25 जून 2023 रविवार (रात 00.41)
होटल अशुर रेसीडेन्सी लेह(लद्दाख)
कैलेण्डर की तारीख बदलकर 25 जून हो चुकी है। हमारे इस होटल में हर कोई सौ चुका है। मैं डायरी लिख रहा हूं। पिछली बार मैने डायरी 22 जून को सुबह 3.45 पर लिखी थी। तब से लेकर अभी तक डायरी मेरे पास नहीं थी। पिछले तीन दिनों की घटनाएं बडी ही रोमांचक और विचित्र थी। मजेदार यहां तक कि मेरे पास डायरी भी नहीं थी। आज डायरी मेरे पास आई और मैने लिखना शुरु किया।
लेकिन पिछले तीन दिनों की घटनाएं इतनी विचित्र और रोमांचक है कि अभी इस वक्त लिखी नहीं जा सकती। अभी सिर्फ इतना कि मैने रात 11.00 बजे स्नान किया। कपडे बदले और अब सोने की तैयारी है।जैसे ही इस यात्रामें समय मिलेगा,इन तीन दिनों की घटनाएं मैं जरुर लिखुंगा।
25 जून 2023 रविवार (रात 08.00)
होटल हाशुर रेसीडेन्सी,लेह (लद्दाख)
इस वक्त मैं अपने कमरे में हूं ।वैदेही हमारे सहयात्री पंचकुला के रमेश गोयल जी और उनकी श्रीमती जीके साथ बाजार में घूम रही है। उन दोनो की अच्छी पटरी बैठने लगी है। मैं भी उनके साथ बाजार में ही था,लेकिन अचानक नेचर काल की वजह से मुझे लौटना पडा। अब खाली वक्त है तो मैं डायरी के साथ हूं।
आज का घटनाक्रम बाद में। कहानी वहीं से केलांग से शुरु करता हूं,जो बेहद दिल दहला देने वाली और रोमांचक है।
सांस लेने में परेशानी और गाडी भी खराब....
22 जून की सुबह 3.45 पर डायरी लिख रहा था। करीब 5 बजे हमारी बस केलांग से चली। केलांग से निकलते ही चढाई शुरु हो जाती है,जिसका पीक बरलच ला यानी करीब साढे सौलह हजार फीट की उंचाई तक पंहुचता है। बस जैसे जैसे उंचाई पर चढ रही थी,वैदेही की हालत खराब होने लगी। उसे उल्टियां होने लगी और सांस फूलने लगी। बरलच ला चढते चढते उसकी हालत ज्यादा ही खराब हो गई। बस की व्यवस्था के चलते उसे आगे की सिंहगल सीट पर बैठाया था,जबकि मैं आखरी वाली सीट से अगली सीट पर था।
मुझे उम्मीद थी कि बरलच ला से उतरने पर उसकी हालत ठीक हो जाएगी। बरलच ला से उतरने के कुछ समय बाद सरचू आता है। जहां खान पान की दुकानें इत्यादि व्यवस्था है। होटल से सभी यात्रियों के लिए आलू पराठे पैक करवा कर लाए गए। सरचू हम करीब साढे दस बजे पंहुच गए थे। सरचू में सभी लोग आलू पराठे का नाश्ता कर रहे थे। लेकिन पराठे पराठे पूरी तरह ठण्डे हो चुके थे। गले से नीचे ही नहीं उतर रहे थे। मैने एक मैगी तैयार करवाई और खाई। वैदेही को यहां फिर उल्टी तो हुई,लेकिन फिर भी सांस लेने में वह थोडी राहत महसूस कर रही था।
अब बस यहां से आगे बढी,तो कुछ ही किमी बाद फिर खडी चढाई शुरु हो गई,जो करीब 40 मिकी की थी। इसका टाप भी करीब 16 हजार फीट उंचाई का था। वैदेही को लगातार उल्टियां हो रही थी,सांस लेने में तकलीफ तो थी ही। इस टाप से उतरने के कुछ किमी बाद पांग नामक स्थान आता है। यह भी सरचू जैसा ही है,जहां दुकानें भी है और मेडीकल सुविधाएं भी है। मुझे लग रहा था कि पांग में वैदेही को राहत मिल जाएगी। टाप से बस उतरने लगी। लेकिन पांग आने के 10 किमी पहले पता चला कि बस खराब हो गई है। बस का एक्सीलेटर स्पीड नहीं ले पा रहा था। बस वहीं खडी हो गई और सभी यात्री बस के बाहर आ गए।
