यात्रा वृतान्त-31 / शांति का देश भूटान-
जैगाव से भूटान के द्वार पर
(4 जनवरी 2019 से 14 जनवरी 2019 तक)5 जनवरी 2019 (शनिवार) सुबह 9.45
आईजीआई एयरपोर्ट टर्मिनल टी-2
नई दिल्ली के इंदिरा गांधी इन्टरनेशनल एयरपोर्ट के टर्मिनल टी-टू पर इस वक्त हम अपनी गो एयर की उडान के इंतजार में बैठे है। हमे अभी लंबा इंतजार करना है,क्योंकि हमारी उडान दोपहर डेढ बजे हैं,लेकिन हम बडी जल्दी अभी पौने दस पर ही यहां पंहुच चुके हैं।
पिछली यात्रा के दो महीने और सत्ताईस दिन बाद,और अगर एक छोटी सी यात्रा रतलाम गान्धीसागर-चित्तौडगढ से जोडा जाए तो महज पांच दिन बाद मैं अपने दोस्तों के साथ भूटान की इस यात्रा में दशरथ पाटीदार,अनिल मेहता,हिमांशु जोशी और मन्दसौर से आशुतोष नवाल,मेरे साथ है।
हमारी यह यात्रा रतलाम से शुरु हुई थी। हमारे पांचो के रिजर्वेशन कन्फर्म हो गए थे। शाम ठीक छ: बजे हमारी ट्रेन रतलाम से चल पडी थी। मेरा और आशुतोष का आरक्षण बी-थ्री में था बाकी तीनों का बी-टू में है। हम अलग अलग डिब्बों में थे। भोजन हमने साथ में किया और फिर अपनी सीटों पर पंहुच गए। ट्रेन सुबह सवेरे 4.35 पर दिल्ली पंहुच जाती है,इसलिए दस साढे दस पर हम सो गए थे।
ट्रेन ठीक 4.35 पर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पंहुच गई। ट्रेन से उतरे तो पहले प्लेटफार्म न.16 की तरफ चले गए। पता चला वेटिंग रुम प्लेटफार्म 1 पर है। फिर सौलह प्लेटफार्म पार करके प्लेटफार्म न.1 की तरफ आए और वेटिंग हाल में पंहुचे। अब धीरे धीरे नित्यकर्म से निवृत्त होने का सिलसिला चला। इस वेटिंग हाल में स्नानघर की सुविधा नहीं है। इसलिए स्नान के बिना अन्य सारे नित्यकर्म निपटाए। स्टेशन के ही केन्टीन पर जाकर इडली डोसा का नाश्ता टिकाया।
ये सब करते कराते अभी सिर्फ नौ ही बजे थे। अब क्या करे...? एयरपोर्ट चलते हैं। फिर से सौलह प्लेटफार्म पार करके प्लेटफार्म न.16 की तरफ से बाहर निकले। सामने ही एयरपोर्ट मैट्रो स्टेशन है। मैट्रो पकड कर आईजीआई के टी-थ्री पर पंहुचे। हमारी उडान टी टू से है। अब तक आईजीआई के टी-थ्री और टी-वन से ही जाने का काम पडा है। टी-टू पर जाने का यह पहला मौका है। टी-थ्री से टी-टू तक पैदल ही आना पडा। यह करीब डेढ किमी का रास्ता है। निश्चित ही वृध्द और बीमार व्यक्तियों के लिए यहां आने की कोई विशेष व्यवस्था होगी। लेकिन हमे इसकी जानकारी नहीं मिली। हम तो पैदल ही यहां चले आए। यहां आए,तो अब कुर्सियों पर टाइम पास कर रहे हैं।
भूटान जाने का मेरे लिए यह दूसरा मौका है। पहली बार 2011 या 12 में हम भूटान गए थे। उस वक्त आशुतोष भी मेरे साथ था। बाकी के लोग पहली बार इधर आए हैं। पिछली बार हमने भूटान में प्रवेश तो किया था,लेकिन थिम्फू तक नहीं जा पाए थे।
वैसे तो इस बार हमारा इरादा लक्षद्वीप जाने का था,लेकिन लक्षद्वीप की यात्रा बहुत ज्यादा महंगी पड रही थी। तब ये विचार किया कि फिलहाल भूटान चल लेते हैं,क्योंकि थिम्फू नहीं जा पाए थे हम रास्ते से लौट आए थे,वहां तक जा नहीं पाए थे। बस इसी कारण से इस बार भूटान जाने की योजना बन गई। रतलाम से दिल्ली हम ट्रेन से आए है। यहां से बाग डोगरा हवाई जहाज से पंहुचेंगे। वहां से आगे फुनशिलींग और थिम्फू तक सडक़ से जाने का इरादा है। कुछ दिन थिम्फू में रुकेंगे और तब लौटेंगे। वापसी में हमारी उडान बागडोगरा से सीधे इन्दौर की है।
भूटान अपने आप में अनोखा देश है, यह एक ऐसा देश है जो आजकर गुलाम नहीं रहा। यहां राजशाही है। दुनिया का इकलौता देश है,जो जीडीपी की बजाय हैप्पीनेस इंडेक्स को मानता है और खुशी के स्तर पर दुनिया का पहला देश है। बौध्द धर्म को मानने वाला भूटान हर मामले में भारत पर निर्भर है।
