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जीएमवीन रेस्ट हाउस बद्रीनाथ
आज का पूरा दिन ट्रेकिंग वाला रहा। कल चरण पादुका जा आए थे। प्रकाश राव और उनका परिवार स्नान दर्शन आदि कर चुके थे। हम चाहते तो आज सुबह भी बद्रीनाथ से निकल सकते थे,लेकिन अगर आज निकलते तो दो रातें हमें हरिद्वार की गर्मी में गुजारना पडती। हमने यही तय किया कि एक दिन और रुकते हैं और वसुधारा होकर आते है।
पंडित जी ने कहा था कि यदि वसुधारा जाना है,तो सुबह जल्दी जाईएगा,दोपहर बाद पहाडों में मौसम खराब होने लगता है। हम भी सुबह जल्दी निकलना चाहते थे,इसलिए सुबह पांच बजे उठ गए और तैयारी में लग गए। लेकिन यहां जीएमवीएन की व्यवस्थाएं ठीक नहीं है। बिस्तर तो अच्छे है,लेकिन गर्म पानी के लिए गीजर नहीं है। यदि स्नान करना हो तो पचास रु. में एक बाल्टी गर्म पानी मिलता है। पानी को इलेक्ट्रिक रॉड से गर्म किया जाता है। पानी गर्म होने में पन्द्रह बीस मिनट से भी ज्यादा वक्त लगता है। हमने सिर्फ दो बाल्टियां ली और चार लोग नहा लिए। लेकिन इस स्नान के चक्कर में देरी हुई और हम सवा आठ बजे यहां से बाहर निकल पाए।
बाहर निकले तो सामने ही एक ठेले पर गर्मागर्म कचौडी(पुडी) और सब्जी का नाश्ता किया। फिर एक होटल में आधा पराठा खाया। अब हम माना जाने के लिए तैयार थे। बद्रीनाथ से पांच सौ रु.में आने जाने की जीप लेकर हम करीब दस बजे माना गांव पंहुचे। यहां व्यास गुफा और गणेश गुफा है। महाभारत और अठारह पुराणों की रचना महामुनि वेदव्यास ने यहीं की थी। महाभारत की रचना के दौरान महाभारत लिखने की जिम्मेदारी उन्होने गणेश जी को सौंपी थी। महामुनि बोलते गए और गणेश जी लिखते गए। जब गणेश जी को बुलाया था,तो गणेश जी ने शर्त रखी थी कि मेरी कलम रुकना नहीं चाहिए। अगर कलम रुकी तो मैं लिखना बंद कर दुंगा। महामुनि ने कुछ देर विचार किया और उन्होने भी एक शर्त रखी कि वे जो भी श्लोक कहेंगे,जब तक गणेश जी उसका अर्थ न समझ लें उसे लिखेंगे नहीं। महामुनि ने बेहद क्लिष्ट श्लोकों की रचना की और इस तरह महाभारत तैयार हुआ।
हमने गणेश गुफा और व्यास गुफा के दर्शन किए और फिर हम पंहुचे सरस्वती नदी के उद्गम स्थल और भीमपुल पर। सरस्वती नदी का उदगम स्थल यही है। सरस्वती नदी खतरनाक वेग से निकलती है। यह नदी यहां से बद्रीनाथ तक ही दृष्टिगोचर होती है और फिर लुप्त हो जाती है। प्रयागराज में गंगा यमुना और सरस्वती का संगम है,लेकिन सरस्वती गुप्त ही रहती है। पूरे देश में सरस्वती नदी केवल यहीं दिखाई देती है।
इसी नदी के उद्गम के समीप ही है भीमपुल। कथा यह है कि जब पांडवों ने स्वर्ग जाने की यात्रा प्रारंभ की तो,सरस्वती का वेग देखकर द्रौपदी डर गई। वह इसे पार नहीं कर सकती थी। तब भीम ने एक बहुत विशालकाय शिला दोनो किनारों के बीच रखकर पुल सा बना दिया,जिससे द्रौपदी नदी पार कर पाई। हांलाकि द्रौपदी के प्राण भी यहीं छूट गए थे,इसलिए भीमपुल के आगे द्रोपदी का मंदिर भी बना हुआ है।
