कठिन चढाई के बाद चीलठा माई के दर्शन
31 अगस्त 2021 मंगलवार (सुबह 9.50)
TRH धाकुडी
अभी अभी हम चीलठा माई मन्दिर का दर्शन करके लौटे हैैं और नाश्ते का इंतजार कर रहे हैैं।
कल बनाई योजना के मुताबिक मैैं तो सुबह चार बजे ही उठ गया था। कमरे में ठण्ड कम ही थी। उठकर अपने नित्यकर्म से निवृत्त हुआ। करीब पौने पांच बजे दशरथ जी को आवाज देकर उठाया। आशुतोष भी उठ गया। आज अनिल ने चीलठा माई जाने से साफ इंकार कर दिया।
बाकी के हम पांचों लोग,पूर्व निर्धारित योजना के मुताबिक ठीक 5.56 पर टीआरएच से निकल पडे। हमें तीन किमी उपर जाना था। छोटा ट्रेक था,इसलिए बैग में केवल बरसाती और पानी की बाटल रखी थी। केवल एक ही बैग लिया था। सभी ने अपनी बरसातियां इसी में रख दी थी। सुबह का उजियारा हो चुका था,इसलिए टार्च की जरुरत नहीं थी। मेरा अंदाजा था कि हम ज्यादा से ज्यादा दो घण्टे में उपर मन्दिर तक पंहुच जाएंगे।
रेस्ट हाउस के पीछे वाले पहाड को पार करके एक और पहाड चढना था। उसके बाद कुछ पीछे चीलठा माई का मन्दिर है। सुबह ठीक छ: बजे हमारे गाइड धर्मान के साथ हम चीलठा माई के लिए चलना शुरु हुए। पत्थरों का रास्ता बना हुआ,लेकिन कई जगह टूटा हुआ। पत्थरों पर काई जम गई हैैं। रात को बारिश भी हो गई,इसलिए पत्थरों पर फिसलन हो गई थी। टीआरएच से निकलते ही पहला पहाड चढना था। घना जंगल.लम्बे लम्बे पेड। गाइड पत्थरों के बने हुए रास्तों को छोडकर कच्चे रास्ते से चल रहा था।हम भी उसके पीछे पीछे और खडी चढाई वाले रास्ते से चल रहे थे। बार बार दम फूलने लगता था। रुक कर सांस को व्यवस्थित करके फिर चढाई शुरु। आरएच के पीछे वाला पहाड हम करीब एक घण्टे में चढ गए। इसी को धाकुडी टाप कहते है। हम करीब नौ सौ मीटर की उंचाई चढ चुके थे। लोहार खेत से ट्रेकिंग कर धाकुडी आने का रास्ता भी यहीं मिलता है। यदि हम लोहारखेत से ट्रेकिंग करके आते तो इसी टाप से उतर कर धाकुडी पंहुचते। इस टाप को पार करने के बाद बुग्याल (घांस का मैदान) वाला पहाड था। इस पहाड पर चढने के बाद इसके पीछे उतरना था और उससे अगले पहाड पर चीलठा माई का मन्दिर था। मैैं ठीक 7.45 पर मन्दिर पंहुच गया। मैैं सबसे पहले पंहुचा था। दस मिनट बाद दशरथ जी आ गए। उनके दस मिनट बाद पंकज,प्रकाश और आशुतोष भी आ गए। सभी ने चीलठा माई के दर्शन किए।
चिलठा माई यहां के स्थानीय निवासियों की देवी है। यहां के निवासियों के पूर्वज अपने मवेशी चराने यहां आते थे,तब देवी ने उन्हे बाल्य रुप में दर्शन दिए थे। उसके बाद यहां मन्दिर बनाया गया। वर्ष 2001 में इसका पुनर्निर्माण किया गया।
हम हन्दिर पर 15 मिनट तक रुके। आमतौर पर पहाड से उतरना आसान होता है,लेकिन यहां उतरना ज्यादा कठिन था,क्योंकि फिसलन थी। सभी को बेहद सतर्कता से उतरने को कहा था,लेकिन फिर भी पंकज फिसल कर गिरा और उसकी जांघ में चोट लग गई। चोट मामूली थी,इसलिए यात्रा निर्विघ्न हो गई। ठीक सवा तीन घण्टे में हम सभी नीचे आ गए।
यहां आलू पराठे का नाश्ता करने के बाद अब निकलने की तैयारी है। अब सभी ने खाती जाने की बजाय सीधे बागेश्वर जाने का निर्णय लिया है।
31 अगस्त मंगलवार रात 9.35
टीआरएच डीनापानी
