Friday, September 29, 2023

सिन्धु दर्शन यात्रा-3 हिमाचल में भी विराजे है बर्फानी अमरनाथ

20 जून 2023 मंगलवार (रात 10.15) 

 जेसिका होटल मनाली (हिप्र)


  इस  वक्त हम भोजन करके जेसिका होटल के कमरे में लौट चुके है और सोने की तैयारी में है। कल सुबह 9 बजे हमे निकलना है।  कल हम यहां से केलांग जाएंगे और परसो केलांग से लेह जाएंगे।  अब बात कल की। 


कल शाम करीब 4 बजे हम सैनी धर्मशाला से गूजर धर्मशाला लौट आए थे। हमे कहा गया था कि शाम पांच बजे यात्रा के  शुभारंभ का कार्यक्रम होगा। हमने तय किया था,कि 5 नहीं 6  से साढे छ: बजे के बीच सैनी धर्मशाला पंहुचेगे।  हम पौने सात बजे अपना लगेज पैक करके गूजर धर्मशाला के कमरे से नीचे उतरे और एक इ रिक्शा  पकड कर सैनी धर्मशाला पंहुचे। 


सैनी धर्मशाला के सभागृह में नृत्य संगीत का झमाझम कार्यक्रम चल रहा था। मंच पर कलाकार नाच रहे थे,गा रहे थे। नीचे हाल में बडी संख्या मं यात्री झूम झूम कर नाच रहे थे। नाच गाने का ये धूम धडाका करीब 8 बजे तक चला। फिर  वास्तविक कार्यक्रम शुुरु हुआ। इसमें यात्रा समिति के अध्यक्ष सैनी समाज के अध्यक्ष,यात्रा की व्यवस्थाओं से जुडे लोग मंचासीन थे। करीब 1 घण्टे के इस आयोजन में संचालक ने लेह लद्दाख से जुडी जानकारियां दी। हाई अल्टी की समस्याएं बताई। करीब नौ बजे यह आयोजन समाप्त हुआ। अब बारी थी भोजन की। भोजन के बाद यहां से रवानगी होना थी। 


 सैनी धर्मशाला के परिसर में बडी संख्या में इनोवा और टेम्पो ट्रैवलर गाडियां खडी हो चुकी थी। कार्यक्रम में बताया गया था कि 27 इनोवा और 25 टेम्पो ट्रैवलर यात्रा पर जाने वाली है। बसोंके नम्बर अभी अलाट नहीं हुए थे। हमे बताया गया था कि हमारी गाडी का नम्बर  है। हमें 52 नम्बर की बस गाडी से यात्रा करना थी। रात 9.30 से 12 बजे तक मैं 52 नम्बर की गाडी ढूंढता रहा। गाडियों को नम्बर धीरे धीरे आ रहे थे और ड्राइवर अपनी गाडियों पर नम्बर चिपका रहे थे।  अपनी बस ढूंढने के लिए मैने कई चक्कर लगाएं। रात करीब पौने ग्यारह बजे उज्जैन के पुनीत सांखला ने मुझे 52 नम्बर का स्टिकर दिया और गाडी का नम्बर बताया। उस नम्बर वाली गाडी ढूंढ कर मैने उस पर स्टिकर चिपकाया।


 ये एक छोटी 16 सीटर टेम्पो ट्रेवलर थी,जिसमें 16 यात्री रजिस्टर्ड थे। हमारी बस में हम दो (मै और वैदेही) के अलावा उज्जैन के आदर्श सेठी अपनी पत्नी और पुत्री के साथ कर्नटक के दिलीप कुमार अपने चाचा,चाची के साथ,पंचकुला के प्रदीप गोयल अपनी पत्नी के साथ और छत्तीसगढ के माखीजा जी अपने दो साथियों के साथ लिस्टेड थे। बस में सीटों पर बैठने के लिए ही विवाद हो गया। जैसे तैसे यह विवाद शान्त हुआ और रात बारह बजे बस सैनी धर्मशाला से निकली।  


