Wednesday, May 29, 2019

Bhutan Sikkim Journey-8

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यात्रा वृतान्त-31/ शांति का देश भूटान-
उड़न खटोले से गंगटोक के नज़ारे और 13000 फ़ीट पर सेना का भंडारा

(4 जनवरी 2019 से 14 जनवरी 2019 तक)
12 जनवरी 2019 शनिवार/ सुबह साढे नौ
स्टेट गेस्ट हाउस,गंगटोक सिक्किम

हम नाश्ता करके तैयार हो चुके हैं। सर्किट हाउस बहुत दूर,शहर के सबसे उंचे स्थान पर है। यहां गाडियां मिलना मुश्किल है। लेकिन यहां के कर्मचारी हमारी मदद कर रहे हैं। अभी दो  छोटी गाडियां बुलवाई है।

12 जनवरी 2019 शनिवार/रात 9.00
स्टेट सर्किट हाउस गंगटोक

सुबह दस बजे हम तैयार हो चुके थे। पहले एक बडी गाडी आई,जो तीन हजार रु.में हमें घुमाने को राजी थी। पता नहीं किसने उसको मना कर दिया। इसके बाद आखिरकार दो छोटी गाडियां हमने तय की जो अठारह सौ रु.प्रति गाडी यानी कुल छत्तीस सौ रु. में तय हुई।
खैर दोनो गाडियां आई। हमने गंगटोक के दस पाइन्ट देखें। टैक्सी ड्राइवरों ने हमसे कहा कि वे या तो हमे सर्किट हाउस छोड देंगे या एमजी रोड। हमें तय करना था कि हम कहां उतरे। अंत में हमने तय किया कि हम एमजी रोड जाएंगे।
 इससे पहले हम जैसे ही निकले,सबसे पहले हम एक बौध्द मौनेस्ट्री पर पंहुचे। फिर हनुमान टोक मंदिर पंहुचे। हनुमान टोक काफी उंचाई पर बना हुआ हनुमान मंदिर है। हनुमान टोक पर हनुमान और राम मंदिर के दर्शन किए। हनुमान मंदिर में घुसते ही मेरी आंखो से आंसू बहने लगे। पता नहीं क्यों..? यहां वक्त गुजार कर कई सारे कथित पाइंट्स देख कर आखिरकार हमने एमजी रोड जाने का तय किया। इससे पहले हम बुध्दा स्तूप पर गए थे और रोप वे( उडन खटोले) से पूरा गंगटोक शहर देखते हुए हमने विडीयो बनाए थे। इसी दौरान कल छांगू लेक जाकर बागडोगरा जाने के लिए हमने टैक्सी भी साढे छ: हजार रु.में तय कर ली।
टैक्सी ड्राइवर ने हमारे आईडी कार्ड और फोटो लिए। मेरे और  दशरथ जी के पास फोटो नहीं थे। ड्राइवर ने अपने मोबाइल से फोटो खींचे। वो बोला कि इसके प्रिन्ट निकलवा लेगा। छांगू लेक और नाथू ला पास जाने के लिए परमिट लेना पडता है और इसके लिए आईडी और फोटो जरुरी होते हैं।
 टैक्सी तय करने के बाद टैक्सी से ही हम लोग एमजी रोड पंहुच गए। पैदल घूमते रहे। शाम के छ: बज गए। अब लौटने की बारी थी। सर्किट हाउस गंगटोक के सबसे उंचे स्थान पर  है। वहां जाने के लिए टैक्सी वाले राजी ही नहीं हो रहे थे। बडी मुश्किल से एक टैक्सी वाला राजी हुआ,जो चार लोगों को ढाई सौ रु.में ले जाने को तैयार था,लेकिन पांच को नहीं। यह तय हुआ कि पहले तीन लोग जाएंगे और बचे हुए दो अगली टैक्सी लेकर आएंगे। मैं,अनिल और आशुतोष पहली टैक्सी में सवार हो गए।
 पहाडी शहर,जबर्दस्त ट्रैफिक जाम। हमारी टैक्सी जैसे तैसे चली। हम कुछ ही देर बाद यानी करीब पैंतालिस मिनट में सर्किट हाउस पर पंहुच गए। सर्किट हाउस पर टैक्सी से उतरते ही हिमांशु और दशरथ जी को फोन लगाया। उनको भी टैक्सी मिल चुकी थी। थोडी ही देर में वे भी सर्किट हाउस पर पंहुच गए। शाम सवा सात बजे हम सब सर्किट हाउस पर थे।रात नौ बजे हमने भोजन किया। अब सोने की तैयारी।

