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यात्रा वृतान्त-31/ शांति का देश भूटान-
काली कलकत्ते वाली के दरबार से घर वापसी
(4 जनवरी 2019 से 14 जनवरी 2019 तक)14 जनवरी 2019 सोमवार (सुबह 8.25)
होटल प्रियांशु,बागडोगरा
यात्रा का आज अंतिम दिन है। बागडोगरा एयरपोर्ट से हमारी उडान दोपहर बारह बजे है। हम शाम सात बजे इन्दौर पंहुचने वाले थे,लेकिन उडान रिशेड्यूल्ड हो गई है इसलिए हम रात दस बजे तक इन्दौर पंहुचेंगे। वहां से रतलाम जाने की व्यवस्था अभी करना है।
कल हम शाम साढे सात पर बिहार मोड पंहुच गए थे। वहां से ये होटल करीब सात किमी दूर था। दिन भर हमारे साथ चल रहे ड्राइवर मंजीर का दिमाग आखरी वक्त में घूमा और वह चिडचिड करने लगा था। आखरी के पन्द्रह बीस मिनटों में उसने डांट भी खाई और सबका मूड भी खराब किया।
इस होटल में पंहुचे। होटल अभी तीन महीने पहले ही शुरु हुआ है। कमरे बहुत छोटे लेकिन अच्छे थे। ऑनलाइन बुकिंग में एक कमरा थ्री बेडेड दिया गया था,लेकिन यहां सारे कमरे दो ही बेड के थे। एक कमरे में एक्स्ट्रा बेड लगाया जाना था।
अब आई भोजन की बारी। आर्डर दिया। पहले तो होटल वाले ने आर्डर ले लिया,फिर बोला कि रोटी नहीं है। भारी खींचतान के बाद उसने किसी और होटल से रोटियां मंगाई। रात दस बजे हमें भोजन मिल पाया।
अभी सुबह की कहानी भी ऐसी ही निकली। हमने नाश्ता साढे नौ पर सर्व करने को कहा था। होटल वाले ने साढे आठ बजे ही नाश्ता लगा दिया। अभी तो स्नान भी नहीं हुआ है। हिमांशु होटल वाले से बहस कर रहा है देखते है क्या होता है..?
14 जनवरी 2019/शाम 6.45
कोलकाता इंदौर इंडिगो विमान
हमारा प्लेन लेट हो चुका है और अब यह रात 9.20 पर इंदौर पंहुचेगा। आज सुबह होटल से नाश्ता करके निकले थे। दो इ रिक्शा लेकर ठीक समय पर हम बागडोगरा एयरपोर्ट पर पंहुच गए। कोलकाता तक की उडान डेढ घंटे की थी,लेकिन यह एक घंटे में ही कोलकाता पंहुच गई। दूसरा प्लेन शाम सात बजे था। हमारे पास करीब पांच घंटे थे। हम एयरपोर्ट से बाहर निकले और फौरन औला कैब पकड कर सीधे दक्षिणेश्वर काली मंदिर पंहुचे। पता चला मंदिर के पट साढे तीन बजे खुलेंगे। अभी दो बजे थे। मंदिर परिसर में बने होटलों में से एक पर जाकर गर्म हींग वाली कचोडी का नाश्ता किया। यहां पुडी को कचौडी कहते है। एक प्लेट कचौडी में चार-पांच छोटी छोटी पुडियां और साथ में दाल या सब्जी होती है। ये कचौडी खाने के बाद दहीबडा और एक एक रसगुल्ला खाया। फिर बाहर निकल कर एक दुकान में दो मसाला डोसा लेकर सबने खाए।
अब दर्शन का समय हो गया था। बैग मोबाइल आदि जमा करवा कर भीतर गए। भीतर जाने में कोई दिक्कत नहीं थी,लेकिन भीतर दर्शनार्थियों की भारी भीड थी। हम भीतर पंहुचे। दर्शनों के लिए लंबी कतारें लगी हुई थी। मैने और अनिल ने इन कतारों में लगने की बजाय मंदिर परिसर के अन्य मंदिरों के दर्शन किए। इस परिसर में मुख्य मंदिर के अलावा दाहीनी ओर द्वादश ज्योतिर्लिंग के मंदिर है। राधाकृष्ण का भी मंदिर है। दशरथ जी,हिमांशु और आशुतोष मुख्य मंदिर के दर्शन की लाइन में लग गए। जल्दी ही दर्शन भी हो गए। अभी करीब साढे तीन हो रहे थे। अब हमें और कोई काम नहीं था। मंदिर से बाहर निकले और औला कैब पकडने की जुगत में लगे। औला पर कोई कैब उपलब्ध नहीं थी। फिर हिमांशु ने मोबाइल पर उबर डाउनलोड किया। फिर उबर कैब पर मिनी गाडी बुलाई। इसमें पांच लोग नहीं बैठ सकते थे। हमें दो गाडियां चाहिए थी। पहली गाडी में दशरथ जी और हिमांशु रवाना हो गए। फिर हमने गाडी खोजना शुरु की। थोडी मशक्कत के बाद हमें भी गाडी मिल गई। हम पांच बजे फिर से एयरपोर्ट पर थे। हमारी उडान 6.55 की थी। कोई जल्दी नहीं थी।
इंदौर एयरपोर्ट पर हमने गाडी बुलवा ली है। उम्मीद है कि हम साढे नौ पौने दस तक इंदौर एयरपोर्ट से बाहर आ जाएंगे और गाडी में सवार होकर रात बारह साढे बारह तक रतलाम पंहुच जाएंगे। मंदसौर के लिए रात साढे बारह बजे बस है,जिसमें आशुतोष रवाना होगा,और अनिल भी बस से जाएगा।
समापन
हम तय समय पर रतलाम पंहुच गए। दिलबहार चौराहे पर पंहुचे ही थे कि सामने ही मंदसौर की बस नजर आ गई। आशुतोष को बस में चढाया कि तभी सैलाना की बस भी आ गई। दोनो को रवाना कर हम लोग रात करीब एक बजे घर पंहुच गए।
The End
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