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26 मई 2022 गुरुवार (सुबह 7.00)
यूथ होस्टल मलवली
फैमिली कैम्प का आज पहला दिन है। आज से तीन दिनों तक हम इस इलाके का भ्रमण करेंगे। सुबह 6.00 बजे उठकर फ्रैश होकर इस वक्त हम चाय पी चुके है। आगले आधे घण्टे में स्नानादि से निवृत्त होकर नाश्ता करेंगे।
जिस परिसर में हम रुके है,यह सम्पर्क बालग्र्राम कहलाता है। सम्पर्क यानी सोशल एक्शन फार मेनपावर
क्रिएशन यह एनजीओ 1990 में बना है,जो अनाथ गरीब वआदिवासी बच्चों के लिए काम करता है। अब देश में कई स्थानों पर इनकी शाखाएं है। कल मैने लिखा था कि जहां यूथ होस्टल चल रहा है,वहां पहले अस्पताल था,लेकिन बाद में प्रदीप वानखेडे ने बताया कि यह भवन असल में सम्पर्क संस्था के विदेशी मेहमानों के ठहरने के लिए बनाया गया था। विदेशी दानदाता आजकल ज्यादा बचे नहीं है,इसलिए संस्था ने यूथ होस्टल से टाईअप करके इसे यूथ होस्टल्स में परिवर्तित कर दिया है।प्रदीप वानखेडे सम्पर्क के कर्मचारी है और साथ में यहां एक स्थानीय न्यूज चैनल मावळ वार्ता के लिए एंकरिंग भी करते है। मावळ वार्ता विडीयो मैग्जीन है,जो सप्ताह में एक या दो बार स्थानीय स्तर के कार्यक्रमों पर बनाई जाती है।
26 मई 2022 (दोपहर 3.30)
यूथ होस्टल मलवळी
इस वक्त हम दोपहर का भोजन करके अपने कमरों में आए हैैं और कुछ ही देर में हमे फिर निकलना है।
सुबह करीब 8.45 पर हम यहां से चले थे। हमारी मंजिल थी लौहगढ। लौहगढ शिवाजी का किला है। आजकल तो किले की सीढियों तक बस जाने लगी है। हमारी बस चली तो यहां से लोनावाला होकर लौहगढ के रास्ते पर थी। कुछ ही देर बाद लौहगढ की चटढाई शुरु हो गई। बस लगातार फस्र्ट सेकेण्ड गेयर में घुर्र घुर्र करती हुई चल रही थी। बेहद खडी चढाई और टेढे मेढे रास्तों पर चलती बस कुछ देर बाद लौहगढ की तलहटी में पंहुच गई। यहां पच्चीस रु. प्रति व्यक्ति टिकट लगता है। यह एएसआई का संरक्षित स्मारक है।
शुरुआती सामान्य चढाई के बाद खडी चढाई शुरु हुई। किले के कुल पांच गेट है। इनमें नारायण गेट,गणेश गेट इत्यादि है।
26 मई 2022 गुरुवार शाम 18.54
यूथ होस्टल मलवली
इस वक्त हम कैम्प के पहले दिन का भ्रमण पूरा करके लौट चुके है। बस अभी आए है और मैैं डायरी लिखने लगा हूं।
दोपहर को डायरी लिखते लिखते पलकें भारी होने लगी थी तो लेट गया था। 10-15 मिनट के बाद ही बस में सवार होने की आवाज लग गई। तब उठ कर बस में बैठ गया। फिलहाल किस्सा उसी लौहगढ से जहां अधूरा छोडा था।
लौहगढ शिवाजी के अत्यधिक दुर्गम किलों में से एक है। बेहद खडी चढाई। काफी चढाई चढने के बाद किले का पहला गेट आता है। गणेश गेट। लगातार खडी चढाईयों से हांफते हुए एक एक करके पांचों गेट पार होते है,तब किले में वास्तविक प्रवेश होता है।
अब इस किले में एक छोटा सा शिव मन्दिर,एक दरगाह के अलावा प्राचीन भग्नावशेष ही शेष बचे है।लेकिन इसके बावजूद जो कुछ मौजूद है,उसे देखकर किला बनाने वालों की दूरदर्शिता योग्यता और इंजीनियरिंग के कमाल पर वाह वाह निकल पडती है।
