Sunday, August 4, 2019

बद्रीनाथ वसुधारा यात्रा -3

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पहाड़ो के ऊपर उड़न खटोले का सफर

8 जून 2019 शनिवार (शाम 6.45)
जोशीमठ पुलिस रेस्ट हाउस

आज का पूरा दिन जोशीमठ में गुजार कर हम फिर से पुलिस रेस्ट हाउस में आ चुके हैं। कल हमें बद्रीनाथ जाना है।
बहरहाल,बात कल रात की हो रही थी। पुलिस रेस्ट हाउस परिसर के मेनगेट से मैं भतर घुसा। पूरा परिसर अंधेरे में डूबा हुआ। एक पतली सी सडक़,गेट से भीतर घुसते ही तीखे ढलान वाली थी। ढलान की बाई ओर उपर एक कमरा सा बना हुआ था,जहां रोशनी नजर आ रही थी। दहीनी ओर करीब पन्द्रह फीट नीचे एक बिल्डिंग सी बनी हुई थी। मुझे लगा यही रेस्ट हाउस है। इस बिल्डिंग के कुछ कमरों में लाइट जल रही थी। मैं सीढियां उतरकर वहां पंहुचा। आवाजें लगाई,लेकिन कोई जवाब नहीं।
उससे नीचे फिर एक भवन नजर आया। वहां भी कुछ कमरों में लाईटें जल रही थी। तभी प्रकाश भी भीतर आ पंहुचा। हम दोनो कोई है कोई है की आवाजें लगाने लगे। लेकिन कहीं सो कोई जवाब नहीं आया।
फिर सीढियां चढ कर उपर आए। जिस सडक़ से भीतर आए थे,वह आगे तक जा रही थी। आगे अंधेरे में पुलिस के कुछ ट्रक खडे नजर आ रहे थे और बैरक सी बनी हुई थी। ट्रकों के पीछे एक कमरा था जिसका दरवाजा भीतर से बंद था। बाहर तार पर कुछ कपडें सूख रहे थे। मुझे लगा यही चौकीदार का कमरा है। मैं जोर जोर से कुंडी बजाने लगा। दरवाजा बजाया तो भीतर किसी की आवाज भी सुनाई दी।
 उधर गेट पर,ड्राइवर राहूल और अन्य यात्री  जल्दी मचा रहे थे। वैदेही ने फोन लगाकर पूछा कि क्या हुआ? मेरी समस्या  यह थी कि कमरे मिलने से पहले अगर गाडी छोड दी और कमरे भी नहीं मिले तो क्या होगा?
 जिस दरवाजे की कुण्डी खटखटा रहा था,काफी देर बाद उसके पीछे से एक व्यक्ति बाहर आया। उसने बताया कि पुलिस रेस्ट हाउस तो अभी और आगे है। मैं आगे बढा तो थोडी दूर रेस्ट हाउस जैसी इमारत नजर आई। यहां आकर आवाज लगाई तो चौकीदार ने बाहर आकर बताया कि हमारे लिए कमरे बुक है। यह सुनते ही मैने राहत की सांस ली और वैदेही को फोन लगाया कि सामान उतार लो। इस हडबडी में मैं पहचान ही नहीं पाया कि दरवाजा किसने खोला था,फिर प्रकाश आया तो उसने फौरन पहचाना। ये तो वही बीएस रावत थे,जो जो सतोपंत यात्रा  के दौरान बद्रीनाथ रेस्ट हाउस पर तैनात थे और हमको बेहतरीन नाश्ता और भोजन करवाते थे। जैसे ही मुझे यह पता चला अतिरिक्त खुशी हुई।  कुछ देर बातें होती रही । सब लोग थके हुए थे। कमरों में बिस्तर थे,फौरन नींद के हवाले हो गए। इस वक्त सुबह के चार बज रहे थे। मैं सोच रहा था कि अगर आईजी गुंजियाल सा.नहीं होते तो हमारा क्या होता..? हम सुबह आठ-नौ बजे तक भटक रहे होते,फिर पता नहीं ठिकाना मिलता या नहीं और मिलता तो कैसा मिलता...। खैर..। मैं डायरी लिखने लगा। फिर नींद आने लगी और सोने की कोशिश करने लगा। करीब एक घंटे में नींद ठीक से लग पाई। सुबह नौ,साढे नौ बजे कांखते कराहते नींद खुली।
 मुझे बताया गया कि बारह बजे आरएच खाली करना है। मैने चांस लिया कि अगर एक रात और रुक सकते हैं,तो अच्छा होगा। थोडी देर में रावत ने खबर दी कि हम एक दिन और रुक सकते हैं।  मैने चैन की सांस ली। हम सब लोग बेहद थके हुए थे। नई व्यवस्था जुटाने के लिए फिर से मेहनत करना पडती। अब यह दिक्कत समाप्त हो गई थी। सब लोग बडे आराम से नहाए धोए। करीब एक बजे सब तैयार हुए। हर कोई भूखा था। रेस्ट हाउस से निकल कर करीब एक किमी आगे जोशीमठ थाने के सामने एक छोटा सा होटल था,वहां जाकर आलू पराठे का नाश्ता किया। अब जोशीमठ घूमना था। औली जाने के लिए वाहन की तलाश की,लेकिन वाहन की व्यवस्था हो नहीं पाई। अब हमने रोप वे से जोशीमठ जाने का तय किया। प्रति व्यक्ति एक हजार रु.। आठ हजार का भुगतान करना था। मेरे पास सात हजार रु.थे। पांच सौ प्रकाश ने दिए और पांच सौ वैदेही के पास थे।
 हम रोप वे से चले। दस खंबों पर सवा चार किमी का रास्ता। एक किमी की उचाई पर पंहुचना था। औली स्कीईंग का एरिया है,लेकिन अभी वहां बर्फ का नामोनिशान नहीं था,लेकिन फिर भी औली देखना एक उपलब्धि है। हम साढे तीन पर चले थे। विडीयो और फोटो बनाते हुए। उपर पंहुचे। उपर ठंड थी। लेकिन झेली जा सकती थी। हमारे पास केवल पैंतालिस मिनट थे। वहां भी फोटो विडीयो का खेल चलता रहा। शाम साढे पांच पर नीचे आए। हमें अब बद्रीनाथ जाने की व्यवस्था करना थी। मैं और प्रकाश इस व्यवस्था के लिए निकले और बाकी सबको रेस्ट हाउस जाने के कहा। हम तपोवन स्टैंड पर पंहुचे। दो हजार रु.में बद्रीनाथ जाने के लिए गाडी तय की। लौटने लगे तो पता चला कि सारी पार्टी अभी बाजार में ही घूम रही है। हम भी उनके साथ हो लिए। शाम करीब पौने सात बजे रेस्ट हाउस पर लौटे। यहां आए तो खाने की चिंता थी। एक होटल पर बात करके आए थे। उसने यहीं भोजन उपलब्ध कवा दिया।
बढिया भोजन किया। अब सोने की तैयारी। सुबह छ: बजे बद्रीनाथ रवाना होना है।

