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गोविन्द घाट से घांघरिया का चुनौती भरा सफर
30 सितम्बर 2020 बुधवार ( दोपहर 3.00 बजे)
होटल देवलोक घांघरिया
इस वक्त हम ग्यारह किमी की बेहद कठिन और खडी चढाई वाला पहाडी रास्ता पार करके घांघरिया आ गए हैैं।
आज सुबह हमने छ: बजे निकलने का तय किया था,लेकिन कमरे से निकलते निकलते साढे छ: बज गए थे। कमरे से निकल कर सबसे पहले बरसात से बचाव के लिए पोचू किराये पर लिए। यहां सौ रु. किराये में पोचू मिल जाते है,लेकिन इसके लिए पहले तीन सौ रु. एडवान्स जमा कराना पडते हैैं। हमने तीन पोचू लिए। अनिल अपनी बरसाती लेकर आया था।
इसके बाद गुरुद्वारे में लंगर चखा। शानदार दूध थूली और दाल रोटी। सुबह सवेरे ही पेट भर के खाया। यहां से आगे बढे। कुछ ही दूरी पर यहां से घांघरिया के रास्ते पर आगे जाने के लिए जीपें मिलती है। हमे ंबताया गया था कि जीपें पांच किमी आगे तक छोडती है। जीप स्टैण्ड पर पंहुचे,तुरंत ही जीप मिल गई। 65 रु.प्रति सवारी। जीप में सवार हो गए। दस पन्द्रह मिनट में ही जीप ने हमें पुलना छोड दिया। पुलना गोविन्द घाट से पांच नहींकेवल तीन ही किमी दूर था,हांलाकि रास्ता बेहद खतरनाक और कच्चा था। अब पुलना से घांघरिया तक पैदल ही जाना था। कहा गया था कि घांघरिया यहां से दस किमी है। पुलना से जीप से उतर कर हमने चलना शुरु कर दिया। इस वक्त आठ बज चुके थे। रास्ता शुरु होते ही खडी चढाई वाला। अभी दो तीन सौ मीटर ही चले थे कि मनीष ने आगे बढने से इंकार कर दिया। हमने भी कहा कि ठीक है तुम वापस चले जाओ। अब हम तीन ही लोग आशुतोष,अनिल और मै घांघरिया के लिए चल पडे। शुरुआती रास्ता लगातार खडी चढाई का था। बीच में कहीं कहीं थोडा रास्ता समतल भी था। करीब चार किमी बाद भ्यूण्डार गांव आता है। इस पूरीघाटी को भ्यून्डार वैली ही कहा जाता है। भ्यून्डार गांव के रास्ता ढलान वाला हो जाता है। यह ढलान हमें नीचे अलकनन्दा नदी तक ले जाता है। नदी का पुल पार करने के बाद अब लगातार खडी चढाई का पांच किमी रास्ता। बेहद कठिन थका देने वाला रास्ता। हमें कई जगह रुक रुक कर चलना पडा। बार बार दम फूलने लगता था और रुक कर सांसों को व्यवस्थित करने के बाद ही आगे बढा जा सकता था। अच्छी बात यह थी कि पूरा रास्ता बना हुआ है। पत्थरों का रास्ता है,लेकिन ऐसा रास्ते पर चलने में आसानी रहता है। बिलकुल उबड खाबड पहाडी रास्ते की तुलना में पथरीला बना हुआ रास्ता आसान ही लगता है। रास्ते में रुकते रुकाते,बुरी तरह थकते हुए हम चलते रहे। पहली बार ट्र्ैकिंग में मेरे साथ एक नई दिक्कत पेश आई। रास्ते में अचानक चलते चलते मेरे दाहीने पैर के पंजे में वायटा (क्रैम्प)आ गया। पैर की उंगलिया खुद ब खुद एक दूसरे से चिपकने लगी और दर्द होने लगा। वहींरुक कर करीब दस पन्द्रह मिनट तक पैर की खींचा खांची की। तब कहींजाकर पैर चलने लायक हुआ। पूरे रास्ते में कई जगह चाय नाश्ते की दुकाने है। पुल पार कर लेने के बाद चाय की एक दुकान पर अनिल ने चाय पीने की इच्छा जाहिर की। वहां रुके। अचानक उसी समय अब बांये पैर में वायटा आने लगा। अब इस पैर की खींचा खांची की। तभी अनिल ने बैग में से डाइक्लोफीनीक जेल निकाला। पंजे पर उसकी मालिश की। तब जाकर पैर चलने लायक हुआ। अब तक एक एक करके दोनो पैर मुझे झटका दे चुके थे।
चलते चलते आखिरकार करीब 12.50 पर हम घांघरिया के हैलीपैड पर पंहुच गए। यहां से घांघरिया नजर आने लगता है। जैसे ही मंजिल नजर आती है,थकान कुछ कम हो जाती है और उत्साह बढ जाता है। हांलाकि घांघरिया पंहुचने में अभी भी दो खडी चढाईयां चढनी थी। जैसे तैसे हमने इन चढाईयों को भी पार किया। मैैं और अनिल साथ में थे। हम आशुतोष को करीब दो किमी पीछे छोड आए थे। तब वह सुस्ता रहा था। हमने कहा कि अब सीधे घांघरिया में ही मिलेॢे। ठीक सवा एक बजे हम घांघरिया पंहुच गए। यहां की पुलिस चौकी पर हमारे लिए मैसेज आ चुका था। हम चौकी पर पंहुचे। चौकी इंचार्ज ने हमे बैठाया। दसेक मिनट बाद हमें बताया गया कि देवलोक होटल में हमारे रुकने का प्रबन्ध है। मैैं और अनिल देवलोक होटल के कमरे में आ गए। कमरे में आते ही मैने आई और वैदेही से बात कर ली। पहले तो हमने सोचा था कि हले ही दिन फूलों की घाटी जाकर आ जाएंगे या हेमकुण्ड साहिब जाकर आ जाएंगे। लेकिन घांघरिया तक के बेहद कठिन रास्ते के कारण हमारी सारी योजना धरी की धरी रह गई। अब कल हेमकुण्ड ही जाएंगे। इच्छा यह है कि कल ही हेमकुण्ड साहिब जाकर वापस गोविन्द घाट लौट जाएंगे।
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