किले के भीतर पानी के जबर्दस्त इंतजाम किए गए थे। किले का मुख्य जल स्त्रौत एक सौलह कोणीय विशाल कुण्ड है। किला बनाने वालों ने सबसे पहले कुण्ड बनाया। कुण्ड की खुदाई में जो पत्थर निकला,उसका उपयोग किले के निर्माण में किया गया। इस प्रमुख कुण्ड के अलावा किले में कई सारे कुण्ड और है। सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि करीब साढे तीन सौ साल पहले रुफ वाटर हार्वेस्टिंग की शानदार व्यवस्था बनाई गई थी। किले की पूरी चïट्टान के अलग अलग स्थानों से रिसने वाले बरसाती पानी को सहेजने के लिए दो कुण्ड बनाए गए है,जो किले के तीसरे द्वार नारायण द्वार को पार करते ही नजर आते है।
शिवाजी के किलों की खासियत ये होती थी कि ये अत्यन्त दुर्गम होते थे। सेना का सीधा हमला करके किले पर कब्जा करना लगभग असंभव होता था। इसलिए मुगल किले की घेराबन्दी करने की रणनीति पर काम करते थे। वे लाख सवा लाख की फौज लेकर किले की घेराबन्दी कर देते थे। बाहर से किले में रसद जाना बन्द हो जाता था। मुगलों की रणनीति होती थी कि जब किले में रसद पानी खत्म हो जाएगा,तब किले वाले खुद ही आत्मसमर्पन कर देंगे।
दूसरी ओर शिवाजी भी इस रणनीति को अच्छी तरह से जानते समझते थे। इसलिए लगभग सभी किलों पर वहीं के जल स्त्रोत बनाए जाते थे। किलों में दो ढाई साल के लिए पर्याप्त रसद अनाज धान आदि का भण्डारण करके रखा जाता था,ताकि मुगलों की घेराबन्दी से निपटा जा सके।
प्रत्येक किले में एक माची होती थी। किले की पहाडीका बाहर निकलता एक संकरा हिस्सा होता है,जो कि किले का आखरी छोर भी होता है। इसे माची कहा जाता है।इस किले की माची का नाम विंचू कडा (बिच्छू काटना) है। मुख्य किले के परकोटे से माची काफी नीचे है। माची के आखरी छोर पर अभी भी भगवा ध्वज फहराया जाता है। माची की लम्बाई एक किमी से कुछ ज्यादा होगी। मैैं माची देखने के लिए नीचे उतरने लगा तो मेरे बाएं घुटने में ऐसा झटका लगा कि अब सीढी उतरना मेरे लिए बेहद कष्टदायी हो गया था। किले की सीढियां चढते वक्त मेरी कमर के दाहिने हिस्से में झटका लग गया था। इसलिए कमर भी स्लिप डिस्क की तरह दर्द करने लगी थी।
खैर हम किले की इतिहास पर लौटते है।
लौहगढ बेहद मजबूत दुर्ग है। इसीलिए इसका नाम लौहगढ पडा। ये किला सातवाहन कालीन होकर कम से कम दो हजार वर्ष पुराना बताया जाता है। किले के पांच प्रमुख द्वार है। गणेश दरवाजा,महादरवाजा,नारायण दरवाजा,त्र्यम्बकेश्वर द्वार और हनुमान द्वार। इतिहास के मुताबिक ये किला सातवाहन राजाओं ने बनवाया,फिर बहमनी राजाओं के कब्जे में आया। इसके बाद निजाम शाही के मलिक अम्बर ने इस पर कब्जा किया। 1637 में ये आदिलशाह के कब्जे में आया और 1648 में शिवाजी ने इसे स्वराज्य में शामिल किया। मिर्जा राजा जयसिंह के साथ हुई संधि में शिवाजी को यह किला मुगलों को देना पडा। फिर सरदार आंग्र्रे ने इसे फिर से स्वराज्य में शामिल किया। 1761 में निजाम ने इस किले पर हमला करके जबर्दस्त लूट की थी। 1818 में अंग्र्रेजों ने बिना एक भी गोली चलाए इस पर कब्जा किया। 1789 में नाना फडनवीस ने किले के गणेश दरवाजे,16 कोणीय तालाब इत्यादि की मरम्मत करवाई। किले पर त्र्यम्बकेश्वर मन्दिर,कुछ तोपें व लक्ष्मी कोठी आदि है। कहते है कि सूरत की लूट से प्राप्त धनराशि को शिवाजी ने इसी लक्ष्मी कोठी में रखा था। किले पर मौजूद गुफा को लोमेश ऋषि की तपस्या स्थली भी माना जाता है।