वैदेही भी बाहर आ गई,लेकिन उसे लगातार उल्टियां हो रही थी। उसकी हालत बेहद खराब हो रही थी। उसने सुबह से कुछ भी नहीं खाया था। चूंकि उसे लगातार उल्टियां हो रही थी,इसलिए उसे हम लगातार पानी पिला रहे थे। लेकिन लगातार उल्टियों से वह बेहद कमजोर हो गई थी। बस खराब हो चुकी थी और वैदेही को जल्दी से जल्दी नीचे स्थान यानी लेह ले जाना जरुरी था या मेडीकल हेल्प आक्सिजन देना जरुरी था। इस वक्त करीब डेढ बजा था। वैदेही बस से बाहर निकल कर सड़क किनारे बैठ गई थी। उसे लगातार उल्टियां हो रही थी।
मैने दिमाग दौडाया कि जितनी जल्दी हो सके या तो पांग पंहुचा जाए या सीधे लेह पंहुचा जाए। मैने वहां से गुजर रही गाडियों से लिफ्ट मांगना शुरु कर दिया। हमारी सिन्धु दर्शन यात्रा की गाडियों तक ने रुक कर मदद नहीं की। कोई भी गाडी एक बीमार महिला को एडजस्ट करने को राजी नहीं थी।सभी के यात्री बेहाल और परेशान थे। खुद हमारी बस का ड्राईवर सुशील भी हाई अल्टी के असर में आ चुका था और उसका सिर लगातार दर्द कर रहा था। मैं गाडियों को लगातार रोकने की कोशिश कर रहा था। आईओसी के आइल टैंकर भी उस रास्ते से लगातार जा रहे थे। एक टैंकर को रोका तो ड्राइवर ने कहा कि कोई टैंकर आपको लिफ्ट नहीं देगा,क्योकि ये एक्सप्लोसिव है। दूसरी कई गाडियां रोकने की कोशिश की लेकिन किसी ने मदद नहीं की।
मैने फिर एक टैंकर को रोका। ड्राइवर को अपनी समस्या बताई तो उसने कहा कि लेह तो नहीं लेकिन लेह से 35 किमी पहले कारो तक छोड देगा। मैने तुरंत टैंकर में चढने की तैयारी की। डर ये था कि कहीं ड्राइवर का मन ना बदल जाए,इसलिए जल्दी से जल्दी टैंकर में चढ जाउं। सबसे पहले वैदेही को टैंकर में चढाया। फिर मैं चढा। इस हडबडी में हमारे साथ जो सामान था वो ले ही नहीं पाए। मेरा लैपटाप और कैमरा बस में ही रह गया। वैदेही का झोला भी बस में रह गया लेकिन उसका बडा बैग दिलीप जैन ने लाकर दे दिया।
टैंकर ड्राइवर हमारे लिए देवदूत बनकर आया। वहां से आगे बढे। कुछ ही देर में पांग आ गया। यहां हमारे ड्राइवर ने गाडी नहीं रोकी और सीधे आगे बढ गया। अब मेरी आधी चिन्ता दूर हो गई थी। मुझे पता था कि एक बार उंचाई ने नीचे पंहुचने के बाद वैदेही की तबियत सुधर जाएगी। पांग से आगे बढेते ही फिर एक बडी चढाई आती है,जो करीब 20 मिकी की है और यह भी लगभग साढे पन्द्रह हजार फीट की उंचाई पर है। इस उंचाई पर चढने के बाद ढलान नहीं आता,बल्कि 40 मिकी का समतल मैदान आता है। जिसमें बेहतरीन टू लेन सड़क बनी हुई है। उपर चढने के बाद डैंकर ड्राइवर ने कहा कि यहां कुछ देर रुकने के बाद चलेंगे। वैदेही की स्थिति वैसी ही थी। बस गनीमत ये थी अब अधिक खराब नहीं हो रही थी।
