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पुलिस रेस्ट हाउस जोशीमठ
लगातार अठारह घंटे,गाडी में गुजारने के बाद इस वक्त हम यहां जोशीमठ के पुलिस रेस्ट हाउस में पंहुचे हैं। आज का पूरा दिन और पूरी रात पूरी तरह पहाडी रास्तों के बार बार लगने वाले जाम और मूर्ख ड्राइवर की हरकतों के नाम हो गई। यात्रा तो अठारह घंटों की थी,लेकिन सुबह जागने के बाद से अब तक पूरे चौबीस घंटे बीत चुके है। हम सुबह चार बजे जाग गए थे। इच्छा थी ऋषिकेश से जल्दी निकलकर जल्दी से जल्दी गोविन्द घाट पंहुच जाए,ताकि अगले दिन आसानी से हेमकुंड साहिब की यात्रा की जा सके। लेकिन इच्छा पूरी होना तो उपर वाले के हाथों में होता है।
ऋषिकेश जाने के लिए आटो वाले को रात को ही बता दिया। उसे साढे पांच पर बुलाया था। साढे पांच पर निकलना था,इसलिए चार बजे उठकर स्नानादि से निवृत्त हुए और आटो में सवार होकर करीब पौने छ: बजे ऋषिकेश के बस अड्डे पर पंहुच गए। हमें बताया गया था कि नटराज चौराहे से शेयरिंग वाली जीपें चलती है। हमने सोचा था कि जीप करके बडी आसानी से निकल जाएंगे। लेकिन कोई जीप नहीं मिली। आधा घंटा भटकने के बाद फिर से बस स्टैंड पंहुचे। पूछताछ की तो पता चला कि गोविन्दघाट के लिए गुरुद्वारे से गाडियां मिलती है। एक आटो पकड कर गुरुद्वारे पंहुचे। वहां पूछताछ ही कर रहे थे कि दो सिख लडके मिले। उन्होने कहा टेंपो ट्रैवलर आठ सौ रु. प्रति व्यक्ति के हिसाब से जाने को तैयार है। पांच हम है आठ आप हो,तो हम तेरह लोग हो जाएंगे। हमने भी हां कर दी और सुबह सवा आठ बजे ट्रैवलर में सवार हो गए। ट्रैवलर लेकर बसस्टैंड पंहुचे,जहां बाकी के सब लोग इंतजार कर रहे थे। साढे आठ पर हम लोग ऋषिकेश से निकल पडे। ड्राइवर राहूल नाम का युवक था। धीरे धीरे गाडी चलाता रहा। हमने सुबह से कुछ भी खाया पिया नहीं था। ग्यारह बजते बजते भूख लगने लगी। सिख लडकों ने कहा गुरुद्वारे में लंगर चखेंगे। हम भी राजी थे। करीब सवा ग्यारह बजे एक भंडारा नजर आया,लेकिन लडकों ने कहा आगे गुरुद्वारे में रुकेंगे। गाडी चलती रही। अब बारह बज गए थे,लेकिन गुरुद्वारे का अता पता नहीं था। भूख जोरों से लग रही थी। एक ढाबे पर गाडी रुकवाई,भोजन किया और करीब एक बजे यहां से आगे बढे।
ड्राईवर राहूल बोला कि अगर जाम नहीं मिला तो चार बजे तक हम गोविन्द घाट पंहुच जाएंगे,जबकि अभी हम पचास साठ किमी ही चले थे और गोविन्द घाट दो सौ किमी दूर था। हर कस्बे के पहले जाम मिल रहा था। साढे चार पांच बजे तक तो अभी रुद्रप्रयाग भी नहीं आया था। मैने अंदाजा लगाया कि हम आठ बजे तक पंहुच जाएंगे। लेकिन जैसे जैसे हम आघे बढे जाम भी बढते गए और हमारी गति घटती गई। नौ बजे तक तो हम पीपलकोटी ही पंहुच पाए थे। यहां भी भारी जाम था। जाम के चक्कर में दोपहर के भोजन के बाद अब तक कुछ खाया भी नहीं था। पिपलकोटी के जाम से निकल कर आगे बढे,लेकिन अब एक और बडे जाम में फंस गए। अब साढे नौ बज गए थे। मेरा अंदाजा था कि जोशीमठ पंहुचते पंहुचते ही ग्यारह बज जाएंगे। मैने ड्राइवर से कहा कि अब गोविन्दघाट की बजाय जोशीमठ में ही रुकेंगे। थाडी ना नुकुर के बाद वह राजी हो गया। फिर उसने किसी परिचित को फोन लगाया तो पता चला कि जोशीमठ में सारे होटल फुल है। पिपलकोटी हम छोड चुके थे। पिपलकोटी से चलने के बाद जोशीमठ से करीब पन्द्रह किमी पहले हैलंग आता है। हैलंग में भी जाम था। हैलंग के जाम के दौरान मैने होटल या कमरों के बारे में पूछताछ की,लेकिन वहां भी रुकने की कोई व्यवस्था नहीं थी।
