Friday, September 29, 2023

सिन्धु दर्शन यात्रा-5 उस पवित्र सिंधु नदी के दर्शन जहा पनपी सिंधु सभ्यता

 25 जून 2023 रविवार  


रविवार का दिन सिन्धु दर्शन यात्रा समिति ने सिन्धु पूजन उत्सव के लिए निर्धारित किया था। सिन्धु घाट होटल से करीब 15 मिकी दूर है। यहां ओपन आडिटोरियम बनाया गया है। सिन्धु स्नान भी किया जा सकता था,लेकिन हमारे जाने के वाहन साढे नौ बजे आए,तब तक हमारा स्नान हो चुका था। आज का भोजन भी कार्यक्रम स्थल पर ही था।  हम सभी होटल से नाश्ता करके निकले।


 कार्यक्रम स्थल यात्रियों से खचाखच भरा हुआ था। कार्यक्रम शुरु हो गया था। कार्यक्रम में लद्दाख के उप राज्यपाल ब्रिगेडियर----- और बौध्द धर्म के रिनपोचे लामा और इन्द्रेश कुमार जी भी मौजूद थे। सभी  के भाषण हुए। इसके बाद भोजन की व्यवस्था थी। लेकिन भोजन में भारी अव्यवस्था थी। आयोजकों ने ठीक से व्यवस्था नहीं की थी,इसलिए यात्रियों को ठीक से भोजन भी नहीं मिल पाया। भीडभाड,खीचंतान और लूटपाट मची रही।   मेरे कैमरे के बारे में अब तक कोई सूचना नहीं मिली थी। समिति के जिम्मेदार लोगों से बात करने पर भी कोई जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं था। 


मैने यात्रा समिति दिल्ली के बडे पदाधिकारी भूपेन्द्र कंसल से बात की,नाराजगी जताई,लेकिन कोई हल नहीं निकला।  यहीं कार्यक्रम स्थल पर नारायण दादा और आरती वहिनी से भी मुलाकात हुई। वो लोग जम्मू तरफ से यहां आए थे और अब कुरुक्षेत्र होकर लौटेंगे। वे किसी दूसरे होटल में रुके है। कार्यक्रम में उनसे अधिक बात नहीं हो पाई।  वहां से समिति ने कुछ लोकल पाइन्ट घुमाने की व्यवस्था रखी थी।


 हम यहां से निकले तो पहले सीधे थिकशे गोम्पा पंहुचे। थिकशे गोम्पा काफी उंचाई पर है और यहां मैत्रेय बुध्द की करीब तीस फीट उंची प्रतिमा है। गौतम बुध्द पदम्मासन में बैठे है। यह करीब दो सौ वर्ष पुराना गोम्पा है।  यहां से चले तो शे पैलेस पर पंहुचे। शे पैलेस शे गांव में स्थित है। शे पैलेस भी ढाई-तीन सौ साल पुराना है। काफी उंचाई पर है। यहां भी गौतम बुध्द की वैसी ही प्रतिमा है,जैसी थिकशे गोम्पा में है।   यहां से आगे बढे तो रेंचो स्कूल जाना था। रेंचों स्कूल का नाम सुनकर  लगा कि थ्री इडियट में दिखाए गए रैंचो का स्कूल होगा,लेकिन ऐसा है नहीं। यह तो केवल रेंचों स्कूल के नाम पर एक दुकान खोली गई है,जहां कुछ सामान बेचने के लिए रखा गया है। इसके अलावा थ्री इडियट के ट्रिपल स्टूल रखे गए है,जिन पर बैठ कर लोग पीछे से फोटो खींचवाकर खुद को आमिर खान समझने की कोशिश करते है।


 हद तो ये है कि उधर पैंगोंग लेक पर भी थ्री इडियट का इतना असर है कि झील किनारे इस तरह के दर्जनों स्टूल रखे है। साथ ही पीले रंग के स्कूटर भी खडे किए गए है। थ्री इडियट में पीले स्कूटर की सवारी करीना ने की थी,इसलिए लोग खासतौर पर महिलाएं इन पीेले स्कूटरों पर बैठ कर फोटों खिंचवाते है।  ये तीन पाइन्ट देख कर हम लौट आए। अभी शाम हो रही थी। गोयल दम्पत्ति के साथ मैं और वैदेही मेन मार्केट घूमने निकल पडे। लेकिन थोडी ही देर बाद मुझे नेचर काल के लिए होटल लौटना पडा। वैदेही गोयल दम्पत्ति के साथ ही घूम रही थी।   गोयल दम्पत्ति और वेदेही करीब साढे आठ बजे होटल लौटे। फिर गोयल सा. और मै चर्चा सत्र में बैठे। इस तरह रविवार का दिन भी गुजर गया।  


27 जून 2023 मंगलवार (रात 11.00)

 होटल इन्टरनेशनल रेसीडेन्सी कारगिल 


 इस वक्त मैं कारगिल के होटल इन्टरनेशनल रेसीडेन्सी में हूं और अब सोने की तैयारी है।  लेकिन फिलहाल बात बीते हुए कल यानी सोंमवार  26 जून की....  


