यहीं नहाई थी लिरिल वाली लडकी.....
(27 जुलाई 2020 से 31 जुलाई 2020)
27 जुलाई 2020 सोमवार (रात 9.20)
पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस,होशंगाबाद
पिछली यात्रा 29 दिसम्बर 2019 को शुरु हुई थी और 4 जनवरी 2020 को समाप्त हुई थी। वह जैसलमेर की यात्रा थी। 4 जनवरी 2020 के बाद आज लगभग 7 महीनों के बाद हम यात्रा पर निकल पाए हैं।
इस समय मैं होशंगाबाद के पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस में हूं,और मेरे साथ वकील साथी दशरथ पाटीदार,प्रकाश राव पंवार,सैलाना से अनिल मेहता और भांजा मलय सोनटक्के भी हैं।
हमारी यह यात्रा आज दोपहर साढे ग्यारह बजे रतलाम से शुरु हुई थी और हमारी योजना पचमढी जाकर वहां कुछ दिन गुजारने की है।
इस यात्रा की कहानी कुछ अलग है। हर साल हम लोग मई-जून में कहीं बाहर जाते हैं,लेकिन जनवरी में जैसलमेर यात्रा से लौटने के बाद अगली यात्रा की योजना बनने से पहले ही 22 मार्च को कोरोना आ गया। पूरी दुनिया कोरोना में उलझ कर रह गई। हमारी सारी योजनाएं धरी रह गई। कोरोना के असर में भी खबर ये आई थी कि इस बार अमरनाथ यात्रा होगी,लेकिन कम समय के लिए। हम लोगों ने तय किया था कि इस बार अमरनाथ जाएंगे। लेकिन 21 जुलाई को आखिरकार अमरनाथ यात्रा भी रद्द कर दी गई। सारे मित्रों की सलाह थी कि मध्यप्रदेश से बाहर नहीं जा सकते तो मध्यप्रदेश में ही कहीं चलें और कुछ दिन बाहर गुजारे। आखिरकार बात पचमढी पर आकर रुकी। यह तय हुआ कि पचमढी चलेंगे। दो चार दिन पचमढी में ही गुजारेंगे। इसी योजना पर आज दोपहर साढे ग्यारह बजे रतलाम से निकल पडे।
होशंगाबाद में रेस्ट हाउस में रात गुजारना पहले ही तय हो गया था। कोरोना लाकडाउन के चलते पूरे मध्यप्रदेश में शाम सात बजे लाक डाउन हो जाता है। इसलिए यात्रा में भी शाम सात बजे से पहले ही रैन बसेरा ढूंढना जरुरी था,वरना भोजन नहीं मिलेगा। रतलाम पीआरओ शकील खान के जरिये यहां के पीआरओ उइके को खबर दे दी थी। शाम साढे छ: पर यहंा पंहुचे,तब पीआरओ ने कन्फर्म किया कि रेस्ट हाउस में हमारे लिए दो कमरे बुक है। लेकिन जब यहां पंहुचे तो पता चला कि व्यवस्था में कुछ गडबड है। सुबह से किसी ने कुछ खाया नहीं था। होटल सात बजे बन्द हो जाएंगे इसी डर से पहले भोजन करने निकल पडे। सोचा,रात रुकने की व्यवस्था भोजन के बाद देखी जाएगी। होशंगाबाद के एक जैन भोजनालय में शानदार भोजन किया। भोजन के दौरान रात गुजारी के दूसरे विकल्पों पर चर्चा होती रही। यह भी विचार आया कि सीधे पचमढी चल लिया जाए। भोजन करके जब बाहर आए,तो सोचा कि एक बार रेस्ट हाउस में फोन करके पता करलें। रेस्ट हाउस के केयर टेकर को फोन लगाया,तो उसने बताया कि समस्या हल हो गई है,आप आ जाईए। रेस्ट हाउस नजदीक ही था। रेस्ट हाउस पंहुचे,अपना सामान कमरों में टिकाया और बाहर घूमने निकल पडे। करीब आधा घण्टा इधर उधर भटक कर लौटे। रेस्ट हाउस में बैठे,चर्चाओं का दौर चलता रहा। अब सोने का समय.....।
कल पचमढी पंहुचेंगे।
28 जुलाई 2020 मंगलवार(सुबह 7.30)
पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस होशंगाबाद