भीमपुल और सरस्वती नदी को देखकर हम आगे बढे। वसुधारा के लिए हमारी यात्रा ग्यारह बजे शुरु हुई। वसुधारा का रास्ता भीमपुल से होकर ही निकलता है।
ठीक ग्यारह बजे हम लोग वसुधारा के लिए निकल पडे। पत्थरो का पथरीला रास्ता बनाया गया है। कहने को तो वसुधारा केवल पांच किमी दूर है,लेकिन वास्तव में यह सात आठ किमी से कम नहीं है। खतरनाक पथरीला रास्ता,बेहद खडी चढाई। अलकनंदा नदी यहीं से निकलती है। जब हम सतोपंत गए थे,तब अलकनंदा के बाई ओर से गए थे और वहीं से वसुधारा को देखा था। इस बार हम अलकनंदा के दाई ओर चल रहे थे। पहाडों पर बर्फ नजर आ रही थी।
पथरीले रास्ते और खडी चढाई पर हम चढने लगे। वैदेही के लिए यह ट्रैक बेहद कठिन साबित हो रहा था। बार बार उसका दम फूल रहा था और केवल दस या बीस कदम चलकर उसे रुकना पड रहा था। हमारी गति बेहद धीमी थी। उसे लेकर चलने में मुझे भी बार बार रुकना पड रहा था। ऐसे करते करते ढाई बजे हम अभी आधा रास्ता ही पार कर पाए थे। अब उंचाई काफी बढ गई थी।
वैदेही पर हाई अल्टीट्यूड का असर शुरु हो गया था। उसे घबराहट बैचेनी होने लगी थी और उल्टी होने जैसा होने लगा था। थोडा आगे बढे तो एक जगह उसे उल्टी होने ही वाली थी कि मैने उसे रोका और थोडा पीछे ले गया,ताकि उंचाई थोडी कम हो जाए। वसुधारा अब भी काफी दूर था। मैने वैदेही को समझाया कि वह वापस लौट जाए। इन्दौर की दो तीन महिलाएं लौट रही थी,मैने वैदेही को उनके साथ वापस भेज दिया और मैं आगे बढ गया। बेहद खडी और कठिन चढाई। बीच में एक स्थान पर बर्फ से ढंके नाले को भी पार करना पडा। वैदेही भी बर्फ पर चलकर आ गई,लेकिन आगे का रास्ता और भी कठिन था। मैने वैदेही को वहीं से फिर वापस लौटा दिया।
अब मैं चला वसुधारा की ओर। बार बार दम फूल रहा था,आखिरकार मैं करीब तीन बजे वसुधारा पंहुच गया। वसुधारा को देवताओं का झरना कहा जाता है। कहते है कि मानव इस झरने के चाहे जितना पास चला जाए,उस पर पानी की बूंदे नहीं गिरती। बडा ही सुन्दर झरना है,जहां पहाड पर दो धाराएं गिरती है। इन दिनों झरने के नीचे पूरी तरह बर्फ जमी हुई है। वसुधारा पर प्रकाश राव,उनका परिवार और चिंतन पंहुच चुके थे। प्रकाश,मौसम,चिंतन और प्रकृति बर्फ पर उपर चले गए थे। बर्फ पर उपर चढना बेहद कठिन था,लेकिन उतरना उससे भी अधिक कठिन और खतरनाक था। जरा से फिसले कि सीधे बर्फ से फिसलते हुए नीचे पत्थरो से टकराने का खतरा था। मैने उपर चढने की कोशिश की,कि लेकिन दो तीन कदम चढने पर ही समझ में आ गया कि उपर जाना खतरनाक है। उपर गए हुए हमारे चारों लोग बडी मुश्किल से लेकिन सुरक्षित तरीके से नीचे आ गए। प्रकाश राव के हाथ की उंगलिया घायल हो गई थी। हम करीब साढे तीन बजे वहां से लौटने लगे। वापसी आसान थी।
