18 जून 2023 रविवार (प्रात:10.30)
गूजर धर्मशाला कुरुक्षेत्र
इस वक्त मैं स्नान करके तैयार हो चुका हूं।वैदेही अब स्नान करने जा रही है। कल चुनिन्दा सिन्धु दर्शन यात्री यहां पंहुचे थे,लेकिन आज बडी संख्या में यात्री आ चुके है,जो हमारे आस पास के कमरो में ठहरे है। आज हम कुरुक्षेत्र के अन्य दर्शनीय स्थल देखेंगे।
कल हम दो बार ब्रम्ह सरोवर गए थे। ब्रम्ह सरोवर अत्यन्त विशाल सरोवर है,जो दो हिस्सों में बंटा हुआ है। मुख्यद्वार से प्रवेेश करते ही सामने सीधा मार्ग बना हुआ है,यही मार्ग इसे दो हिस्सों में बांटता है। भीतर प्रवेश करते ही बाई ओर सरोवर के पानी के भीतर शिव मन्दिर नजर आता है। ब्रम्ह सरोवर को पूरा एक परकोटे से घेरा हुआ है। ये परकोटा या कारिडोर भी दर्शनीय है। बाई ओर के कारिडोर के उपरी हिस्से में महाभारत के दृश्यों को दर्शाते हुए म्यूरल्स बनाए गए है। इस पूरे परकोटे में कक्ष बने हुए है,जहां श्रध्दालु बैठ सकते है। इन कक्षों के सामने श्रध्दालुओं के चलने के लिए पाथ वे बना हुआ है।पाथ वे के बाद ब्रम्ह सरोवर शुरु हो जाता है। बाई ओर के शिव मन्दिर में जाने के लिए पुल बनाया गया है। मुख्य द्वार से प्रवेश करके सामने वाले सीधे मार्ग पर करीब 500 मीटर आगे चलने पर बाई ओर कात्यायनी देवी का मन्दिर नजर आता है। इस मन्दिर का दर्शन करके आगे बढते है,तो यहां ब्रम्ह सरोवर की जानकारी देने वाला बोर्ड लगा हुआ है।
इतिहास के मुताबिक यहां सबसे पहले ब्रम्हा जी ने यज्ञ किया था। फिर राजा कुरु ने यहां सरोवर का निर्माण करवाया। महाभारत युध्द में विजय के बाद युधिष्ठिर ने सरोवर के दोनो हिस्सों के बीच विशाल विजय स्तंभ बनावाया था,जिसे बाद में मुगलों ने तोड दिया और यहां आने वाले श्रध्दालुओं पर जजिया कर लगा दिया। इस पवित्र सरोवर में स्नान कर पुण्य लाभ की इच्छा रखने वाले हिन्दुओं को भारी जजिया कर देना पडता था। बाद में मराठों की विजय के बाद इसकी स्थिति सुधरी। जजिया भी समाप्त हो गया।
कात्यायनी मन्दिर से आगे बढते है,तो दाहीनी ओर बडा सा उद्यान नजर आता है। उद्यान के चारो ओर ब्रम्ह सरोवर का जल दिखाई देता है।यानी यह उद्यान भी ब्रम्ह सरोवर के बीच में ही है। इस उद्यान में रथारुढ अर्जुन और सारथी श्री कृष्ण की विशाल प्रतिमा दिखाई देती है,जो पहली ही नजर में मन मोह लेती है। चार घोडों वाला भव्य रथ श्री कृष्ण हांक रहे है,पीछे अर्जुन सवार है। दोनो चर्चा करते हुए दिखाई देते है। रथ के उपर छत्र पर पवनपुत्र हनुमान विराजित है। शनिवार को हम ब्रम्ह कुण्ड के इतने ही दृश्य देख पाए थे। ब्रम्ह सरोवर का बाकी का हिस्सा हम आज देखेंगे।
18 जून 2023 रविवार (रात 11.40)
गूजर धर्मशाला कुरुक्षेत्र
