Monday, December 28, 2020

हेमकुण्ड साहिब यात्रा-6

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पंहुच गए हेमकुण्ड साहिब के दर पर

30 सितम्बर 2020 गुरुवार (सुबह 3.30)

होटल देवलोक घांघरिया

 अभी सुबह पांच बजे हमें हेमकुण्ड साहिब की यात्रा शुरु करना है,इसलिए आज सुबह तीन बजे उठ गए हैैं। ताकि यात्रा सही समय पर शुरु कर दे और देर ना हो जाए।

कल दोपहर को यहां पंहुचने के बाद करीब दो घण्टे यहीं इधर उधर घूमते रहे। घांघरिया से हेमकुण्ड जाने वाले रास्ते को देखा और अंदाजा लगाया कि वास्तव में रास्ता बेहद कठिन होगा। हांलाकि ये अंदाजा भी लगा कि शरुआती रास्ता अपेक्षाकृत सरल होगा और आखिर वाला बेहद खडी चढाई वाला। हम छ: किमी चल कर करीब एक हजार मीटर यानी एक किमी की उंचाई पर पंहुचेंगे। यानी रास्ता खडी चढाई का ही होगा।

यहां जबर्दस्त ठण्ड है। गर्म पानी नहीं  है। गर्म पानी बाल्टी से मिलता है,पचास रु. की एक बाल्टी और वो भी सुबह साढे पांच के बाद। हमें केवल  फ्रैश होकर निकल जाना है। आज बैग का सारा सामान कमरे पर रख कर जाएंगे। बैग काफी भारी हो गए हैैं,जो खडी चढाई में और ज्यादा भारी लगेंगे। आज केवल पोचू साथ में रखेंगे। ठण्ड का आलम यह है कि बन्द कमरे में इनर पहनकर बैठा हूं, लेकिन ठिठुरन हो रही है। आज की यात्रा भी बेहद लम्बी होने वाली है,क्योंकि आज हमें हेमकुण्ड साहिब होकर सीधे गोविन्द घाट लौट जाना है। यानी करीब तेईस किमी चलना है। राहत की बात ये है कि इसमे से सौलह किमी का रास्ता ढलान वाला है। छलान पर दिक्कत पैरों को होती है,दम नहीं फूलता,इसलिए चलना आसान होता है।


2 अक्टूबर 2020 शुक्रवार (सुबह 6.00)

गोविन्द घाट


इस वक्त हम गोविन्दघाट से निकलने के लिए तैयार है। तीन लोग पूरी तरह तैयार हो चुके है। आशुतोष वाशरुम में है।  हम जल्दी निकल जाएंगे,लेकिन फिर भी तय किए हुए समय से कुछ देर हो जाएगी। हमने छ: बजे गोविन्दघाट से निकलने की योजना बनाई थी।


अब कहानी कल की। बुधवार को घांघरिया पंहुचने के बाद रात को तय किया था कि किसी भी हालत मेंसुबह पांच बजे ट्रैक शुरु कर देंगे। शुक्रवार को हमें देहरादून पंहुचना है। इसलिए ये जरुरी था कि हम हेमकुण्ड साहिब जाकर शाम तक गोविन्दघाट पंहुच जाए। इसलिए जल्दी निकलना था। इसके लिए हम सुबह तीन बजे उठे और साढे चार तक तैयार हो गए। गुरुद्वारे में पंहुचे, लेकिन वहां सिर्फ चाय की व्यवस्था थी। वहीं पास के एक रेस्टोरेन्ट में पंहुचे और दूध व टोस्ट का हलका नाश्ता किया। हम ठीक पांच बजे चल पडे। अभी अंंधेरा था। हेडलाइट सिर्फ मेरे पास थी,इसलिए हम तीनों एक साथ चलते रहे। घांघरिया से हेंमकुण्ड साहिब का छ: किमी का रास्ता एकदम खडी चढाई का रास्ता है। बीच में कहीं भी थोडा भी समतल रास्ता नहीं मिलता। इतनी खडी चढाई और लगातार कम होती आक्सिजन। हर पचास कदम पर रुक कर सांस को व्यवस्थित करना पड रहा था। इसी का नतीजा था कि हमारीचलने की गति बेहद कम थी। चलते चलते साढे तीन घण्टे गुजर चुके थे और अब करीब साढे आठ बज गए थे। सुबह की रोशनी फैल चुकी थी। वहीं चाय की एक दुकान थी। वहां रुके। चाय पी। हमें लग रहा था कि  हम कम से कम तीन किमी चल चुके हैैं,लेकिन दुकान पर हमें बताया गया कि हम केवल दो किमी ही चले हैैं। अभी 4 किमी की चढाई और बाकी थी।

