रमुख स्थान हमें दिखा दिए। शाम करीब सात बजे हम स्टेट गेस्ट हाउस लौट आए। भोजन का आर्डर पहले ही दे चुके थे। सर्किट हाउस में रुकने का बडा फायदा यह होता है कि घर जैसा भोजन मिल जाता है। यहां आटे की तवा रोटियां थी।बडे मजे से भोजन किया। इस दौरान संतोष जी पुरानी घटनाओं को लेकर भावुक हो गए। काफी देर तक रोते रहे। उन्होने भोजन भी ठीक से नहीं किया। इधर भोजन के बाद हम बाहर घूमने निकले। यहां लोग हिन्दी नहीं जानते। इंग्लिश भी ठीक से नहीं जानते। ये बहुत बडी समस्या है। हांलाकि हमने जिस टैक्सी ड्राइवर को बुक किया है,वह कामचलाउ हिन्दी जानता है। कल सुबह नौ बजे यहां से निकलना है।
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अगरतला से आईजोल-मुसीबतों का सफर
6 मार्च 2018 मंगलवार (सुबह 9.00)
रोड किंग सूमो सर्विस सिलचर
फिलहाल हम रोडकिंग सूमो सर्विस के आफिस में बैठे है। सामने वह सूमो गाडी खडी है,जिसमें हमें आईजोल जाना है। हमारा सामान सूमो पर लादा जा चुका है।कल सुबह से शुरु हुई विचित्रताएं आधी रात तक जारी रही। रेलवे वालों की मदद से हम राजधानी ट्रेन में सवार होकर रात पौने ग्यारह बजे बदरपुर पंहुच गए। राजधानी का सफर था इसलिए पता ही नहीं चला कि कब
बदरपुर पंहुच गए। हमारे साथ बीएसएफ के दो कर्मचारी भी थे,जिन्हे सिलचर ही जाना था। अब हम कुल छ: लोग थे।
सिलचर स्टेशन पर ही बीएसएफ वालों को एक बीएसएफ वाला और मिल गया। अब हम सात हो गए। बदरपुर से सिलचर आने के लिए आटो,आल्टो जैसे विल्पों पर बात करते हुए इको (मारुति) को तय किया जोकि २ बारह सौ रुपए में हम सातों को सिलचर छोडने को राजी हुआ था। अब समस्या यह थी कि सात व्यक्ति और सामान इस गाडी में कैसे आएगा? गाडी वाले ने पीछे की एक सीट पर सामान जमाया और थोडी सी बची हुई जगह में एक बीएसएफ वाला ठंस गया। चार लोग बीच वाली सीट पर जैसे तैसे फंस गए। संतोष जी और मैं ड्राइवर के साथ आगली सीट पर टिके। मुझे हैण्डब्रैक के उपर बैठना पडा। करीब पैंतालिस मिनट का सफर था। यह सफर जैसे तैसे पूरा हो गया। हम निश्चिंत थे कि सिलचर में सर्किट हाउस बुक है। शाम को वहां फोन भी कर दिया था कि रात को देर हो जाएगी। ठीक बारह बजे हम सिलचर जा पंहुचे। इको वाला सीधे सलिचर सर्किट हाउस ले गया। विशाल भवन,सामने बगीचा। पहले द्वार पर ताला लगा हुआ था।अगले दरवाजे पर आए तो यहां भी ताला था। मैने सर्किट हाउश पर फोन किया तो उसने कहा भीतर आ जाइए। मैने कहा कि गेट पर ताला लगा हुआ है। उसने कहा कि गेट पर बीएसएप वाला होगा,वह खोल देगा। लेकिन गेट पर तो कोई नहीं था। दीवार कूद कर मैं और अनिल भीतर पंहुच गए। पूरी बिल्डिंग सांय सांय कर रही थी।कहीं कोई नहीं था। बिल्डिंग का पूरा एक चक्कर लगा लिया। इको वाला थोडी देर तो खडा रहा,फिर बीएसएफ वालों को लेकर चला गया। सुनसान सडक़ें,आधीरात का वक्त। सर्किट हाउस में कोई दरवाजा खोलने को राजी नहीं। अब क्या करें..?