इस वक्त हम धर्मशाला के अपने कमरे में सोने की तैयारी कर रहे है। आज की सुबह डायरी लिख रहा था,तो पिछले दिन की घटनाएं लिख रहा था। अब आज की बातें..।
आज सुबह उठने में बहुत देर हो गई। कमरे से नहा धोकर निकलते निकलते 11.30 हो गए थे। बाहर निकले तो धर्मशाला के पास ही थोडा सा आगे एक देसी दुकान ढाबा था। वहां जाकर आलू पराठे का आर्डर दिया। एक एक आलू पराठा खाकर पैदल ही पैनोरामा के लिए चल पडे। करीब एक डेढ किमी चल कर पैनोरामा व विज्ञान केन्द्र पंहुचे। ये अद्भुत दर्शनीय स्थल है। यहां तल मंजिल पर भारत की प्राचीन वैज्ञानिक विधियों के प्रदर्शन के साथ ही विज्ञान के खेल मनोरंजक तरीके से प्रदर्शित किए गए है।
यहां जबर्दस्त भीड थी। टिकट लेने में ही आधा घण्टा लग गया। टिकट लेकर भीतर गए तो करीब डेढ घण्टा पैनोरामा में ही गुजारा। नीचे की तल मंजिल पर घुसते ही आपको पहली गैलेरी में भारत के प्राचीन ज्ञान विज्ञान की झलक मिलती है। आगे बढते है तो विज्ञान के मनोरंजक खेल मिलते है। यहां बहुत ज्यादा समय लगता है। यहां से आगे बढना यानी दूसरी मंजिल पर जाना। उपर संपूर्ण गोलाकार में महाभारत का युध्द प्रदर्शित किया गया है। महाभारत के युध्द को 360 डिग्री में देखना अद्भुत अनुभव है,जो शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। यहां आकर देखने में ही उसका आनन्द आता है। यहां महाभारत युध्द पूरी तरह जीवन्त हो उठता है। करीब डेढ घण्टा यहां गुजारा।
इसी के बगल में श्रीकृष्ण संग्रहालय है। इस वक्त साढे बारह हो चुके थे। गर्मी और उमस जान लेने लगी थी। बगल के श्रीकृष्ण संग्रहालय में पंहुचे। टिकट खिडकी पर भारी भीड थी। मैने और वैदेही ने विचार किया कि पहले भोजन कर आते है फिर इसे देखेंगे। हम वहां से लौटे। सैनी धर्मशाला में सिन्धु दर्शन यात्रियों का कंट्रोल रुम है। यहीं भोजन की भी व्यवस्था थी। हम एक इ रिक्शा पकड कर सैनी धर्मशाला पंहुच गए। यहां भोजन किया। इस वक्त ढाई बज चुके थे। मैने सलाह दी कि हम अपने कमरे में जाकर 1 घण्टा आराम कर सकते है। फिर घूमने निकलेंगे। वैदेही ने सहमति दी तो हम कमरे में आ गए।
दोपहर करीब 3.45 पर यहां से निकले। पहले श्रीकृष्ण संग्रहालय पंहुचे। यहां 6 विथीकाएं है। इसमें पुरातात्विक साक्ष्य देने वाली विथीकाएं भी है। इस संग्रहालय को बडे गौर से बडे आराम से देखा। यहां से निकले,हमने सोचा था कि वो स्थान देखा जाए जहां कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। वह स्थान यहां से करीब 10 मिकी दूर ज्योतिसर में था। इ रिक्शा को सौ रुपए देकर वहां पंहुचे। बरगद का वो पेड जहां श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था,वहां विडीयो बनाया। घूमे। यहां लाइट एण्ड साउण्ड शो भी होता है,लेकिन सूरज डूबने के बाद। इस वक्त साढे पांच हो रहे थे और सूरज डूबने में दो घण्टे का वक्त था। इसलिए इस्कान के श्रीकृष्ण अर्जुन मन्दिर को देखने चले गए। यह मन्दिर अभी बन रहा है। कुछ वक्त इस मन्दिर में गुजार कर फिर से ज्योतिसर लौटे,जहां लाइट एण्ड साउण्ड शो होने वाला था। यहां करीब एक घण्टे गुजारने के बाद लाइट एण्ड साउण्ड शो देखा।
