Monday, September 21, 2020

पचमढी यात्रा-4 (समापन)

 अनुभवी ट्रेकर से मुलाकात

3 अगस्त 2020 सोमवार,(रक्षाबन्धन)

इ खबरटुडे आफिस (शाम 6.00 बजे)

यात्रा तो 31 जुलाई को ही रतलाम पंहुचकर समाप्त हो गई थी। लेकिन डायरी मलय के बैग में चली गई थी,इसलिए कहानी पूरी नहीं हो पाई। अब डायरी हाथ में आई है,तो कहानी पूरी कर रहा हूं। 

तो,हम 31 जुलाई को पचमढी से रतलाम के लिए निकलने की तैयारी में थे। हमने नौ बजे निकलने का तय किया था,लेकिन हम नौ की बजाय दस बजे होटल से निकले और गाडी में सवार हुए। नाश्ता करना था। दशरथ जी ने कहा कि यहीं करते हैं,मैने कहा कि आगे जाकर करते हैं। पचमढी से पिपरिया तक का रास्ता तो टाइगर रिजर्व के भीतर ही है,इसलिए रास्ते में कोई ढाबा नहीं था।

लौटते समय हमें पिपरिया से काफी पहले ही होशंगाबाद का सीधा रास्ता मिल गया। इस रास्ते पर चले तो पिपरिया को बायपास करते हुए होशंगाबाद की तरफ बढ गए।अभी होशंगाबाद करीब सत्तर किमी दूर था कि तभी एक ढाबा नजर आया। सभी को तेज भूख लग आई थी। तुरंत ढाबे पर रुके और पनीर व आलू पराठे का आर्डर दिया। बेहद शानदार पराठे थे। पचमढी की होटलों की तुलना में काफी अच्छे। पांच पराठों में तो चार लोगों का भोजन ही हो गया।

 अब यहां से बढे। हमारी मंजिल अब होशंगाबाद थी। हमारी सतोपन्त यात्रा के फोटो विडीयो दशरथ जी ने फेसबुक पर अपलोड किए थे। इन्हे देखकर होशंगाबाद के सुरेश राणे जी ने दशरथ जी को फ्रेण्ड रिक्वेस्ट भेजी थी। फिर मोबाइल नम्बरों का आदान प्रदान हुआ। सुरेश राणे जी लम्बे समय तक रतलाम में रहे हैं। फिर वे होशंगाबाद में सैटल हो गए। वे रतलाम में संघ के तहसील कार्यवाह हुआ करते थे। उनका बडा बेटा इस समय होशंगाबाद का युवामोर्चा जिलाध्यक्ष है। उसी के सम्पर्क से हमें पचमढी में सस्ता होटल मिला था। राणे जी की सबसे बडी खासियत  यह है कि वे ट्रैकर रहे हैं। उत्तराखण्ड में दर्जनों बार ट्रैकिंग कर चुके है। सतोपंत तो वे बीस साह पहले जा चुके हैं। यही वजह थी कि होशंगाबाद में उनसे मिलने का कार्यक्रम बना। उनका घर वहीं था,जहां हम जाते वक्त रुके थे। उनका घर पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस के सामने ही था। राणे जी के घर पंहुचे।वे बडी ही आत्मीयता से मिले। भोजन का जबर्दस्त आग्रह किया,लेकिन हम सबके पेट भरे हुए थे। फिर भी नाश्ता तो करना ही पडा। चाय भी टिकाई।

 इस दौरान राणे जी से ट्रैकिंग के उनके किस्से सुनते रहे। उन्होने हमे कई सुझाव दिए। राणे जी अब ट्रैकिंग नहीं करते। उनकी आयु अब अधिक हो गई है। लेकिन उनके अनुभव हमें बहुत काम आएंगे। आगली बार ट्रैकिंग पर जाने से पहले उनसे जरुर बात करेंगे। राणे जी का बडा बेटा जहां राजनीति में सक्रिय है,वहीं छोटा बेटा राजनीति से दूर पर्वतारोहण का शौकीन है।पर्वतारोहण के कई कोर्स कर चुका है और दुनिया के कई देशों मे पर्वतारोहण कर चुका है। हिमालय पर तो निरन्तर जाता रहता है।

 राणे जी के साथ काफी सारा वक्त गुजार कर लम आगे बढे। अब कलीं रुकना नहीं था। बीच में पप्पू एण्ड पप्पू पर रुके। चाय नाश्ता किया। फिर आगे बढे। उज्जैन से रतलाम जाने के लिए अलग रास्ता अपनाया। हम रुनीजा से सातरुण्डा जाने की बजाय कमेड कमठाना वाले मार्ग पर बढे। इसका फायदा यह था कि नगरा रास्ते में पडता है। दशरथ जी को नगरा में छोडा। अब गाडी मैने सम्हाल ली थी। फोरलेन के बायपास से सीधे सैलाना रोड पर पंहुचे और सैलाना में अनिल को छोडा। फिर मैने बारी बारी प्रकाश पंवार और मलय को उनके घरों पर छोडा। तारीख बदलने से पन्द्रह मिनट पहले मैं भी घर पंहुच गया। कोरोना काल की यात्रा 31 जुलाई की रात पौने बारह बजे समाप्त हुई।

 समाप्त.....।


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