रात को जल्दी सौ गए थे,इसलिए सुबह साढे छ: पर ही नींद खुल गई। इस समय हमारे कमरे में मै,मलय और प्रकाश आराम से सुबह के काम निपटा रहे हैं। मैं तो पेपर भी पढ चुका हूं। पता चला कि पिपरिया का भाजपा विधायक भी कोरोना पाजिटिव हो चुका है। कल यहां होशंगाबाद में सात नए कोरोना पाजिटिव मिले हैं।
हमें आज पचमढी पंहुच जाना है। रामद्वारे की नई इनोवा गाडी से हम चार सौ किमी की यात्रा कर चुके हैं। अब पचमढी करीब सौ किमी और बचा है। हम दोपहर तक पचमढी पंहुच जाएंगे। रतलाम से लेकर यहां तक कहीं भी बारिश का नामोनिशान नहीं मिला है। उम्मीद है कि पचमढी में बारिश मिलेगी।
28 जुलाई 2020 मंगलवार (रात 11.20)
होटल खालसा लेक व्यू पचमढी
इस वक्त पचमढी के होटल खालसा लेक व्यू में हम लोग सोने की तैयारी में है।
आज सुबह 9.10 पर हम लोग होशंगाबाद से निकल गए थे। रेस्ट हाउस से बाहर निकल कर मुख्य सडक़ पर उसी ओर चले जहां बीती रात भोजन किया था। उस स्थान पर पंहुचने से पहले ही रास्ते में एक रेस्टोरेन्ट पर समोसे पोहे आहूबडे आदि नजर आए। वहीं रुकगए। समोसे खाए,पोहे जलेबी भी चख ली। फिर आलूबडे भी खा लिए। तभी मैने पूछा चाय है क्या? जवाब आया,चाय भी है। फिर चाय भी वहीं पी। अब होशंगाबाद से चले। होशंगाबाद से पचमढी 121 किमी है।
दोपहर सवा ग्यारह बजे तक पिपरिया पंहुच गए। इस दौरान में होशंगाबाद एडीएम को फोन लगाता रहा। बात हो नहीं पाई। फिर एसडीएम पिपरिया को फोन लगाया तो बात हो गई,लेकिन उसने साफ मना कर दिया कि रेस्ट हाउस में जगह नहीं मिलेगी। कोरोना के कारण कमरे नहीं देंगे। हम पिपरिया पंहुच चुके थे। यहां से पचमढी 55 किमी है। यहीं थोडी देर रास्ता भटक गए,लेकिन आधे घण्टे भटकने के बाद आखिरकार सही रास्ते पर आ गए। 25-30 किमी चलने के बाद हम सतपुडा के जंगल में प्रवेश कर गए। दोनो तरफ घने पेड,जंगल। रिजर्व फारेस्ट होने से रास्ते पर चाय तक की दुकानें नहीं है। जंगल के रास्ते को देखते हुए दोपहर करीब डेढ बजे हम पचमढी पंहुच गए। सुबह के नाश्ते के बावजूद सभी को भूक लग आई थी। पचमढी में प्रवेश करते ही सबसे पहले एक होटल में भोजन किया। भोजन से निवृत्त होकर फारेस्ट का आफिस ढूंढने निकले। हम चाहते थे कि पीडब्ल्यूडी नहीं तो फारेस्ट के रेस्ट हाउस में रुक जाएं। फारेस्ट का आफिस मुख्य बाजार से दूर है। वहां पंहुच गए,लेकिन वहां कोई अफसर मौजूद नहीं था। सबके सब बडे अफसर के साथ फील्ड में थे यानी जंगल में। किसी का भी फोन नहीं लग रहा था।
आफिस के बाबू ने आप कुछ देर इंतजार कीजिए। इंतजार करने की बजाय हमने महादेव जाना ठीक समझा। फारेस्ट का आफिस महादेव गुफा के रास्ते में ही है। महादेव गुफा यहां से नौ किमी दूर थी। हम महादेव के लिए चल पडे। भरपूर पहाडी रास्ता,180 डिग्री के तीखे मोड,पलाडी उंचा नीचा रास्ता,चारो ओर घना जंगल। थोडी ही देर में हम महादेव पंहुच गए। बडी गुफा में विराजित महादेव। गुफा में जाकर महादेव के दर्शन किए। कोरोना का असर था कि यहां हम लोगों के अलावा कोई इंसान नहीं था,सिर्फ लाल मुंह वाले शरारती बन्दर थे। विडीयो बनाते हुए दर्शन किए। बाहर निकले। यहां से गुप्त महादेव नजदीक ही है। मुझे ऐसा ध्यान था कि बेहद नजदीक है,लेकिन वह फिर भी एकाध किमी दूर था। महादेव से पैदल चलते हुए गुप्त महादेव पंहुचे। यह बेहद संकरी गुफा है। इस गुफा में केवल एक ही व्यक्ति चल सकता है। करीब सत्तर फीट लम्बी खोह से गुजर कर भीतर पंहुचते हैं तो 4 गुणित 4 फीट के स्थान में विराजित महादेव के दर्शन होते हैं। वहां पंहुचकर महादेव के दर्शन किए। विडीयो भी बनाया। गुप्त महादेव की गुफा से निकल कर वापस लौटे,महादेव गुफा पर खडी अपनी गाडी पर पंहुचे। गाडी की छत पर बन्दरों ने कब्जा कर रखा था। बन्दरों को जैसे तैसे भगाया। गाडी में सवार होकर लौटे,वापस टाइगर रिजर्व के आफिस पर पंहुचे। काफी प्रयासों के बावजूद फारेस्ट के रेस्ट हाउस में रुकने की जुगाड नहीं हो सकी।