13 जनवरी 2019 रविवार/सुबह 7.15
स्टेट सर्किट हाउस गंगटोक

आज सिक्किम का दूसरा और आखरी दिन है। हम जल्दी तैयार हो रहे हैं,ताकि छांगू लेक देखते हुए बेहड(बेहार) मोड यानी बागडोगरा पंहुच जाए।  हमारी उडान कल है,लेकिन हम कोई रिस्क नहीं लेना चाहते। आज ही बाग डोगरा पंहुच जाएंगे और रात वहीं रुकेंगे।
 अभी छांगू लेक जा रहे हैं। छांगू लेक करीब बारह हजार फीट की उंचाई पर है। इसके लिए पुलिस से परमिट लेना पडता है।
आज सुबह करीब साढे छ: बजे हमारे कमरे की खिड़की  से कंचनजंघा चोटी का शानदार नजारा दिखाई दे रहा था। कंचनजंघा पर पड रही सूर्य की पहली किरणें  उसे सुनहरा बना रही थी। कंचनजंघा स्वर्ण शिखर की तरह चमक रही थी। यह विश्व की सबसे अधिक उंची तीसरी चोटी है। पहली एवरेस्ट है जो नेपाल में है,कंचनजंघा भारत की सबसे उंची चोटी है। इसके फोटो लिए लेकिन जो आंखों ने देखा उसे कैमरा नहीं पकड सकता। खैर...।
हम निकलने की तैयारी में है। ड्राइवर ने आठ बजे आने का बोला है। वह आएगा तब हम रवाना होंगे।

13 जनवरी 2019 रविवार/रात 9.47
ओयो होटल प्रियांशु, बागडोगरा

इस वक्त यहां बागडोगरा से करीब दस बारह किमी दूर एक ओयो होटल में हम दो कमरे लेकर रुके हैं। कल दोपहर को हमारी उडान है,जो रात को हमें इन्दौर पंहुचा देगी।
अब कहानी आज सुबह की। हम ड्राइवर का इंतजार कर रहे थे। वह सही समय पर आ गया। हमने सारा लगेज गाडी पर बंधवाया और छांगू लेक के लिए चल पडे। हम तो नाथू ला तक जाना चाहते थे। नाथू ला यहां से 51 किमी है। यह चौदह हजार फीट की उंचाई पर है। इससे कुछ ही पहले छांगू लेक है,जो कि 12400 फीट की उंचाई पर है। हम सर्किट हाउस का दो दिन का बिल छ: हजार रु. चुका कर गाडी में सवार हुए। किसी की जेब में अब कुछ नहीं बचा था। सब के सब फोकट हो चुके थे। हमने ड्राइवर से कहा था कि किसी एटीएम पर रोकना,लेकिन उसने नहीं रोकी और सीधे छांगू लेक के लिए चल पडा।
खतरनाक खडी चढाई,घुमावदार रास्ते। वहां जाने का परमिट ड्राइवर खुद ले आया था। एन्ट्री पर उसने परमिट चैक करवाया। अब हम छांगू लेक के लिए चल पडे। यह लेक हाई एल्टीट्यूड में है। छांगू लेक से पहले रास्ते में पडने वाले एक गांव में ड्राइवर ने गाडी रोकी। यहां सडक़ के किनारों पर बर्फ जमी हुई थी और कडाके की ठंड थी। हम लोगों के पास मुद्रा नहीं था,इसलिए चाय भी नहीं पी।
 हम करीब ग्यारह बजे छांगू लेक पर पंहुच गए। लेक से कुछ ही दूर ड्राइवर ने गाडी पार्क कर दी। हम गाडी से उतरे। यहां बहुत सारे पर्यटक मौजूद थे। कडाके की ठंड थी। 12400 फीट पर हड्डियां जमा देने वाली ठंड होती है। पूरी झील जमी हुई थी और बर्फ के मैदान जैसी नजर आ रही थी।झील के आसपास हर ओर बर्फ जमी हुई थी। तेज धूप खिली हुई थी। यही वजह थी कि हम बिना दस्तानों के खुले हाथों से चल पा रहे थे। लकडी की एक
पुलिया  पार करके हम झील के किनारे किनारे चलने लगे। यहां कई सारे विडीयो बनाए,फोटो लिए। जब भी हवा का झोंका आ जाता,हड्डियां तक ठिठूरी जा रही थी।
 हम इस झील के किनारे तक गए। फोटो लिए विडीयो बनाए।