यह गीता उपदेश के पहले की घटनाएं दिखाने के साथ गीता उपदेश को भी दिखाता है।अद्भुत शो है,जिसमें पानी के फौव्वारों पर लेजर लाइट की मदद से कृष्ण और अर्जुन के संवाद दिखाए जाते है। पौने नौ बजे शो समाप्त हुआ। हम करीब 9.20 पर सैनी धर्मशाला लौटे,जहां सिन्धु दर्शन यात्रियों के लिए भोजन की व्यवस्था थी। वैदेही ने भोजन किया और हम रात करीब दस बजे गूजर धर्मशाला में लौटे। अब सोने की तैयारी है। मैं मोबाइल में न्यूज देख रहा था। अब पूरा न्यूज आइटम देखकर सोउंगा। शुभ रात्रि....।
19 जून 2023 सोमवार (सुबह 9.30)
गूजर धर्मशाला रुम न. 210 कुरुक्षेत्र
इस वक्त मैं स्नान करके पूरी तरह तैयार हो चुका हूं। वैदेही अभी स्नान कर रही है। आज से वास्तविक सिन्धु दर्शन यात्रा शुरु होगी। लेकिन कल रात ही पता लगा कि यात्रा आज रात के भोजन के बाद प्रारंभ होगी। यानी आज की पूरी रात बस में गुजरेगी और कल सुबह हम मनाली पंहुचेंगे। अगर ये पहले पता होता तो हम 16 की बजाय 17 को रतलाम से निकलते। खैर अब क्या हो सकता है?
कल हमने ज्ञानसर,पैनोरामा,श्रीकृष्ण संग्रहालय इत्यादि देख लिए। आज भीष्म कुण्ड,शेख चिल्ली का मकबरा और 52 शक्तिपीठों में से एक मां भद्रकाली का दर्शन करना है। एक कुण्ड और है जिसका नाम अभी ध्यान में नहीं आ रहा है। आज का पूरा दिन हमारे पास है। हमे शाम 4 बजे सैनी धर्मशाला बुलाया गया है,सामान के साथ,ताकि वहां से यात्रा प्रारंभ हो सके। कल की तुलना में हम आज करीब एक घण्टा पहले तैयार हो गए है। देखते है कि आज क्या क्या देख पाते है?
19 जून 2023 अपरान्ह 4.00 बजे
गूजर धर्मशाला,कुरुक्षेत्र
हम लोग अभी अभी कुरुक्षेत्र केबचे हुए स्थान देख कर वापस लौटे है। अब हमें करीब साढे पांच बजे फिर से सैनी धर्मशाला जाना है,जहां एक कार्यक्रम होगा और वहीं से संभवतया भोजन के बाद यात्रा के लिए प्रस्थान होगा।
आज की सुबह हम दस बजे यहां से निकल पडे थे। बाहर निकले एक इ रिक्शा वाले को भद्रकाली मन्दिर जाने के लिए तय किया फिर उसी को तीन सौ रुपए में भद्रकाली,शेख चिल्ली का मकबरा और बाणगंगा यानी भीष्मकुण्ड जाने के लिए तय कर लिया। सबसे पहले भद्रकाली मन्दिर पंहुचे। भद्रकाली मन्दिर देवी के 52 शक्तिपीठों में से एक है। यहां देवी सती का दहिना पैर या दाहिने पैर का घुटना गिरा था। जहां जहां सती के अंग गिरे थे,वहां वहां शक्तिपीठ स्थापित है। इस मन्दिर की महाभारत कालीन कथा भी है। कहा जाता है कि महाभारत युध्द से पहले पाण्डवों ने यहां आकर विजय का आशीर्वाद मांगा था और जीतने के बाद घोडे दान करने का संकल्प लिया था। वे युध्द जीते तो उन्होने यहां आकर घोडे दान किए।