इस साल उत्तराखंड में श्रध्दालुओं की भारी भीड है। तैरह के हादसे के बाद इसी साल सबसे ज्यादा भीड पड रही है। जिससे भी बात हुई थी,सबने कहा था कि भारी भीड है। आईजी गुंजियाल सा. ने कहा था कि कोई व्यवस्था करना हो तो बताओ,लेकिन तब मैने साफ इंकार कर दिया था। मैने कहा था कि मैं मैनेज कर लुंगा। लेकिन अब आज हालात काबू के बाहर हो रहे थे। साढे नौ बज चुके थे और हम अब भी जोशीमठ से काफी दूर थे। ग्यारह बजे पहले तो वहां पंहुचना संभव ही नहीं था। होटलों की हालत भी खराब हो रही थी,कहीं कमरे नहीं थे। फिर मैने थक हार कर आईजी सा.को फोन लगाया। उन्हे बताया कि मैं जाम में फंसा हूं और यह पता नहीं कब खुलेगा। उन्होने कहा,ठीक है मैं कुछ करवाता हूं। करीब आधे घंटे बाज जोशीमठ टीआई का फोन आया। उन्होने कहा कि वे हाईवे पर ही मौजूद है और चार पांच किमी आगे ही हैं। उन्होने कहा कि आप यहां आ जाओ फिर देखते है। अब जोशीमठ महज आठ दस किमी दूर था,लेकिन जाम कई किमी लंबा बताया जा रहा था। हजारों गाडियां फंसी हुई थी और जाम खुलने के आसार भी नजर नहीं आ रहे थे। अब होटलें खुली मिलने की आशा भी नहीं थी। अब ग्यारह बज चुके थे। टीआई से रुकने के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई थी। मैने ग्यारह बजे फिर से आई जी सा.को फोन लगाया,उन्होने कहा कि जैसे तैसे पुलिस रेस्ट हाउस में दो कमरे हो गए हैं। मैने राहत की सांस ली,कि कम से कम सिर छुपाने की जगह तो मिल ही जाएगी।
मैने ड्राइवर से कहा कि हमारी व्यवस्था तो हो गई है और टीआई सा. आगे इंतजार कर रहे हैं। उसे भरोसा नहीं हुआ। इधर जाम खुल नहीं रहा था। ड्राइवर मेरा मजाक उडाने लगा और ज्ञान भी बांटने लगा। वक्त बुरा हो तो क्या क्या नहीं होता,लेकिन ऐसे समय में चुप्पी साधना ही ठीक होता है। अब बारह बज गए थे,लेकिन हम वहीं थे। कुछ ही देर में सामने से कुछ वाहन आते दिखाई दिए,तो आशा बंधी कि शायद अब जाम खुलेगा। इसी दौरान ड्राइवर ने पहाडी रास्तों का नियम तोडते हुए अपनी गाडी अन्य गाडियों को ओवरटेक करते हुए आगे बढा दी। वह काफी आगे तो निकल गया,लेकिन तभी सामने से एक बस आ गई और अब हमारे वाहन की वजह से जाम लग गया। दूसरी गाडियों में मौजूद लोग हमारे ड्राइवर पर जमकर भडके। वे बेचारे आठ आट घंटों से जाम में फंसे हुए थे। उन्होने हमारे ड्राइवर को धमकाया कि अगर फिर से ऐसा किया तो ठीक नहीं होगा।थोडी देर बाद हमारे ड्राइवर ने फिर से वही हरकत दोहराई और सामने से आ रही एक बस की वजह से फिर से जाम लग गया। जिन वाहन चालकों ने हमारे ड्राइवर को पहले धमकाया था,वे अब आगबबूला हो रहे थे। उन्होने हमारे ड्राइवर को जमकर गालियां दी और दो चार झापड भी रसीद कर दिए। खैर अब तक रात के ढाई बज चुके थे। अब जोशीमठ महज पांच किमी दूर था। लेकिन यह दूरी पार करते करते रात के तीन बज गए। रात को तीन बजे जोशीमठ में घुसे तो लंबे रास्ते से चलते हुए इस शहर के भीतर घुसे। इसी दौरान ड्राइवर चाय पीने रुक गया।
पुलिस गेस्ट हाउस भी अनोखा है। मुख्य सडक से बाई ओर एक सडक नीचे उतरती है,जो सीधे गेस्ट हाउस के भीतर तक जाती है।
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सड़क पर गुजारी वो रात......