सफर रात भर का था। रात भर सोते जागते कटी। आजकल हिमाचल में कई सारी टनल्स बन चुकी है। रास्ता छोटा और फोरलेन बन चुका है। सुबह साढे छ: बजे बस एक ढाबे पर रुकी,जहां फ्रैश होने की व्यवस्था थी। यात्रीगण फ्रैश हुए। मैने भी नित्यकर्म से निवृत्ति पाई। यहां से बस चली तो एक डेढ घण्टे बाद करीब नौ बजे मनाली से 10 मिकी पहले एक होटल पर रुकी,जहां नाश्ते की व्यवस्था थी। यहां करीब दो घण्टे रुके रहे क्योकि मनाली में जिन होटलों मं बुकींग थी,वहां कमरे 11 बजे खाली होने थे। नाश्ते वाले होटल पर लम्बे इंतजार के बाद करीब 11 बजे वहां से चले। हम साढे ग्यारह पर मनाली के इस जेसिका होटल पर आ गए।


 यहां अभी कमरे खाली होने थे। करीब एक घण्टे में हमे अपने कमरे मिल गए।   कमरों में आए। सुबह के सारे काम बाकी थे। मुख मार्जन से लेकर स्नान करने तक सारे काम निपटाए। स्नान करने तक दो बज गए। फिर हमे जानकारी मिली कि पास के ही एक होटल में भोजन की व्यवस्था है। हम भोजन करने पंहुचे। भोजन किया। पिछली रात ठीक से नींद नहीं हुई थी,इसलिए भोजन करके आए,तो कमरे में एक डेढ घण्टे के लिए सौ गए।  शाम करीब 5 बजे उठे। तैयार होकर घूमने निकले। 


यहां से माल रोड करीब करीब दो किमी दूर था। मैं और वैदेही निकले। आटो वाले दो किमी जाने के सौ दो सौ रु. मांग रहे थे। हम पैदल ही चल पडे। लगातार चढाई थी।  पैदल चलते चलते माल रोड पंहुच गए। तब तक वैदेही थकने लगी थी। माल रोड के पास ही वन विहार है,जहां प्रवेश शुल्क 50 रु. है। सौ रु. देकर वन विहार में गए। वन विहार में उंचे उंचे पेड है। नीचे एक छोटे तालाब में बोटिंग की जाती है। 10 मिनट में हम यहां से बाहर आ गए। फिर माल रोड पंहुचे। करीब आधा घण्टा माल रोड पर घूमे। हम यहां से हिडिम्बा मन्दिर जाना चाहते थे,जो यहां से करीब पांच किमी दूर है।आटो वाले वहां जाने के तीन सौ रु. मांग रहे थे। हम पहले भी वहां जा चुके थे इसलिए हमने यहीं से वापस लौटने का फैसला किया। 


 यहां से होटल आने के लिए आटो वाला से पूछा तो उसने डेढ सौ रु. बताए। वैदेही थक चुकी थी,इसलिए 2 किमी के डेढ सौ रु. देकर होटल लौटे। अब साढे छ: बज चुके थे। होटल में आकर चाय मंगवाई। चाय पी।  फिर रात करीब नौ बजे पास वाले होटल में चाय पीने पंहुचे। भोजन करके दस बजे लौटे। भोजन के दौरान बताया गया कि कल सुबह 9.30 पर निकलना है। कल यहां से केलांग जाना है। वैदेही सौ चुकी है और मैं डायरी के साथ हूं। अब सौने की तैयारी....।


  21 जून 2023 बुधवार (सुबह 8.20)

 जेसिका होटल मनाली 


 रात के समय हमे बताया गया था कि सुबह 8 बजे नाश्ता तैयार हो जाएगा और नौ बजे तक हमें निकलना होगा। आज सुबह 6 बजे नींद खुल गई। उठ  कर बाहर निकला।   अब धीरे धीरे सहयात्रियों से हम परिचित होने लगे है। शाम को पंचकुला(चण्डीगढ) के प्रदीप गोयल व उनकी धर्मपत्नी योगिता गोयल से बातचीत हो रही थी। 


