Monday, June 21, 2021

भारत की संप्रभुता के लिए नया खतरा बनती जा रही है सोशल मीडीया कंपनियां,इन पर लगाम कसना जरुरी

 -तुषार कोठारी


जब नए नए सोशल मीडीया प्लेटफार्म्स की शुरुआत हो रही थी,तब किसी ने भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन ये प्लेटफार्म्स अपने आपको किसी राष्ट्र से बडे समझने लगेंंगे और किसी देश को चुनौती देने की स्थिति में आ जाएंगे। लेकिन बदकिस्मती से अब यही हो रहा है। ये सोशल मीडीया कंपनियां इतनी बडी हो गई है कि वे बेहिचक भारत जैसे विशाल देश के कानूनो को चुनौती तक देने को तैयार हो गई है।


पिछले कुछ दिनों से चल रहे घटनाक्रम को देखें तो यह साफ हो जाएगा कि ट्विटर,फेसबुक और व्हाट्स एप जैसी कंपनियां सीधे सीधे देश के कायदे कानून को मानने से इंकार कर रही है और खुलेआम देश को चुनौती देने को तैयार है। ये नए जमाने की जंग है और इसमें भारत को अपनी पूरी ताकत से उतरना होगा।



 

सोशल मीडीया प्लेटफार्म्स चलाने वाली कंपनियों की शुरुआत बडी ही परोपकारी स्वरुप की थी। जिन दिनों फेसबुक लोकप्रिय हो रहा था,हर आदमी को लगा था कि आपसी दूरियां कम करने के लिए एक वरदान सा मिल गया है। आप दुनियाभर के लोगों से सीधे जुड सकते है। अपने मित्र परिचितों, रिश्तेदारों से जीवन्त सम्पर्क में रह सकते हो। यही वजह थी कि सरकारों ने भी इन माध्यमों को प्रोत्साहित किया। तमाम सरकारी विभागों के,प्रशासनिक व्यवस्थाओं के फेसबुक पेज बनाए गए। फिर जब ट्विटर की भारत में शुरुआत हुई तो सबसे पहले तो ट्विटर ने देश की तमाम बडी हस्तियों को रोजाना ट्विट करने के लिए प्रोत्साहित किया। अखबारों में आज के ट्विट जैसे कालम शुरु हुए। धीरे धीरे राजनेता भी ट्विट करने लगे और उनके ट्विट चर्चित होने लगे। इसके बाद तो सरकारी विभागों,मंत्रालयों और मंत्रियों के आफिशियल ट्विटर हैण्डल बन गए। ट्रेन की गंदगी या पासपोर्ट की समस्याओं को लेकर किए गए ट्विट पर मंत्रालयों द्वारा त्वरित कार्यवाही किए जाने की खबरें चर्चित होने लगी तो आम लोगों को भी ट्विटर महत्वपूर्ण लगने लगा। इसके बाद जब स्मार्ट फोन में व्हाट्सएप जैसे फीचर शुरु हुए तो देश का लगभग हर आदमी इन कंपनियों की पकड में आ गया। व्हाट्स एप जैसे एप को भी सरकारों ने पर्याप्त प्रोत्साहन दिया। तमाम सरकारी दस्तावेजों का आदान प्रदान व्हाट्स एप के जरिये होने लगा है। सरकारी विभागों की आपसी सूचनाओं का आदान प्रदान आजकल व्हाट्सएप से होने लगा है। देखते ही देखते इन कंपनियों की पंहुच करोडों लोगों तक हो गई। आज देश में व्हाट्स एप के 53 करोड यूजर है,जबकि यू ट्यब के 44.8 करोड,फेसबुक के 41करोड, इंस्टाग्र्राम के 21 करोड और ट्विटर के 1.5 करोड यूजर है।



 

जैसे जैसे इन सोशल मीडीया प्लेटफार्म्स की पंहुच बढती गई,इनका परोपकारी स्वरुप धीरे धीरे गायब होने लगा और बडे ही आहिस्ता आहिस्ता इन कंपनियों ने तानाशाहों वाला रुप धारण कर लिया। अपनी प्राईवेसी वालिसी को जबरन थोपना,किसी यूजर के एकाउण्ट को एकतरफा कारणों से पूरी तरह हटा देने जैसी घटनाएं शुरु होने लगी। इतना ही नहीं सूचनाओं के संगठित रुप से दुरुपयोग के षडयंत्र भी धीरे धीरे सामने आने लगे।


इन कंपनियों का साहस सबसे ज्यादा तब बढा,जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को ट्विटर ने एकतरफा तरीके से बैन करते हुए ट्रंप का ट्विटर हैण्डल बन्द कर दिया गया। अमेरिका की घरेलु राजनीति के निहित स्वार्थों के चलते अमेरिका ने ट्विटर के इस कदम के खिलाफ कडी कार्यवाही करने की बजाय उसे प्रोत्साहित किया। बस यहीं से इन तमाम कंपनियों के दुस्साहस में जबर्दस्त बढोत्तरी हो गई। उन्हे लगने लगा कि जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति की उनके सामने कोई हैसियत नहीं है,तो भारत जैसे गरीब देश की तो सरकार भी उनके सामने कहां टिकेगी। बस यहीं से इन कंपनियों में यह साहस आया कि वे भारत की संप्रभुता को भी चुनौती दे सकते है।