सोमवार 26 जून 

 हम रविवार को लोकर साइट सीन के तीन पाइन्ट देख चुके थे। सोमवार का दिन समिति ने खाली रखा था,यात्री जहां चाहे वहां घूम सकते है। रविवार रात को चर्चा करते हुए मैने गोयल साहब को समझाया कि अब हमे लेह में लेह पैलेस,शांति स्तूप,हाल आफ फेम और जोरावर फोर्ट ये 4 पाइन्ट देखना है। यात्रा समिति ने सोमवार को खारदुंगला घुमाने की भी व्यवस्था की थी। जो यात्री खारदुंगला जाना चाहते थे,उन्हे समिति ले जाने वाली थी। पिछले दो दिनों में वैदेही की हालत देखकर मैने तय कर लिया था कि खारदुंगला नहीं जाना है। मैं तो पहले भी खारदुंगला जा चुका था।


  बहरहाल,हम बडे आराम से साढे आठ तक उठे। आराम से तैयार हुए। मैं और गोयल सा स्कूटी किराये पर लेने के लिए निकले ताकि हम लोकल पाइन्ट घूम सके। सात सौ रुपए में आधे दिन के लिए स्कूटी मिल रही थी,लेकिन हमारे सहयात्रियों ने पांच सौ रु. में आधे दिन की स्कूटी तय की थी। हम भी उसी दुकानदार से पांच सौ रु. में स्कूटी दोपहर दो बजे से रात 9 बजेतक के लिए बात करके आ गए।  हमने सोता कि आराम से दोपहर का भोजन करके दोपहर दो बजे स्कूटी से निकल पडेंगे। आज ही शाम साढे चार बजे यात्रियों का बिदाई समारोह भी था,जहां हमे जाना था।


  लेकिन आज सुबह से लेह में बादल छाए हुए थे। बूंदाबांदी भी हो रही थी और मौसम में ठण्डक भी थी। फोर व्हील गाडी 2900 रु. में तय हो रही थी। कर्नाटक वले बुजुर्ग दम्पत्ति को भी घूमना था। मैने गोयल सा. को सलाह दी कि स्कूटी की बजाय फोर व्हीलर ठीक रहेगी,क्योकि बूंदाबांदी हो रही है। वो भी मान गए। मैने फौरन गाडी वाले को फोन लगाया। करीब तीन बजे वह गाडी लेकर आ गया।  हम छ: लोग,दो हम,दो गोयल दम्पत्ति और दो कर्नाटक वाले बुजुर्ग दम्पत्ति लेह घूमने निकले। सबसे पहले शांति स्तूप पंहुचे। शांति स्तूप बौध्द धर्म के ढाई हजार वर्ष पूरे होने की स्मृति में जापान के एक बौध्द लामा ने 1990 में बनवाया था। यहां तीस रु. प्रति व्यक्ति किराया है। शांति स्तूप वाहन पार्किंग से काफी उंचाई पर पडता है और पैदल  जाना पडता है। 


बूंदाबांदी चल ही रही थी,बल्कि कुछ तेज हो गई थी। शांति स्तूप देखकर लेह पैलेस के लिए रवाना हुए। लेह पैलेस 9 मंजिला इमारत है,जो लद्दाखी शैली में लकडी और इंटो से निर्मित है। लेह के नामग्याल राजा ने करीब साढे तीन सौ वर्ष पहले इसका निर्माण करवाया था।कमाल की बात ये है कि इसके निर्माण के लिए पत्थर यहां से तीस किमी दूर कारो से लाए गए थे और इन्हे लाने के लिए कारो से यहा तक किमी लम्बी मानव श्रृंखला बनाई गई थी।  लेह पैलेस में लेह पैलेस के निर्माण पर आधारित डाक्यूमेन्ट्री दिखाई जाती है। इसका टिद्मकट   रु. है। लेह पैलेस की छत पर जाकर मैने एक पैनोरामा शाट बनाया। 


