28 जून 23 बुधवार
सुबह मुझे लगा था कि इतनी जल्दी कैसे निकल पाएंगे,इसलिए मैं कुछ आराम से उठा था। धीरे धीरे तैयार हो रहा था। पता चला कि सारे सहयात्री सुबह 6.30 पर तैयार होकर नाश्ता करने पंहुच गए। मुझे तैयार होते होते 7.20 हो चुके थे। इस समय तक सारे सहयात्री बस में पंहुच गए थे। मैने झटपट जैसे तैसे दो पुडी खाई और बैग लेकर बस में पंहुच गया। ठीक 8.10 पर बस कारगिल से चल पडी। करीब डेढ घण्टे बाद द्रास में स्थित कारगिल वार म्यूजियम पंहुच गए।
29 जून 2023 गुरुवार (शाम 5.50)
होटल लोटस.श्रीनगर
इस वक्त हम बगल के बंगाली रेस्टोरेनेट से चाय पीकर आए हैं और अब शाम के वक्त डल झील पर शिकारे की सैर पर जाने के लिए तैयार हो रहे है। बीती रात करीब एक बजे डायरी लिखना अचानक बीच में ही बन्द करना पडा था,क्योकि वैदेही नाराज हो रही थी। बहरहाल मै 28 जून की घटनाएं लिख रहा था।
हम कारगिल वार म्यूजियम में थे। इसका नाम कारिगल वार म्यूजियम है,लेकिन यह कारिगल में ना होकर द्रास में है। यहां से टाइगर हिल,थ्री पिंपल्स जैसी चोटियां सीधे नजर आती है,जिन पर कारिगल का युध्द लडा गया था और करीब डेढ हजार युवा सैनिकों ने अपनी शहादत दी थी। म्यूजियम में बडा तिरंगा लहराता है,जिसके सामने अमर जवान ज्योति लगातार जलती रहती है। परिसर में प्रवेश करते ही कारिडोर के दोनो तरफ कारगिल वार के हीरोज जैसे मनोज पाण्डे,विक्रम बत्रा इत्यादि की मूर्तियां है,जिनका संक्षिप्त जीवन परिचय भी नीचे लिखा गया है। प्रवेश करते ही दाहिनी ओर फिल्म प्रदर्शन कक्ष है,जहां कारगिल वार पर आधारित 8मिनट की डाक्यूमेन्ट्री दिखाई जाती है।
मुख्य कारिडोर से आगे बढते है,तो बाइ ओर एक युध्दक विमान रखा हुआ है। आगे बढने पर बाई ओर तिरंगे के समीप शहीदों की स्मृति में पत्थर लगाए गए है। दाई ओर म्यूजियम कक्ष है,जिसमें युध्द के शहीदों द्वारा अपने परिजनों को लिखे गए पत्र,पाकिस्तानियों से जब्त सामग्री इत्यादि प्रदशिक्षत है। लेकिन आज यह बन्द था। सबसे आखरी में बीचोबीच में विशाल तिरंगा लहरा रहा है। इसमे बोफोर्स और अन्य तोपें भी प्रदर्शित की गई है। बहरहाल 8 मिनट की डाक्यूमेन्ट्री देखकर,कुछ फोटो खींचकर बाहर निकले। सामने के एक रेस्टोरेन्ट में चाय पी। गोयल दम्पत्ति होटल से पराठे बनवाकर लाए थे। हमने भी चखे,कुछ और नाश्ता भी किया। अब यहां से आगे बढे।
अब जोजीला पास पार करने की बारी थी। लेह से कारगिल व श्रीनगर तक की सड़क अब बेहद शानदार बन चुकी है। बीच में थोडी सी कहीं कहीं खराब भी है,लेकिन खराब हिस्सा बहुत छोटा है। जोजीला पास के उपर से आगे बढे तो वहां जीरो पाइन्ट है,जहां बर्फ से ढंका पहाड है और स्नो स्कूटर की सवारी की सुविधा उपलब्ध है। हमारे कुछ सहयात्रियों ने स्नोस्कूटर चलाने का आनन्द लिया। बर्फ में मस्ती की और फोटोग्राफी की।
