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पहले फेरे में तो सिक्कीम,भूटान के साथ असम और मेघालय से मुलाकात की थी। दूसरे फेरे में असम के साथ अरुणाचल के तवांग की यात्रा की थी। तीसरे फेरे में गुवाहाटी से चलकर अरुणाचल के दूरस्थ क्षेत्र परशुराम कुण्ड और मायोडिया पास के साथ देश का अंतिम रेलवे स्टेशन डिब्रूगढ(आसाम),फिर नागालैण्ड में डिमापुर और कोहिमा के साथ मणिपुर की यात्रा की थी।
त्रिपुरा और मिजोरम फिर भी बच गए थे। इस बार यह भी हो गया। हांलाकि पूर्वोत्तर में बुहत कुछ अभी और है,जिसे देखा जाना चाहिए। रुक कर समझना चाहिए। लेकिन अब उत्सुकता का स्तर वह नहीं रहा,जो शुरुआती दौर में था। तब उत्तर पूर्व एक अबूझ,डरावना और पता नहीं क्या क्या लगता था। लेकिन अब इससे मुलाकात हो चुकी है। हांलाकि मिजोरम वैसा ही है एक अबूझ पहेली जैसा। रहन सहन,शकल सूरत,खान पान सब कुछ अलग। उपर से ईसाईयत। यहां आईजोल में लडकियां पेन्ट शर्ट,टी शर्ट में ही दिखेगी। भारतीय परिधान में कोई ी नजर आ जाए तो बडे आश्चर्य की बात होगी। यहां अंग्रेजी जानने वाले भी कम है। मिजो भाषा ही उपयोग में आती है। यहां के महिला पुरुष पान बहुत खाते है। पान भी अलग अंदाज का। यहां पान की दुकान वाला,पान मांगने पर पांच पान का एक पैकेट देता है। इसकी कीमत होती है बीस रुपए। इस पैकेट में पाच पान के आधे पत्ते होते है,जिनमें सिर्फ चूना लगा होता है। इन्हे करीने से लपेट कर घडी किया जाता है। इसके साथ पोलिथिन की एक थैली में गली हुई सुपारी के पांच बडे टुकडे होते है। न कोई मसाला,ना कत्था। दोनो पोलिथिन की थैलियां एक साथ एक पिन से स्टैपल कर देते है। पान खाने वाला,पैकेट में से एक पान का टुकडा और एक सुपारी निकालता है और बडे मजे से खाता है। मजेदार बात यह है कि इस बिना कत्थे वाले पान से भी मुंह अच्छी तरह से लाल हो जाता है। हमारा ड्राइवर आरसा भी पान पर पान खा रहा था। हमने भी खाया मजेदार लगा।
यहां के तमाम लोग मांसाहारी है। खान पान की अधिक चिंता करने वालो को यहां बिलकुल नहीं आना चाहिए। यहां प्योर वैजिटैरियन एक भी होटल हमें नजर नहीं आया। जिस होटल में जाइए,नानवेज तो होगा ही,वेज मिलने में दिक्कत आ सकती है। होटल में आपकी बगल में बैठा व्यक्ति मछली या मुर्गा खा रहा होगा और आपको अपना वेज भोजन करना पडेगा। रोटी सब्जी जैसे भोजन की इच्छा करना यहां व्यर्थ है। अधिकांश जगहों पर चावल और चाऊ मिलेगा। हम तो चूंकि स्टेट गेस्ट हाउस में है इसलिए हमें भोजन की कोई समस्या नहीं है। हमें तो बढिया से गेंहू की रोटियां मिलती रही है।