सुबह उठने के बाद बाहर होटल की लाबी में मैसुरु से आए दिलीप जी से चर्चा होने लगी। दिलीप जी अपने बुजुर्ग चाचा चाची को लेकर यात्रा पर आए है। वे रिलायंस में इंजीनियर है। प्रोफेशनल लोग 10-15 दिन यात्रा के लिए निकाल नहीं पाते। दिलीप कुमार जीवन में पहली बार पर्यटन यात्रा पर निकले है। वे मेरी यात्रा के किस्से सुन सुन कर उत्साहित हो रहे थे।  हमारे साथ तीन सिन्धी बन्धु भी है,जिनमें से दो तो जीजा साले है,तीसरे उनके मित्र है। इनमें से किसी एक का नाम माखीजा है। पूरे नाम अब पता चलेंगे।  अब मेरी नहाने की बारी है। डायरी को यहीं रोकता हूं। फिर शाम को दिन भर की घटनाएं लिखुंगा।


  21 जून 2023 (शाम 7.00 बजे)

 होटल खारदोलिंग,केलांग(हिप्र)  


इस वक्त मैं केलांग के इस होटल की दूसरी मंजिल के कमरे में मौजूद हूं और यहां आकर हमें लगभग दो घण्टे हो चुके है।   हम सुबह नाश्ता करके करीब साढे दस बजे मनाली से निकले थे,और करीब एक घण्टे में सौलंग वैली पंहुच गए थे। सुबह हमें दोपहर का भोजन पैक करके दिया जाना था,लेकिन जब हम पैकेट लेने पंहुचे,तो हमे कहा गया कि भोजन पैकेट हमे सोलंग वैली में मिल जाएगा। 


 सोलंग वैली मुख्यत: एडवेन्चर गेम्स के लिए प्रसिध्द है। यहां पैराग्लाइिडिंग होती हैष उपर पहाड पर जाने के लिए रोप वे है। माउन्टेन बाइकिंग भी की जाती है।   मुझे पैराग्लाइडिंग करने की इच्छा थी,लेकिन इसके दाम सुनकर मैं लौट आया। एक व्यक्ति की पैराग्लाइडिंग के पैंतीस सौै रु.,फोटोग्राफी करवाओ तो 5 सौ रु अलग से,और ग्लाइडिंग का टाइम मात्र 4 से 5 मिनट। महज 5 मिनट के लिए पैतीस सौ रु. तो मैं दे ही नहीं सकता।  हमारे एक सहयात्री सेवाराम माखीजा ने बताया कि यहां तीन किमी की दूरी पर बहुत दर्शनीय शिव मन्दिर है। वहां चलना चाहिए। मैं फौरन तैयार हो गया।  कर्नाटक वाले दिलीप जी उनके बुजुर्ग चाचा जी,उज्जैन के सेठी जी और उनकी पत्नी व बेटी,और मै और वैदेही। हम सभी जाने को तैयार हुए। 


दोपहर के बारह बज रहे थे और तेज चिलचिलाती धूप पड रही थी।  इस मन्दिर तक घोडे भी जाते है। वैदेही ने पहले ही कह दिया था कि वह घोडे से जाएगी। तीन सौ रु. में घोडा तय हुआ। सेठी जी की पत्नी थोडा ही चली कि उनको उल्टी जैसा होने लगा। वे और उनकी बेटी वहीं रुक गए। अब हम कुल छ: लोग गए। मन्दिर तक माउन्टेन बाइक से भी जाते है,लेकिन हम पैदल ही चले। करीब पैंतालिस मिनट में हम कैलास दरबार मन्दिर तक पंहुच गए। इस मन्दिर में शिव पार्वती समेत कई देवी देवता विराजित है।


  लेकिन यह वास्तविक स्थान नहीं है। यहां से करीब तीन सौ सीढियां चढकर उपर पहाड पर वास्तविक स्थान है। वर्ष 1999 में एक महात्मा महंत प्रकाश पुरी जी ने इस स्थान की खोज की थी। उपर पहाडी पर से झरना गिरता है जो शिवलिंग का अभिषेक करता है। यह तो खासियत है ही,इससे बडी खासियत यहां की ये है कि यहां बर्फबारी के दिनों में दो महीने के लिए अमरनाथ जैसा बर्फ का शिवलिंग बन जाता है। यह अद्भूत सौन्दर्य वाला स्थान है। यहां आकर आनन्द आ गया।  यहीं पर हमने तार पर लटक कर एक पहाडी से दूसरी पहाडी पर जाने वाले खेल---- का भी आनन्द लिया। इसमें व्यक्ति को एक हुक के सहारे तार पर लटका कर एक पाइन्ट से दूसरे पाइन्ट तक भेजा जाता है।  व्यक्ति बहुत उंचाई से बहुत तेजी से फिसलता है। इस खेल का नाम अभी मुझे याद नहीं आ रहा है।