लेह पैलेस पूरे लेह शहर से उंचे स्थान पर है और यहां से पूरे लेह शहर का एरियल व्यू नजर आता है।  लेह पैलेस से रवाना हो रहे थे,तभी सूचना मिली कि सिन्धु यात्रियों का बिदाई कार्यक्रम अब शाम साढे छ: बजे होगा और नए स्थान पर होगा। गाडी वाले से कहा तो उसने होटल छोड दिया और किराया भी  29 सौ की जगह पन्द्रह सौ ही लिया।  अब हम होटल लौट चुके थे और गोयाल सा के साथ मेरा चर्चा सत्र शुरु हो गया था।इसी बीच गुंजियाल सा.का जिक्र आया और मैने उन्हे फोन लगा दिया। 


चमत्कार हो गया। उत्तराखण्ड के एडीजी संजय गुंजियाल सा.भी लेह में ही थे।  अब वे उत्तराखण्ड पुलिस छोडकर आईटीबीपी में आ चुके है और पूरा लद्दाख,उत्तराखण्ड और जम्मू कश्मीर उनके अधिकार क्षेत्र में है।  गुंजियाल सा ने कहा कि वे मुझसे मिलने के लिए इस होटल में आ रहे है। मैं इंतजार करता रहा। रात करीब बारह बजे वे आए। हम बिछडे हुए दोस्तों की तरह गले मिले। करीब आधे घण्टे चर्चा होती रही। आशुतोष से भी उनकी बात कराई। रात करीब पौने दो बजे मैं सोने के लिए कमरे में पंहुचा।  सूचना यह थी कि सुबह साढे छ: बजे तक अपना लगेज लेकर मेन बाजार के चौराहे पर पंहुचना है,जहां हमारी गाडियां खडी रहेगी। मैने पुनीत सांखला से कहा कि साढे छ: की बजाया साढे सात तक पहुचुंगा।  इस तरह सोमवार का दिन समाप्त हुआ और फिर मैं सो गया।  


मंगलवार 27 जून 2023 (रात 11.30) 


 आज मैं देर तक सोना चाहता था,लेकिन हमारे सहयात्री तो छ: बजे से ही तैयार होने लग गए थे। मैं तो सुबह 6.30 पर उठा और नित्यकर्म में लगा। हम साढे सात तक एक किराये की गाडी लेकर उस स्थान पर पंहुच गए जहैं गाडियां खडी थी। हमारी गाडी 11 नम्बर की थी,जबकि गोयल दम्पत्ति को दूसरी गाडी अलाट हुई थी।  28 जून 2023 बुधवार (रात 11.55) कैलेण्डर की तारीख बदलने में अब महज 5 मिनट शेष बचे है और मैं श्रीनगर के खय्याम चौराहे के पास लोटस होटल में डायरी लिख रहा हूं।  कहानी वहां से शुरु करता हूं जहां छोडी थी।


 हम होटल हाशुर रेसीडेन्सी लेह से 400 रु. किराया देकर मेन मार्केट के उस चौराहे पर पंहुचे,जहां कारिगल जाने वाली गाडियां खडी थी। हमें 11 नम्बर की बस मिली थी जबकि गोयल दम्पत्ति को 12 न. की बस मिली थी। अब कोई चारा नहीं था। हम बस में सवार हो गए। हमारा लगेज बस की डिक्की की बजाय बस में भी चढाया गया। बस लेह में करीब 15 किमी निकल गई,तब पता लगा कि बस के 4 यात्री लेह में ही छूट गए है। बस पलट कर फिर लेह में आई और छूटे हुए यात्रियों को गाडी में लेकर बस आगे बढी।


हम करीब नौ बजे गुरुद्वारा पत्थर साहिब पंहुचे। यहां दर्शन किए। फोटो लिए।  गुरुद्वारा पत्थर साहिव गुरु नानक देव की स्मृति में बनाया गया है। तिब्बत भूटान का भ्रमण करते हुए गुरु नानक देव लेह पंहुचे थे। यहां एक राक्षस लोगों को परेशान करता था। गुरु नानक देव ने वहीं तपस्या प्रांरभ की,जहां राक्षस रहता था। राक्षस ने गुरु नानाक को मारने की नीयत से एक बडा पत्थर गुरु नानक पर लुढकाया। गुरु नानक ध्यान में लीन थे। पत्थर जब उनके उपर पंहुचा तो मोम बन गया और गुरु नानक के सर के पास जाकर रुका। गुरु नानक का सिर पत्थर से जहां टकराया,उस स्थान पर पत्थर दब गया। राक्षस को लगा कि गुरु नानक पत्थर के नीचे दब कर मर गए होंगे। जब उसने वहां जाकर देखा तो गुरु नानक ध्यान में ही लीन थे। गुस्से में राक्षस ने पत्थर पर पैर से प्रहार कियातो उसका पैर पत्थर में ही जम गया। फिर उसे समझ में आया कि यह तो कोई सिध्द पुरुष है। फिर उसने गुरु नानक से क्षमा मांगी और लोगों की सेवा में जुट गया। तभी से यहां पत्थर साहिब गुरुद्वारा स्थापित हुआ। आजकल इसकी देखरेख भारतीय सेना करती है। 