10-15 मिनट बाद टैंकर ड्राइवर ने टैंकर आगे बढाया। उससे बाते होने लगी। उसका नाम संजय शर्मा था,जो कि हिमाचल प्रदेश के मण्डी का रहने वाला था। बडा ही भला व्यक्ति हमारे लिए तो देवदूत। 40 किमी का समतल पहाडी रास्ता जल्दी पार हो गया,लेकिन जहां यह समाप्त होता है,वहीं से इस रास्ते के सबसे उंचे पाइन्ट टंगलंग ला की चढाई शुरु होती है। टंगलंग ला साढे सत्रह हजार फीट की उंचाई पर है और ये खडी चढाई करीब 35 किमी की दूरी में पूरी होती है। ड्राइवर संजय शर्मा ने बता दिया था कि बस टंगलंग ला पर चढते ही समस्या समाप्त हो जाएगी,क्योकि उसके बाद फिर लगातार ढलान है।
आमतौर पर पर्यटक टंगलंग ला पर रुक कर फोटो लेते है,लेकिन वैदेही तो एक मिनट भी यहां रुक नहीं सकती थी। करीब एक सवा घण्टे में टंगलंग ला पंहुचे। वैदेही की सांस लगातार उखड रही थी और उल्टियां हो रही थी। मैं उसे लगातार पानी पिला रहा था। आखिरकार हम टंगलंग ला टाप पर पंहुचे और अब गाडी ढलान पर उतरने लगी। इस वक्त साढे चार बज गए थे। ड्राइवर संजय शर्मा ने कहा कि हम सात साढे सात तक कारो पंहुच जाएंगे। टंगलंग ला से उतरते ही लद्दाखी गांव शुरु हो जाते है। हरियाली और पेड पौधे नजर आने लगते है। पहला गांव लातो आता है। फिर उपाशी,शे और फिर कारो।
नीचे उतरने के साथ वैदेही की उल्टियां कुछ कम हो गई। सांस लेने की समस्या भी समाप्त होने लगी। ड्राइवर संजय ने हमे केले खाने के लिए दिए। मैनेतो दिन में मैगी खाई थी,लेकिन वैदेही ने कुछ भी नहीं खाया था।उसने भी एक केला खाया और मैने भी। हम करीब पौने आठ बजे कारो पंहुच गए। अब लेह केवल 35 किमी था। कारो पंहुचने के बाद मैने संजय शर्मा को रुपए देने की कोशिश की,लेकिन वह इतना भला था कि किसी भी तरह से उसने रकम नहीं ली। फिर मैने उसका नम्बर लिया। धन्यवाद ज्ञापित किया। वहां से लेह के लिए एक टैक्सी की। बारह सौ रुपए में टैक्सी वाला लेह जाने को तैयार हुआ।
अब अगली समस्या ये थी कि लेह में हमारा होटल कौनसा था,हमे इसकी जानकारी नहीं थी। कारो से करीब 30 किमी पहले जैसे ही मैं नेटवर्क में आया,मैने सबसे पहले पुनीत सांखला को फोन लगाकर हमारी 52 न. बस खराब होने की सूचना दे दी थी। अब हम कारो से लेह के रास्ते पर थे। लेकिन बीएसएनएल का नेटवर्क खराब हो गया था। अब फोन लग नहीं पा रहे थे। कारो से लेह के 35 किमी के रास्ते में मैने दो ढाई सौ बार पुनीत को फोन लगाया लेकिन फोन नहीं लगा। डाटा कनेक्शन तो था ही नहीं। अचानक मुझे एसएमएस करने की सूझी। मैने एसएमएस किया,जो पुनीत को मिल गया। लेह के मेन मार्केट तक पंहुच गए,तभी उसका एसएमएस आ गया जिसमें हमारे होटल का पता लिखा था।
ये बहुत बडी समस्या बिलकुल आखरी मिनट पर हल हो गई। वरना वैदेही के खराब हातलत के चलते एक नया होटल ढूंढ कर उसमे रुकना और भी कष्टदायक हो सकता था। मैने टैक्सी वाले को सीधे होटल चलने को कहा। हम रात साढे नौ बजे होटल में पंहुच गए। अब तक वैदेही काफी ठीक हो चुकी थी। सरदर्द था लेकिन सांस लेने में दिक्कत नहीं थी। कमजोरी जबर्दस्त थी। होटल में पंहुचने वाले हम पहले यात्री थे। आते ही स्नान किया। भोजन मुझे करना नहीं था। वैदेही के लिए दाल चावल मंगवाए,लेकिन वह सर्फि दो चम्मच खा पाई। हमारी हालत इतनी बुरी थी कि हम तुरंत सौ गए। हमे एक चिन्ता थी कि हमारे सहयात्रियों का क्या हुआ होगा? अब जो भी होगा,सुबह पता चलेगा। इस तरह हमारा ये खतरनाक दिन आखरी में राहत के साथ समाप्त हुआ।