8 जून 2019 शनिवार(प्रात: 3.55)पुलिस रेस्ट हाउस जोशीमठ
लगातार अठारह घंटे,गाडी में गुजारने के बाद इस वक्त हम यहां जोशीमठ के पुलिस रेस्ट हाउस में पंहुचे हैं। आज का पूरा दिन और पूरी रात पूरी तरह पहाडी रास्तों के बार बार लगने वाले जाम और मूर्ख ड्राइवर की हरकतों के नाम हो गई। यात्रा तो अठारह घंटों की थी,लेकिन सुबह जागने के बाद से अब तक पूरे चौबीस घंटे बीत चुके है। हम सुबह चार बजे जाग गए थे। इच्छा थी ऋषिकेश से जल्दी निकलकर जल्दी से जल्दी गोविन्द घाट पंहुच जाए,ताकि अगले दिन आसानी से हेमकुंड साहिब की यात्रा की जा सके। लेकिन इच्छा पूरी होना तो उपर वाले के हाथों में होता है।
ऋषिकेश जाने के लिए आटो वाले को रात को ही बता दिया। उसे साढे पांच पर बुलाया था। साढे पांच पर निकलना था,इसलिए चार बजे उठकर स्नानादि से निवृत्त हुए और आटो में सवार होकर करीब पौने छ: बजे ऋषिकेश के बस अड्डे पर पंहुच गए। हमें बताया गया था कि नटराज चौराहे से शेयरिंग वाली जीपें चलती है। हमने सोचा था कि जीप करके बडी आसानी से निकल जाएंगे। लेकिन कोई जीप नहीं मिली। आधा घंटा भटकने के बाद फिर से बस स्टैंड पंहुचे। पूछताछ की तो पता चला कि गोविन्दघाट के लिए गुरुद्वारे से गाडियां मिलती है। एक आटो पकड कर गुरुद्वारे पंहुचे। वहां पूछताछ ही कर रहे थे कि दो सिख लडके मिले। उन्होने कहा टेंपो ट्रैवलर आठ सौ रु. प्रति व्यक्ति के हिसाब से जाने को तैयार है। पांच हम है आठ आप हो,तो हम तेरह लोग हो जाएंगे। हमने भी हां कर दी और सुबह सवा आठ बजे ट्रैवलर में सवार हो गए। ट्रैवलर लेकर बसस्टैंड पंहुचे,जहां बाकी के सब लोग इंतजार कर रहे थे। साढे आठ पर हम लोग ऋषिकेश से निकल पडे। ड्राइवर राहूल नाम का युवक था। धीरे धीरे गाडी चलाता रहा। हमने सुबह से कुछ भी खाया पिया नहीं था। ग्यारह बजते बजते भूख लगने लगी। सिख लडकों ने कहा गुरुद्वारे में लंगर चखेंगे। हम भी राजी थे। करीब सवा ग्यारह बजे एक भंडारा नजर आया,लेकिन लडकों ने कहा आगे गुरुद्वारे में रुकेंगे। गाडी चलती रही। अब बारह बज गए थे,लेकिन गुरुद्वारे का अता पता नहीं था। भूख जोरों से लग रही थी। एक ढाबे पर गाडी रुकवाई,भोजन किया और करीब एक बजे यहां से आगे बढे।
ड्राईवर राहूल बोला कि अगर जाम नहीं मिला तो चार बजे तक हम गोविन्द घाट पंहुच जाएंगे,जबकि अभी हम पचास साठ किमी ही चले थे और गोविन्द घाट दो सौ किमी दूर था। हर कस्बे के पहले जाम मिल रहा था। साढे चार पांच बजे तक तो अभी रुद्रप्रयाग भी नहीं आया था। मैने अंदाजा लगाया कि हम आठ बजे तक पंहुच जाएंगे। लेकिन जैसे जैसे हम आघे बढे जाम भी बढते गए और हमारी गति घटती गई। नौ बजे तक तो हम पीपलकोटी ही पंहुच पाए थे। यहां भी भारी जाम था। जाम के चक्कर में दोपहर के भोजन के बाद अब तक कुछ खाया भी नहीं था। पिपलकोटी के जाम से निकल कर आगे बढे,लेकिन अब एक और बडे जाम में फंस गए। अब साढे नौ बज गए थे। मेरा अंदाजा था कि जोशीमठ पंहुचते पंहुचते ही ग्यारह बज जाएंगे। मैने ड्राइवर से कहा कि अब गोविन्दघाट की बजाय जोशीमठ में ही रुकेंगे। थाडी ना नुकुर के बाद वह राजी हो गया। फिर उसने किसी परिचित को फोन लगाया तो पता चला कि जोशीमठ में सारे होटल फुल है। पिपलकोटी हम छोड चुके थे। पिपलकोटी से चलने के बाद जोशीमठ से करीब पन्द्रह किमी पहले हैलंग आता है। हैलंग में भी जाम था। हैलंग के जाम के दौरान मैने होटल या कमरों के बारे में पूछताछ की,लेकिन वहां भी रुकने की कोई व्यवस्था नहीं थी।