आशुतोष के चलने की गति तो और भी कम थी। हमारा अंदाजा था कि हम पांच बजे चले हैैं तो दस बजे तक हेमकुण्ड साहिब पंहुच ही जाएंगे,लेकिन हमेंएक किमी की दूरी तय करने में एक घण्टे का वक्त लग रहा था। यानी हम ग्यारह बजने से पहले हेमकुण्ड साहिब नहीं पंहुच सकते। मैैं और अनिल तेज चल रहे थे। हम आशुतोष के लिए रुकते रहे। आशुतोष हमारे तक पंहुचता तब तक हम सुस्ता लेते।

सुबह करीब सवा नौ बजे तक लम साढे तीन किमी चल चुके थे और वहां पंहुच चुके थे,जहां से हेमकुण्ड जाने के दो रास्ते हो जाते है। एक सीढियों वाला रास्ता है,दूसरा वही पहाडी रैम्प वाला रास्ता।  इस स्थान पर मै और अनिल आशुतोष का इंतजार करते रहे। आशुतोष के आने तक हम इस बात पर दिमाग लडा रहे थे कि लम्बा रास्ता लेने के बजाय हम सीढियों से ही चढ जाए। एक सज्जन नंगे पांव यह कठिन यात्रा कर रहे थे। आशुतोष उनके साथ ही हमारे पास तक पंहुचा था। उन्होने हमेंसमझाया कि सीढियां ज्यादा थकाती है। ये करीब दो ढाई हजार सीढियां है,जो नीचे से देखने पर थोडी सी ही नजर आ रही थी।

आखिरकार हमने रैम्प से ही जाने का निर्णय किया। दूरी देखकर हमारा अंदाजा था कि हम साढे ग्यारह तक पंहुच जाएंगे,लेकिन यह पता पडने पर कि पहाडी के उपरी छोर पर हेमकुण्ड साहिब है हमारा उत्साह बढ गया। अब शरीर भी थोडा सध चुका था। मैने और अनिल ने 9.35 पर सीढियों वाली जगह से चढना शुरु किया। लगातार एक सौ अस्सी डिग्र्री वाले रैम्प की खडी चढाईयां। हमारे बढे हुए उत्साह केचलते हम पौने ग्यारह पर ही हेमकुण्ड साहिब गुरुद्वारे पर पंहुच गए। आशुतोष को आने में अभी देर थी। हम वहां एक बैैंच पर बैठ गए। अनिल ने तो वहां बैठे बैठे झपकी भी मार ली। मैने इस समय का सदुपयोग मोबाइल से किया। हेमकुण्ड पर जियो का पूरा नेटवर्क मिलने लगा है। वैदेही को विडीयो काल करके मैने आई और वैदेही को पूरा स्थान दिखाया। फिर फेसबुक लाइव भी कर दिया। करीब 11.25 पर आशुतोष भी वहां पंहुच गया। फिर हमने हेमकुण्ड पर जाकर पवित्र पानी के छींटे शरीर पर मारे। स्नान की कोई श्रद्धा नहीं थी। कपडे भी लेकर नहीं गए थे। हाथ मुंह घोकर गुरुद्वारे में मत्था टेकने गए।  वहां शबद कीरतन चल रहा था। वहां जाकर बैठे। इस दौरान आशुतोष ने गुरुद्वारे के भीतर से अपने कई मित्र परिचितों को विडीयो काल पर दर्शन करवाए। 


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