तभी से यहां मन्नत पूरी होने पर घोडे चढाने की परम्परा है। अब जिस भक्त की मनोकामना पूरी हो जाती है,वह यहां घोडे चढाता है। अब जीवित घोडे नहीं बल्कि छोटे छोटे घोडे वाले खिलौने चढाए जाते है। मन्दिर में प्रवेश करते ही देवी कूप के चारो ओर ऐसे सैकडों छोटे छोटे घोडे नजर आ जाते है। इस मन्दिर की उपरी मंजिल पर महादेव,मृत सती को कन्धे पर लेकर घूमते हुए दर्शाए गए है। इसी झांकी में गरुड पर सवार सुदर्शन चक्र धारी विष्णु भी दिखाए गए है,जिन्होने अपने सुदर्शन चक्र से सती के मृत शरीर को 52 हिस्सों में काट दिया था।
भद्रकाली मन्दिर से आगे बढे तो पंहुचे शेख चिल्ली के मकबरे पर। यहां आने से पहले शेख चिल्ली एक ऐसा पात्र था जो मूर्खता का प्रतीक था हास्य कहानियों का पात्र था। लेकिन यहां आकर पता चला कि शेख चिल्ली काल्पनिक नहीं बल्कि वास्तविक व्यक्ति था। इतना ही नहीं वह दारा शिकोह का गुरु था। उसका मकबरा बेहद भव्य बना हुआ है। मकबरे की भव्यता देखकर लगता है कि वह कोई जोकर या मूर्ख नहीं बल्कि महत्वपूर्ण और सम्मानित व्यक्ति था। पता नहीं कब शेख चिल्ली मूर्खता का प्रतीक और हास्य कहानियों का पात्र बन गया।
इससे याद आया कि दारा शिकोह ही वह व्यक्ति था,जिसने वेद और उपनिषदों का अरबी और फारसी में अनुवाद करवाया था। दारा शिकोह कट्टर इस्लाम छोडकर सनातनी होने लगा था और इसमें उसके गुरु शेख चिल्ली या चेहली का बडा हाथ था। चूंकि बाद में औरंगजेब जैसे क्रूर और कट्टर मुसलमान के हाथ में सत्ता आ गई तो उसने शेख चिल्ली को पागल घोषित कर दिया। औरंगजेब के लिए सनातनी होना पागलपन से कम नहीं था। शेख चिल्ली का मकबरा थानेसर क्षेत्र में है,जो कि स्थानेश्वर का अपभ्रंश है।
स्थानेश्वर अत्यन्त प्राचीन स्थल है। यहां की खुदाई में हडप्पा काल से पहले की सभ्यताओं के प्रमाण मिले है।चीनी यात्री व्हेनसांग ने भी इसका उल्लेख किया है कि .यहां बडी संख्या में विशाल मन्दिर और बौध्द विहार थे। शेख चिल्ली के मकबरेके नीचे के हिस्से में संग्रहालय बनाया गया है,जहां स्थानेश्वर की खुदाई में मिले पुरातात्विक साक्ष्य संग्रहित किए गए है। शेख चिल्ली का मकबरा दूसरी मंजिल पर है। यह बहुत ही विशाल है। यहां विडीयो बनाकर हम आगे बढे। यहां स्थानेश्वर महादेव का मन्दिर भी है,लेकिन चूंकि हमने इ रिक्शा वाले से पहले इसकी बात नहीं की थी,इसलिए उसने मन्दिर जाए बिना रिक्शा वहां से बढा दिया।
