Monday, September 21, 2020

पचमढी यात्रा-3

  बी फाल नहीं डचेस फाल जाएंगे........


30 जुलाई 2020 गुरुवार (सुबह 8.15)

होटल खालसा लेक व्यू

पचमढी के प्रसिध्द बी फाल,अप्सरा विहार और पाण्डव गुफा पर हम अब तक नहीं गए हैं। बी फाल और अप्सरा विहार जाने के लिए जिप्सी करना होगी और वन विभाग का परमिट भी लेना पडेगा। होटल वाले ने बीती रात एक जिप्सी वाले को भेज दिया था। साढे इक्कीस सौ रु. मे वह हमें दिनभर घुमाएगा। इसमे से ग्यारह सौ रु. वनविभाग के परमित के लगेंगे और एक हजार पचास रु.जिप्सी का किराया। सीजन में जिप्सी वाले दो से चार हजार रु.तक वसूल लेते है। लेकिन अभी कोरोना के चलते यहाम पर्यटक नदारद है,इसलिए सबकुछ सत्ता है। जिप्सी वाला सुबह साढे नौ पर आएगा। तब तक हमें तैयार होना है। सारे लोग तैयार होने की तैयारी में है।


30 जुलाई 2020 बुधवार (शाम 7.10)

होटल खालसा लेक व्यू

आज का पूरा दिन हमने पचमढी के तीन खास फाल्स (झरने) और धूपगढ देखने में गुजारा और अब होटल पंहुचे हैं। आज की पूरी यात्रा जिप्सी में थी।

 गाडी वाला फरीद बाबा कल शाम को होटल में आकर आज की यात्रा तय करके गया था। दिन का किराया 2150 रु.तय हुआ था। जिसमें 1050 गाडी का किराया और 900 रु. वनविभाग की रसीद और दो सौ रु. गाइड की फीस। बात यह हुई थी कि लम बी फाल, अप्सरा विहार और पाण्डव गुफा देखेंगे। हमने फरीद से कहा था कि हमें डचेस फाल भी जाना है,उसने कहा था कि वहां जाने में 4-5 घण्टे लग जाएंगे। इसलिए आप वहां मत जाओ। बाद में रात को सभी मित्रों की चर्चा में यह तय हुआ कि डचेस फाल तो जरुर ही जाना है। गाडी सुबह साढे नौ पर आना थी।  हमें डचेस फाल जाना था,इसलिए हम गाडी आने के पहले ही नाश्ता करने चले गए। इसी जल्दबाजी में स्नान भी नहीं किया। वैसे भी स्नान बी फाल पर करना ही था। 

 हम नाश्ता करके होटल पर लौटे तब तक गाडी आ गई थी। ड्राइवर से हमने कहा कि हमें डचेस फाल जाना है। ड्राइवर ने भी वही राग अलापा कि डचेस फाल कोई जाता नहीं है। बहुत चलना पडता है,4-5 घण्टे लगते है। वहां गए तो दूसरे सारे पाइन्ट छूट जाएंगे। और आखिर में बोला मै.वहां नहीं जाउंगा,क्योकि मैं पहले कभी वहां गया नहीं हूं। फिर उसने गाडी मालिक फरीद को फोन लगाया। तब दूसरा ड्राइवर राजा अग्रवाल वहां आया। अब हम चले तो वन विभाग के बाइसन लाज पर पंहुचे,जहां एन्ट्री की पर्ची कटानी थी। यहां हम सभी की थर्मल स्क्रीनींग की गई। दशरथ जी का टैम्परेचर 97.8 से अधिक आया। वहां के कर्मचारी ने कहा कि आधे घण्टे रुको,तब फिर से नापेंगे। तब मैने दशरथ जी से कहा कि ठण्डे पानी से मुंह धोकर नपवा लो। करीब बीस मिनट बाद उनका टैम्परेचर सही हो गया और हम घूमने निकल पडे। 

 सबसे पहले पाण्डव गुफा पंहुचे।नीचे बगीचा है। बगीचे में भीतर घुसे ही थे कि सबकी राय बनी कि गुफा तो बाद में भी देखी जा सकती है। इसलिए बिना गुफा देखे डचेस फाल के लिए रवाना हो गए।