हमने सुबह धाकुडी टीआरएच में आलू पराठे का नाश्ता किया था। नाश्ते के दौरान ही ड्रायवर धर्मान को बुलाकर कहा कि अब हम खाती नहीं सीधे बागेश्वर जाना चाहते है। उसने कहा कि अगर बागेश्वर जाना चाहते है,तो जल्दी चलिए। हम लोगों ने फौरन सामान समेटा। बैैंग टांगे और दोपहर करीब 11.25 पर धाकुडी टीआरएच से निकल पडे। मेरा अंदाजा था कि हम आधे घण्टे में खरकिया पंहुच जाएंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हम साढे बारह बजे खरकिया पंहुचे। आखरी में मैैं अनिल और आशुतोष आए। हमें लगा था कि हम रास्ता भटक गए है,लेकिन ऐसा नहीं हुआ। रास्ता वही था,जिस पर हम चल रहे थे। हम धीरे धीरे आए थे। खरकिया में हमने काफी पी। ठीक 1 बजे हम जीप में सवार होकर चल पडे,बागेश्वर के लिए। बेहद खराब खतरनाक रास्ता। खरकिया से बागेश्वर जाने के लिए दो रास्ते है। एक छोटा रास्ता है,जो मात्र दो ढाई घण्टे में बागेश्वर पंहुचा देता है। दूसरा रास्ता वही था,लोहारखेत होकर। यहां से लोहारखेत जाने में ही,जीप से डेढ घण्टा लगता है। कुल मिलाकर हमारा सफर कुछ चार साढे चार घण्टे का था। टूटी फूटी खतरनाक सड़क। जिस वक्त आए थे,तब अंधेरा हो चुका था,लेकिन हम अभी दिन की रोशनी में रास्ते को अच्छे से देखते हुए लौट रहे थे। पहले लोहार खेत आया। वहां से सौंग। फिर भुराडी था,जो इस रास्ते का आखरी बडा गांव है। हम करीब पौने पांच बजे बागेश्वर टीआरएच पंहुचे।
बागेश्वर में इस बात पर चर्चा हुई कि रात यहीं रुके या आगे चले। इसमें हमारी मदद की कपकोटी जी ने। केएमवीएन के ट्रेकिंग मैनेजर सुरेश कपकोटी से फोन पर लगातार बात होती रही थी। आखिर में कपकोटीजी ने ही गाइड किया कि हम दो घण्टे में डीनापानी टीआरएच पंहुच सकते है। यही तय हुआ कि डीनापानी चला जाए। बैग जैसे लाए थे,वैसे ही गाडी में पैक किए और गाडी में सवार हो गए।
इससे पहले हमारे ड्राइवर धर्मान का हिसाब किया। उसने आठ हजार तो गाडी का किराया मांगा। वह हमारी बिना अनुमति के हमारा गाइड बन गया था,इसलिए ज्यादा पैसे मांग रहा था। गाडी का तीन दिन का किराया 8 हजार तो दे दिया लेकिन गाइड चार्ज के नाम पर एक हजार और दिए,जबकि हमे गाइड की जरुरत ही नहीं थी। नौ हजार लेने के बाद भी वह खुश नहीं था। लेकिन इससे ज्यादा देने को हम राजी नहीं थे।
बहरहाल हम शाम करीब सवा पांच पर बागेश्वर से चले। कपकोटीजी को बता दिया कि हम डीनापानी टीआरएच में रुकेंगे। हम शाम को ठीक सवा सात बजे डीनापानी टीआरएच पंहुच गए। यहां आते ही कमरो में सामान टिकाया और फिर भोजन की तैयारी। अभी मेरे साथी भोजन कर रहे है और मैैं डायरी लिख रहा हूं। उत्तराखण्ड की ट्रेकिंग का कार्यक्रम लगभग पूरा हो चुका है। अब असल में लौटने का समय है। हमारी इच्छा अयोध्या होते हुए जाने की है। कल देखते है कि क्या होता है?
1 सितम्बर 2021 बुधवार(सुबह 8.38)
डीनापानी TRH
हम अलमोडा से करीब 15 किमी पहले डीनापानी टीआरएच में ठहरे हुए है। नाश्ते का इंतजार हो रहा है। लगभग सभी लोग तैयार हो चुके है।
कल रात यहां पंहुचने के बाद मोबाइल और कैमरो की बैटरियां चार्ज कर ली। पिछले तीन दिनों से देश दुनिया की खबरों से कटे हुए थे। यहीं आकर टीवी की खबरें देखी। पता चला कि तालिबान की घमकी के चलते अमेरिका अपगानिस्तान से जा चुका है। भारत के एक राजदूत की तालिबान से अधिकारिक चर्चा हो गई है। घर पर वैदेही से और आई से भी बात हो गई है। वैदेही के गले में तकलीफ हो रही है।
यहां से हम मुक्तेश्वर जाने का इरादा रखते है। केएमवीएन के मैनेजर रमेश कपकोटी ने सलाह दी थी कि हमें मुक्तेश्वर जाना चाहिए। इससे पहले नैनीताल या रानीखेत जाने का इरादा था,लेकिन मुक्तेश्वर जाने का निर्णय हो गया। कल हम उत्तराखण्ड छोड देंगे।
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