तूफानी बारिश में कच्चे संकरे रास्तों पर जीप का खतरनाक सफर....
29 अगस्त 2021 रविवार (शाम 7.45)
TRH लोहारखेत
इस समय हम काफनी और पिण्डारी ग्लैसियर ट्रेकिंग के शुरुआती पडाव लोहारखेत में पंहुचे हैैं। यहां टीआरएच में कमरे मिल गए हैैं। भोजन की तैयारी हो रही है। हमे पता चला है कि कि खाती से द्वाली के बीच का रास्ता अभी बन्द है। पिण्डारी और काफनी ग्लेसियर का रास्ता द्वाली से होकर ही जाता है। यदि द्वाली नहीं जा पाए तो ग्लैसियर तक जाने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता।
आज की सुबह हम ठीक 7.15 पर होचल ग्रीन वैली से निकल गए थे। सुबह जल्दी निकल गए थे,इसलिए रास्ता साफ था। अभी तक हमें मौसम भी साफ ही मिला है। धूप खिली हुई है बारिश का नामोनिशान तक नहीं। हम करीब साढे नौ बजे कैंची धाम नीब करौरी बाबा के आश्रम पर पंहुच गए। यहीं दर्शन किए। प्रसाद लिया। कैंची धाम नीब करौरी धाम अत्यन्त जागृत स्थान माना जाता है। एप्पल के संस्थापक स्टीव जाब्स को भी यहीं आकर न सिर्फ शांति मिली थी,बल्कि एप्पल जैसी नम्बर एक कंपनी बनाने का रास्ता भी यहीं से मिला था।
अब हमे अलमोडा पंहुचना था। यहीं केएमवीएन (कुमाउ मण्डल विकास निगम) के ट्रेकिंग मैनेजर रमेश कपकोटी का फोन आ गया। मैने बताया कि हम कैंची धाम से किल रहे है। कपकोटी जी ने कहा कि हम करीब चार बजे तक बागेश्वर पंहुच जाएंगे। कपकोटी जी ने यह भी बताया कि बागेश्वर से आगे लोहारखेत तक जाने के लिए आप अपनी गाडी से मत जाना। मैैं दूसरी गाडी का इंतजाम कर देता हूं। कपकोटी जी ने कहा कि ढाई हजार रु में गाडी आपको लोहारखेत छोड देगी। मैने हां कह दिया। मेरे साथियों को इस पर आपत्ति थी। दशरथ जी कहने लगे कि हम अपनी गाडी से ही जा सकते है। मैने कपकोटी जी को फोन लगाकर कहा कि हम अपनी गाडी से जाए,तो क्या समस्या है? कपकोटी जी ने कहा कि आपकी गाडी से जाने में रिस्क है। इधर मेरे साथी जोर डालते रहे कि अपनी ही गाडी से चले।
हम दोपहर चार की बजाय तीन बजे ही बागेश्वर पंहुच गए। बागेश्वर में टीआरएच पर पंहुचे। दशरथ जी ने गूगल पर देखा तो लोहार खेत मात्र 28 किमी ही बता रहा था। कपकोटी ने यह दूरी 60 किमी बताई थी। फिर एक बार अपनी गाडी से जाने की बात उठी।
हम लोगों ने सुबह साढे आठ बजे नाश्ता किया था। सुबह चार बजे से उठे हुए थे। भूख लगी तो थी लेकिन महसूस नहीं हो रही थी। पंकज ने कहा कि कुछ खा लिया जाए। टीआरएच से बाहर निकले करीब पांच सो मीटर पर एक वेज नानवेज होटल था। वहीं खाने का आर्डर दिया। सभी को तेज भूख लगी हुई थी। सबने जमकर खाया। टीआरएच लौटे । कपकोटी जी की गाडी आ चुकी थी। आखिरकार मैने वीटो पावर यूज किया। मैने कहा जो गाडी भेजीगई है,उसका ढाई हजार रु. किराया देकर ही चलेंगे।
सभी लोगों ने अपने ट्रे्किंग बैग तैयार किए। बाकी का सामान इनोवा में ही रख कर गाडी को लाक कर दिया। करीब पांच बजे अपने बैग लेकर हम जीप में सवार हुए। जीप से अब लोहारखेत के लिए निकल पडे। बागेश्वर से करीब बीस किमी की दूरी पर इस रास्ते का आखरी बडा बाजार-----था। वहीं तक तो सडक बढिया थी। ये इस रास्ते का आखरी बाजार था इसलिए जरुरत का सामान यहीं से खरीदा। अभी तो लोहारखेत करीब पच्चीस किमी और दूर था।
हम सभी रैन सूट लेकर आए थे,लेकिन उन्हे इनोवा में ही छोड आए थे। क्योकि ड्राइवर ने कहा था कि बरसाती आगे मिल जाएगी। बैग का वजन कम करने के चक्कर में हमने अपने रैन सूट वहीं छोड दिए थे।