06 जनवरी 2019 रविवार (सुबह 9.30)
होटल कस्तूरी,जैगांव(प.बंगाल)
इस वक्त मैं भारत भूटान सीमा के आखरी शहर जैगांव में हूं। भूटान भारत एक दूसरे से सटे हुए हैं। जिस सडक़ पर यह होटल है,इसी सडक़ पर यहां से केवल सौ मीटर आगे एक द्वार दिखाई देता है। इस द्वार के उस पार भूटान है। अनिल और आशुतोष कल रात ही भूटान का एक चक्कर भी लगा आए हैं। हम आज भूटान में प्रवेश करेंगे।
अब बात कल की। कल पौने दस बजे एयरपोर्ट पर पंहुचने के बाद,दोपहर डेढ बजे तक का समय कुर्सियां तोडते,इधर उधर भटकते,पेपर पढते गुजारा। ठीक डेढ बजे जहाज ने उडान भरी और ठीक सवा तीन बजे बागडोगरा नजर आने लगा। हम साढे तीन पर प्लेन से बाहर निकले। एयरपोर्ट की प्रीपेड टैक्सी बुकींग पर पूछा तो उसने जैगांव के लिए 2670 रु. में नान एसी इनोवा बुक कर दी। अब हम टैक्सी का इंतजार कर रहे थे कि एक दूसरे टैक्सी वाले ने कहा,इतनी कम राशि में कोई टैक्सी वाला जैगांव नहीं जाएगा। दूसरे टैक्सी वाले साढे तीन हजार बत्तीस सौ मांग रहे थे। फिर हिमांशु ने प्रीपैड बूथ पर जाकर बहस और शिकायत की। शिकायत पर पुलिस वाले भी पंहुच गए। टैक्सी वाले एकजुट होकर जाने का विरोध कर रहे थे। लेकिन फिर पुलिस के दबाव में जाने को राजी हुए। जिस टैक्सी से हमें जाना था,उसने एक दूसरे टैक्सी वाले को उसी भाव में तय करके हमें बैठाया। इस पूरी मशक्कत में आधा पौना घंटा गुजर गया। हम करीब पौने पांच बजे बागडोगरा से रवाना हुए। जैगांव यहां से करीब डेढ सौ किमी दूर है। रास्ता समतल है,शानदार है। यहां से सिलीगुडी,अलीपुरद्वार,जलपाईगुडी और हासीमारा होते हुए हम रात नौ बजे जैगांव पंहुचे। जैगांव में सडक़ पर जाम लगा हुआ था,करीब आधे घंटे जाम में फंसे रहे और रात साढे नौ बजे हमने होटल कस्तूरी में चैक इन किया।
भूटान का गेट सामने ही है,लेकिन कल पता चला है कि रविवार को परमिट नहीं बनेगा। हमारे ड्राइवर ने एक नई बात बताई। उसने कहा कि अगर आपने पहले कभी भूटान का परमिट लिया था और लौटते वक्त उसे जमा नहीं करवाया था,तो आपका परमिट नहीं बनेगा। मैं और आशुतोष पहले आए हैं और परमिट भी बनवाया था। अब ये याद नहीं है कि परमिट जमा करवाया था कि नहीं। देखते है कल क्या होता है? आज तो हम सीमा के शहर फुनशिलोंग में ही घूमेंगे। इसके बाद कल थिम्फू जाने की योजना बनाएंगे।
6 जनवरी 2019 रविवार (रात 11.30)
होटल कस्तूरी
पूरा दिन फुनशिलोंग और जैगांव घूमने के बाद आज का दिन समाप्त हुआ। पूरे दिन की मशक्कत के बाद हमने थिम्फू जाने के लिए वाहन और होटल की व्यवस्था जुटा ली है। कल सुबह आठ बजे हमें तैयार होकर निकलना है।
आज सुबह की शुरुआत सवा दस बजे हुई। स्नानादि से निवृत्त होते होते करीब सवा दस बज गए थे। तैयार होकर कमरे से बाहर निकले,तो भूख लग रही थी। इसी होटल के रेस्टोरेन्ट में एक एक आलू पराठा दही के साथ खाया। आलू पराठा बहुत बडा था। एक पराठे से ही पेट भर गया। पेट पूजा करके बाहर निकले।
यहां से केवल सौै मीटर पर भूटान का प्रवेश द्वार है। कई टैक्सी वाले हमारे पीछे पडे,लेकिन हम पैदल ही भूटान के भीतर यानी फुनशिलोंग में प्रवेश कर गए। जैगांव और फुनशोलिंग आपस में जुडे हुए हैं। केवल एक द्वार है,जो भारत और भूटान को अलग करता है। दरवाजे से भीतर जाते ही सबकुछ बदल जाता है। इमारतें,दुकानें,लोग,पहनावा सबकुछ अलग। भूटान की तमाम इमारतें अलग ढंग की है। लोगों का पहनावा,शकल सबकुछ अलग है। फुनशोलिंग में प्रवेश के लिए किसी परमिट की आवश्यकता नहीं है। यहां हिन्दी लगभग सभी लोग जानते हैं। लेकिन दृश्य अलग होते है।