डचेस फाल के एन्ट्री गेट पर पर्ची दिखाकर जिप्सी भीतर गई। फाल की सीढियों तक का रास्ता बैरियर से करीब चार किमी का था। बेहद तीखे मोड और तीखी ढलान वाला। जिप्सी जैसी गाडी को भी मोड पर एक बार रिवर्स लगाना पड रहा था। ढलान इतना तीखा था कि बिना स्पेशल गेअर के गाडी चढ नहीं सकती थी। यह खतरनाक जंगल वाला रास्ता पार कर लम वहां पंहुचे,जहां से पैदल चलना था। होटल में जिसने भी बताया था 3 या चार किमी का रास्ता बताया था,लेकिन यहां आकर पता चला कि रास्ता करीब आठ सौ मीटर का है। लगातार सीढियों से नीचे उतरना था। बडी बडी सीढियां घनघोर घना जंगल। सीढियों के दोनो ओर जंगली पेड पौधे। हमने 10.50 पर चलना शुरु किया था। आठ सौ मीटर की उतराई हमने करीब बीस मिनट में पार कर ली। हम झरने पर पंहुच गए। झरने का उपरी हिस्सा एसी फाल कहलाता है। नीचे वाला बडा झरना डचेस फाल। उपर के हिस्से में छोटे छोटे तीन चार से ज्यादा झरने है। इन सब झरनों का पानी एक झरना बनकर नीचे सुन्दर कुण्ड में गिरता है। बताते है कि लिरिल साबुन का विज्ञापन यहीं शूट किया गया था,जिसमें एक लडकी हरे स्विमसूट में नहाती है।

एकदम साफ कांच जैसा पानी। किसी समय यहा लिरिल वाली लडकी नहाई थी,लेकिन अब हमारे लिए यहां नहाना मना था,खैर..। यहां एक चाय वाला भी था। हमने यहां चाय पी और करीब आधे घण्टे रुकने के बाद वापसी की यात्रा शुरु की। जितनी सीढियां उतरे थे,उन्ही पर चढना था। खडी चढाई बार बार दम फूल रहा था। लेकिन यहां आक्सिजन की कोई कमी नहीं है। हम महज पैंतीस मिनट में उपर आ गए। अभी केवल साढे बारह बजे थे। लमने ड्राइवर राजा से कहा कि अब बी फाल चलना है। उसने कहा कि बी फाल तो टूर में है ही नहीं। वह बोला कि उसे फरीद से बात करना पडेगी। फरीद ने उसे वापस जयस्तंभ चौक पर बुला लिया।लौटते वक्त रास्ते में ही बी फाल जाने का रास्ता नजर आया,लेकिन उसने अनसुना कर दिया और हमें सीधे जयस्तंभ चौक पर ले आया। यहीं फरीद बाबा आ गया था। वह विवाद करने लगा। आखिरकार तीन सौ रु. अतिरिक्त देने पर यात्रा हमारी इच्छानुसार तय हुई। लेकिन इस झंझट में आध पौना घण्टा खराब हो गया। समय कम बचा था और हमें दोनो फाल बी फाल और अप्सरा विहार जाना था। दोनो ही झरने काफी नीचे हैं। सैकडों सीढिया चढनी उतरनी थी। अब चले अप्सरा विहार के लिए। अप्सरा विहार के बैरियर से करीब दो किमी का रास्ता जिप्सी से पार कर आगे पैदल जाना था। हमने डेढ बजे पैदल चलना शुरु किया। अप्सरा विहार अपेक्षाकृत कम  नीचे है। बडी आसानी से दस मिनट में हम अप्सरा विहार पंहुच गए। यह भी बडा मनोरम झरना है। बमुश्किल 15 फीट की उंचाई से झरना गिरता है। नीचे प्राकृतिक रुप से गोलाकार कुण्ड बना है,जो निश्चित ही अप्सराओं के स्नान के योग्य है। कुण्ड की गहराई भी अधिक नहीं है। यहां स्नान करने में मजा आ जाता लेकिन फिलहाल कोरोना के चलते यहां भी स्नान पर प्रतिबन्ध है। इस झरने पर फोटो विडीयो बनाकर वापस सीढियां चढ कर केवल आधे घण्टे में हम बाहर आ गए। हमारी अगली मंजिल था बी फाल। इस झरने में पानी करीब एक हजार मीटर की उंचाई से गिरता है। नीचे बडे बडे पत्थर है,इसलिए इस झरने की धाराओं में आसानी से स्नान किया जा सकता है। ऊंचाई से गिरता पानी शरीर पर चोट मारती है। ऐसा लगता है जैसे मधुमक्खी डंक मार रही हो। इसीलिए इसका नाम बी फाल रखा गया है। बी फाल पर पंहुचने के लिए भी सैकडों सीढियां उतरनी पडती है। हम करीब ढाई बजे झरने के लिए चले थे। सीढियां उतर कर विडीयो फोटो बनाते नीचे पंहुचे। नहाने पर यहां भी प्रतिबन्ध है। जगह जगह बोर्ड लगे है कि नहाने पर एक हजार रु.अर्थदण्ड लगेगा। हमारा गाइड भगवान दास भी कह रहा था कि नहाना मना है। लेकिन जब नीचे पंहुचे तो 8-10 पर्यटक परिवार सहित झरने का आनन्द लेते हुए मिले। हम लोगों ने भी फौरन कपडे उतारे और एक किमी उपर से गिरते पानी की धाराओं के नीचे खडे हो गए। दो झरनों की चढाई उतराई से आई थकान इस पानी से दूर हो गई।  10-15 मिनट स्नान का आनन्द लेने के बाद उपर चढना शुरु किया। हम लोग तीन बजकर पैंतीस मिनट पर उपर पंहुच गए। 

