Wednesday, November 20, 2019

यात्रा वृत्तान्त-32/ धारा 370 हटने के बाद कश्मीर और लद्दाख का भ्रमण

(मनाली-लेह-श्रीनगर यात्रा)
(1 सितंबर 2019 से 14 सितंबर 2019)
 5 अगस्त 2019 को अचानक जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद  370 को हटा दिया गया। मनाली से लेह होकर श्रीनगर की तरफ से वापस आने की हमारी योजना पहले से ही बन रही थी,लेकिन जैसे ही 370 हटने का मामला हुआ वहां जाने की उतसुकता और भी बढ गई। इस यात्रा में पहले हम पांच मैं,दशरथ पाटीदार,प्रकाश राव
पंवार,अनिल मेहता और मन्दसौर से आशुतोष नवाल जाने वाले थे,लेकिन अंतिम समय आते आते आशुतोष की यात्रा गडबडाने लगी। उसके पिता जी का स्वास्थ्य ठीक नहीं था। अब हम चार ही जाने वाले थे। अंतिम समय तक उदित अग्रवाल से मैं पूछता रहा,लेकिन वह इंकार करता रहा। एक सितंबर को हम चार लोग ही दशरथ जी की ब्रिजा से रवाना हुए,लेकिन दोपहर तक दृश्य बदल गया और उदित भी हमारे साथ शामिल हो गया और गाडी भी ब्रिजा की जगह एक्सयूवी 500 हो गई। इस तरह यह यात्रा पांच लोगों ने की।



कश्मीर लद्दाख यात्रा-1/  रात को डेढ बजे हिमाचल में रैनबसेरे की तलाश

2 सितंबर 2019 सोमवार (सुबह 6.30)
होटल वॉव,जयपुर

जयपुर से 30-40 km पहले हाईवे पर स्थित होटल वॉव में इस सुबह हम तैयार होने की तैयारी में है। हमारे कमरे में, मैं और टोनी जाग चुके है,अनिल सो रहा है। रतलाम से लद्दाख की इस यात्रा में अब हम पांच लोग हो चुके है। मै,दशरथ पाटीदार,प्रकाश राव पंवार,अनिल मेहता के बाद इसमें उदित अग्रवाल टोनी भी शामिल हो चुका है।
हमारी यात्रा कई दिन पहले तय हो चुकी थी और इसमें टोनी की जगह आशुतोष शामिल था। लेकिन यात्रा का दिन आते आते उसका कार्यक्रम टलता गया। आशुतोष के पिताजी का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं था। इस वजह से अंतत: उसकी यात्रा निरस्त हो गई और हम चार बचे। तय हुआ कि दशरथ जी की ब्रिजा से हम जाएंगे।
29 अगस्त को अचानक हिमांशु और टोनी ने साथ आने की इच्छा जताई,कि वे दूसरी गाडी से चलेंगे। फिर 31 अगस्त आते आते उनका मन बदल गया। मैने टोनी से कहा कि अगर वह चलना चाहता है,तो उसकी क्रेटा से पांच लोग जा सकते है। मुझे पता था कि टोनी की कई सालों से लद्दाख जाने की इच्छा थी। 31 अगस्त को पूरा दिन हम इंतजार करते रहे कि टोनी एक्सयूवी गाडी का इंतजाम करके हमारे साथ चलेगा,लेकिन शाम को चार बजे उसने इंकार कर दिया। दशरथ जी की गाडी में टायर बदलवाने थे। हम रुके हुए थे कि यदि दूसरी गाडी का इंतजाम हो जाएगा,तो टायर बदलने का खर्चा बच जाएगा,लेकिन थक हार कर 31 अगस्त की शाम साढे चार बजे हमें टायर बदलवाने का फैसला लेना पडा और मैने व दशरथ जी ने जाकर गाडी के टायर बदलवा लिए। अब तय हो चुका था कि हम चार लोग ही जा रहे हैं।