हम भूटान में घुसे। पैदल ही इधर उधर घूमते रहे। दुकाने देखी,लोगों को देखा। हम चाहते थे कि कोई ट्रेवल्स वाला मिल जाए तो पैकेज के बारे में जानकारी ले लें। जब हम भीतर घुसे थे,उस वक्त हमारी घडी साढे ग्यारह का वक्त बता रही थी,जबकि भूटान में उस समय बारह बज रहे थे। भूटान का समय,भारत से आधा घंटा आगे है। हमें बताया गया था कि थिम्फू का परमिट लेने के लिए होटल की बुकींग जरुरी है। होटल की जानकारी के बगैर आपको भूटान का परमिट नहीं मिल सकता। हमने सोचा कि हम फुनशोलिंग के होटल में कमरे लें ले,ताकि इसी आधार पर परमिट भी मिल जाएगा। यही सोचकर एक होटल में घुसे। लेकिन तभी ध्यान में आया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि होटल बुकींग की शर्त,थिम्फू के ही होटल के लिए हो। फुनशोलिंग के होटल वाले से ही पूछ लिया कि उसके होटल में चेक इन करने से परमिट मिल जाएगा? उसने साफ साफ बता दिया कि परमिट के लिए थिम्फू के ही होटल की बुकींग चाहिए। बहरहाल हम जिस होटल में थे,कल तक उसी में रुके रहने का फैसला हो गया। अब,हम ट्रैवल्स वालों को ढूंढने में लगे। दो ट्रेवल एजेंसी के दफ्तरों को ढूंढने के लिए दो दो मंजिल सीढियां चढी,लेकिन वो दोनो ही बन्द मिले।
इधर उधर भटकने के दौरान,एक देशी(भारतीय) दुकानदार से पूछताछ की। मूलत: उत्तरप्रदेश का बन्दा कोई गुप्ता था। उसने बताया कि तीन चार पीढी से यहीं बसे रहने के बावजूद उसे भूटान की नागरिकता नहीं दी गई है। उसी ने बताया कि टूर पैकेज तय करने के लिए जैगांव ही सही जगह है। इधर फुनशोलिंग में व्यवस्थाएं सही नहीं है। करीब दो ढाई घंटे इधर उधर भटकने के बाद हम फिर जैगांव लौट आए।
जैगाव और फुनशोलिंग को एक दीवार से पृथक किया गया है। भूटान के प्रवेश का विशाल गेट है लेकिन आज रविवार होने से गेट बन्द था। गाडियां भी दूसरे द्वार से प्रवेश कर रही थी।
बहरहाल,हम करीब ढाई घंटे बाद भूटान से निकले। जैगांव में घुसे तो,मैं और दशरथ जी ट्रैवल एजेंसियों का पता करने रुक गए,जबकि बाकी तीनों कमरे में जाकर आराम करने लगे। हमने एक ट्रेवल एजेन्ट से पैकेज की जानकारी ली। उसने पांच दिन चार रात का पैकेज 31 हजार और सात दिन छ: रात का पैकेज 46 हजार रु में करने की बात कही। एक दूसरी एजेंसी पर गए तो उसने और भी महंगा पैकेज बताया। हम कमरे में लौटे,सारे साथियों से विचार के बाद यह तय हुआ कि सीधे टैक्सी वालों से बात करके देखा जाए,कि क्या हिसाब पडता है। हमें फुनशोलिंग की लोकल साइट सीइंग भी करना थी।
होटल से नीचे रोड पर भूटान गेट के पास एक टैक्सी वाले से चर्चा हुई। वह तीन हजार रु.प्रतिदिन में गाडी देने को तैयार था। तुलना करने पर पता चला कि स्वयं टैक्सी करके जाना सस्ता पडेगा।
इसी टैक्सी वाले से तय करने की ठानी,लेकिन इससे पहले लोकल साइट सीइंग भी करना था। टैक्सी वाला एक हजार रु.में लोकल घुमाने को तैयार हुआ। उसकी गाडी में सवार होकर दो बौध्द मानेस्ट्री और एक क्रोकोडाइल पार्क देखा। क्रोकोडाइल पार्क में बडे विशालकाय क्रोकोडाइल मौजूद थे। इनके विडीयो बनाए।
केवल एक डेढ घंटे में काफी कुछ घूम लिया। टैक्सी वाले की एजेंसी से भी चर्चा करके अब थिम्फू के लिए सस्ता पैकेज तैयार करवा लिया। इस पैकेज में टैक्सी का किराया तीन हजार रु.प्रतिदिन है,जबकि चार दिन का होटल स्टे कुल बारह हजार का है। इसमें दो रात थिम्फू में रुकना होगा,और दो रात पारो में। यह पैकेज पांच दिन और चार रात का है।
कल सुबह आठ बजे हमें निकलना है। अब सोने की तैयारी।
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