किले में चढते वक्त कमर में लगे झटके और माची उतरते वक्त घुटने में लगे झटके ने मेरी हालत बिगाड दी थी। किले से उतरना मेरे लिए बेहद कष्टदायी हो रहा था। दर्द से कराहते हुए मैैं किले से उतरा।
हमारे सारे साझी किले से उथरे तब तक करीब पौने दो बज चुके थे। निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक अभी हमे भाजे गुफा और देखना थी। भोजन में देरी हो रही थी,लेकिन सभी ने भाजे गुफा देखने की इच्छा जताई। भाजे गुफा लौहगढ से मलवली के रास्ते में ही है। वहां पंहुचे। भाजे गुफा पहाडी पर काफी उंचाई पर थी। मेरा घुटना मुझे उपर जाने की इजाजत नहीं दे रहा था। मैने उपर नहीं जाने का निर्णय लिया तो वैदेही भी रुक गई। कमलेश वगैरह सब उपर चले गए। ये बौद्धकालीन गुफाएं हैैं। इसमे बडी विशाल गुफाएं बौद्ध विहार इत्यादि बने है। जिन्हे मैने कमलेश के मोबाइल में देखा। करीब 45 मिनट में सारे लोग गुफा देखकर नीचे आ गए। अगले मात्र पन्द्रह मिनट में हम यूथ होस्टल मलवली पंहुच गए। यहां भोजन हमारा इंतजार कर रहा था। सभी को जोरों की भूख लगी थी। आते ही खाने पर टूट पडे। आज के निर्धारित शेड्यूल में एकवीरा देवी और कार्ला गुफाओं पर जाना बाकी था।
भोजन के बाद महज दस पन्द्रह मिनट आराम किया और एकविरा देवी के दर्शनों के लिे निकल पडे। एकविरा माई भी बेहद उंचे पहाड पर है। नीचे कार्ला गांव है। कार्ला गांव से करीब तीन किमी उपर तक सड़क बनी हुई है। इसके बाद पैदल जाना होता है। कार्ला गुफाएं भी मन्दिर के पास ही है।
हम करीब 4.20 पर कार्ला गांव पंहुच गए। टीम लीडर सुदीप अठावले ने बताया कि कार्ला गुफाए एएसआई के अधीन है और इसलिए उसके टिकट चार बजे तक ही मिलते है।
इधर कार्ला गांव में हमारी बस को गांव की पार्किंग में रोक लिया गया। उनका कहना था कि उपर केवल एलएमवी को ही परमिशन है। अब कोई चारा नहीं था। सभी लोग पैदल चल पडे। सड़क पर चलना था,इसलिए मुझे भी कोई दिक्कत नहीं हुई। सड़क तो मैने आसानी से पार कर ली। मै काफी आगे था,मेरे साथ कमलेश की चोटी बालिका अदिता चल रही थी। सडक पार्किंग में जाकर खत्म होती है और पार्किंग की दूसरी तरफ से सीढियां शुरु हो जाती है। मैैं मुश्किल से 10-15 सीढियां चढ पाया। मुझे समझ में आ गया कि मेरा घुटना मुझे चढने नहीं देगा।
मैैं वहीं रुक गया। अदिता हमारे ग्रुप की सहायक लीडर रुपाली के साथ आगे बढ गई। एकविरा मां के दर्शन के लिए मेरे अलावा सभी लोग चले गए। मैैं वहीं इंतजार करता रहा। करीब साढे छ: बजे सब लोग दर्शन करके लौटे। गुफाएं कोई देख नहीं पाया। फिर से सड़क उतरकर हम बस में पंहुच गए और ठीक 6.50 पर यूथ होस्टल पंहुच गए।
मेरा घुटना इस वक्त भी दर्द कर रहा है। कल फिर एक गुफा देखने जाना है,जोकि काफी उंचाई पर है। पता नहीं मैैं जा पाउंगा या नहीं...?