  हमे बस ड्राइवर ने दो बजे तक लौटने को कहा था। अब डेढ बज चुका था। हम वहां से लौटने लगे। सभी को भूख लग आई थी। यहां हमे भोजन मिंलना था,लेकिन जब बस में पंहुचे तो पता चला कि भोजन तो आया ही नहीं है। फिर पता चला कि आगे चौकी के पास एक कार में भोजन पैकेट रखे है। वो कार भी नहीं मिली। फिर पता चला कि हमारा भोजन बस न. 43 में है। हमारी बस आगे बढ गई। अब एक दो पहाड चढने के बाद रोहतांग पास को पार करने वाली अटल टनल सामने थी। यह करीब 10 मिकी लम्बी सुरंग है,जिसका उद्घाटन मोदी जी ने किया था।


 अटल टनल पार करके रुके। यहां हमारी यात्रा की दूसरी बसें भी थी। 43 न. की बस भी थी,लेकिन उसमे भी हमारा भोजन नहीं था। फिर यही तय किया कि आगे कहीं भोजन करेंगे। कुछ ही आगे सिरचु कस्बा है,लेकिन वहां मुख्य सडक से उतर कर जाना पडता है। ड्राइवर ने कहा कि वह आगे एक ढाबे पर रोकेगा। ढाबे पर रुक कर हमने भोजन किया। इसके कुछ ही देर बाद शाम पांच बजे हम केलांग पंहुच गए। यहां होटल ढूंढने में कोई दिक्कत नहीं आई। बस स्टैण्ड पर ही हमारी होटल है। हम यहां पहुंच गए।  


 लेकिन यहां आते ही दूसरी समस्या खडी हो गई। होटल का कमरा दूसरी मंजिल पर है। पहली सीढी चढते ही वैदेही को हाई अल्टी का असर शुरु हो गया। घबराहट मितली आने जैसे लक्षण शुरु हो गए। जबकि केलांग का अल्टीट्यूड मात्र 10100 फीट है। मैने उसे लेट जाने की सलाह दी। उसका सिर भी भारी हो रहा था। सीने में जकडन जैसी महसूस हो रही थी। फिलहाल वह सोई हुई है।  इसी बीच यहां से रोचन,आई,दादा और चिंतन से भी बात कर ली। 


  मनाली से केलांग तक का रास्ता अब बेहद शानदार और चौडा हो गया है। घुमावदार पहाडों पर सर्पीली सडकें यदि अच्छी क्वालिटी की हो तो सफर बढिया हो जाता है। पिछली लेह यात्रा में हमने देखा था कि 90 प्रतिशत सडकें शानदार हो चुकी है। इस बार यहां केलांग तक तो सड़क सानदार है। आगे भी शानदार सडक मिलने की उम्मीद है।  कल हमें यहां से सुबह 4 बजे निकलना है,इसलिए आज जल्दी सो जाना है।


  22 जून 2023 गुरुवार (सुबह 3.45) 

होटल खारडोलिंग केलांग 


 हमें चार बजे यहां से निकलना है। इस वक्त मै तैयार हो चुका हूं। वैदेही अभी तैयार हो रही है। आज स्नान इत्यादि का कोई रोल नहीं है। हमारा मुख्य लगेज बस पर ही बन्धा हुआ है। हम लोग गर्म कपडे और बेहद जरुरी सामान लेकर ही बस से उतरे है। 


 कल शाम को वैदेही को कुछ समस्या हुई थी,लेकिन दो घण्टे सोने के बाद वह ठीक हो गई थी। फिर उसने खुद दो मंजिल उतर कर ठीक से भोजन किया था। रात दस बजे तक अन्य सहयात्रियों के साथ हंसी मजाक चलता रहा। फिर हम सोने के लिए कमरे में आए और फौरन सौ गए थे।  अब .यहां से निकलने की तैयारी है....। 


 

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