1 सितंबर को सुबह ठीक 9 बजे निकलने की योजना बनाई गई थी। अनिल को भी सैलाना से रतलाम आने को कहा गया। ठीक नौ बजे हम चारों आफिस पर एकत्रित हो चुके थे। हमें बिदाई देने के लिए संतोष जी त्रिपाठी,गामड पहलवान,अनुज शर्मा,हिमांशु जोशी और उदित अग्रवाल आफिस पर पहुंच गए थे। आफिस में नाश्ता करने के बाद हम ठीक सवा नौ बजे रतलाम से रवाना हो गए। नामली में चाय पी और जावरा में मनीष धभाई से मुलाकात कर हम करीब ग्यारह बजे मन्दसौर में आशुतोष के आफिस पर पंहुच गए।
हम मन्दसौर में आशुतोष के आफिस पर ही थे कि टोनी का फोन आया। उसने कहा कि वह एक दो मित्रों को लेकर तीन बजे रतलाम से निकलेगा और रात को जयपुर या उससे आगे जहां कहीं भी हम होंगे,हमारे साथ जुड जाएगा। मैने उसे समझाया कि अगर उसकी इच्छा है तो वह अकेला ही अपनी गाडी लेकर आ जाए। हम पांचों उसकी गाडी से चल पडेंगे। क्रेटा की डिक्की भी बडी है और पांचों का लगेज उसमें सैट हो जाएगा।  हमने कहा कि अगर वो आ ही रहा है तो हम रास्ते में रुक कर उसका इंतजार कर लेंगे।
हम मन्दसौर से आगे बढे,अभी निंबाहेडा पंहुच रहे थे कि फिर टोनी का फोन आया कि वह दो ढाई बजे तक निकल जाएगा और  एक्सयूवी 500 गाडी लेकर आएगा। वह साथ में एक ड्राइवर भी लेकर आएगा,जो हमारी ब्रिजा को वापस ले जाएगा। यह तय होने के बाद कि वह आ ही रहा है,हमने वक्त गुजारने के लिए सांवरिया सेठ के दर्शन कर लेने का फैसला किया और निम्बाहेडा से हम सांवरिया जी के रास्ते पर मुड गए। करीब तीन बजे हमने सांवरिया सेठ के दर्शन किए। इसी समय टोनी ने रतलाम से रवाना होने की सूचना दे दी। अब यह तय हुआ कि चित्तौड में टोनी का इंतजार किया जाए और उसके आने के बाद ही आगे बढा जाए।
 हम लोग चित्तौड गढ के डाक बंगले में पंहुच गए। अंदाजा था कि टोनी शाम छ: बजे तक यहां पंहुचेगा और इस वक्त करीब सवा चार हो रहे थे। हमारे पास करीब पौने दो घंटे थे।  हम लोग कमरों में सौ गए। शाम को ठीक छ: बजे टोनी एक्सयूवी लेकर चित्तौड पंहुच गया। गाडी से सामान निकाल कर दूसरी गाडी में जमाया और हम करीब सात बजे चित्तौड से रवाना हो गए।
 यदि हम लगातार चल रहे होते तो बडे आराम से शाम तक जयपुर पार करके काफी आगे पंहुच गए होते।  लेकिन हमारे कई घंटे खराब हो चुके थे,लेकिन हमें आगे का तय कार्यक्रम बनाकर रखना था। इसलिए हमने रात को ही जयपुर पंहुचने का निर्नय लिया। रात करीब साढे बारह बजे हम जयपुर से तीस-चालीस किमी पहले इस होटल पर पंहुचे। रास्ते में ही हमने ओयो से बुकींग कर ली थी।  रात करीब डेढ बजे सोने की बारी आई।  सुबह आठ बजे निकलने का फैसला करने के बाद हम सो गए। इस वक्त सब लोग जाग चुके है और निकलने की तैयारी में लगे हैं।

3 सितंबर 2019 मंगलवार (सुबह 9.00)
लखनपुर एफआरएच,बिलासपुर (हिप्र)