वहां से चले तो पचमढी के मुख्य बाजार तक आए। मुख्य बाजार में प्रवेश के पहले ही रुक गए। हम यहां होटल ढूंढना चाहते थे। एकाध होटल देखा ही था कि दशरथ जी ने हाल ही में परिचय में आए होशंगाबाद के सज्जन सुरेश राणे जी से बात की। सुरेश राणे जी की सलाह पर ही हम इस होटल में आए हैं।
शाम करीब पौने पांच बजे हम इस होटल खालसा लेक व्यू में आए। सामान टिकाया। सबने चाय पीने की इच्छा जाहिर की। चाय पीकर फ्री हुए। इस वक्त साढे पांच हो गए थे। मैने जटाशंकर जाने का प्रस्ताव रखा। अभी अन्धेरा होने में काफी वक्त था और इतने समय में हम जटाशंकर जाकर आ सकते थे। हम लोग जटाशंकर के लिए चल पडे। जटाशंकर पचमढी का सबसे नजदीकी स्थान है,जहां पैदल भी जाया जा सकता है। जटाशंकर पहाडों की खाई में काफी गहराई में स्थित है। इस गुफा तक पंहुचने के लिए काफी नीचे उतरना पडता है।
पार्किग में गाडी खडी करने के बाद दो उंचे पहाडों के बीच बने काफी लम्बे रास्ते को पार करके हम जटाशंकर के रास्ते पर पंहुचते है। फिर कई सौ सीढियां नीचे उतर कर जटाशंकर की गुफा में पंहुचते है। गुफा में ही एक कुण्ड भी है,जिसमें पानी भरा हुआ था,लेकिन पचमढी के लिहाज से यहां पानी बेहद कम था। कुण्ड में जिस झरने से पानी गिरता है,वह झरना भी सूखा हुआ था। पचमढी में पानी की कमी पर चिन्ता व्यक्त करते हुए हम वापस लौटे। जुलाई के महीना बारिश का महीना है और इस वक्त जटाशंकर मे पानी की कमी हमें चिन्ता में डाल रही थी।
हम शाम सात बजे तक होटल में लौट आए। होटल मालिक लकी सरदार ने शाम को होटल में आकर मिलने का वादा किया था। वह पचमढी में भाजयुमो का अध्यक्ष है। लेकिन वह नहीं आया। हमारा आयोजन काफी देर तक चला। अब सोने की तैयारी.....।
29 जुलाई 2020 9बुधवार)
पंजाबी ढाबा(पचमढी) 10.26 प्रात:
नाश्ते का आर्डर देकर इस वक्त हम नाश्ता आने का इंतजार कर रहे हैं।
बीती रात सोते सोते बारह बज गए थे। सुबह करीब साढे आठ बजे नींद खुली। बाहर आसमान पूरी तरह साफ था। धूप खिली हुई थी।बडे आराम से नहाते धोते तैयार हुए और करीब 10.10 पर होटल से बाहल निकले। आज हम चौरागढ जा रहे हैं। चौरागढ काफी ऊंचाई पर है और वहां पंहुचने में करीब तीन घण्टे लग सकते है। चौरागढ पैदल ही जाना होता है। चौरागढ महादेव गुफा से आगे है। महादेव गुफा हम कल जाकर आए थे। महादेव के रास्ते में एक चाय नाश्ते की दुकान और ढाबा भी नजर आया था। सुबह वहीं नाश्ता करने का विचार था,इसलिए पहले वहां गए,लेकिन वह ढाबा ग्यारह बजे चालू होना था। फिर पलट कर पचमढी के मुख्य बाजार में इस ढाबे पर लौट कर आए। पचमढी में प्रवेश के समय सबसे पहले यहीं भोजन किया था। इस समय लम पराठों का इंतजार कर रहे हैं। सामने टीवी चल रहा हैं।
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