तभी हमें झील से आगे जाती गाडियां नजर आई। दशरथ जी को लगा कि गाडियां नाथू ला तक जा रही है। पूछताछ की तो पता चला कि गाडियां बाबा मंदिर तक जा रही है। बाबा मंदिर जाना टैक्सी के किराये में शामिल होता है।  ड्राइवर से कहा कि हमें बाबा मंदिर जाना है,तो उसने एक हजार रु.अतिरिक्त मांग लिए। उसका कहना था कि  यहां से बाबा मंदिर 17 किमी दूर है। बात सिर्फ छांगू लेक तक की हुई थी। आखिरकार हम उसे एक हजार रु.देने को राजी हो गए। अब हम चले बाबा मंदिर के लिए। बाबा हरभजन सिंह ने 1967 में चीन से हुई झडप में अदम्य  साहस और वीरता का परिचय देते हुए भारतीय सीमा की सुरक्षा की थी। आज भी इस क्षेत्र  में माना जाता है कि बाबा हरभजन सिंह जीवित है और सीमा पर गश्त लगाते है। वे भारतीय सैनिकों की सुरक्षा करते है। इसीलिए यहां बाबा हरभजन सिंह का मंदिर बनाया गया है। इधर बाबा हरभजन सिंह गश्त कर रहे हैं और उधर तवांग सीमा पर जसवंतसिंह आज भी गश्त करते है। भारतीय सेना दोनों महानायकों को जीवित मानकर उन्हे सम्मान  देती है।
 जब हम बाबा हरभजन के मंदिर पर पंहुचे,यहां भारी भीड नजर आई। हम भी गाडी से उतर  कर पैदल चल पडे। चारों ओर बर्फ ही बर्फ फैली हुई थी। इस बर्फ पर सावधानी से पैर रखते हुए हम नीचे पंहुचे।
 नीचे पंहुचे तो पता चला कि यहां सेना की ओर से भंडारा चल रहा है। भूख जोरों की लगी थी। भीतर घुसे तो पता चला कि भोजन सभी के लिए है। अपन भी फौरन लाइन में लग गए। नंबर आया तो पता चला कि भोजन में छोले,मिक्सवेज,पुडी,खीर,हलवा सबकुछ था। भूख लगी ही हुई थी। प्लेट में भोजन लिया। ठंड इतनी जबर्दस्त थी कि गर्मागर्म सब्जी और खीर प्लेट में आते ही ठंडी हो रही थी। लेकिन भूख भी जबर्दस्त लगी हुई थी। ठंडी पूरी और ठंडी सब्जी लेकिन भोजन में आनंद आ गया। एक तो भूख,दूसरा सेना का भंडारा,इसीलिए स्वाद अधिक आ रहा था। दबा के भोजन किया। व्यवस्था में जुटे सैनिक व अधिकारी बडे प्रेम से भोजन करवा रहे थे। ठंड इतनी अधिक थी कि उंगलिया और हाथ सुन्न पडते जा रहे थे। लेकिन भोजन के बाद पानी पिया और गर्मागर्म चाय भी पी। मजा आ गया। ड्राइवर को एक हजार रु.अतिरिक्त देना फायदे का सौदा साबित हुआ था।सेना के लोगों ने लोहडी और रविवार होने की वजह से आज भंडारा रखा था।
 लेकिन एक बात बहुत बुरी लगी। यहां आए हुए सैकडों पर्यटकों को सेना के लोग भोजन करवा रहे थे। साढे तेरह हजार फीट की उंचाई पर हो रहे भंडारे में भी लोग थाली में जूठा छोड रहे थे। वे समझ ही नहीं पा रहे थे कि यहां भोजन कितनी कठिनाईयों से बना होगा।  आम तौर पर शादी विवाह में लोग भोजन की थाली में जूठा छोडकर अन्न की बरबादी करते ही है,लेकिन ऐसे स्थान पर भी लोग अपनी इस बुरी आदत से बाज नहीं आ रहे थे।
बहरहाल,भरपेट भोजन कर,चाय पीने के बाद बाबा हरभजन दास जी के मंदिर में जाकर दर्शन किए। अब हम वापसी के लिए तैयार थे। यहां सेना द्वारा हमारे आने के प्रमानपत्र भी हमें दिए गए।
हम गाडी में सवार हुए और वापसी के लिए चल पडे। दोपहर करीब ढाई बजे हम गंगटोक पंहुच गए। रुकने की जरुरत ही नहीं थी। हमने ड्राइवर से कहा कि हमें एटीएम की जरुरत है। गंगटोक शहर से निकलते हुए एक स्थान पर अनिल ने एटीएम से बारह हजार रु.निकाले। रास्ते में चलते हुए एक होटल की बुकींग आनलाइन ओयो के माध्यम से की,जहां इस वक्त हम रुके हुए हैं।

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