बीता हुआ दिन भारी दिक्कतों वाला साबित हुआ। सुबह हम बेहद सही समय पर होटल वॉव से निकल गए थे,लेकिन हमें सोने का मौका रात पौने दो बजे मिल पाया। यदि सबकुछ ठीक रहा होता,तो हम बडी आसानी से छ:सौ दस या पन्द्रह किमी चल कर सही समय पर बिलासपुर पंहुच चुके होते। खैर।
सुबह जब होटल से निकले,तो तय किया कि जयपुर पार करके नाश्ता करेंगे। जयपुर से हम करीब तीस किमी दूर थे। हम सुबह साढे आठ पर होटल से निकले थे। जयपुर को पार करते करते पौने दस हो चुके थे। मुझे तेज भूख लग रही थी। पैट्रोल पंप कंपनी द्वारा संचालित एक ढाबे पर रुक कर हमने नाश्ता किया। नाश्ते के दौरान चर्चा हुई कि गाडी के पहियों का बैलेंसिंग और एलाइनमेन्ट ठीक करवा लिया जाए,ताकि आगे कोई समस्या ना आए।
 नाश्ता करके हम आगे बढे,शाहपुरा पार हो गया। हम लोग दोनो तरफ टायर की दुकान देखते हुए चल रहे थे। करीब ग्यारह बजे पावटा नामक गांव में एमआरएफ टायर की एक दुकान नजर आई। इस दुकान पर हम बडे उत्साह से पंहुचे थे कि जल्दी से टायर का बैलैन्सिंग और एलाइनमेंट करवा कर आगे निकलेंगे। टायर वाले ने व्हील खोलना शुरु किया। एक टायर में स्क्रू फंसा हुआ था। इसे निकाला तो टायर पंचर हो गया।  पंचर सुधारने के चक्कर में उसने टायर के छेद को और बडा कर दिया,लेकिन पंचर फिर भी नहीं बना। इस चक्कर में देर होती गई और दो घंटे गुजर गए। टायर खराब हो गया था। टायर वाले से चिकचिक भी हुई। फिर उसने जैसे तैसे पंचर बनाकर गाडी को फिट किया। हम आगे रवाना हुए। अभी तो हम दिल्ली भी पार नहीं कर पाए थे  और दोपहर के दो बज गए थे। अभी हमें करीब पांच सौ किमी और चलना था। दिल्ली में हमें भीतर नहीं जाना था। नए बने वेस्टर्न पैरिफेरल एक्सप्रेस वे पर चलते हुए हम बडी तेजी और आसानी से दिल्ली पार कर सोनीपत पंहुच गए। इस वक्त  करीब साढे तीन बज रहे थे। भूख लग आई थी। पानीपत के बायपास पर हम एक छोटे ढाबे पर भोजन करने के लिए रुके। गाडी बाहर खडी थी। भोजन के दौरान ही गाडी पर नजर पडी तो देखा कि गाडी का वही पिछला पहिया बैठा हुआ था,जिसका पंचर बनवा कर आए थे।
जब हम भोजन कर रहे थे,प्रकाश ने भोजन से इंकार कर दिया था। हमने उसे कहा कि जब तक हम भोजन कर रहे है,वह आसपास किसी पंचर वाले से पंचर बनवा ले। वह आसपास की दुकानों पर गया लेकिन कोई भी पंचर सुधारने को राजी नहीं था। एक पंचर वाले ने शर्त रखी कि पहिया हमी को खोलना पडेगा।
 अब कोई चारा नहीं था। उससे टायर में हवा भरवाई और हम आगे बढ गए। टायर वाले ने साफ कह दिया था कि पंचर नहीं सुधरेगा,आप को ट्यूब डलवाना पडेगा। हम हवा भरवा कर आगे बढ गए। समय खराब हो चुका था,चिंता भी बढ गई थी। अब ट्यूब डलवाने की चिंता थी। हम दोनो ओर टायर की दुकानें देखते हुए चल रहे थे। एक टायर की दुकान दिखी भी,लेकिन उसके पास हमारे साईज का ट्यूब नहीं था। फिर आगे बढे।  पानीपत बायपास पर डीजल डलवाना था। पैट्रोल पंप पर ही हवा भी भरवाना थी। उसने बगल की एक दुकान पर भेजा। यहां ट्यूब भी उपलब्ध थे। हमने पंचर बनाने वाले से कहा कि ट्यूब डलवाना है। उसने टायर देखा और हमसे कहा कि वह पंचर ही ऐसा बना देगा कि ट्यूब की जरुरत नहीं पडेगी।  हांलाकि उसने इस काम के लिए नौ सौ रुपए मांगे।  काफी सोच विचार के बाद हम राजी हो गए। इसके साथ ही हमने सोचा कि स्टेपनी में ट्यूब लगवा लेते है,ताकि कुछ तो काम दे सके।  उस बन्दे ने अच्छे से पंचर सुधार दिया। स्टेपनी के कटे टायर में भी भीतर से पेंच लगाकर ट्यूब भी डाल दिया। उसने दावा किया कि जो पंचर उसने ठीक किया है,वहां से हवा लीक नहीं करेगा। बहरहाल,यह काम निपटाते निपटाते शाम के सवा सात हो चुके थे। यहां से बिलासपुर अभी 275 किमी दूर था। पता नहीं हम वहां पहुंच सकेंगे कि नहीं।