9 जून 2019 रविवार (सुबह 5.30)
जोशीमठ पुलिस रेस्ट हाउस

हमें अभी बद्रीनाथ के लिए रवाना होना है। मैं स्नान करके तैयार हो चुका हूं। वैदेही तैयार हो रही है। चिंतन अभी उठने में आलस कर रहा है। प्रकाश राव और उनती धर्मपत्नी तैयार हो चुके है। गाडी कुछ देर में आएगी।
 अब कुछ बातें औली के बारे में। औली जोशी मठ से 18 किमी दूर करीब दस हजार पांच सौ फीट की उंचाई पर स्थित पर्यटन स्थल है। यहां की प्राकृतिक दृश्यावलियां अतीव सुन्दर है,उंचे पेड है। तीखीं ढलानें है,जो बर्फ के दिनों में स्कीइंग के लिए बेहद उपयुक्त है।  इन्ही खासियतों के चलते यहां पहले स्कीइंग रिजोर्ट बनाया गया। जीएमवीएन द्वारा यहां स्कीइंग के प्रशिक्षण  की भी व्यवस्था है। यहां का सीजन जनवरी से मार्च का है,जब चारों ओर भारी बर्फ होती है। स्कीइंग के शौकीनों के आने जाने और पर्यटकों की संख्या  बढने के बाद औली जाने के लिए जोशीमठ से रोप वे बनाया गया है। यह रोप वे काफी लंबा है,सवा चार किमी का। जहां से यह शुरु होता है,उससे सीधी लंबाई में देखें तो 1 किमी की उंचाई पर जाकर रुकता है। एक किमी की उंचाई को केवल सवा चार किमी में बांटा गया है,इसलिए यह रोप वे एक तरह से खडी चढाई पर चढता है,लेकिन इसका एहसास चढते वक्त नहीं बल्कि उतरते वक्त ठीक से हो पाता है। जब रोप वे की ट्राली से नीचे का पोल दिखाई देता है तब समझ में आता है कि हम कितनी खडी चढाई से उपर गए थे।
 रोप वे तार पर लटके हुए कमरे जैसा है। यह करीब पांच बाय दस फीट आकार का बक्सा है,जिसे पारदर्शी बनाया गया है। सामने और पीछे की ओर कांच की खिडकी है,जो खुली रहती है। इसमें एक बार में पच्चीस लोग खडे रह सकते है।
इस रोप वे की यात्रा  भी रोमांचक अनुभव है। हांलाकि यह महंगा है,लेकिन एक बार तो इसका आनंद लेना ही चाहिए। बर्फ के दिनों में यहां आना निश्चित ही बेहद आनंददायी होता होगा। फिलहाल तो औली में प्राकृतिक नजारे,पर्वतों की चोटियां और उंचे पेड देखने के अलावा कुछ नहीं है। वैसे यहां औली रिजोर्ट व अन्य होटलें है जो निश्चित ही बेहद महंगी होगी। यहां हैलीपेड भी है। औली रिजोर्ट का नजारा हमने अपनी ट्राली से ही किया। रिजार्ट के पास ही हैलीपेड और एक तालाब बनाया गया है। कई सारे कमरे बने हुए है। इसके कुछ दूर अन्य होटलें बनी हुई है।
 जोशीमठ का महत्व  इसलिए है कि सर्दियों के दिनों जब बद्रीनाथ के कपाट बंद होते है तब बद्रीविशाल की पूजा अर्चना यहीं की जाती है। इसके अलावा आदिगुरु शंकराचार्य ने यहीं तपस्या की थी। शंचराचार्य द्वारा स्थापित ज्योतिर्मठ भी यहीं  है,जहां दो हजार साल पुराना कल्पवृक्ष आज भी मौजूद है। मैं पिछली बार ज्योतिर्मठ हो आया था। इस बार भी इच्छा थी,लेकिन थकान की वजह से हम जा नहीं पाए।
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