Monday, March 6, 2023

रतलाम अयोध्या यात्रा-2/ आधी रात तक कार्यक्रम की रुपरेखा बनाने की मशक्कत


 14 जनवरी 2022 (रात 11.55) शनिवार 
जानकी महल अयोध्या

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तारीख बदलने में अब कुछ ही मिनटों की देर है। मैैं जानकी महल के अपने कमरे में आज तक की न्यूज सुनते हुए आज का घटनाक्रम लिख रहा हूं। घोटीकर जी भी मेरे साथ न्यूज सुन रहे है। हमने अपनी रात की राष्ट्रीय व्यवस्था किसी तरह जुटा ही ली है और इसी वजह से मैैं ये डायरी लिख पा रहा हूं।


तो अब मैैं आता हूं,आज दिन भर के घटनाक्रम पर। हम सुबह साढे पांच बजे अयोध्या रेलवे स्टेशन पर उतर कर 15 मिनट में जानकी महल पंहुच गए थे। करीब आधे घण्टे में हमें अपने कमरे मिल गए थे,लेकिन मैैं प्रदीप जी के साथ व्यवस्थाएं देखने के लिए निकल गया। आज की सुबह ऐसी अनोखी रही कि मैने आज सुबह उठ कर पानी पिया ही नहीं। सिर्फ चाय पी,जो कि मैैं कभी नहीं पीता। सुबह स्टेशन से निकलते ही चाय पी। वहां से जानकी महल आते ही व्यवस्थाएं देखने पंहुचे थे,तो वहां भी चाय पी। जब दो चाय पी ली तो कमरे में आकर फिर से चाय पी।


तीन बार चाय पीने के बाद आखिरकार मुझे लगा कि अब दिनचर्या शुरु करना चाहिए। प्रेशर बना,फ्रैश हुआ। इसी तरह से पौने दस होते होते स्नान इत्यादि से निवृत्त होकर पूरी तरह तैयार हो गया। तैयार होकर कमरे से निकला,नाश्ते के लिए जाना था।


लेकिन अचानक इस बीच में घोटीकर जी ने कहा कि प्रदीप जी के साथ जाना था,उनका मिस काल भी आया था,लेकिन ढोल ढमाको के शोर में मैैं सुन नहीं पाया। तुरंत प्रदीप जी को फोन लगाया,तो दूसरी तरफ से काट दिया गया। फिर करण वशिष्ठ को फोन लगाया। उसने भी काट दिया। तब मुकेश जी चौधरी को फोन लगाया। मुकेश जी ने बताया कि वे लोग कारसेवक पुरम पंहुच गए है। मैैं और घोटीकर जी भी तुरंत एक इ रिक्शा पकड कर कारसेवक पुरम पंहुच गए। वहां थोडी मशक्कत के बाद हमें भीतर बुलाया गया। श्री रामजन्मभूमि न्यास के महासचिव चम्पतराय जी कमरे में बैठे थे,हमारे सभी साथी भी वहीं बैठे थे। हमारे भीतर जाते ही परिचय कराया गया। मैने फौरन उस कैमरे की कहानी सुनाई जो 6 दिसम्बर 92 को मेरे हाथ में था। कुछ ही देर में चम्पत जी को कोई मिलने आ गया। हम सभी बाहर के ड्राइंग रुम में आ गए। मिलना जुलना परिचय की औपचारिकता हुई। वहां से इ रिक्शा लेकर वापस लौटे। भूख जोर की लग चुकी थी। नाश्ते में गुजराती गोटे और बेसन चक्की थी। मैने जमके गोटे खाए। अभी नाश्ता चल ही रहा था कि विजय जी दुबे के आनेे की खबर मिली। मैने विजय जी को फोन लगाया। उन्होने कहा कि 15-20 मिनट में पंहुच रहे है। इतनी  ही देर में मैैं भी पंहुच गया। उनके एक कमरे की चाबी मेरे पास थी। दूसरे कमरे की चाबी भी तुरंत आ गई। उन्हे कमरों में सैटल किया। भोपाल के पूर्व सांसद आलोक जी संजर भी उनके साथ थे।