 खैर यहां से आगे बढे। रास्ता बेहद शानदार था। एक घंटे से भी कम समय में 90 किमी की दूरी पार कर हम अंबाला पार कर गए। आगे भी रास्ता शानदार था। चंडीगढ का यह एक्सप्रेस वे चंडीगढ शहर के काफी से बाहर से निकल गया। रात करीब साढे नौ बजे हम फोरलेन छोडकर टू लेन पर पंहुच गए थे और अब बिलासपुर केवल पचास किमी दूर था। हांलाकि अब पहाडी रास्ता शुरु हो गया था। हिमाचल में प्रवेश करके एक होटल पर भोजन के लिए रुके। अब सवा दस हो चुके थे और बिलासपुर केवल 35 किमी दूर था। भोजन करके चले,हमें उमीद थी कि बारह साढे बारह तक बिलासपुर पंहुच जाएंगे,लेकिन रास्ते में ट्रैफिक जाम हो गया और गाडियां अटक गई। आखिरकार रात डेढ बजे हम बिलासपुर शहर में पंहुचे।
 बडी चुनौती अभी बाकी थी। फारेस्ट का रेस्ट हाउस ढूंढने की। सडक़ के दोनो ओर बोर्ड देखते हुए चल रहे थे। पहाडी शहर रात को पूरी तरह सुनसान। कहीं कोई नहीं,जिससे पूछताछ की जा सके। चलते-चलते ध्यान में आया कि शहर को तो हम पीछे छोड चुके है। फिर वापस पलटे। भाग्य से एक चाय की दुकान नजर आई। वहां पूछा कुठार रेस्ट हाउस कहां है?क्योंकि यहीं हमारी बुकींग थी। उसने कहा कुठार तो पता नहीं,लखनपुर में एफआरएच है। लखनपुर कहां है? यहां से पीछे तीन किमी जाना पडेगा। हम जिधर से आए थे,फिर उधर ही चल पडे। तीन किमी चलने के बाद कस्बा सा नजर आया। बोर्ड देखते रहे। थोडी ही देर में बोर्ड नजर आ गया। बोर्ड पर बने तीर की दिशा में एक पतली सी सडक काफी उपर जा रही थी। बोर्ड पर एफआरएच की दूरी पांच सौ मीटर बताई गई थी। इस संकरी सडक़ पर बेहद खडी चढाई चढते रहे। काफी दूर चल लिए। लगा कि पांच सौ मीटर तो कभी के पार हो गए होंगे। लेकिन थोडा और उपर चढने पर एफआरएच नजर आ गया। अब मुझे पता चल चुका था कि जहां की हमने बुकींग करवाई थी,ये वो जगह नहीं है। लेकिन अब कहां जाते। एफआरएच का कर्मचारी बाहर आया तो मैने कहा कि हमारी बुकींग है। जाम में फंसने की वजह से देर हो गई। उसने बिना ना नुकुर किए कमरे खोल दिए। अब कोई  समस्या नहीं थी। यहां की बुकींग नहीं भी है तो भी आज का रैनबसेरा हमें मिल गया था।
मैं टोनी और अनिल एक कमरे में थे। टोनी ने नीचे सोने का मन बनाया,लेकिन तभी कमरे में एक बहुत बडा कनखजूरा नजर आया। उसे तो कमरे से बाहर निकाल दिया,लेकिन फिर हम तीनों ही पंलग पर सो गए।
 रास्ते में ही तय कर लिया था कि देर तक सोएंगे। फिर भी सुबह आठ बजे नींद खुल गई। एफआरएच पर बढिया पराठे का नाश्ता किया और सवा दस बजे यहां से निकले। बिलासपुर पार किया ही था कि प्रकाश को याद आया कि वह चश्मे का घर वहीं भूल आया है। लेकिन हम आगे बढ चुके थे।

दोपहर 3.45 (कुल्लू)
हम कुल्लू को पार करके आगे एक ढाबे पर इस वक्त भोजन कर चुके है और अब आगे बढने वाले है। अब ज्यादा रास्ता नहीं है। हम एकाध घंटे में ही मनाली में होंगे। खैर बात सुबह की। हम आगे चल ही रहे थे कि बिलासपुर एफआरएच से फोन आया कि हिसाब वाली कापी भी वहीं छूट गई है। प्रकाश कहने लगा कि वापस चलो,लेकिन हमारा एक घंटा बिगड सकता था। एक बार तो वापस जाने के लिए पलटे भी,लेकिन फिर सबने कहा कि डायरी का झटका तो हम बर्दाश्त कर सकते है। बस फिर आगे बढ गए। तभी प्रकाश को एक आईडिया सूझा। उसने एफआरएच के कर्मचारी को फोन लगाकर कहा कि वह डायरी के पन्नों के फोटो लेकर व्हाट्स एप करदे। एकाध घंटे बाद व्हाट्सएप पर डायरी के पन्ने आ भी गए।
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