हम हांलाकि मिजोरम में केवल डेढ दिन ही गुजार पाए। दिल्ली में यदि गडबड ना होती तो हम यहां कम से कम ढाई दिन रुक पाते। हांलाकि इन उत्तर पूर्वी राज्यों में एक से दूसरे राज्य में जाने की व्यवस्था बेहद घटिया है। सडक़ें बेहद खराब है। वाहनों की आवाजाही अनियमित है। गुवाहाटी से आपको हर स्थान पर जाने वाहन मिलेगा,लेकिन दूसरे राज्यों से नहीं। नागालैण्ड के कोहिमा से मणिपुर के इम्फाल जाने के लिए वाहन नहीं मिलते,जबकि दूरी सिर्फ एक सौ तीस किमी है। इसी तरह त्रिपुरा से मिजोरम आना भी दुष्कर है। पूरे दो दिन लगते है। पहला दिन अगरतला से सिलचर आईए फिर सिलचर से सारा दिन चलकर यहां आईजोल पंहुचिए। ट्रैफिक जाम की दिक्कत तो है ही। शहर के किनारे पर ही हम करीब एक सवा घण्टे जाम में फंसे रहे थे।
बहरहाल,आज बरह बजे हमारी फ्लाईट है। एयरपोर्ट यहां से 31 किमी दूर है। कल वाले ड्राइवर ने दो प्राइवेट गाडी लेकर आने का वादा किया है। हम नौ बजे यहां से निकलना चाहते है,ताकि समय से एक घण्टा पहले पंहुच जाए। पहाडी रास्ता और जाम का खतरा,ऐसे में अब कोई रिस्क नहीं लेंगे।
सुबह के सारे काम निपट चुके है। सिर्फ स्नान बाकी है। अभी अनिल स्नान कर रहा है। बगल वाले रुम के लोग दशरथ जी और संतोष जी भी तैयार होने को है। आठ साढे आठ तक नाश्ता करके निकल लेंगे।
कल शाम को पता चला था कि मिजोरम के चीफ सैक्रेटेरी,स्टेट गेस्ट हाउस में ही है। कल शाम उनसे मिलने का भी इरादा था,लेकिन गेस्ट हाउस पर कोई बडी मीटींग थी,जिसमें वे व्यस्त थे। उनसे मुलाकात नहीं हो सकी थी। सुबह जब नाश्ता करने नीचे आए,तो उनकी गाडी गेट पर लग चुकी थी। मेरी इच्छा थी कि कम से कम उनसे मुलाकात तो की जाए। नाश्ते के फौरन बाद मैने गूगल पर देखा कि चीफ सैक्रेटेरी लालमलसवामा है। जो दिल्ली सरकार में थे और अभी दो-ती पहले ही यहां आए हैं। उसी समय वे बाहर निकले,मैने नमस्कार किया,अपना परिचय दिया। सभी ने उनसे परिचय किया। फिर मैने एक फोटो का आग्रह किया। फोटो भी ले लिया। वे रवाना हो गए। नौ बज चुके थे। आरेसा अभी तक नहीं आया था। फोन लगाया तो बोला कि जाम में फंसा हूं,सर्किट हाउस के नीचे ही हूं। हम अपना सामन लेकर नीचे मुख्यद्वार तक पंहुच गए। आरेसा अपने साथ एक लोकल टैक्सी भी लाया था। मैं और अनिल आरेसा की गाडी में बैठे,जबकि दशरथ जी और संतोष जी टैक्सी में सवार हुए। 9.25 हो चुके थे। लैंगपुई एयरपोर्ट 31 किमी दूर है। एक घण्टे का रास्ता है। शहर में इक्का दुक्का छोटे जाम मिले। फिर रास्ता साफ था। हमने अभी आधा रास्ता ही पार किया था कि आरेसा की गाडी अचानक बन्द हो गई। वह करीब दस मिनट तक सेल्फ मारता रहा। गाडी स्टार्ट होने को तैयार ही नहीं। अभी दस बज चुके थे। दिल की धडकने बढने लगी थी कि अचानक थोडी देर बाद गाडी स्टार्ट हो गई।