23 जून 2023 शुक्रवार
सुबह तक वैदेही की तबियत सुधर गई थी। हम देर तक सोए। सुबह उठे तो पता चला कि हमारे सभी सहयात्री लेह के इसी होटल में पंहुच चुके थे। अलग अलग वाहनों से लिफ्ट लेकर,कोई सिन्धु दर्शन यात्रा की बस में खडे खडे तो कोई टैंकर की सवारी करके पंहुचा था। आखरी यात्री रात साढे बारह बजे होटल पंहुचा था। हमारा सारा लगेज बस में ही छूट गया था। मेरा लैपटाप और कैमरा भी बस में ही था। संयोग से वैदेही का बडा बैग साथ गया था,लेकिन उसका झोला बस में ही छूट गया था। उसी झोले में ब्रश और टूथपेस्ट भी था। सुबह फिर से बिना कपडे बदले स्नान किया। दाढी बढ रही थी,लेकिन शेविंग कीट नहीं थी।
मुझे एक नई समस्या हो गई थी। केलांग में जल्दी उठकर शौच करने के लिए जरुरत से ज्यादा जोर लगा दिया था इसलिए गुदा द्वार में समस्या हो गई थी। मैने रतलाम में डा. अभि मेहरा जी को फोन किया। समस्या बताई। दवा पूछी। फिर बाजार जाकर दवाएं लेकर आया। शाम को साढे चार बजे सिन्धु दर्शन यात्रियों के स्वागत का कार्यक्रम था,जो कि सिन्धु घाट से कुछ पहले संघ के एक विद्यालय भवन में था। उन्ही कपडों में जो केलांग में पहने थे,इस कार्यक्रम में शामिल होना था। कार्यक्रम स्थल होटल से काफी दूर था। यहां से वहां जाने के लिए दो गाडियों का किराया ढाई हजार रु. था।
हमारे यात्रा प्रबन्धक पुनीत सांखला ने मुझे कहा कि अभी आप भुगतान कर दीजिए। आने जाने का साढे चार हजार रु. किराया मैने भुगता। पुनीत सांखला ने कहा था कि यह किराया वह मुझे यात्रा समिति से दिलवा देगा। स्वागत समारोह में सांस्कृतिक कार्यक्रम अलग अलग प्रान्तों के नृत्य आदि प्रस्तुत किए गए। या्त्रा प्रभारी भूपेन्द्र कंसल ने संचालन किया। इन्द्रेश कुमार जी का भाषण हुआ। हम रात करीब दस बजे होटल पर लौटे।
हमारे सहयात्रियों में रायपुर छत्तीसगढ के सेवाराम माखीजा,उनके मित्र लालचंद और लालचंद के जियाजी मनोज भी थे। ये तीनो सिन्धी बन्धु है। लालचंद और मनोज म.प्र.के है। आज की रात उन्होने मेरी मदद की। अगले दिन पैंगांग लेक जाने का कार्यक्रम था।
चांगला पास पार करके खूबसूरत पेंगोंग झील के किनारे
24 जून 2023 शनिवार
पैंगांग झील के लिए सुबह छ: बजे निकलने की योजना थी। पैंगांग जाने के लिए हमे अपने व्यय से व्यवस्था करना थी। हमने बारह बारह हजार में दो इनोवा क्रिस्टा गाडियां बुक की थी। गाडियां सुबह छ: बजे आ गई थी,लेकिन होचल से निकलते निकलते आठ बज गए। और आखिरकार हम नौ बजे लेह से निकल पाए। पैंगांग लेक लेह से करीब 204 किमी दूर है। पैंगांग के रास्ते में चांगला पास पडता है,जो कि 17676 फीट की उंचाई पर है। इस हाईट पर जाते जाते वैदेही की हालत फिर से खराब होने लगी। चांगला से उतरने पर उसकी स्थिति कुछ ठीक हुई.