अब हम पंहुचे नरकतारी गांव के भीष्म कुण्ड या बाणगंगा पर। महाभारत युध्द के बाद भीष्म पितामह शरशैया पर पडे थे। उनसे मिलने व ज्ञान लेने पाण्डव व कौरव दोनो ही जाते थे। एक दिन भीष्म पितामह ने कहा कि उन्हे प्यास लगी है,तो कौरव दौड दौड कर पानी के घडे भर लाए। लेकिन पितमाह ने पानी पीने से इंकार कर दिया। फिर उन्होने अर्जुन को इशारा किया। अर्जुन ने पर्जन्यास्त्र नामक अस्त्र चलाकर जमीन में से गंगा निकाल दी। धरती में से गंगा की धारा निकली जो पितमाह के मुंह में पंहुच गई। यहां शर शैया पर पडे पितामह और उनके पास खडे पांचों पाण्डवों की प्रतिमाएं बनाई गई है।
मन्दिर के पुजारी ने बताया कि यही वह स्थान है जहां भीष्म पितामह शरशैया पर पडे थे। ठीक उसी स्थान पर उनकी शरशैया पर आरुढ प्रतिमा बनाई गई है। पास में ही भीष्म कुण्ड है। इसी कुण्ड के स्थान पर अर्जुन ने तीर मारा था। कुण्ड में भी शरशैया पर लेटे पितामह और अर्जुन की लोहे की प्रतिमाएं खडी की गई है।
अब तक हम लगभग पूरा कुरुक्षेत्र घूम चुके थे। वैसे कई स्थान अब भी बाकी है,जैसे कल्पना चावला प्लैनेटोरियम,हर्ष का टीला इत्यादि। लेकिन इस वक्त 12.45 हो गए थे। आसमान से जैसे आग बरस रही थी। भूख लगने लगी थी। तो यही तय किया कि सैनी धर्मशाला लौटा जाए और भोजन किया जाए। आज सिन्धु दर्शन यात्रा के लगभग सारे यात्री कुरुक्षेत्र पंहुच चुके है। सभी का भोजन यहीं है,जबकि रुकने के स्थान सभी के अलग अलग है। आज भोजन में भी विलम्ब हो गया। भोजन करते करते ढाई बज गए।
उपर हाल में यात्रा से सम्बन्धित कार्यक्रम की तैयारियां चल रही थी। वहां कई सारे यात्री इस तरह बैठे थे,मानो अभी कुछ ही देर में कार्यक्रम शुरु होने वाला है। तभी मुझे यादा आया कि मुझे गूर्जर धर्मशाला जाना है। असल में हम जब शेख चिल्ली के मकबरे पर थे,उसी वक्त किशोर का फोन आया था कि वेब साइट डाउन हो गई है। इसके अलावा बिगराक कम्पनी वालों का फोन भी आया था कि पुरानी होस्टिंग आज बन्द कर दी जाएगी। तब मैने उसे करीब पन्द्रह दिन और पुराने प्लान से वेबसाइट चलाने को कहा। तब उसका कहना था कि इसके लिए 10 रु.प्रतिदिन के हिसाब से राशि देना होगी। वरना आज वेबसाइट बन्द कर दी जाएगी। उसने कहा कि आप इसका भुगतान कर देंगे तो वेबसाइट चालू कर दी जाएगी।
सैनी धर्मशाला में भोजन करने के बाद मैं तुरंत गूजर धर्मशाला पंहुचा और अपने कमरे से लैपटाप के जरिये भुगतान करके वेबसाइट का खतरा टाला। तभी वैदेही का फोन आया कि मैं वापस सैनी धर्मशाला आ जाउं। आसमान से बरसती आग के बावजूद मैं दोबारा सैनी धर्मशाला पंहुचा। यहां यात्रियों का रजिस्ट्रेशन करके उन्हे यात्रा के परिचय पत्र और बैग्स दिए जा रहे थे। वैदेही का कार्ड और बैग मिल गया,लेकिन मेरा कार्ड नदारद था। काफी देर तक इसकी खोजबीन हुई लेकिन कार्ड नहीं मिला। तब हम लौट पडे फिर से गूजर धर्मशाला के लिए। यहां इ रिक्शा से आए और अब यहां एक डेढ घण्टा आराम करने की इच्छा है।
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