 

भारत के परिप्रेक्ष्य में देखें,तो भारत सरकार इन कंपनियों के तौर तरीकों को लेकर अधिक गंभीर नहीं थी। मामले की शुरुआत ओटीटी प्लेटफार्म्स पर परोसी जा रही अश्लील और आपत्तिजनक सामग्र्री पर नियंत्रण करने के प्रयास से हुई थी। आपको याद होगा कि वेब सीरीज ताण्डव को लेकर देश में जबर्दस्त विरोध हुआ था और इसके बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने ओटीटी प्लेटफार्म्स और सोशल मीडीया कंपनियों के लिए एक गाइड लाइन बनाकर सभी कंपनियों के लिए इनका पालन करना अनिवार्य कर दिया था।


भारत सरकार ने तमाम ऐसी कंपनियों को भारत में एक नोडल आफिसर नियुक्त करने और शिकायत निवारण की व्यवस्था करने के निर्देश विगत 25 फरवरी को जारी किए थे। इन कंपनियों को ये व्यवस्थाएं करने के लिए समय सीमा दी गई थी। यह समय सीमा दो बार बढाई गई और आखिरकार इसकी समयसीमा 25 मई को समाप्त हो गई। लेकिन अधिकांश कंपनियों ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाए।


इतना ही नहीं, इन कंपनियों ने इस दौरान आग में घी डालने के भी कई काम किए। मसलन कोरोना महामारी के दौरान भारत सरकार ने भ्रम फैलाने वाले करीब सौ ट्विट को ट्विटर से हटाने के निर्देश दिए थे। पहले तो ट्विटर ने इन ट्विट्स को हटा दिया,लेकिन जब लैफ्ट लिबरल लाबी ने इस पर शोर शराबा मचाया,तो ट्विटर ने इन्हे फिर से एक्टिव कर दिया। जब कि ट्विटर पर से भ्रम फैलाने वाली सामग्र्री हटाने का आदेश कोई सामान्य आदेश नहीं होकर आईटी एक्ट के प्रावधानों के तहत जारी किया गया एक विधिक आदेश था। इस आदेश का उल्लंघन करना अपने आपमें दण्डनीय कृत्य होकर आवमानना कारक है। इस आदेश के उल्लंघन पर जेल तक की सजा हो सकती है।



 

ट्विटर ने जिस तरह भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के आदेशों का उल्लंघन किया,उससे भारत सरकार के सामने एक बडी चुनौती खडी हो गई है। यदि सरकार इन कंपनियों की दादागिरी को बर्दाश्त कर लेती है तो यह सीधे सीधे संप्रभुता के लिए खतरे के समान हो जाएगा। ऐसे में अब जरुरी है कि भारत सरकार इन सोशल मीडीया कंपनियों को कानून के डण्डे के नीचे लाए। इसके लिए जरुरी है कि इन के खिलाफ कडी कार्यवाही की जाए।


इन कंपनियों की ताकत इनकी विशाल यूजर संख्या है। लेकिन यदि सरकार चाहे तो इस पर पूरी तरह रोक लगा सकती है। दुनिया में चीन ऐसा देश है जहां इन कंपनियों को कोई महत्व नहीं दिया जाता। चीन ने अपने नागरिकों के लिए अपने स्वयं के सोशल मीडीया प्लेटफार्म बना रखे है। आज के युग में यह कोई बहुत बडी बात नहीं है। व्हाट्सएप जैसे कई मोबाइल एप पहले से तैयार है,लेकिन चूंकि शुरुआती दौर में व्हाट्स एप चल निकला तो अधिकांश मोबाइल धारक इसका उपयोग करने लगे। याद कीजिए पिछले दिनों ट्विटर की दादागिरी को कम करने के लिए भारतीय माइक्रो ब्लागिंग साइट कू सामने आया था,आज कई सारी हस्तियों ने कू का उपयोग शुरु कर दिया है। इसी तरह फेसबुक और इंस्टाग्र्राम के भारतीय विकल्प भी बडी आसानी से बनाए जा सकते है। जरुरत केवल दृढ् इच्छाशक्ति की है। गूगल और कू जैसी कंपनियों ने तो सूचना प्रसारण मंत्रालय के निर्देशों का पालन शुरु कर दिया है,लेकिन व्हाट्सएप और ट्विटर ने इस दिशा में अब तक कोई कदम नहीं उठाया है।


इस तरह की कंपनियां कभी भी देश की सुरक्षा के लिए बडा खतरा बन सकती है। हाल के दिनों में ऐसे कई उदाहरण सामने आए है,जब इन कंपनियों ने देश विरोधी एजेण्डे को हवा देने का काम किया है। देश में अपनी जमीन गंवा चुके लैफ्ट लिबरल्स और कांग्र्रेस जैसे दलों को ऐसी कंपनियों से बडा अपनापन महसूस होता है। लेकिन देश की सुरक्षा को यदि प्राथमिकता पर रखना है,तो ऐसी कंपनियों पर लगाम कसना जरुरी है।

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