 गुरुद्वारे में इस वक्त लंगर बंद हो चुका था और केवल चाय पिलाई जा रही थी। चाय पीकर बस आगे बढी तो चुख ही किमी बाद मैग्नेटिक हिल आ गया। 10 बजे हम मैग्नेटिक हिल पर ंपंहुच गए थे। हमें कहा गया कि साढे दस बजे तक बस में आ जाना है। हम नाश्ता करने सामने के एक होटल में चले गए और एक मैगी बनाने का आर्डर दे दिया। इस वक्त 10.07 हो रहे थे। तभी देखा कि सारे यात्री बस मं पंहुच चुके थे और बस स्टार्ट हो गई है। मैने बस के ड्राइवर से जाकर कहा कि भाई अभी साढे दस नहीं हुए है और हम नाश्ता कर रहे है। उसने कहा कोई दिक्कत नहीं आप नाश्ता कर लो। मैने और वैदेही ने मैगी का नाश्ता किया और बस में सवार हुए। 


 एनएच-1 पर चलती हुई हमारी बस अब कारिगल की ओर बढ चली। रास्ते में कई गांव आए। कई पहाडी उतार चढाव पार करने के बाद हम शाम करीब 7.30 पर कारिगल पंहुचे।  कारिगल में हमारे होटल का रास्ता ढूंढने के लिए ड्राइवर युवराज ने मुझे गूगल मैप लगाने को कहा। मैं केबिन में बैठकर गूगल मैप से रास्ता ढूंढने लगा। हम करीब साढे सात बजे होटल में पंहुच गए।  


होटल में कमरे का सामान सैट करने के बाद पता चला कि यहां दो दर्शनीय स्थल है। एक एलओसी का पाइन्ट जो 10 किमी की दूरी पर बहुत उंची पहाडी पर है। दूसरा पाइन्ट एक शिव मन्दिर था। धार की एक अग्रवाल फैमेली ने इन दो पाइन्ट्स पर जाने के लिए वाहन तय कर लिया था। उनकी गाडी में दो सीटें खाली थी। उन्होने हमसे कहा और हम जाने को तैयार हो गए।  गाडी चली और 10 किमी लगातार गोलाकार चढाईयों पर चढ कर हम उस पाइन्ट पर पंहुच गए,जहां से पीओके की सीमा साफ नजर आ रही थी। अंधेरा बस होने को ही था,लेकिन आंखों से वो बिन्दु नजर आ रहे थे,जो पीओके की सीमा में आते है और यहां दूरबीनें भी लगी हुई थी,लेकिन इनसे सीमा देखने वालों की लम्बी लाइन लगी हुई थी।  करीब आठ बजे अंधेरा होने के बाद वहां से रवाना हुए। 


अब हमारी मंजिल थी बाबा प्लेटोनाथ का शिव मन्दिर। यह भी काफी दूर था। वहां पंहुचे। यहां लोग मन्नत मांगते है और मन्नत पूरी होने पर घण्टियां चढाते है।   पता चला कि 1971 के युध्द से पहले यहां एक बाबा कुटिया बनाकर रहते थे और लोग उन्हे पागल समझते थे। धीरे धीरे लोगों को पता चला कि ये बाबाजी शिव जी की भक्ति करते है। फिर 1971 के युध्द में यह ध्यान में आया कि बाबा की कुटिया के पास पाकिस्तान ने जितने भी बम डाले उनमें से एक भी नहीं फटा। चमत्कार तब हुआ तब इन बिना फटे बमों को नाले में फैंका गया तो सारे बम फट गए।  इसके बाद लोगों को समझ में आया कि ये बाबा कोई सिध्द पुरुष है। फिर लोग बडी संख्या में वहां जाने लगे। बाबा उन्हे शिवजी की पूजा करने का उपदेश देते थे। एक दिन अचानक बाबा अंतध्र्यान हो गए। लोगों ने उन्हे काफी खोजा लेकिन उनका कोई पता नहीं चला। 1990 में यहां शिव मन्दिर बनाया गया। इसे प्लेटोनाथ बाबा का मन्दिर कहते है। भारतीय सेना इसकी देखरेख करती है।  ं


मन्दिर का दर्शन करने के बाद होटल में लौटे। अब सोने का समय था। सूचना मिली थी कि सुबह 6.30 पर नाश्ता तैयार रहेगा और यहां से 7.30 पर निकलना है। सुबह 5.30 का अलार्म सैट करके सौ गए। 



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