फिर से सर्किट हाउस फोन किया,उसने कहा आप भीतर आ जाईए। मैं तो भीतर ही हूं। वह बोला,मुझे तो नजर ही नहीं आ रहे हो। अचानक मुझे लगा कि हमें इस सर्किट हाउस में नहीं आना था। उससे पूछा कि क्या यहां दो सर्किट हाउस है। मैं यहां आसाम के सर्किट हाउस में खडा हूं,उसने कहा यह मिजोरम सरकार का सर्किट हाउस है,जहां हमारी बुकींग थी। अब सारा चक्कर समझ में आया। उससे पूछा तुम्हारा सर्किट हाउस कहां है? उसने कहा ड्राइवर से मेरी बात करवाओ। लेकिन ड्राइवर अब कहां था? वह तो जा चुका था। मैने कहा अभी थोडी देर में बात करवाता हूं। वह बोला क्या पूरी रात आपके लिए जागता रहूं। स्थिति विकट थी। अपना सामान खींचते हुएसर्किट हाउस से आगे बढे। एक बन्द होते रेस्टोरेन्ट पर तीन-चारलोग नजर आए। उनसे पूछा तो उन्होने बताया कि मिजोरम सर्किट हाउस सनाई रोड पर है। आगे से आटो मिल जाएगा।
आगे बढे। अभी रात के साढे बारह हो चुके थे। सामने एक नया आश्चर्य नजर आया। रात साढे बारह बजे कुछ लोग एक शव को लेकर जा रहे थे। आधीरात को शव यात्रा..। कमाल है। हम आटो की तलाश में थे। जल्दी ही आटो मिल गया। डेढ सौ रुपए में चारों इस पर सवार हुए.सनाई रोड पर बढ गए। आटोवाले को सनाई रोड पता था लेकिन सर्किट हाउस कहां है,यह उसे नहीं पता था। सनाई रोड पंहुचकर फिर से सर्किट हाउस पर फोन लगाया,आटो वाले की बात करवाई। सर्किट हाउस नजदीक ही था। अब हम सर्किट हाउस पंहुच गए थे। दो अच्छे कमरे हमारा इंतजार कर रहे थे। रात की एक बज चुकी थी। तुरंत सोने का फैसला किया।
बातचीत से पता चला था कि आईजोल के लिए गाडियां सुबह नौ बजे निकलती है। हमें आट बजे तैयार होना पडेगा। आज सुबह आठ बजे ठण्डे पानी से नहाकर बाहर मुख्य सडक़ पर आए,तो बगल में ही रोडकिंग सूमो सर्विस का आफिस नजर आया। जल्दबाजी में इसी में चार टिकट बुक करवा लिए। पता चला कि हमें आखरी सीट पर बैठना है। हमने विरोध किया तो वह संतोष जी को बीच की सीट देने को राजी हो गया। टिकट लेकर नाश्ता करने चल पडे। उधर त्रिपुरा में भी और यहां भी नाश्ते में सिर्फ मैदे की पुडी,पराठे और साथ में आलू मटर की सब्जी होती है। मैदा खाने की बिलकुल भी इच्छा नहीं थी।लेकिन मैने और दशरथ जी ने एक-एख पराठा खाया। मात्र बीस रु.खर्च हुए। अनिल और संतोष जी ने चाय बिस्कीट खाने का फैसला किया। आसल में जिस गुमटी में पराठे बन रहे थे,वहां अण्डे भी पडे थे और मछली भी कटी हुई पडी थी। इसी से दोनो भाई बिचक गए। दशरथ जी और मैं सोच रहे थे कि आईजोल में इनका क्या होगा..? वैसे आईजोल में स्टेट गेस्ट हाउस में कमरे बुक हो चुके हैं इसलिए शायद भोजन की दिक्कत नहीं आएगी।
06 मार्च 2018 मंगलवार (रात 10.00)
स्टेट गेस्ट हाउस आईजोल
आईजोल के स्टेट गेस्ट हाउस के कमरा न.6 में इस वक्त हम सोने की तैयारी कर रहे हैं।हम सुबह 9.25 पर सिलचर से चले थे। रोडकिंग के आफिस पर थोडा विवाद किया तो संतोष जी को पीछे की बजाय बीच की सीट पर जगह दे दी गई। मुझे,दशरथ जी और मेहता जी को गाडी की अंतिम सीट पर बैठना था। हमारा लगेज उपर बांध दिया गया। थोडा धैर्य रखते तो स्थितियां बदल सकती थी,लेकिन हम डरे हुए थे इसलिए इसी गाडी को तय कर लिया। पीछे की सीट पर बैठते ही समझ में आ गया कि छ:-सात घण्टे की यात्रा नारकीय यातनाएं भुगतने जैसी रहेगी।
