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28 अगस्त 2022 रविवार रात 9.54
नाईट कैम्प धन्छो
इस वक्त हम धन्छो में रात गुजारने के लिए रुके है। मेरे सारे साथी सौ चुके है। अब मैैं डायरी के साथ हूं। हमें कल सुबह जल्दी यहां से आगे बढ जाना है। हम पांच में से तीन साथी कल घोडों पर सवार होकर यहां पंहुचे थे। मैैं और दशरथ जी हमने पैदल ही चला तय किया है।
अब कहानी वहां से जहां छोडी थी। गरोला आरएच से हम सुबह करीब साढे पर निकले। पहले हम भरमौर पंहुचे। हमारी मंजिल हडसर थी। हडसर से कुछ किमी पहले या कहे भरमौर से ही लोगों ने रोकना शुरु कर दिया था कि आगे जाम है। लेकिन हम भरमौर पार कर करके आगे बढ गए। भरमौर से हडसर के बीच एक पुल था जो अभी तैयार नहीं हुआ था और अस्थाई पुल को रोक रोक कर खोला जा रहा था।एसडीएम भरमौर से बात हुई तो उन्होने कहा कि शाम 4 बजे तक हम पुल को पूरी तरह चालू कर देंगे। आप भरमौर से तभी निकलना। लेकिन हम आगे बढ चुके थे। हमने दिमाग लगाया कि पीछे लौटने से अच्छा तो आगे बढते रहना है। ज्यादा से ज्यादा ये होगा कि हडसर हम शाम तक पंहुचेंगे,तो फिर अगले दिन यात्रा शुरु करेंगे। लेकिन करीब दो बजे अस्थाई पुल को थोडी देर के लिए खोला गया और हम हडसर पंहुच गए।हडसर में कोई समस्या नहीं थी। पुलिस लगी हुई थी। जहां से यात्रा शुरु होती है,वहां से करीब दो किमी आगे हमें गाडी पार्क करने के लिए पंहुचाया गया। मौसम बेहतरीन था। धूप खिली हुई थी। लेकिन गाडी पार्क करते करते बूंदाबांदी शुरु हुई और कुछ ही देर में तेज बारिश शुरु हो गई।
मेरे पास बचाव का साधन था। प्रकाश और आशुतोष के पास भी था।डा.राव ने भी अपनी बरसाती निकाल ली। दशरथ जी एक पालिथिन की मदद से आगे बढे। 2 किमी तो हमें केवल इसलिए चलना था ताकि हम ट्रैकिंग के स्टार्टिंग पाइन्ट तक पंहुच सके। डा.राव जीवन में पहली बार बडी और लम्बी कठिन यात्रा पर आए है। बारिश हो रही थी। मैने डा.सा. को सलाह दी कि आप खच्चर ले लो। उन्होने खच्चर तो नहीं लिया लेकिन एक पोर्टर ले लिया,जो दो हजार रु. लेकर तीन दिन तक हमारे साथ ही रहने वाला था। सारे साथियों ने अपने बैग उसे थमा दिए। मैैं जानता था कि मेरा बैग ही मेरी मदद करेगा। मैने अपना बैग नहीं दिया। मैैं अपना बैग लेकर ही चलता रहा। अब सारे लोग चल पडे। एक डेढ घण्टे में हमने एक डेढ किमी की दूरी पार की होगी। बारिश बंद हो गई थी। ट्रैक लगातार खडी चढाई का था। हम तो आसानी से चल रहे थेलेकिन प्रकाश का स्वास्थ्य पहले से कुछ खराब था।आशुतोष का पैर दिक्कत दे रहा था और डा.सा. की हालत खराब हो रही थी क्योकि ये उनका पहला मौका था।बहरहाल हम आगे बढते रहे।
करीब एक डेढ किमी और चले। फिर से बारिश शुरु हो गई थी। ये रास्ता पूरी तरह नदी (रावी नदी) के साथ था। नदी हमारी बाई ओर थी और जिस पहाड से ये नदी उतर रही थी उसी पहाड के उपर हमे जाना था। यात्रियों की जबर्दस्त भीड। जितने लोग उपर जा रहे थे,उससे कहीं ज्यादा नीचे उतरते नजर आ रहे थे। रास्ता कहीं कहीं इतना संकरा था कि एक वक्त में एक ही व्यक्ति निकल सकता है।