27 मई 2022 शुक्रवार (सुबह 8.00)
यूथ होस्टल मलवली
इस वक्त मैैं स्नान करके नाश्ता कर चुका हूं। आज नाश्ते में साबूदाने की खिचडी बनी थी। दवा के नाश्ता कर लिया। अव वैदेही तैयार हो रही है। मैैं डायरी के साथ हूं।
बीती रात घुटना,कमर दर्द सबके बीच डायरी लिखी। फिर सोते वक्त एक दर्द निवारक तैल की मालिश की। ये तैल वैदेही खुद के लिए लाई थी,लेकिन ये मेरे काम आ रहा था।
सुबह छ: बजे उठे थे। इस वक्त तक सारे काम निपट चुके है। घुटने में अब भी दर्द है और इतना है कि उंचाई पर चढना आज भी कठिन ही लग रहा है। अभी मेडीकल स्टोर से गोली लुंगा। फिर देखते है। आज के शेड्यूल में फिर एक केव है,जो उंचाई पर है। फिर एक डैम है,जहां शायद तैराकी की जा सकती है।
अब निकलने की तैयारी....।
27 मई 2022 शुक्रवार (दोपहर 12.30)
यूथ होस्टल
हम अभी अभी बेडसा केव्स से लौटे है। सुबह 8.30 पर यहां से निकले थे। निकलते वक्त मैने टीमलीडर सुदीप से कहा था कि मुझे दवा खरीदना है। इसलिए किसी मेडीकल शाप पर गाडी रुकवा देना। मलवली गांव से निकल कर हम मुंबई पूना हाईवे पर पंहुचे। हाईवे पर पहले पूना की तरफ 4-5 किमी चले जहां डीजल डलवाया। फिर यू टर्न लेकर मुबंई की तरफ चल पडे। करीब आधे किमी के बाद हाईवे से बाईं ओर रास्ता गया जो आगे जाकर बाई ओर मुड गया। इसी मोड पर हमारी गाडी रुकी तो सुदीप ने कहा कि यहां मेडीकल स्टोर है। मैैं नीचे उतरा,मेरे साथ नीलेश पिंपले और सुदीप भी दवा दुकान ढूंढने आगे बढे। काफी आगे जाने पर दवा दुकान नजर आई,लेकिन वह बन्द थी। उससे भी आगे आए। एक समर्थ अस्पताल का बोर्ड नजर आया। सोचा वहां तो दवा दुकान जरुर होगी। लेकिन दवा दुकान वहां भी नहीं थी। तभी पीछे से हमारी बस आ गई। ड्राइवर भारत ने बताया कि जहां से हम मुडे थे,उस मोड की दूसरी तरफ दवा दुकानें है। जहां हम खडे थे,वहां एक गैरेज था। दुकानदार ने हमसे कहा कि हम उसकी टूव्हीलर लेकर जाएं और दवा लेकर आ जाएं। सुदीप ने गाडी चलाई । मै पीछे बैठा। जिस रास्ते से चलकर आए थे,उसी पर वापस लौटे। मोड के दूसरी तरफ दवा की दुकान थी। जहां से मैने इटोरिकोक्सिब टेबलेट और मूव खरीदा। लौट कर आए। मोटर सायकल वाले को धन्यवाद दिया और बस में सवार हो गए।करीब पन्द्रह बीस मिनट बाद हम बेडसा केव्स के सामने थे।
मैैं गोली खा चुका था। घुटने पर मूव का स्प्रे भी कर चुका था। लेकिन फिर भी सीढियां चढ कर उपर जाना मेरे लिए ठीक नहीं था। सुदीप ने भी मुझे मना किया। दिल्ली से आए शर्मा जी ने उपर चलने के लिए जोर डाला लेकिन मैने इंकार कर दिया।
अब सारे लोग उपर चले गए। रास्ते की शुरुआत में गुफा की जानकारी देने वाला बोर्ड था,जोकि मराठी में था। इस जानकारी के मुताबिक ये गुफाएं कम से कम इक्कीस सौ साल पुरानी है। इन गुफाओँ में चैत्य और विहार बने हुए है।
मैैं अकेला नीचे था। जहां से गुफा की सीढियां शुरु हो रही थी,वहीं बगल में आम का पेड था,जिस पर ढेरों आम लदे हुए थे। बडी संख्या में टूटे हुए आम नीचे पडे थे। लेकिन जहां ये आम पडे थे,वो जगह करीब दस फीट नीचे थी। मैैं घूम कर नीचे पंहुचा और बैग में कई सारी कैरियां भर ली।