सिलचर से गाडी चली। बीस-तीस किमी समतल सडक़ पर चलने के बाद पहाडी रास्ता शुरु हुआ। करीब ग्यारह बजे मिजोरम की बार्डर आ गई। ड्राइवर ने सबके आईडी मांगे। हम सबने दे दिए। सबके स्वीकार हो गए,केवल अनिल का आईडी कार्ड स्वीकार नहीं हुआ। अनिल से कहा गया कि उसे इनर लाइन परमिट लेना पडेगा। बगल में ही इनर लाइन परमिट बनाने की व्यवस्था थी। डेढ सौ रु.लेकर उन्होने इनर लाइन परमिट बना दिया। परमिट लेकर बगल वाली पोस्ट पर गए तो उन्होने बीस रु.और लिए,तब जाकर हम मिजोरम में प्रवेश के लायक हो पाए।
सुबह 9.25 से शुरु हुआ सफर करीब सवा बजे बीच के एक गांव में रुका। इस दौरान पूरा रास्ता पहाडी था। रास्ते में मिजोरम के ग्रामीण जीवन की झलक देखते हुए चल रहे थे। बहरहाल,बीच रास्ते के इस होटल में भोजन यानी राईस (चावल) की व्यवस्था थी। नानवेज वालों के लिए तो था ही,प्योर वेज वाले लोगों के लिए सत्तर रु. की प्लेट राईस प्लेट थी। जिसमें दाल चावल के अलावा आलू और गोभी की सब्जी आधा पापड,सलाद आदि था। दशरथ जी ने एक प्लेट मंगवा ली। होटल वाले ने देखा कि हम चार है,तो वह चार प्लेट ले आया। दो प्लेट लौटा दी। मैने कहा कि मैं थोडे से चावल खा सकता हूं। अनिल भी राजी था। संतोष जी तो मछली मटन देखकर घबरा चुके थे। खैर,हमने एख राईस प्लेट में दोनो ने खाना खाया। फिर भी चावल बच गए। दशरथ जी ने पूरी प्लेट निपटाई। अभी पौने दो हो रहे थे। हमें बताया गया कि यहां से अभी साढे तीन घण्टे का सफर और है। लेकिन सफर इतना लम्बा नहीं था। यहां से ढाई घण्टे का सफर और था। कठिनाईयां झेलते हुए हम सफर करते रहे और शाम चार बजे हम आईजोल के प्रवेश द्वार पर थे। लेकिन जैसा पहाडी शहरों में होता है,सडक़ पर जाम लगा हुआ था। हम करीब पांच बजे टैक्सी स्टैण्ड पर पंहुचे। हमें उतार दिया गया और कहा गया कि स्टेट गेस्ट हाउस जाने के लिए टैक्सी करना पडेगी। हमने टैक्सी की। स्टेट गेस्ट हाउस पीछे यानी कि जिस रास्ते पर हम चलकर आ चुके थे,वहीं था। टैक्सी में सवार हुए और करीब साढे पांच बजे हम स्टेट गेस्ट हाउस पंहुच गए। यहां हमारे दो कमरे रिजर्व थे। यहां आते ही चाय मंगवाई। यात्रा शुरु हुई तब से इतनी अच्छी चाय कहीं नहीं मिली थी। चाय पीने के बाद थोडा घूमने का इरादा था।
हमें बताया गया कि आईजोल में शाम छ: बजे बाजार बन्द हो जाते है। स्टेट गेस्ट हाउस के रिसेप्शन पर ही एक टैक्सी वाले से बात की। तीन हजार रु. में पूरे दिन के लिए टैक्सी भी बुक कर ली। उसी टैक्सी वाले ने अभी इस वक्त आईजोल घुमाने के लिए चार सौ रुपए में एक टैक्सी बुक करवाई है। इस टैक्सी में सवार होकर आईजोल घूमने निकले। शाम सात बजे तक पूरा शहर बन्द हो जाता है। टैक्सी वाले ने आईजोल शहर के सारे प्रमुख स्थान हमें दिखा दिए। शाम करीब सात बजे हम स्टेट गेस्ट हाउस लौट आए। भोजन का आर्डर पहले ही दे चुके थे। सर्किट हाउस में रुकने का बडा फायदा यह होता है कि घर जैसा भोजन मिल जाता है। यहां आटे की तवा रोटियां थी।बडे मजे से भोजन किया। इस दौरान संतोष जी पुरानी घटनाओं को लेकर भावुक हो गए। काफी देर तक रोते रहे। उन्होने भोजन भी ठीक से नहीं किया। इधर भोजन के बाद हम बाहर घूमने निकले। यहां लोग हिन्दी नहीं जानते। इंग्लिश भी ठीक से नहीं जानते। ये बहुत बडी समस्या है। हांलाकि हमने जिस टैक्सी ड्राइवर को बुक किया है,वह कामचलाउ हिन्दी जानता है। कल सुबह नौ बजे यहां से निकलना है।
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