फिर विजय जी के कहने पर उन्ही के साथ सरयू घाट पर पंहुचे। दुबे जी और संजर जी ने सरयू स्नान किया। हम तो नहा चुके थे,इसलिए उनके विडीयो फोटो बनाए। 


इसी वक्त गुरुदेव नर्मदानन्द जी भी सरयूस्नान के लिए निकले थे। सबका स्नान हो गया था। मात्र 45 मिनट के अंतराल में सबको श्री राम जन्म भूमि मन्दिर निर्माण स्थल के लिए रवाना होना था।


सरयू स्नान के से लौटकर भोजन का कार्यक्रम था और भोजन प्रसादी के फौरन बाद में मन्दिर निर्माण स्थल के लिए रवाना होना था। जन्मभूमि दर्शन की व्यवस्था घोटीकर जी को दी गई थी। उन्हे चम्पत राय जी के निजी सहायक धर्मवीर जी से समन्वय कर यह व्यवस्था करवाना थी।


धर्मवीर जी से सुबह चर्चा हुई थी,तो उन्होने कहा कि दोपहर में जब आप दर्शन के लिए निकलने लगो,तब फोन पर बात कर लेना। इधर गुरुदेव भक्त मण्डल का जुलूस लेकर ढोल ढमाको के साथ दर्शनों के लिए निकलने को तैयार थे और इधर राजेश की धर्मवीर से बात नहीं हो पा रही थी। उनका फोन लगातार नो रिप्लाय हो रहा था।




अभी इस जुलूस के रवाना होने में थोडी देर थी। राजेश के साथ मैैं इ रिक्शा से कारसेवक पुरम पंहुचे,लेकिन धर्मवीर जी वहीं भी नहीं मिले। अब लगा कि वे जन्मभूमि स्थल पर पंहुच गए होंगे। हमने सोचा कि इ रिक्शा से सीधे वहीं जाकर उन्हे पकडते है। अब इ रिक्शा से जन्मभूमि स्थल के लिए रवाना हुए।


मेन रोड पर दोनो तरफ के मकान दुकान 15-20 फीट तक ढहा दिए गए है। ऐसा लगता है कि जैसे कोई भूकम्प आया हो। पूरी अयोध्या नए सिरे से सजने संवरने की तैयारी में नजर आ रही है।


इ रिक्शा,हनुमान गढी से कुछ दूरी तक ही जाता है। वहां से पैदल जाना पडता है। पहले जब हनुमान गढी से जन्मभूमिके लिए जाते थे,संकरी गलिया खचाखच भरी हुई दिखती थी। अब इस पूरे इलाके में भी जबर्दस्त तोड फोड हुई है। जिस रास्ते पर दर्जनों बार पैदल चला था,वहां कुछ भी पहचान में नहीं आ रहा था।ऐसी एक भी चीज नही ंदिखी,जो पहले हुआ करती थी।


ये रास्ता पैदल पार कर जन्मभूमि के आखरी बैरियर पर पंहुचे। हमे धर्मवीर जी की तलाश थी और उम्मीद थी कि वे यहां मिल जाएंंगे,तो पीछे आ रहे जुलूस के दर्शनों की व्यवस्था ठीक से हो जाएगी। पुलिस वाले को पटा कर घोटीकर जी भीतर गए। करीब दस मिनट बाद वे लौटे तो बताया कि वहां धर्मवीर का कोई महत्व नहीं था और वह भी वहां नहीं था।


फिर हम दोनो गुरुदेव के जुलूस का इंतजार करने लगे। आधे घण्टे के इंतजार के बाद भी जुलूस हमें नहीं दिखा तो हमने खुद भीतर जाकर दर्शन करने का निश्चय किया। अपनी जेबों का सामान एक लाकर में रखकर जाने लगे तो गुरुदेव के भक्त मण्डल के कई लोग दर्शन कर लौटते हुए नजर आए। पता चला कि वे किसी दूसरे रास्ते से दर्शन करने चले गए थे।