बरिश शुरु हुई तब तक सारे लोग अपनी बरसातियां बैग में रखकर पोर्टर को बैग दे चुके थे। मेरे पास मेरी बरसाती थी। आशुतोष और दशरथ जी ने भी अपनी बरसाती अपने पास रखी थी,लेकिन प्रकाश और डा.सा. की बरसाती पोर्टर के बैग में थी। बारिश से बचने के लिए हम एक दुकान पर रुके थे। मैने कहा कि मै आगे जाता हूं। जहां पोर्टर मिलेगा उसे भेजता हूं ताकि आप लोग बरसाती पहन कर आगे चल सको। मैैं आगे बढ गया। दशरथ जी भी आगे बढ गए। काफी उंचाई पर जाकर हमे पोर्टर नजर आया। उसे रोका। उसका सामन वहीं रखवा कर दोनो बरसातियां देकर उसे पीछे भेजा। पोर्टर लक्ष्मण बुजुर्ग था। बेचारा बरसातियां लेकर गया,लेकिन कुछ ही देर में बारिश रुक गई। हम जहां पोर्टर का सामान रख कर इंतजार कर रहे थे,वहां से करीब पांच सौ मीटर की खडी चढाई पर एक भण्डारा था। हमे इसकी जानकारी नहीं थी। पोर्टर के पंहुचने पर हमने उससे कहा कि तू धन्छो पंहुच जा। हम वहीं मिलेंगे। हमें जो पहला भण्डारा मिला था धन्छो वहां से करीब दो किमी दूर था और बेहद डरावना रास्ता था।
मैैं आशुतोष और दशरथ जी पहले लंगर पर पंहुच गए। करीब आधे घण्टे के इंतजार के बाद हमे डाक्टर राव घोडे पर सवार होकर आते हुए नजर आए। मैने चैन की सांस ली। डा.सा. ने बताया कि प्रकाश राव पीछे आ रहे है। हमने प्रकाश का इंतजार किया। करीब बीस मिनट बाद वह भी आ गया। दशरथ जी और मैैं चाहते थे कि दो किमी आगे बढकर धन्छो में ही रुके। लेकिन आशु और प्रकाश की हिम्मत टूट चुकी थी। हमारा पोर्टर आगे धन्छो जा चुका था। बडी मशक्कत के बाद ये तय हुआ कि यहीं रुका जाए। जो खच्चर डा.सा. को लेकर आया था उसे कहा कि वह आगे जाकर जहां हमारा पोर्टर नजर आए,उसे पीछे हमारे पास भेज देना। वह हां कहकर गया। लेकिन हमे भरोसा नहीं हो रहा था। हम तीन मैैं दशरथ जी और आशुतोष कैम्प के बाहर बैठे थे कि तभी कुछ खच्चर वाले वहां से निकले।
जब हम इस लंगर पर रुके थे,अंधेरा छाने लगा था। ठण्ड जोर मारने लगी थी। मेरे पास ठण्ड से बचाव के सारे साधन थे,लेकिन बाकी सब के बैग पोर्टर के पास थे। मजबूरी यह थी कि अगर यहां रुकते तो बिना गर्म कपडों के रुकना पडता।
तो जैसे ही खच्चर वाले ने पूछा,हमने भाव ताव किया और पांच सौ रु.प्रतिव्यक्ति के हिसाब से 5 खच्चर ले लिए जो हमे धन्छो छोडने वाले थे। फिर हम खच्चरों पर सवार होकर धन्छो आ गए। यहां आते ही सौ रु. प्रति व्यक्ति की दर से बिस्तर ले लिए। हमारा पोर्टर भी तुरंत ही मिल गया। सबने अपना सामान पकडा। हमने बचा हुआ राष्ट्रीय कार्यक्रम पूरा किया। डा.राव और दशरथ जी ने बगल के भण्डारे में भोजन किया। भण्डारे में लाउड स्पीकर पर चल रहे भजनों पर दशरथ जी और डा.सा. ने डान्स भी किया। अब सारे लोग सौ चुके है।
मैैं हेडलाईट लगाकर डायरी लिख रहा था। अब मुझे भी सौ जाना चाहिए।
शुभ रात्रि.......।
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