स्वर्ग सा शानदार नजारा धाकुडी का....
30 अगस्त 2021 सोमवार (सुबह 7.40)
TRH लोहारखेत
हम सभी तैयार हो चुके है,और नाश्ते का इंतजार कर रहे हैैं। सुबह करीब साढे पांच पर उठा था। मौसम एकदम साफ था। कुछ ही देर में धूप भी आ गई थी। मुझे लगा था कि अब हम पैदल जा सकते है। लेकिन बाकी के लोगों का मन जीप से जाने का था। जीप से जाने में धाकुडी पंहुचने के लिए केवल तीन किमी चलना पडता। तो कुल मिलाकर जीप से ही जाने का तय हुआ।
टीआरएच मे सादे पराठे अचार का नाश्ता किया। करीब छत्तीस सौ रु. का अग्र्रिम भुगतान किया और जीप में सवार हो गए।
30 अगस्त दोपहर 2.15
धाकुडी TRH
इस वक्त हम धाकुडी के टीआरएच में पंहुच चुके है। बेहद शानदार नजारा है। चारो ओर पहाड,लम्बे लम्बे पेड। पानी के झरने की आवाज। हर कोई खुश है।
सुबह हम करीब साढे आठ पर जीप में सवार हुए थे। हमे लगा था कि जीप का रास्ता आठ-दस किमी का होगा,लेकिन ये करीब 20-25 किमी लम्बा रास्ता था। बेहद खराब,बेहद खतरनाक। गनीमत ये थी कि बारिश नहीं हो रही थी। मौसम खुला हुआ था। इस खतरनाक रास्ते पर चलते हुए करीब तीन घण्टे लगे। इस बार सीटींग व्यवस्था बदली हुई थी। मै और आशुतोष अगली सीट पर ड्राइवर के साथ थे। बाकी के चार लोग,बीच वाली तीन यात्रियों वाली सीट पर फसे हुए थे। इस खतरनाक रास्ते में कई जगह सड़क पर गिरते झरनों से तेज पानी बह रहा था। सड़के टूटी हुई थी,बेहद संकरी थी। दूसरी ओर हजारों फीट गहरी खाई। एक छोटी सी गलती और सब कुछ खत्म।
बहरहाल,इस खतरनाक रास्ते पर चलते हुए करीब 11.20 पर खरकिया पंहुचे। यहां से धाकुडी टीआरएच तीन किमी पैदल खडी चढाई है। मौसम एकदम साफ था। चल पडे। पैदल चलने का पहला दिन। सांस फूलने लगी। लेकिन चलते रहे। पत्थरो से बनाया हुआ रास्ता। ट्रेकिंग के लिहाज से पूरी तरह सुरक्षित रास्ता।
सुबह लोहारखेत से झांग और चकती मंगवाई थी। झांग दो लीटर की बोटल में थी। ये वजन ले कर चलना कठिन था। इसलिए वजन कम करना था। झांग को चखा। बेहद खïट्टा लेकिन मजेदार पेय। दो लीटर की बोटल यहां आते आते खत्म हो गई।
यहां पंहुचते ही आशुतोष तो पलंग पर लेट गया,और सौ गया। बाकी लोग फोटो खीचते रहे। मौसम माहौल का मजा लेते रहे। अब भोजन का आनन्द लेना है। सोने की इच्छा है। बाहर खुले मैदान में टेबल सज चुका है। भोजन का इंतजार है।
रात 9.17 धाकुडी
हमारा रात का भोजन हो चुका है। अभी कुछ देर पहले तेज बारिश हुई है। अभी बारिश रुकी हुई है। ठण्ड जबर्दस्त हो गई है। हमें बागेश्वर में बताया गया था कि उपर ठण्ड नहीं है। बैग का वजन कम करने के चक्कर में मैने जर्किन तो साथ मे रखी लेकिन इनर छोड दिया था। अब महसूस हो रहा है कि गलती की,क्योकि सुबह इनर की भारी जरुरत पडने वाली है।
-बात दोपहर की। हम भोजन का इंतजार कर रहे थे। उपर पीडब्ल्यूडी का रेस्ट हाउस है। वहां कुछ लडके,हुक्का जलाने की कोशिश कर रहे थे। पंकज ने देखा,सबको बताया। मैं और पंकज उपर गए। हुक्का सुलगा रहे लडकों से पूछा,उन्होने हमे उपर बुला लिया। मैैं और पंकज उपर पंहुचे। उनके साथ हुक्का गुडगुडाया। ये सारे लोग बागेश्वर के ही है। इनमें से एक पीडब्ल्यूडी का सब इंजीनियर है। इसीलिए एक बकरा भी लेकर आए है। थोडी ही देर में हमारे सारे साथी भी उपर आ गए। आपस में परिचय हुआ। हुक्का गुडगुडाया। उन लोगों ने हमे शाम के लिए आमंत्रित किया। हम लोग लौट कर नीचे आए। नीचे खुले मैदान अब ठण्ड लगने लगी थी। मैने दशरथ जी को कहा कि नींद आ रही है,तो जाकर सौ जाओ। दशरथ जी सौ गए। आशुतोष भी सौ गया। बचे हम चार लोग। हम टीआरएच के आसपास घूमने निकल पडे। अद्भुत प्राकृतिक सौन्दर्य। चारो ओर पहाड,उंचे उंचे पेड। इन सबके बीच में हरी घांस का मैदान। इसी मैदान में टीआरएच पीडब्ल्यूडी के रेस्ट हाउस बने हुए है। हम आसपास घूमे। फोटो लिए। विडीयो बनाए। घूम घाम कर लौटे। अब ठण्ड बढ गई थी,इसलिए कुर्सिया रेस्ट हाउस के पोर्च में ले आए। यहां बैठे। इतना शांत माहौल है कि बस बैठे रहो और आसपास के प्राकृतिक सौन्दर्य को निहारते रहो।
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