अब मैैं और राजेश सुरक्षा जांच पार करते हुए भीतर घुसे। भीतर जाने पर कुछ दूरी पर चल रहे मन्दिर निर्माण की गतिविधियां नजर आने लगती है। पिछली बार जब आए थे,निर्माण प्रक्रिया को पूरी तरह छुपा कर रखा गया था। कुछ ही मिनटों में दर्शन कर वहां से बाहर निकल आए।


बाहर निकलने पर जन्मभूमि पंहुचने के लिए बनाए जा रहे नए फोरलेन रास्ते से लौटे। यह रास्ता अयोध्या:फैजाबाद( अयोध्या केन्ट) के मुख्य मार्ग को सीधे जन्मभूमि मन्दिर से जोडेगा। इस रास्ते से हनुमान गढी अलग रह जाती है। इस रास्ते से मेनरोड तक पैदल लौटे। रास्ते के एक दो विडीयो बनाए। मेन रोड पर आकर एक इ रिक्शा पकड कर जानकी महल लौट आए।


मन्दिर से लौटने के बाद काफी सारा वक्त यूं ही गुजारा। फिर अचानक मेरे मन में आया कि अपने 30 साल पुराने सीन को रिक्रिएट किया जाए। 30 साल पहले जहां रुका करते थे,उस जानकी घाट बडा स्थान को देखा जाए। वहां के महन्त जनमेजय शरण जी से भेंट की जाए। एक इ रिक्शा लेकर वहां पंहुचे। जानकी घाट बडा स्थान भी अब पूरी तरह बदल चुका है। पूछताछ करने पर पता चला कि महन्त जी अयोध्या में नहीं है। उनकी कथा मध्यप्रदेश में ही चल रही है। वहां के कर्मचारियों ने हमें वहीं रुकने और भोजन करने का भी आग्र्रह किया। उनसे चर्चा करने के बाद हम फिर  जानकी महल लौट आए। 


अब वैसे तो कोई काम नहीं था,लेकिन मंच की व्यवस्था देखना थी। प्रदीप जी भाई सा. के साथ मंच पर बैठक व्यवस्था जमवाई। 


फिर कुछ समय फ्री था,तो निर्मल जी अनिता बाभी और अन्य लोगों ने बाजार तक चलने को कहा। पैदल निकले। बाहर मेन रोड पर पंहुच कर सभी लोगों ने पानी पतासे खाए। निर्मल जी के बच्चों को फास्ट फूड खाना था। लेकिन इस क्षेत्र के मेनरोड की सारी दुकानें बन्द हो चुकी थी। इस वक्त आठ सवा आठ बजे थे,लेकिन हवाएं तेज चलने लगी थी और मौसम में खतरनाक ठण्डक घुल चुकी थी। वहां से इ रिक्शा पकड कर हनुमानगढी के मुख्यमार्ग पर पंहुचे। वहां कुछ लोगों ने एक होटल पर दाल रोटी का भोजन किया और कडाके की ठण्ड में इ रिक्शा पकड कर वापस जानकी महल लौटे। इस वक्त रात के सवा नौ बज चुके थे।


अब बारी थी,रविवार को होने वाले कार्यक्रम की रुपरेखा बनाने की। प्रदीप जी भाई सा. के साथ में संचालन की रुपरेखा तैयार कर रहा था। यही सबसे ज्यादा मशक्कत का काम था। कौन संत कहां बैठेगा,कौन पहले और कौन बाद में बोलेगा। किसका स्वागत कौन करेगा। मंच संचालन की जिम्मेदारी भोपाल के पूर्व सांसद आलोक संजर जी को दी गई थी। आलोक जी फाउन्टेन पेन से लिखते है और अत्यन्त सुन्दर हस्तलेख में लिखते है,इसलिए उनकी लिखने की गति भी बेहद धीमी है। संचालन उन्ही को करना था,इसलिए वे ही लिख रहे थे। यह सारी व्यवस्थाए करते करते रात के सवा ग्यारह बज गए। आखिरकार कार्यक्रम की रुपरेखा को अंतिम रुप गेकर प्रदीप जी भाई सा.से रात्रि विश्राम की आज्ञा ली। रात साढे ग्यार ह बजे उनके पास से बिदा हुआ।

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