अभी तक हमने भोजन नहीं किया था। अभी धूपगढ जाना था,जहां सनसेट पाइंट है। अभी हमारे पास करीब एक घण्टे का समय था,जिसमें हम भोजन कर सकते थे। भोजन के लिए रसोई ढाबे पर पंहुचे। भोजन का आर्डर दिया। पनीर अंगारा और मिक्स वेज का भोजन हमें बारह सौ रुपए का पडा। साढे चार पर भोजन से निपटे और बढ चले मध्यप्रदेश के सबसे उंचे स्थान धूपगढ के लिए।  धूपगढ यहां से करीब बारह किमी दूर है। हम लोग करीब पांच बजे धूपगढ पंहुच गए। अभी धूप खिली हुई थी। धूपगढ में सनसेट पाइन्ट के विपरित दिशा में सनराइज पाइन्ट भी है। पहले सनराईज पाइन्ट का नजारा किया। दूर दूर तक पहाडियां खाईयां,जंगल का नजारा था। ये दृश्य देखकर  सनसेट पाइन्ट पर पंहुचे। सनसैट पाइन्ट पर भी पहाडियों खाईयों और जंगल का वैसा ही नजारा था,लेकिन अब आसमान पर अचानक बादल छा गए थे। सूरज बादलों के पीछे छुप गया था। इसलिए अब सनसैट दिखाई देने का कोई चांस नहीं था।  आधा घण्टा यहां रुकने के बाद भी जब बादल नहीं हटे तो हमने वापस लौटना ही ठीक समझा। वापस लौटे,जिप्सी में सवार हुए और वापसी का सफर श्ुरु हुआ। अभी गाडी सौ दो सौ मीटर ही चली थी कि फिर से धूप नजर आने लगी। लेकिन हम तो निकल चुके थे।तीखे ढलानों से उतरते हुए हम जल्दी ही लौट आए। अब चाय पीने की इच्छा थी। इसलिए ड्राइवर राजा हमें बाजार में ले आया। बाजार में चाय की तमाम दुकानें बन्द हो चुकी थी। चाय हमें वहीं मिली जहां पहले दिन भोजन किया था। चाय पीकर होचल पर लौट आए। लौटते वक्त ड्राइवर राजा कहता रहा कि ऐसे टूरिस्ट कभी आते ही नहीं जो तीन तीन फाल एक ही दिन में कर लें। हमने कहा कि जिससे पूछा तो वह यही कह रहा था कि डचेस फाल में बहुत समय लगेगा,लेकिन हम तो मात्र डेढ घण्टे में डचेस फाल जाकर आ गए। ड्राइवर राजा को बताया कि हम हिमालय में ट्रेकिंग करते है। पचमढी की चढाई उतराई हमारे लिए कोई खास मायने नहीं रखती। हांलाकि तीन झरनों को निपटाने में हम सभी के पैर और पिण्डलिया अभी दुख रही थी। हांलाकि ये दर्द इतना ज्यादा नहीं है कि सहन ना किया जा सके।


31 जुलाई 2020 शुक्रवार (सुबह 9.00)

होटल खालसा लेक व्यू पचमढी

वापसी का दिन। हम पचमढी के सारे पाइन्ट देख चुके है। एक पाण्डव गुफा बची है,जो मैने और मलय ने तो पहले देख रखी है। बाकी लोग इसे छोडने को तैयार है। इसलिए अब सीधे रतलान की ओर चलेंगे। सुबह नौ बजे निकल जाने का इरादा था,आधे लोग तैयार हो चुके है,लेकिन मुझे अभी स्नान करना है। मलय स्नान करने जा रहा है। 

बीती शाम हम भोजन करने रसोई ढाबे पर गए थे। रसोई ढाबे वाले पिकअप ड्राप की सुविधा देते है। होटल वाला गाडी लेकर आया. हमें ढाबे पर ले गया। भोजन के बाद हमें यहां छोड गया। कल शाम ही यहां चार लडकियों और तीन लडकों का एक ग्रुप आया था। इन लोगों ने पार्टी की। फिर आधी रात तक उनके बीच किसी बात को लेकर झगडा होता रहा। लडकियां मार्डन ड्रेेसें पहने हुई थी। देर रात हम उनके आपसी झगडे का मजा लेते रहे थे। फिर लम भी सो गए। रात में करीब तीन बजे यहां बन्दरों ने काफी उत्पात मचाया था। सुबह साढे सात पर जब उठे थे,तब भी बन्दरों की फौज यहां उत्पात कर रही थी। दशरथ जी के कमरे का दरवाजा खुला रह गया था,तो बन्दरों ने भीतर घुस कर सेव का पैकेट फाड दिया। फिर हमने भी बन्दरों को सेव खिलाई और मोबाइल से उनका विडीयो बनाया। इस वक्त मेरा स्नान और दंतमंजन बाकी है। इसके बाद रवानगी।


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