इस साल उत्तराखंड में श्रध्दालुओं की भारी भीड है। तैरह के हादसे के बाद इसी साल सबसे ज्यादा भीड पड रही है। जिससे भी बात हुई थी,सबने कहा था कि भारी भीड है। आईजी गुंजियाल सा. ने कहा था कि कोई व्यवस्था करना हो तो बताओ,लेकिन तब मैने साफ इंकार कर दिया था। मैने कहा था कि मैं मैनेज कर लुंगा। लेकिन अब आज हालात काबू के बाहर हो रहे थे। साढे नौ बज चुके थे और हम अब भी जोशीमठ से काफी दूर थे। ग्यारह बजे पहले तो वहां पंहुचना संभव ही नहीं था। होटलों की हालत भी खराब हो रही थी,कहीं कमरे नहीं थे। फिर मैने थक हार कर आईजी सा.को फोन लगाया। उन्हे बताया कि मैं जाम में फंसा हूं और यह पता नहीं कब खुलेगा। उन्होने कहा,ठीक है मैं कुछ करवाता हूं। करीब आधे घंटे बाज जोशीमठ टीआई का फोन आया। उन्होने कहा कि वे हाईवे पर ही मौजूद है और चार पांच किमी आगे ही हैं। उन्होने कहा कि आप यहां आ जाओ फिर देखते है। अब जोशीमठ महज आठ दस किमी दूर था,लेकिन जाम कई किमी लंबा बताया जा रहा था। हजारों गाडियां फंसी हुई थी और जाम खुलने के आसार भी नजर नहीं आ रहे थे। अब होटलें खुली मिलने की आशा भी नहीं थी। अब ग्यारह बज चुके थे। टीआई से रुकने के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई थी। मैने ग्यारह बजे फिर से आई जी सा.को फोन लगाया,उन्होने कहा कि जैसे तैसे पुलिस रेस्ट हाउस में दो कमरे हो गए हैं। मैने राहत की सांस ली,कि कम से कम सिर छुपाने की जगह तो मिल ही जाएगी।
मैने ड्राइवर से कहा कि हमारी व्यवस्था तो हो गई है और टीआई सा. आगे इंतजार कर रहे हैं। उसे भरोसा नहीं हुआ। इधर जाम खुल नहीं रहा था। ड्राइवर मेरा मजाक उडाने लगा और ज्ञान भी बांटने लगा। वक्त बुरा हो तो क्या क्या नहीं होता,लेकिन ऐसे समय में चुप्पी साधना ही ठीक होता है। अब बारह बज गए थे,लेकिन हम वहीं थे। कुछ ही देर में सामने से कुछ वाहन आते दिखाई दिए,तो आशा बंधी कि शायद अब जाम खुलेगा। इसी दौरान ड्राइवर ने पहाडी रास्तों का नियम तोडते हुए अपनी गाडी अन्य गाडियों को ओवरटेक करते हुए आगे बढा दी। वह काफी आगे तो निकल गया,लेकिन तभी सामने से एक बस आ गई और अब हमारे वाहन की वजह से जाम लग गया। दूसरी गाडियों में मौजूद लोग हमारे ड्राइवर पर जमकर भडके। वे बेचारे आठ आट घंटों से जाम में फंसे हुए थे। उन्होने हमारे ड्राइवर को धमकाया कि अगर फिर से ऐसा किया तो ठीक नहीं होगा।थोडी देर बाद हमारे ड्राइवर ने फिर से वही हरकत दोहराई और सामने से आ रही एक बस की वजह से फिर से जाम लग गया। जिन वाहन चालकों ने हमारे ड्राइवर को पहले धमकाया था,वे अब आगबबूला हो रहे थे। उन्होने हमारे ड्राइवर को जमकर गालियां दी और दो चार झापड भी रसीद कर दिए। खैर अब तक रात के ढाई बज चुके थे। अब जोशीमठ महज पांच किमी दूर था। लेकिन यह दूरी पार करते करते रात के तीन बज गए। रात को तीन बजे जोशीमठ में घुसे तो लंबे रास्ते से चलते हुए इस शहर के भीतर घुसे। इसी दौरान ड्राइवर चाय पीने रुक गया।
पुलिस गेस्ट हाउस भी अनोखा है। मुख्य सडक से बाई ओर एक सडक नीचे उतरती है,जो सीधे गेस्ट हाउस के भीतर तक जाती है।
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