अब उसने गाडी तेज चलाना शुरु कर दिया। हम दूध के जले हुए थे,छाछ भी फूंक फूंक कर पी रहे थे। गाडी चली तो थोडी देर बाद उशके अगले व्हील में खट-खट की आवाज होने लगी। थोडी देर में ये आवाज और तेज हो गई। इधर एयरपोर्ट अभी चार किमी दूर था और गाडी के व्हील की आवाज बहुत ज्यादा बढ गई। डर लगा कि कहीं व्हील ही बाहर ना आ जाए। आरेसा ने गाडी रोकी और बाहर निकल कर देखा। इसी समय दशरथ जी को फोन आ गया। वे एयरपोर्ट पर पंहुच गए थे। मैने उन्हे स्थिति बताई,दूसरे टैक्सी वाले को रोकने को कहा। हम चलते रहे और इखरकार 10.45 पर लैंगपुई एयरपोर्ट पर आ गए। आरेसा को बिदा किया और एयरपोर्ट के भीतर आ गए।
छोटा सा एयरपोर्ट। केवल जेट एयरवेज की फ्लाईट्स है यहां से। एयर इण्डिया की भी है लेकिन इसके अलावा दूसरी कंपनियां नहीं है। चैक इन किया,बोर्डिंग पास ले लिए और लगेज भी बुक करदिया। अब केवल सिक्योरिटी चैक से भीतर जाना है। यहां लम्बी लाईन लगी हुई थी,इसलिए डायरी से बेहतर कुछ नहीं। कतार अब छोटी हो गई है। कतार खत्म होते ही भीतर जाएंगे। कोलकाता तक की फ्लाईट महज 40 मिनट की है,जो दोपहर बारह बजे उडेगी।
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अलविदा आईजॉल..........
8 मार्च 2018 गुरुवार(सुबह6.27)
स्टेट गेस्ट हाउस आईजोल
यात्रा का आज अंतिम दिन है। रात तक हम फिर से दिल्ली में होंगे और कल शाम तक रतलाम में। पूर्वोत्तर को पूरा देख लेने की इच्छा अब पूरी हो चुकी है। सेवन सिस्टर के नाम से प्रसिध्द पूर्वोत्तर या उत्तर पूर्व (नार्थ-ईस्ट) के सातों राज्यों को देखने के लिए यह चौथा पेरा है।पहले फेरे में तो सिक्कीम,भूटान के साथ असम और मेघालय से मुलाकात की थी। दूसरे फेरे में असम के साथ अरुणाचल के तवांग की यात्रा की थी। तीसरे फेरे में गुवाहाटी से चलकर अरुणाचल के दूरस्थ क्षेत्र परशुराम कुण्ड और मायोडिया पास के साथ देश का अंतिम रेलवे स्टेशन डिब्रूगढ(आसाम),फिर नागालैण्ड में डिमापुर और कोहिमा के साथ मणिपुर की यात्रा की थी।
त्रिपुरा और मिजोरम फिर भी बच गए थे। इस बार यह भी हो गया। हांलाकि पूर्वोत्तर में बुहत कुछ अभी और है,जिसे देखा जाना चाहिए। रुक कर समझना चाहिए। लेकिन अब उत्सुकता का स्तर वह नहीं रहा,जो शुरुआती दौर में था। तब उत्तर पूर्व एक अबूझ,डरावना और पता नहीं क्या क्या लगता था। लेकिन अब इससे मुलाकात हो चुकी है। हांलाकि मिजोरम वैसा ही है एक अबूझ पहेली जैसा। रहन सहन,शकल सूरत,खान पान सब कुछ अलग। उपर से ईसाईयत। यहां आईजोल में लडकियां पेन्ट शर्ट,टी शर्ट में ही दिखेगी। भारतीय परिधान में कोई ी नजर आ जाए तो बडे आश्चर्य की बात होगी। यहां अंग्रेजी जानने वाले भी कम है। मिजो भाषा ही उपयोग में आती है। यहां के महिला पुरुष पान बहुत खाते है। पान भी अलग अंदाज का। यहां पान की दुकान वाला,पान मांगने पर पांच पान का एक पैकेट देता है। इसकी कीमत होती है बीस रुपए। इस पैकेट में पाच पान