सबसे बडा कमाल प्रकाश राव की छोटी बेटी संस्कृति ने किया। उसके पैर के अंगूठे का नाखून उखड गया था और जूते पहनने में उसे दिक्कत हो रही थी। छठी कक्षा में पंहुची वह बालिका जूते उतारकर सिर्फ मोजे पहनकर उस पथरीले रास्ते पर चली और वसुधारा के बेहद कठिन और खतरनाक रास्ते पर जाकर लौट भी आई। इस खतरनाक रास्ते पर जूते पहनकर भी हमारे पांव जब पतथरों से टकरा रहे थे,तो हमें तकलीफ हो रही थी,लेकिन वो बच्ची हंसते खेलते चलकर आ गई। लौटने के रास्ते में एक जगह श्रीमती पंवार गिर गई। उन्हे हलकी चोटें भी आई। ग्यारह बजे से चले हम लोग करीब पौने छ: बजे वापस लौटे। वापसी में पडने वाली पहली दुकान पर वैदेही हमारा इंतजार कर रही थी। मैं और संस्कृति सबसे पहले वहां पंहुचे। पकौडे खाकर चाय पी,तभी बाकी सारे लोग भी आ गए। उन्होने फ्रूटी पी। अब हमें बद्रीनाथ लौटना था। जिस वाहन से यहां आए थे,वह करीब एक घंटे तक नहीं लौटा,फिर हम एक दूसरे वाहन से करीब साढे सात पर बद्रीनाथ लौटे।
बडी समस्या यहां से शुरु हुई। मैं और प्रकाश अगले दिन की बस बुक करवाने के लिए बस स्टैंड पंहुचे। लेकिन सारी बसें बुक हो चुकी थी। हमें बुकींग नहीं मिली। हमे किसी भी हालत में कल हरिद्वार पंहुचना है,क्योंकि परसों शाम को हमारी ट्रेन है।
बस नहीं मिली तो दूसरे विकल्पों पर काम किया। एक दो जीप वालों से चर्चा हुई। बस वालों ने कहा है कि हम सुबह सात बजे बस स्टैंड पंहुच जाएं,हमें बस मिल जाएगी। हम सुबह छ: बजे ही बस स्टैंड जाएंगे। बस मिल गई तो बहुत अच्छा,वरना गाडी बुक करने की कोशिश करेंगे। रात के पौने ग्यारह हो चुके है,अब सोना है,ताकि सुबह जल्दी उठा जा सके।
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भीम पुल और देवताओ का झरना वसुधारा
10 जून 2019 सोमवार (रात 10.00)जीएमवीन रेस्ट हाउस बद्रीनाथ
आज का पूरा दिन ट्रेकिंग वाला रहा। कल चरण पादुका जा आए थे। प्रकाश राव और उनका परिवार स्नान दर्शन आदि कर चुके थे। हम चाहते तो आज सुबह भी बद्रीनाथ से निकल सकते थे,लेकिन अगर आज निकलते तो दो रातें हमें हरिद्वार की गर्मी में गुजारना पडती। हमने यही तय किया कि एक दिन और रुकते हैं और वसुधारा होकर आते है।
पंडित जी ने कहा था कि यदि वसुधारा जाना है,तो सुबह जल्दी जाईएगा,दोपहर बाद पहाडों में मौसम खराब होने लगता है। हम भी सुबह जल्दी निकलना चाहते थे,इसलिए सुबह पांच बजे उठ गए और तैयारी में लग गए। लेकिन यहां जीएमवीएन की व्यवस्थाएं ठीक नहीं है। बिस्तर तो अच्छे है,लेकिन गर्म पानी के लिए गीजर नहीं है। यदि स्नान करना हो तो पचास रु. में एक बाल्टी गर्म पानी मिलता है। पानी को इलेक्ट्रिक रॉड से गर्म किया जाता है। पानी गर्म होने में पन्द्रह बीस मिनट से भी ज्यादा वक्त लगता है। हमने सिर्फ दो बाल्टियां ली और चार लोग नहा लिए। लेकिन इस स्नान के चक्कर में देरी हुई और हम सवा आठ बजे यहां से बाहर निकल पाए।