यहां से करीब तीस किमी की ढलान सीधे सोनामार्ग या सोनमर्ग में पंहुचती है। यहां के एक होटल सोनामार्ग पैलेस में भोजन की व्यवस्था रखी गई थी। यहां पंहुचने वाली हमारी बस पहली थी,इसलिए भोजन में कोई भीड नहीं थी। भोजन भी स्वादिष्ट था और भीडभाड नहीं थी,इसलिए बडे आराम से भोजन किया। भोजन के बाद अब हमारी मंजिल श्रीनगर थी। जो कि करीब अस्सी किमी दूरी पर थी। रास्ता शानदार था। अब ढलान कम थी,मोड भी कम थे। कश्मीर घाटी के गांव आते जा रहे थे। गांदरबल जैसे गांव गुजरे। श्रीनगर से करीब 25 किमी पहले एक रेस्टोरेन्ट पर चाय के लिए बस रोकी गई। चायपान के बाद आगे बढे।
ड्राइवर युवराज ने मुझे केबिन में बुला लिया,ताकि मैं श्रीनगर के होटल लोटस की लोकेशन देखता चलूं। हम करीब साढे सात बजे श्रीनगर के होटल लोटस पर पंहुच गए। यहां कमरों की व्यवस्था कर कमरों में आते आते साढे आठ बज गए। कमरे में सैटल होते ही मैने रमेश गोयल जी को फोन किया। उनका होटल रायल इन गूगल मैप पर सिर्फ 800 मीटर दूर दिखा रहा था। हम उनके होटल जाने के लिए निकले। एक आटो पकड लिया। इस इलाके में रायल नाम के कई सारे होटल थे,अब इनमें रायल इन कौन सा था,पता नही? मोबाइल में नेट कनेक्शन नहीं चल रहा था,इसलिए रायल इन ढूंढना मुश्किल हो रहा था। आटो वाले ने पूछ पाछ कर रायल इन का पता कर लिया और हम रायल इन पंहुच गए। करीब आधा घण्टा गोयल दम्पत्ति के साथ गुजारा और फौरन फिर से आटो पकड कर अपनेहोटल में पंहुच गए।
यहां हमारे होटल के रहवासी भोजन के लिए निर्धारित होटल पर जाने के लिए तैयार थे। हम भी उनके पीछे चल पडे। आगे एक लडका गाइड के रुप में चल रहा था। जिस गली में हम चल रहे थे,उस गली के आखरी छोर पर पंहुच कर वह गाइड पता नहीं कहां गायब हो गया। हमारे आगे चल रहे बुजुर्ग महिला पुरुष दोराहे पर खडे थे। हम वहां पंहुचे। पहले हमने सड़क पर दाई ओर कुछ आगे जाकर देखा। कुछ समझ में नहीं आया,तो पीछे लौट कर विपरित दिशा में चलने लगे। भोजन वाले होटल का कहीं अता पता नहीं मिल रहा था। मैने पुनीत सांखला को फोन किया तो वह भी नहीं बता पाया। तभी सामने से एक सज्जन आते दिखे,जिन्होने कहा कि वे उसी होटल में रुके है,जहां भोजन की व्यवस्था है। हम उनके पीछे चल पडे। दरअसल हम उस होटल से आगे निकल ओ थे। अब पीछे वाली गली में ही पंहुचे। भोजन व्यवस्था होटल कश्मीर हिल टाउन में थी। वैदेही ने भोजन किया और हम वहां से लौटे।
अपने होटल पर पंहुच कर हमारे सहयात्री राजेन्द्र अग्रवाल धार,व कुछ अन्य के साथ बातचीत चलने लगी। रात के साढे बारह हो चुके थे। फिर कमरे में आकर डायरी लिख रहा था कि वैदेही के भडकने के कारण मैने डायरी लिखना बन्द कर दिया।
No comments:
Post a Comment