Sunday, September 11, 2022

लोनावाला पूणे यात्रा-3 शिवलिंग के आकार का पर्वत और खंडाला घाट की गहराइया

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 28 मई 2022 शनिवार(सुबह 7.15)

यूथ होस्टल्स मलवली


आज कैम्प का आखरी दिन है। कल सुबह अल्पाहार के बाद यहां से रवानगी होगी। आज का दिन हम लोनावाला,खण्डाला की लोकल साईट सीइंग करेंगे।


अब कुछ बातें इस क्षेत्र की। मलवली जहां हम रुके हुए है,यहां से चारों तरफ सह्यïाद्री के पहाड नजर आते है। मलवली और लोनावाला इन पहाडों के बीच मैदानी इलाका है। यहां पूरे वक्त ठण्डी हवाएं चलती रहती है।

सह्याद्रि  की इसी पर्वत श्रृंखलाओं में शिवाजी के कई किले है। पिछली बार महाबलेश्वर यात्रा के दौरान हम प्रतापगढ पर गए थे। ये वही किला है जहां से उतर कर शिवाजी ने अफजल खां का वध किया था। इस बार हम लौहगढ पर गए।लौहगढ के सामने ही वीसापुर किला भी है। ये काफी उंचा है। लौहगढ किले उपर से हमें नीचे पावना लेक पूरे आकार में नजर आ रही थी। कल पावना लेक से उपर लौहगढ नजर आ रहा था। शिवाजी के अधिकांश किलों की खासियत ये है कि नीचे से किले तब तक नजर नहीं आते,जब तक कि आप जानते ना हो कि यहां किला है। ये किले पहाड के साथ ऐसे घुल मिल जाते है कि अलग से पता ही नहीं चलता कि यहां किला है।


ये वर्णन लिख ही रहा था कि नीचे से वैदेही ने आवाज दी। कल इसी परिसर में बना एक बगीचा देखने गए थे। आज पता चला कि वहां 10-12 नस्ल के कुत्ते भी पाले गए है। आज फिर देखने गए। कल गए थे,तो लगा कि था कि यहां कोई रहता है। आज उन सज्जन से मुलाकात हुई। कुत्तों  के बारे में बात हुई। तभी मेरी नजर उनके हाथ पर पडी जिस पर बनर्जी गुदा हुआ था। ध्यान आया कि ये वही बनर्जी है,जिन्होने 1991 में सम्पर्क की स्थापना की थी। अमित कुमार बनर्जी,उनकी धर्मपत्नी भी साथ थी। उनसे बातें हुई। 1991 मे स्थापित सम्पर्क आज विशालकाय संस्था बन चुकी है। जिस परिसर में हम है,उसी में एक अस्पताल,एक आईटीआई,एक दो सहकारी संस्थाओं के कार्यालय जैसी कई ईमारतें है। बनर्जी सा.का निवास भी यहीं है। कुत्ते पालने का शौक भी उन्ही को है। उनके बगीचे में आम का बोन्साई पेड भी था,जो करीब ढाई फीट उंचा था और 

उस पर आम भी लगे हुए थे।


28 मई 2022 शनिवार (दोपहर 2.35)

यूथ होस्टल्स मलवली


इस वक्त हम दोपहर का भोजन करके नीचे कमरे में आ चुके है। 4.00 बजे अगले सफर पर निकलना है। 


अब सुबह की बीत। सुबह 8.45 पर सभी लोग ट्रैवलर में सवार हो गए। आज हमारी मंजिल थी एमबी वैली। यहां देखने का कुछ नहीं है,लेकिन रास्ता बडा शानदार था। हाईवे पर चलकर लोनावाला पंहुचे और लोनावाला से वेस्टर्न घाट पर चले। शानदार पहाडी रास्ता,घना जंगल,नागमोडी रास्ता,ठण्डी हवा के झोंके। तो मुझे झपकियां आने लगी और झपकियां लेने लगा। शानदार रास्ते पर चलते हुए हमारी गाडी एमबी वैली पर पंहुची। गेट पर। गेट के भीतर जाना मना था। उसी समय मैने गूगल पर एमबी वैली सर्च किया। पता चला कि इसे सहारा ग्रुप  ने 1999-2000 में विकसित किया था। 43 वर्ग किमी में फैली इस टाउनशिप में 600-800 आलीशान बंगले बनाए गए है जिनकी कीमत 5 से 20 करोड के बीच है। यहां एयर स्ट्रिप भी थी और गोल्फ कोर्स भी। 2006 में सहारा श्री सुब्रत राय के डाउनफाल के साथ इसका भविष्य भी अदर में लटक गया।


यहां से लौटे। पहले शिवलिंग पाइंट पंहुचे। एक पर्वत,बिलकुल शिवलिंग जैसा था। यहां फोटो लिए विडीयो भी बनाए। आज कैमरा ठीक ठाक काम कर रहा था। फिर आगे टाइगर पाइंट पंहुचे। शिवलिंग का पिछला हिस्सा यहां से नजर आ रहा था। यहां से बढे तो आगे लोनावाला में वैक्स म्यूजियम देखना था। लोनावाला में सुनील वैक्स म्यूजियम था। मैैं और वैदेही पहलेही देख चुके थे,इसलिए हम वैक्स मयूजियम में नहीं गए। इधर उधर घूमते रहे। करीब आधे घण्टे बाद सब लोग म्यूजियम देखकर आ गए। फिर चले वापस यूथ होस्टल्स के लिए। करीब साढे सात बजे यहां पंहुचे। कुछ देर आराम के बाद भोजन लग गया। सबने भोजन कर लिया। अब कमरे में हूं।