बाहर निकले तो सामने ही एक ठेले पर गर्मागर्म कचौडी(पुडी) और सब्जी का नाश्ता किया। फिर एक होटल में आधा पराठा खाया। अब हम माना जाने के लिए तैयार थे। बद्रीनाथ से पांच सौ रु.में आने जाने की जीप लेकर हम करीब दस बजे माना गांव पंहुचे। यहां व्यास गुफा और गणेश गुफा है। महाभारत और अठारह पुराणों की रचना महामुनि वेदव्यास ने यहीं की थी। महाभारत की रचना के दौरान महाभारत लिखने की जिम्मेदारी उन्होने गणेश जी को सौंपी थी। महामुनि बोलते गए और गणेश जी लिखते गए। जब गणेश जी को बुलाया था,तो गणेश जी ने शर्त रखी थी कि मेरी कलम रुकना नहीं चाहिए। अगर कलम रुकी तो मैं लिखना बंद कर दुंगा। महामुनि ने कुछ देर विचार किया और उन्होने भी एक शर्त रखी कि वे जो भी श्लोक कहेंगे,जब तक गणेश जी उसका अर्थ न समझ लें उसे लिखेंगे नहीं। महामुनि ने बेहद क्लिष्ट श्लोकों की रचना की और इस तरह महाभारत तैयार हुआ।
हमने गणेश गुफा और व्यास गुफा के दर्शन किए और फिर हम पंहुचे सरस्वती नदी के उद्गम स्थल और भीमपुल पर। सरस्वती नदी का उदगम स्थल यही है। सरस्वती नदी खतरनाक वेग से निकलती है। यह नदी यहां से बद्रीनाथ तक ही दृष्टिगोचर होती है और फिर लुप्त हो जाती है। प्रयागराज में गंगा यमुना और सरस्वती का संगम है,लेकिन सरस्वती गुप्त ही रहती है। पूरे देश में सरस्वती नदी केवल यहीं दिखाई देती है।
इसी नदी के उद्गम के समीप ही है भीमपुल। कथा यह है कि जब पांडवों ने स्वर्ग जाने की यात्रा प्रारंभ की तो,सरस्वती का वेग देखकर द्रौपदी डर गई। वह इसे पार नहीं कर सकती थी। तब भीम ने एक बहुत विशालकाय शिला दोनो किनारों के बीच रखकर पुल सा बना दिया,जिससे द्रौपदी नदी पार कर पाई। हांलाकि द्रौपदी के प्राण भी यहीं छूट गए थे,इसलिए भीमपुल के आगे द्रोपदी का मंदिर भी बना हुआ है।
भीमपुल और सरस्वती नदी को देखकर हम आगे बढे। वसुधारा के लिए हमारी यात्रा ग्यारह बजे शुरु हुई। वसुधारा का रास्ता भीमपुल से होकर ही निकलता है।
ठीक ग्यारह बजे हम लोग वसुधारा के लिए निकल पडे। पत्थरो का पथरीला रास्ता बनाया गया है। कहने को तो वसुधारा केवल पांच किमी दूर है,लेकिन वास्तव में यह सात आठ किमी से कम नहीं है। खतरनाक पथरीला रास्ता,बेहद खडी चढाई। अलकनंदा नदी यहीं से निकलती है। जब हम सतोपंत गए थे,तब अलकनंदा के बाई ओर से गए थे और वहीं से वसुधारा को देखा था। इस बार हम अलकनंदा के दाई ओर चल रहे थे। पहाडों पर बर्फ नजर आ रही थी।
पथरीले रास्ते और खडी चढाई पर हम चढने लगे। वैदेही के लिए यह ट्रैक बेहद कठिन साबित हो रहा था। बार बार उसका दम फूल रहा था और केवल दस या बीस कदम चलकर उसे रुकना पड रहा था। हमारी गति बेहद धीमी थी। उसे लेकर चलने में मुझे भी बार बार रुकना पड रहा था। ऐसे करते करते ढाई बजे हम अभी आधा रास्ता ही पार कर पाए थे। अब उंचाई काफी बढ गई थी।
वैदेही पर हाई अल्टीट्यूड का असर शुरु हो गया था। उसे घबराहट बैचेनी होने लगी थी और उल्टी होने जैसा होने लगा था। थोडा आगे बढे तो एक जगह उसे उल्टी होने ही वाली थी कि मैने उसे रोका और थोडा पीछे ले गया,ताकि उंचाई थोडी कम हो जाए। वसुधारा अब भी काफी दूर था। मैने वैदेही को समझाया कि वह वापस लौट जाए। इन्दौर की दो तीन महिलाएं लौट रही थी,मैने वैदेही को उनके साथ वापस भेज दिया और मैं आगे बढ गया। बेहद खडी और कठिन चढाई। बीच में एक स्थान पर बर्फ से ढंके नाले को भी पार करना पडा। वैदेही भी बर्फ पर चलकर आ गई,लेकिन आगे का रास्ता और भी कठिन था। मैने वैदेही को वहीं से फिर वापस लौटा दिया।