पैगांग लेक भारत चीन की सीमा पर है,जिसका 40 प्रतिशत हिस्सा भारत में है,शेष चीन के कब्जे में है। बहुत सुन्दर नीले रंग की झील। ये झील 4225 मीटर यानी 13862 फीट की उंचाई पर है। इस झील की लम्बाइ 134 किमी है,जहबकि सर्वाधिक चौडाई 5 किमी है। सुन्दर झील के किनारे फोटोग्राफी की। होटल से सब्जी पराठे बान्ध कर ले गए थे। रास्ते में चांगला पास से उतर कर एक होटल में चाय पी।
वहां से करीब तीस किमी का रास्ता पहाडों की तलहटी में पहाडों के बीच में से है,जो सीधे झील पर पंहुचता है। हम दोपहर करीब पौने तीन बजे झील पर पंहुचे थे। वहां जाते ही पहले हमने भोजन किया। झील के किनारे बडी संख्या में होटल्स और रात रुकने की व्यवस्था है। अधिकांश बाइकर्स यहां आकर रात रुकते है। हम करीब पौने तीन बजे झील पर पंहुचे थे। करीब एक घण्टे झील पर रुके और अब लौट चले। हमारी इच्छा थी कि दिन की रोशनी में चांगला पास पार कर लिया जाए। साढे पांच तक हम चांगला पास चढने लगे थे। करीब सवा छ: बजे हम चांगला पास टाप पर पंहुच गए थे। यहां जाम लगा हुआ था। टाप पर पंहुचने के साथ ही वैदेही की हालत फिर से खराब होने लगी।
जाम के कारण वह ज्यादा घबराने लगी। उसे बार बार पानी पिलाते रहे। हमारे साथ मौजूद बुजुर्ग दम्पत्ति वाली अम्मा जी दुर्गा सप्तशती जैसे मंत्रों का पाठ करने लगी। करीब आधे घण्टे में जाम खुला और हम जल्दी से टाप से नीचे उतर आए। नीचे आते ही वैदेही ठीक होने लगी। रात करीब साढे नौ पर हम कारो पंहुच गए। यहां एक होटल में रुक कर चाय पी और रात साढे दस बजे हम होटल पंहुच गए। पंचकुला चण्डीगढ के रमेश गोयल जी से अच्छी मित्रता हो गई थी। शाम की बैठक के लिए उन्हे अपने कमरे में आमंत्रित कर लिया। बैठक हुई बातें चलती रही।
पैंगांग लेक के सफर पर निकलने के दौरान हमारा लगेज होटल पर पंहुच जाने की खबर मिल गई थी। लैपटाप भी आ चुका था,लेकिन कैमरे की कोई सूचना नहीं थी। चूंकि सामान आ चुका थाइसलिए मन में संतोष था। तीन दिन से दाढी नहीं बनाई थी। कमरे में आते ही शेविंग की ब्रश किया और स्नान करके धुले हुए कपडे पहने। फिर रमेश गोयल जी के साथ चर्चा का सत्र चला और इस तरह ये दिन समाप्त हुआ।
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