खाटू श्याम और सालासर बालाजी के दर्शनों के साथ अब वापसी
(प्रारंभ से पढने के लिए यहां क्लिक करें)13 सितंबर 2019 (रात 12.45)
होटल रायल अमर,किशनगढ(जयपुर-अजमेर हाईवे)
इस वक्त वैसे तो तारीख बदल चुकी है,लेकिन दिन सुबह बदलेगा इसलिए तारीख 13 ही लिखी है। अब तक हम चार हजार किमी की यात्रा कर चुके है और इस वक्त किशनगढ अजमेर हाईवे पर है और उस जगह आ चुके है,जहां आना चाहते थे।
सुबह हम करीब पौने दस बजे बठिण्डा से निकले थे।हमने तय किया था कि नाश्ता रास्ते में करेंगे। हमें हनुमानगढ से राजस्थान में प्रविष्ट होना था। रास्ते में एक ढाबे पर रुके। बेहतरीन पराठे,एसी हाल में बैठकर खाए। मजा आ गया। आज का टार्गेट था सालासर बालाजी और खाटू श्याम के दर्शन करके अजमेर के नजदीक पंहुचना ताकि कल सही समय पर मन्दसौर और रतलाम पंहुच सके।
नाश्ता करके आगे बढे। मैं वैसे तो इच्छुक नहीं था कि सालासर बालाजी और खाटूश्याम जाएं,लेकिन नक्शा देखने के बाद पता चला कि बीस तीस किमी अतिरिक्त चल कर दोनो स्थानों तक जा सकते हैं। इसलिए मैं भी राजी हो गया। पहले मैने सोचा था कि सालासर बालाजी जाने के बाद खाटूश्याम को ड्राप कर देंगे। लेकिन चलते चलते ध्यान में आया कि बीस तीस किमी से ज्यादा नहीं चलना पडेगा और दोनो ही धर्मस्थलों के दर्शन हो जाएगें।
बठिण्डा से सालासर बालाजी का रास्ता फोरलेन नहीं था,टू लेन था,लेकिन शानदार था। उम्मीद से काफी पहले साढे तीन पौने चार तक सालासर बालाजी पंहुच गए। फौरन दर्शन भी हो गए।भीड नहीं थी। साढे चार बजे तो हम दर्शन करके आगे निकल पडे। खाटू श्याम यहां से एकसौ अस्सी किमी था। तेज गति से चलते रहे। शाम सवा छ: बजे हम खाटू श्याम पंहुच चुके थे। यहां भी नाममात्र की भीड थी। मात्र बीस मिनट में दर्शन हो गए। प्रसाद भी ले लिया। अब यहां से निकलना था। पौने सात बजे खाटू श्याम से निकले और अजमेर की तरफ बढ गए। रास्ता टू लेन था। वैसे तो बढिया रास्ता था,लेकिन बीच बीच में कहीं कही सडक़ नदारद थी। खाटू से अजमेर ज्वाईंट 90 किमी दूर था। हम वहां से गुजरे तो रातगुजारी का मुद्दा आया।
15 सितंबर 2019 रविवार (रात 11.45)
इ खबर टुडे कार्यालय रतलाम
यात्रा के समापन का दृश्य अब लिखने का मौका मिला है। इस वक्त आफिस पर अकेला हूं और अब घर जाने का समय हो रहा है।
कल की यादों में लौटता हूं। हम लोग नसीराबाद के आसपास रायल अमर नामक के होटल में रुके थे,जो हाईवे पर टोल बूथ से थोडा ही आगे था। ओयो पर बुक करवाया था।
सुबह करीब साढे आठ बजे सभी लोग रवाना होने की तैयारी में थे। दशरथ जी थोडा विलंब में थे। करीब सवा नौ बजे वे भी तैयार होकर गाडी में आ गए। गाडी में सामान टिकाया और यहां से निकल पडे। यहां नाश्ता भी नहीं किया। तय किया था कि आगे जाकर किसी देसी ढाबे पर नाश्ता करेंगे। गाडी टोनी चला रहा था। करीब एक घण्टे गाडी चलती रही। अजमेर बायपास से ही आगे निकल गए। एक एकदम देसी ढाबे पर गाडी रोकी और नाश्ते का आर्डर दिया। शानदार तंदूरी आलू पराठे बनवाए। मजा आ गया। नाश्ता करके आगे बढे। हमारा रास्ता अब मात्र चार घण्टो का था। सभी श्रध्दालुओ की इच्छा फिर से सांवरिया सेठ के दर्शनों की थी। मंदिर के पट ढाई बजे खुलते है। हम दो बीस पर सावरिया सेठ के सामने थे। 10-15 मिनट इंतजार किया। पट खुले। पहले बाहर से और फिर भीतर जाकर दर्शन किए। साढे तीन पर यहां से निकल पडे।
मन्दसौर पंहुचने में दो घण्टे लगना थे। हम साढे पांच बजे मन्दसौर पंहुच गए। मन्दसौर रतलाम ें लगातार भारी बारिश की खबरे आ रही थी। आशुतोष ने कहा कि आगे फोरलेन ढोढर में बंद हो चुका है। उसने कहा कि मंदसौर में ही रुक जाओ। जब रास्ता खुले तब आगे बढना। मंदसौर में बाढ जैसे हालात थे और आशुतोष खुद बाजार में कहीं फंसा हुआ था। उसने कहा कि आप वीरु के सांवरिया ढाबे पर रुक जाना। मनीष को फोन लगाया। 10 मिनट बाद उसने बताया कि वह ढाबे पर आ जाएगा। इधर से हम पंहुचे ,उधर से वो आ गया। 15 मिनट में ही आशुतोष का फोन आ गया कि वह भी थोडी देर में पंहुच जाएगा। सम्राट के घर के निचली मंजिल पानी में डूब गई थी। वह सम्राट को रेस्क्यू करके लेकर आया। सारे मित्र मिले। मिलना जुलना बातचीत हुई। रात करीब 8 बजे रास्ता खुलने की खबर मिली। नौ बजे हम वहां से निकल पडे। रास्ते में जबर्दस्त ट्रैफिक था। अटकते अटकते जावरा पंहुचे। आगे सबकुछ साफ था। जावरा से पिपलौदा होकर सैलाना पंहुचे। अनिल को छोडा। वहां से बढे,अल्का पुरी में प्रकाश को छोडा। दशरथ जी को लेने उनका बालक आ गया था। इ खबर कार्यालय पर उन्हे छोडा। फिर टोनी ने मुझे छोडा और वह रवाना हुआ। रात 11.15 पर मैं घर में पंहुच चुका था। आशुतोष को फोन लगाकर जानकारी दी कि मैं घर पंहुच चुका हूं।
बहरहाल,14 दिनों में 4400 किमी की दुर्गम पहाडी रास्तों का कठिन यात्रा पूरी कर,जम्मू कश्मीर की ग्राउण्ड रिएलिटी की जानकारी लेकर हम रतलाम आ चुके थे। अब अगली यात्रा की योजना बनाएंगे। शुभ रात्रि....।
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