के आधे पत्ते होते है,जिनमें सिर्फ चूना लगा होता है। इन्हे करीने से लपेट कर घडी किया जाता है। इसके साथ पोलिथिन की एक थैली में गली हुई सुपारी के पांच बडे टुकडे होते है। न कोई मसाला,ना कत्था। दोनो पोलिथिन की थैलियां एक साथ एक पिन से स्टैपल कर देते है। पान खाने वाला,पैकेट में से एक पान का टुकडा और एक सुपारी निकालता है और बडे मजे से खाता है। मजेदार बात यह है कि इस बिना कत्थे वाले पान से भी मुंह अच्छी तरह से लाल हो जाता है। हमारा ड्राइवर आरसा भी पान पर पान खा रहा था। हमने भी खाया मजेदार लगा।
यहां के तमाम लोग मांसाहारी है। खान पान की अधिक चिंता करने वालो को यहां बिलकुल नहीं आना चाहिए। यहां प्योर वैजिटैरियन एक भी होटल हमें नजर नहीं आया। जिस होटल में जाइए,नानवेज तो होगा ही,वेज मिलने में दिक्कत आ सकती है। होटल में आपकी बगल में बैठा व्यक्ति मछली या मुर्गा खा रहा होगा और आपको अपना वेज भोजन करना पडेगा। रोटी सब्जी जैसे भोजन की इच्छा करना यहां व्यर्थ है। अधिकांश जगहों पर चावल और चाऊ मिलेगा। हम तो चूंकि स्टेट गेस्ट हाउस में है इसलिए हमें भोजन की कोई समस्या नहीं है। हमें तो बढिया से गेंहू की रोटियां मिलती रही है।
हम हांलाकि मिजोरम में केवल डेढ दिन ही गुजार पाए। दिल्ली में यदि गडबड ना होती तो हम यहां कम से कम ढाई दिन रुक पाते। हांलाकि इन उत्तर पूर्वी राज्यों में एक से दूसरे राज्य में जाने की व्यवस्था बेहद घटिया है। सडक़ें बेहद खराब है। वाहनों की आवाजाही अनियमित है। गुवाहाटी से आपको हर स्थान पर जाने वाहन मिलेगा,लेकिन दूसरे राज्यों से नहीं। नागालैण्ड के कोहिमा से मणिपुर के इम्फाल जाने के लिए वाहन नहीं मिलते,जबकि दूरी सिर्फ एक सौ तीस किमी है। इसी तरह त्रिपुरा से मिजोरम आना भी दुष्कर है। पूरे दो दिन लगते है। पहला दिन अगरतला से सिलचर आईए फिर सिलचर से सारा दिन चलकर यहां आईजोल पंहुचिए। ट्रैफिक जाम की दिक्कत तो है ही। शहर के किनारे पर ही हम करीब एक सवा घण्टे जाम में फंसे रहे थे।
बहरहाल,आज बरह बजे हमारी फ्लाईट है। एयरपोर्ट यहां से 31 किमी दूर है। कल वाले ड्राइवर ने दो प्राइवेट गाडी लेकर आने का वादा किया है। हम नौ बजे यहां से निकलना चाहते है,ताकि समय से एक घण्टा पहले पंहुच जाए। पहाडी रास्ता और जाम का खतरा,ऐसे में अब कोई रिस्क नहीं लेंगे।
सुबह के सारे काम निपट चुके है। सिर्फ स्नान बाकी है। अभी अनिल स्नान कर रहा है। बगल वाले रुम के लोग दशरथ जी और संतोष जी भी तैयार होने को है। आठ साढे आठ तक नाश्ता करके निकल लेंगे।
8 मार्च 2018 (दोपहर 11.00 बजे)
लेंगपुई एयरपोर्ट,आईजोल