इससे अगले गांव--------- में हमे अपनी गाडी बदलना थी। वहां पंहुचने से पहले ही बारिश शुरु हो गई। पहले तो धीमी थी,लेकिन फिर एकदम से तेज हो गई। हम सभी के बैग जीप के उपर कैरियर पर बन्धे थे। बेग भीग ना जाए,इसलिए जीप के भीतर रख लिए। शाम का जरुरी सामान खरीदा और इसी दौरान गाडी भी बदल ली।
अब बारिश तेज हो चुकी थी। आगे का तीस किमी का रास्ता बेहद खतरनाक था। इस रास्ते पर चलते हर व्यक्ति से अब स्वीकार कर लिया था कि हम अपनी इनोवा से गिरती बारिश में ये रास्ता पार नहीं कर पाते।
जबर्दस्त बारिश,बेहद खतरनाक कच्चा रास्ता। सड़क पर कई जगह तेज बहाव से बहता पानी,दूसरी तरफ सैकडो फीट गहरी खाई। पानी का बहाव इतना तेज कि कभी भी गाडी उसमे बह कर खाई में जा सकती थी। इन्ही खतरनाक रास्तों पर तेज बारिश में करीब एक घण्टे की डरावनी यात्रा चलती रही। हर किसी ने स्वीकार किया कि इनोवा छोडना ही ठीक फैसला था।
अंधेरा भी घिरने लगा था और थोडी ही देर में पूरा अंधकार छा गया। ड्राइवर धर्मान इस सडक का अनुभवी ड्राइवर था। हर दिन इस रास्ते पर पांच सात राउण्ड मारता है। सड़क के हर गड्ढे,मोड,उतार चढाव से पूरी तरह वाकिफ।
खतरनाक रास्ते पर अंधेरे में चलते हुए शाम 7.20 पर हम लोहारखेत के टीआरएच पर पंहुच गए। टीआरएच मे हमारे आने की पूर्व सूचना थी ही। यहीं आए। सामान टिकाया।
बारिश कुछ देर धीमी हुई,लेकिन फिर तेज हो गई। अघर मौसम ऐसा ही बना रहा तो हमारी ट्रेकिंग धरी रह जाएगी।
भोजन के दौरान यही चर्चा चलती रही। तय यह हुआ कि सुबह मौसम को देखकर ही निर्णय लेंगे कि आगे बढना है या लौट जाना है। इस वक्त भोजन हो चुका है। बारिश अभी भी हो रही है। कुछ धीमी मगर हो रही है। अगर सुबह यह सीन रहा तो मुझे लगता है कि ट्रेकिंग की योजना रद्द करना पड जाएगी। देखते सुबह क्या होता है...?
लेकिन आज के पूरे दिन की खासियत अंत का यह 50 किमी का रास्ता ही रहा,जिसे हम बागेश्वर से लोहारखेत पंहुचे। आखरी के 30 किमी बेहद खतरनाक टूटा फूटा रास्ता था। बेहद संकरा। यही जर लग रहा था कि गाडी का पहिया नीचे खाई में ना चला जाए। बारिश पूरे जोर से होती रही। ये भी जीवन का अनूठा अनुभव था। लेकिन आखिरकार हम सफलतापूर्वक लोहारखेत पंहुच गए।
अब इस वक्त सोने का समय है। सुबह जल्दी तो उठना ही है। सुबह अगर मौसम ने साथ दिया तो कार्यक्रम आगे बढेगा वरना लौट जाने का रास्ता भी खुला है।.........10.20 रात्रि
10.40 रात्रि
जब बागेश्वर से चले थे,तो यह पूछा था कि आगे तापमान कैसा है? बताया गया कि ठण्ड ज्यादा नहीं है। यह सुनते ही अपन ने बैग में से इनर,टोपी,आदि को छोड दिया था। जर्किन रख ली एहतियात के तौर पर। यहां पंहुचे तो ठण्ड का नामोनिशान नहीं था।लेकिन अब हलकी ठण्ड महसूस हो रही है। ना पंखे की जरुरत है ना एसी की। बल्कि रजाई ओढना पडेगी,जोकि कमरे में उपलब्ध है।
बारिश अब तक थमी नहीं है। बूंदा बांदी अब भी हो रही है।
हम लोगं के मोबाइल नेटवर्क भी लगभग खत्म हो गए है। वैसे तो यहां बीएसएनएल का नेटवर्क है,लेकिन चल नहीं रहा है। केवल दशरथ जी का आइडिया चल रहा है। मैने उसी फोन से वैदेही को बता दिया कि हम लोग लोहारखेत पंहुच गए हैैं। कल से मोबाइल का कोई भरोसा नहीं। बीएसएनएल कभी लगेगा कभी नहीं लगेगा। तो मैने तो मोबाइल को केवल फोटो लेने के काम का मान लिया है।
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