Friday, September 18, 2020

भारत-चीन विवाद: भारत के लिए समस्याएं सुलझाने का स्वर्णिम अवसर,अब जरुरी है सैन्य विकल्प

 -तुषार कोठारी


 आमतौर पर कोई भी समझदार या बुध्दिजीवी कभी भी युध्द की हिमायत नहीं करता। लेकिन यह ऐतिहासिक और वैश्विक सच्चाई है कि दुनिया का इतिहास युध्दों का ही इतिहास है। विश्व की अधिकांश समस्याओं का निराकरण भी युध्दों के माध्यम से ही हुआ है। शांति के पक्ष मे आप चाहे जितनी दलीलें दे लें लेकिन कठोर वास्तविकता तो यही है कि समस्याओं का निराकरण बातचीत की बजाय युध्दों से ही हुआ है। कहने सुनने में युध्द का विरोध और शांति की हिमायत अच्छा लगता है,लेकिन वास्तविकता को नकारा नहीं जा सकता इसलिए आज दुनिया का हर देश मजबूत से मजबूत सेना और साजो सामान रखने का पक्षधर है।

  पांच महीने होने को आए हैं,जब से भारत चीन की सेनाएं आमने सामने युध्द की मुद्रा में तैयार खडी है। दोनो ओर से युध्द के लिए बडी तैयारियां की जा रही है। शुरुआत चीन ने की थी और भारत ने बिना वक्त गंवाएं तुरंत जवाबी तैयारी शुरु कर दी और जल्दी ही महत्वपूर्ण रणनीतिक चोटियों पर कब्जा करते हुए सामरिक तौर पर बढत हासिल कर ली। यह भी कहा जा रहा है कि भारत के बढत हासिल कर लेने से चीनी पक्ष काफी बौखलाया हुआ है।

  इन पांच महीनों के दौरान कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर वार्ताओं के कई दौर हो चुके है,लेकिन तनाव घटने की बजाय बढता ही जा रहा है। इस दौरान रक्षा मंत्री और विदेश मंत्रियों की मुलाकातें भी हो गई। विदेश मंत्रियों की मुलाकात में तो तनाव घटाने का पांच सूत्रीय फार्मूला भी तय हो गया था। लेकिन यह फार्मूला जमीन पर नहीं उतर पाया। विदेश मंत्रियों की मुलाकात के बाद हुई सैन्य कमाण्डरों की चर्चा में इस फार्मूले का क्रियान्वयन नहीं हो पाया।

  शांति के आदर्शवाद के विपरित युध्द के यथार्थ को समझने वाले रणनीतिकार यह बात पहले से जानते है कि ऐसे माहौल में जब वार्ताएं की जाती है तो कहने के लिए तो ये वार्ताएं तनाव घटाने के नाम पर होती है,लेकिन इसका असल मकसद भावी युध्द की तैयारियों के लिए समय हासिल करना ही होता है। वर्तमान में भारत चीन के बीच अलग अलग स्तरों पर चल रही चर्चाओं का भी यही मकसद है। दोनो ही देश सीमाओं पर अपनी तैयारियों को पुख्ता करने के लिए समय चाहते है और इसीलिए वार्ताएं लगातार   जारी है।

 इस समय में यदि विश्व परिदृश्य को देखें तो पता चलता है कि दुनिया की अधिकांश महाशक्तियां चीन के विरोध में खडी है। अमेरिका,जापान,वियतनाम जैसे देश तो खुले तौर पर चीन से युध्द करने को तैयार है। पूरी दुनिया में जैसे चीन के खिलाफ एक गठबन्धन बन रहा है। ऐसी परिस्थिति में सबसे बडी सवाल यही है कि चीन ने सीमा पर तनाव बढाने का जो अभियान चलाया है उसके पीछे उसकी मंशा क्या है? चीन ने सिर्फ भारत से लगी सीमा पर ही तनाव नहीं बढाया है,बल्कि साउथ चाइना सी के साथ साथ अन्य सीमाओं पर भी वह अपने पडोसियों से तनाव बढा रहा है। इसके पीछे चीन की क्या रणनीति है? या शी जिनपिंग घरेलू मोर्चे पर अपनी किसी कमजोरी के चलते युध्दोन्माद भडका रहे है?

 कारण चाहे जो हो,लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है। चीन की हरकतों ने भारत को अपनी समस्यांएं  सुलझाने का  एक स्वर्णिम अवसर दे दिया है। याद कीजिए कुछ सालों पहले,चीन से विवाद की किसी भी चर्चा में हर भारतीय कहीं ना कहीं डरा हुआ होता था और उसे लगता था कि चीन से मुकाबला करना भारत के लिए संभव ही नहीं है। लेकिन इन पांच महीनों में परिस्थितियों में जो बदलाव आया है,उसे देखकर आज हर भारतीय को यह लगने लगा है कि चीन को निपटाना कोई कठिन काम नहीं है। वर्तमान में विश्व का जो परिदृश्य है उसमें साफ दिखाई दे रहा है कि यदि भारत चीन का युध्द हुआ तो यह सिर्फ दो देशों का युध्द नहीं होगा। चीन से पीडीत कई सारे देश इस लडाई में कूद सकते हैं।

 अक्साई चीन और तिब्बत पर चीन का अवैध कब्जा जैसी कई समस्याओं का निराकरण इस युध्द से ही संभव होगा। विश्व की अर्थव्यवस्था में भी चीन के पतन के बाद एक नया दौर शुरु हो सकता है। अनेक विश्लेषकों का साफ मानना है कि दोनो ही देश युध्द की ओर बढ रहे हैं,सवाल यही है कि शुरुआत कौन करेगा? विवाद की स्थिति को देखे तो चीन की सेनाएं अप्रैल वाली स्थिति से अगे बढकर एलएसी के नजदीक आ गई है और भारत की एक सूत्रीय मांग है कि अप्रैल वाली स्थिति बहाल की जाए। ऐसे में गेंद तो भारत के ही पाले में है।  चीन पीछे जाने को तैयार नहीं हैं ऐसे में भारत के पास सैन्य विकल्प के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है।


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