अब मैं चला वसुधारा की ओर। बार बार दम फूल रहा था,आखिरकार मैं करीब तीन बजे वसुधारा पंहुच गया। वसुधारा को देवताओं का झरना कहा जाता है। कहते है कि मानव इस झरने के चाहे जितना पास चला जाए,उस पर पानी की बूंदे नहीं गिरती। बडा ही सुन्दर झरना है,जहां पहाड पर दो धाराएं गिरती है। इन दिनों झरने के नीचे पूरी तरह बर्फ जमी हुई है। वसुधारा पर प्रकाश राव,उनका परिवार और चिंतन पंहुच चुके थे। प्रकाश,मौसम,चिंतन और प्रकृति बर्फ पर उपर चले गए थे। बर्फ पर उपर चढना बेहद कठिन था,लेकिन उतरना उससे भी अधिक कठिन और खतरनाक था। जरा से फिसले कि सीधे बर्फ से फिसलते हुए नीचे पत्थरो से टकराने का खतरा था। मैने उपर चढने की कोशिश की,कि लेकिन दो तीन कदम चढने पर ही समझ में आ गया कि उपर जाना खतरनाक है। उपर गए हुए हमारे चारों लोग बडी मुश्किल से लेकिन सुरक्षित तरीके से नीचे आ गए। प्रकाश राव के हाथ की उंगलिया घायल हो गई थी। हम करीब साढे तीन बजे वहां से लौटने लगे। वापसी आसान थी।
सबसे बडा कमाल प्रकाश राव की छोटी बेटी संस्कृति ने किया। उसके पैर के अंगूठे का नाखून उखड गया था और जूते पहनने में उसे दिक्कत हो रही थी। छठी कक्षा में पंहुची वह बालिका जूते उतारकर सिर्फ मोजे पहनकर उस पथरीले रास्ते पर चली और वसुधारा के बेहद कठिन और खतरनाक रास्ते पर जाकर लौट भी आई। इस खतरनाक रास्ते पर जूते पहनकर भी हमारे पांव जब पतथरों से टकरा रहे थे,तो हमें तकलीफ हो रही थी,लेकिन वो बच्ची हंसते खेलते चलकर आ गई। लौटने के रास्ते में एक जगह श्रीमती पंवार गिर गई। उन्हे हलकी चोटें भी आई। ग्यारह बजे से चले हम लोग करीब पौने छ: बजे वापस लौटे। वापसी में पडने वाली पहली दुकान पर वैदेही हमारा इंतजार कर रही थी। मैं और संस्कृति सबसे पहले वहां पंहुचे। पकौडे खाकर चाय पी,तभी बाकी सारे लोग भी आ गए। उन्होने फ्रूटी पी। अब हमें बद्रीनाथ लौटना था। जिस वाहन से यहां आए थे,वह करीब एक घंटे तक नहीं लौटा,फिर हम एक दूसरे वाहन से करीब साढे सात पर बद्रीनाथ लौटे।
बडी समस्या यहां से शुरु हुई। मैं और प्रकाश अगले दिन की बस बुक करवाने के लिए बस स्टैंड पंहुचे। लेकिन सारी बसें बुक हो चुकी थी। हमें बुकींग नहीं मिली। हमे किसी भी हालत में कल हरिद्वार पंहुचना है,क्योंकि परसों शाम को हमारी ट्रेन है।
बस नहीं मिली तो दूसरे विकल्पों पर काम किया। एक दो जीप वालों से चर्चा हुई। बस वालों ने कहा है कि हम सुबह सात बजे बस स्टैंड पंहुच जाएं,हमें बस मिल जाएगी। हम सुबह छ: बजे ही बस स्टैंड जाएंगे। बस मिल गई तो बहुत अच्छा,वरना गाडी बुक करने की कोशिश करेंगे। रात के पौने ग्यारह हो चुके है,अब सोना है,ताकि सुबह जल्दी उठा जा सके।
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