तभी ड्राइवर भारत आया। उसने बताया कि इस आम की कैरिया खïट्टी है। जबकि सामने एक दूसरे पेड के आम मीठे है। उसने दूसरे पेड का एक आम भी दिया,जो वाकई मीठा और स्वादिष्ट था। आम के ये दोनो पेड एक खेत के दो किनारों पर थे। खेत में एक बूढा किसान गोबर की खाद फैला रहा था। कुछ देर बाद सफेद गांधी टोपी पहना किसान सुस्ताने के लिए दूसरे वाले आम के पेड के नीचे आ बैठा। तब तक मैैं और ड्राइवर भारत भी उसी पेड की छांव में जाकर बैठ चुके थे। ड्राईवर भारत अपनी ड्राइवरी के किस्से सुनाता रहा। किसी समय वह हंस ट्रेवल्स की बस चलाता था और इन्दौर से पूना,औरंगाबाद के बीच में चलता था। काफी देर तक बातें चलती रही। तभी हमारे दल के लोग नीचे आते दिखे।
कुछ ही देर में सभी लोग नीचे आ गए। इस इलाके में आम का एक तीसरा पेड भी था। काफी सारे आम तो मैैं अपने बैग में भर लाया था। बहुत सारे आम सुदीप और पीहू बटोर लाए। कुछ आम दीपाली और डाक्टर सा. बटोर लाए। कुछ आम वहीं खा लिए गए,बाकी साथ में रख लिए गए। दोपहर बारह बजे हम यूथ होस्टल लौट आए।
कुछ ही देर बाद भोजन की आवाज लग गई। भोजन में बैैंगन की सब्जी,दाल,उसळ,और चावल थे। स्वादिष्ट भोजन हुआ। दो बजे हमे पावना डैम के लिए निकलना था।
27 मई 2022 शुक्रवार (रात 10.30)
यूथ होस्टल्स मलवली
दोपहर ठीक दो बजे हम लोग अपनी टेम्पो ट्रेवलर में सवार होकर पावना डैम लेक के लिए निकल पडे। टीम लीडर सुदीप ने वहां पंहुचने पर हमे बताया कि हमे यहां चार बजे तक रुकना है। पावना झील बहुत विशाल झील है। जिसमें तेज हवा के कारण लहरें उठ रही थी। सौ रु. प्रति व्यक्ति के हिसाब से यहां बोटिंग होना थी। पहले राउण्ड में कमलेश रचना,वैदेही और दोनो बालिकाएँ बोटिंग के लिए चले गए। दूसरे राउण्ड में मै गया।
इसके बाद इसी झील में स्विमिंग का भी कार्यक्रम था। जब मैैं बोटिंग से लौटकर आया,तब तक कमलेश,रचना,अवनी,अदिता सब झील में उतर चुके थे। मैैं किनारे पर आया,तो मैने भी कपडे खोले और पानी में उतर गया। झील के तल में कीचड था। वहां चलने पर मिïट्टी पानी में उपर आ रही थी। 20-25 मिनट जल क्रीडा हुई। वैदेही भी पानी में आ गई थी। तैराकी करके निकले। कपडे बदले। वहीं के रेस्टोरेन्ट में चाय पी।
पावना झील पावना नदी पर बने डैम के बैक वाटर से बनी है। ये डैम 1973 में बना था। आजकल इसके किनारे पर टूरिज्म बहुत डेवलप हो रहा है। जिस किनारे पर हम गए थे,वहां भी होटल था,जो नाईट कैम्पिंग की सुविधा देता है। डेढ हजार प्रति व्यक्ति की दर से यहां आप नाईट कैम्पिंग कर सकते है।
पावना झील से बढे तो प्रति पंढरपुर मंदिर पंहुचे। यहां 60-70 सीढिया चढनी थी। यहां मैैं आसानी से चढ गया।
प्रति पंढरपुर मंदिर में पंढरपुर के विट्ठल रुखमाई मन्दिर की प्रतिकृति है।नीचे संत ज्ञानेश्वर का भी मन्दिर है। बडा ही सुन्दर मन्दिर है। यहां कुछ समय गुजार कर दर्शन करके आगे बढे। रास्ते में चिक्की की एक फैक्ट्र्ी पर रुके। हमें बताया गया कि मुख्य बाजारों की दुकानों पर जो चिक्की साढे तीन सौ किलो मिलती है,वो हमें यहां पर दो सौ रु. किलो में मिलेगी। सभी ने चिक्की खरीदी। वैदेही ने भी 750 रु.चिक्की खरीदी। कई फ्लेवर और कई स्वाद वाली।
हम लोग शाम करीब सात बजे यूथ होस्टल्स लौट आए। बस के लौटते समय में मलवली के बाजार में ही उतर गया था। अपनी दवा लेने के लिए,लेकिन वो दवा यहां भी नहीं मिली।
फिर मैैं पैदल ही यूथ होस्टल्स लौटा। शाम 8.15 पर भोजन लग गया। सब ने भोजन किया। इस बीच मैने रतलाम में सुभाष नायडू और किशोर से भी बात कर ली। भोजन के बाद टहलने निकले।
इस वक्त वैदेही बिना कपडे बदले सौ चुकी है। मैने भी आज का पूरा वृत्तान्त लिख लिया है। बस अब सोने की तैयारी।
शुभ रात्रि........।
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