28 मई 2022 शनिवार शाम 7.45

यूथ होस्टल्स मलवली


लोनावाला फैमिली कैम्प की आखरी विजीट समाप्त करके हम कैम्प में लौट आए है। दोपहर के भोजन के बाद,करीब साढे तीन बजे हम यहां से निकले। सबसे पहले लोनावाला के नारायणीधाम मन्दिर पंहुचे। भव्य और सुन्दर मन्दिर आकर्षक फौव्वारे बरबस ध्यान खींच लेते है।  मन्दिर में मां दुर्गा गणपति और हनुमान जी के तीन मन्दिर एक साथ बने हुए है। दर्शन किए,गौंद के लड्डू का प्रसाद लिया।


अब यहां से चले खण्डाला के विभिन्न स्थान देखने के लिए। सबसे पहले पंहुचे मां वाघ जाई मन्दिर। वाघजाई मन्दिर में दर्शन किए।मन्दिर से थोडा ही आगे जाने पर काफी नीचे खण्डाला घाट से गुजरने वाली रेलवे लाइन नजर आती है। अभी ट्रेन के गुजरने का भी समय था। ट्रेन यहां टनल से निकलती है और थोडी देर खुले में चलने के बाद फिर टनल में घुस जाती है। टनल में घुसती निकलती ट्रेन देखी।


मन्दिर से बाहर निकल कर सामने रोड की बाई ओर एक व्यू पाइन्ट है। गहरी खाई,सामने कई पहाड। इसे राजा माची पाइन्ट कहते है,क्योकि राजामाची किला यहां से नजर आता है। कुछ देर यहां रुके,कुछ फोटो आदि लिए। फिर मन्दिर की तरफ लौटे। थोडा ही आगे ढलान था। इधर भी एक व्यू पाइन्ट है। नीचे देखने पर मुंबई पूणे एक्सप्रेस वे और पुराना हाईवे दोनो एक साथ नजर आते है। मजेदार बात ये है कि एक्सप्रेस वे पर इतना ट्रेफिक हो गया है कि वही पुराना रोड लगता है.केकि ट्रैफिक की वजह से वहनों की गति धीमी नजर आती है।


हमारे ड्राइवर ने कहा कि यही स्थान सनसैट पाइन्ट भी है। सनसेट होने में अभी करीब पौन घण्टा बाकी था। इस सड़क पर भारी ट्रैफिक के कारण वाहनों का धुआं हमारे कुछ साथियों को परेशान कर रहा था। नागपुर से आए डा.रैवतकर ने कहा कि हमको यहां से चलना चाहिए। सभी चलने को राजी हो गए। तुरंत गाडी पर लौटे। गाडी में सवार हुए और शाम को साढे पर कैम्प में लौट आए।


वैदेही को चाय पीने की इच्छा है। लेकिन फिलहाल चाय उपलब्ध नहीं है। वह यहां के कुक और उसके साथियों को चाय बनाने के लिए कह रही है। अब शायद चाय बनेगी। वैसे यूथ होस्टल्स के फैमिली कैम्प में जब भी लोग शाम को लौट कर आते है,चाय बिस्कीट्स उपलब्ध कराए जाते है। इसी के साथ रात को बच्चों के लिे बोर्नविटा,दूध आदि भी उपलब्ध कराए जाते है। लेकिन यहां ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। यहां पहली बार ये कैम्प लगा है। आने वाले दिनों में शायद व्यवस्था सुधर जाए।


आज के दिन यूथ होस्टल्स के पदाधिकारी सुदीप अठावले और रुपाली दोनो ही नहीं थे। वे किसी दूसरे प्रोग्र्राम के लिए चले गए थे। आज का गाईड हमारा ड्राइवर भारत ही था। इस तरह अब यूथ होस्टल्स का कोई जिम्मेदार व्यक्ति यहां नहीं है। जो भी है,वो स्पर्क संस्था के कर्मचारी है। वैसे इससे कोई खास फर्क भी नहीं पडता। कल सुबह अल्पाहार के बाद तो यहां से निकल पडना है।


29 मई 2022 रविवार (सुबह 8.00)

यूथ होस्टल मलवली


आज हमारी रवानगी का दिन है। इस कैम्प के हमारे सारे अन्य साथी बिदा हो चुके है। सबसे पहले डाक्टर सा. डा. रैवतकर और उनका परिवार उनके दिल्ली वाले दोस्त शर्मा जी रवाना हुए। वो लोग यहां से अलीबाग जाएंगे और वहां से मुंबई। उनके बाद वाशिम वाले नीलेश पिंपले अपने परिवार के साथ रवाना हुए। वो अपनी कार से आए थे। चैन्नई वाला अरुण तो कल शाम को ही चला गया था। 


अब बचे है हम यानी  मैैं वैदेही और कमलेश का परिवार। हमारी ट्रेन 10 बजे है। तब तक कोई काम नहीं है। बैग जमाए जा चुके है। दो घण्टे हमारे पास है। मैैं सोच रहा हूं कि नुक्कड तक जाकर मिसळ पाव भी खा ही लिया जाए और फिर आकर सामान उठाकर ट्रेन पकड ली जाए।


तो हमारा पांच दिन का फैमिली कैम्प यहां समाप्त होता है। इन पांच दिनों में से तीन दिन हमने सह्यïाद्री के कई ईलाके घूमे। मैैं तो कोई गुफा देख नहीं पाया,लेकिन उनके विडीयो देख लिए। 


अब यहां से पूणे जाना है। फिर वहां से रतलाम।

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