सुबह का टाइम टेबल बिलकुल ठीक रहा। हम पौने नौ बजे सब्जी पुडी का नाश्ता कर चुके थे। सर्किट हाउस का बिल चुका दिए थे और लगेज नीचे ला चुके थे। अब हमें इंतजार था हमारे ड्राइवर आरसा का। वह दो कार लेकर आने वाला था।कल शाम को पता चला था कि मिजोरम के चीफ सैक्रेटेरी,स्टेट गेस्ट हाउस में ही है। कल शाम उनसे मिलने का भी इरादा था,लेकिन गेस्ट हाउस पर कोई बडी मीटींग थी,जिसमें वे व्यस्त थे। उनसे मुलाकात नहीं हो सकी थी। सुबह जब नाश्ता करने नीचे आए,तो उनकी गाडी गेट पर लग चुकी थी। मेरी इच्छा थी कि कम से कम उनसे मुलाकात तो की जाए। नाश्ते के फौरन बाद मैने गूगल पर देखा कि चीफ सैक्रेटेरी लालमलसवामा है। जो दिल्ली सरकार में थे और अभी दो-ती पहले ही यहां आए हैं। उसी समय वे बाहर निकले,मैने नमस्कार किया,अपना परिचय दिया। सभी ने उनसे परिचय किया। फिर मैने एक फोटो का आग्रह किया। फोटो भी ले लिया। वे रवाना हो गए। नौ बज चुके थे। आरेसा अभी तक नहीं आया था। फोन लगाया तो बोला कि जाम में फंसा हूं,सर्किट हाउस के नीचे ही हूं। हम अपना सामन लेकर नीचे मुख्यद्वार तक पंहुच गए। आरेसा अपने साथ एक लोकल टैक्सी भी लाया था। मैं और अनिल आरेसा की गाडी में बैठे,जबकि दशरथ जी और संतोष जी टैक्सी में सवार हुए। 9.25 हो चुके थे। लैंगपुई एयरपोर्ट 31 किमी दूर है। एक घण्टे का रास्ता है। शहर में इक्का दुक्का छोटे जाम मिले। फिर रास्ता साफ था। हमने अभी आधा रास्ता ही पार किया था कि आरेसा की गाडी अचानक बन्द हो गई। वह करीब दस मिनट तक सेल्फ मारता रहा। गाडी स्टार्ट होने को तैयार ही नहीं। अभी दस बज चुके थे। दिल की धडकने बढने लगी थी कि अचानक थोडी देर बाद गाडी स्टार्ट हो गई।
अब उसने गाडी तेज चलाना शुरु कर दिया। हम दूध के जले हुए थे,छाछ भी फूंक फूंक कर पी रहे थे। गाडी चली तो थोडी देर बाद उशके अगले व्हील में खट-खट की आवाज होने लगी। थोडी देर में ये आवाज और तेज हो गई। इधर एयरपोर्ट अभी चार किमी दूर था और गाडी के व्हील की आवाज बहुत ज्यादा बढ गई। डर लगा कि कहीं व्हील ही बाहर ना आ जाए। आरेसा ने गाडी रोकी और बाहर निकल कर देखा। इसी समय दशरथ जी को फोन आ गया। वे एयरपोर्ट पर पंहुच गए थे। मैने उन्हे स्थिति बताई,दूसरे टैक्सी वाले को रोकने को कहा। हम चलते रहे और इखरकार 10.45 पर लैंगपुई एयरपोर्ट पर आ गए। आरेसा को बिदा किया और एयरपोर्ट के भीतर आ गए।
छोटा सा एयरपोर्ट। केवल जेट एयरवेज की फ्लाईट्स है यहां से। एयर इण्डिया की भी है लेकिन इसके अलावा दूसरी कंपनियां नहीं है। चैक इन किया,बोर्डिंग पास ले लिए और लगेज भी बुक करदिया। अब केवल सिक्योरिटी चैक से भीतर जाना है। यहां लम्बी लाईन लगी हुई थी,इसलिए डायरी से बेहतर कुछ नहीं। कतार अब छोटी हो गई है। कतार खत्म होते ही भीतर जाएंगे। कोलकाता तक की फ्लाईट महज 40 मिनट की है,जो दोपहर बारह बजे उडेगी।
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