Saturday, September 21, 2024

यात्रा वृत्तान्त-45/ प्राणप्रतिष्ठा के बाद अयोध्या यात्रा (8 मार्च 2024 से 13 मार्च 2024)


 भव्य जन्मभूमि मन्दिर में रामलला की आरती 


 9 मार्च 24 शनिवार (रात 10.45) 

जानकी महल नया घाट अयोध्या धाम  


अयोध्या की पिछली यात्रा 21 दिसम्बर 23 को रतलाम से शुरु हुई थी और 24 दिसम्बर को हम अयोध्या पंहुच गए थे। 26 दिसम्बर को सुबह करीब नौ बजे अयोध्या से वापसी के लिए निकल गए थे। इस हिसाब से अयोध्या की  पिछली यात्रा के ठीक 73 दिन बाद मैं फिर से अयोध्या आ चुका हूं।  अयोध्या की ये यात्रा पूरी तरह पारिवारिक है। सौ.आई और दादा को श्री राम लला के दर्शन करवाने के लिए ये यात्रा की जा रही है। इस यात्रा में मेरे अलावा,वैदेही,चिन्तन,प्रतिमा ताई,रोचन,नलू आत्या,नारायण और आरती वहिनी इस तरह हम कुल दस लोग अयोध्या पंहुचे है।


  पिछली यात्रा में जब आए थे,तब रामलला के विराजित होने की तैयारियां चल रही थी और अब रामलला अपने भव्य मन्दिर में विराजित हो चुके है।  हमारी यात्रा शुक्रवार 8 मार्च को दोपहर 2.15 पर रतलाम से सूरत मुजफ्फरपुर साप्ताहिक गाडी से प्रारंभ हुई थी। सेकण्ड एसी कोच में हम सवार हुए और 28 घण्टो से ज्यादा का सफर करके अयोध्या धाम पंहुचे।  अयोध्या धाम स्टेशन का नजारा पूरी तरह बदला बदला नजर आया। स्टेशन पर इतनी भीड थी कि ऐसा लगा जैसे कुंभ का मेला चल रहा हो। बडी मुश्किल से आई दादा को ट्रैन से उतारा। यहां व्हील चैयर कुली को ही दी जाती है। कुली को व्हील चेयर के साथ लेकर आया और आई को व्हील चेयर पर बैठाया। 


 जानकी महल जाने के लिए आटो की तलाश भी बडी मशक्कत का काम साबित हुआ। आटो के लिए करीब एक किमी पैदल चलना पडा। तब जाकर एक आटो मिला,जो महज दो तीन किमी के लिए चार सौ रुपए मांगने लगा। मजबूरी थी इसलिए उसी को पकडा। काफी सारा सामान इस आटो में लादा। आइ दादा को लेकर मैं इस आटो से जानकी महल पंहुचा। बाकी के लोग बाकी का सामान लेकर दूसरे आटो से पंहुचे। यहां पहले से रुम तय थे।  रुम तल मंजिल पर चाहिए थे,लेकिन हमारे लिए तीसरे माले पर थे। हांलाकि यहां लिफ्ट की सुविधा थी,इसलिए रुम ले लिए और सभी को सैटल किया। 


 जानकी महल में भोजन की अच्छी व्यवस्था है। पचास रु. प्रति व्यक्ति की दर से भोजन उपलब्ध है। मेरे अलावा सभी ने भोजन किया।  इस दौरान मैं पैदल ही लता मंगेशकर चौराहे तक  घूम आया। लौटा तो फिर वैदेही और चिंतन के साथ दोबारा से लता मंगेशकर चौराहा और आगे सरयू नदी पर तुलसी दास घाट तक घूम कर आया।  कमरे पर लौटकर कल के कार्यक्रम पर चर्चा हुई। पता चला कि दिन के वक्त यहां आटो का रास्ता बन्द कर दिया जाता है। दोनो बुजुर्गो को राम जन्मभूमि मन्दिर के दर्शन कराने ले जाना है। तय ये किया कि सुबह 8 बजे किनकलेंगे। अगर आटो मिल गए तो आई दादा को लेकर जाएंगे वरना उनके बगैर जाकर सारी व्यवस्थाएं समझेंगे और फिर बाद में उन्हे ले जाएंगे। 


 10 मार्च 2024 रविवार रात 9.00 

जानकी महल अयोध्या धाम  


इस वक्त मेरे अलावा बाकी सभी जानकी महल के भोजनालय में भोजन कर रहे है और मैं कमरे में मोबाइल पर न्यूज सुनने के साथ डायरी लिख रहा हूं।


  कल जब यहां पंहुचे थे,तो जन्मस्थान मन्दिर जाने के बारे में जानकारियां जुटा रहे थे। दो अतिवृध्द लोगों को लेकर जाना बहुत बडी चुनौती है। ये चुनौतियां कैसी है,आगे की पंक्तियों में आपको पता चलेगा।  बीती रात हमें बताया गया था कि सुबह 8-9 बजे से मुख्य मार्ग पर वाहन चलना बन्द कर दिए जाएंगे। यादि आपको जन्मस्थान जाना है,तो इससे पहले निकल जाईए। इतनी जल्दी निकलना मुश्किल था,इसलिए हमने सोचा कि सुबह आठ बजे निकलेंगे। अगर वृध्द लोगों को ले जाने के लिए इ रिक्शा मिल गया तब तो ठीक है,वरना हम लोग जाकर सारी व्यवस्थाएं समझ लेंगे। 


हमे बताया गया था कि जन्मस्थान मन्दिर के मुख्यमार्ग पर व्हील चैयर आसानी से मिल जाएगी।  हम सुबह 8 की बजाए साढे आठ पर तैयार हो पाए और नीचे मुख्यद्वार पर पंहुचे। जानकी महल,मुख्य मार्ग से करीब पांच सौ मीटर भीतर है। लेकिन इतनी दूरी भी माता पिता जी पैदल नहीं चल सकते।     मुख्य द्वार पर आटो तो मिल गया,जो जन्मस्थान मार्ग के मुख्य द्वार पर सड़क की दूसरी ओर हमे ले जाने को तैयार हो गया था। अयोध्या की भीतरी गलियां बेहद संकरी है और इन पर बार बार जाम लगता रहता है। कई गलियों के जाम में फंसते फंसाते हम जन्मस्थान के मुख्य द्वार वाली सड़क के दूसरी ओर खुलने वाली गली के मुहाने तक पंहुच गए।   


अब चुनौती थी,मुख्यद्वार के भीतर से व्हील चेयर लेकर सड़क पार करना और फिर दोनो वृध्द जनों को इस पर सवार कराकर फिर से रोड पार करना।  सड़क पर दर्शनार्थियों के रेले पर रेले चले आ रहे थे। हर ओर जय श्री राम के नारे और रामधुन गूंज रहे थे। सड़क को पार करने से पहले व्हील चेयर हासिल करना भी बडी चुनौती है,क्योकि इसमे काफी समय लगता है। इतनी देर तक आटो को रुक नहीं सकता था। वह वृध्दजनों को उतार कर चलता बना। जब तक व्हील चेयर सडक पार करके नहीं आ जाती,तब तक भारी भीड के धक्कों में वृध्दजनों को खडा रखना था। आखिरकार करीब आधे घण्टे में व्हील चेयर मिली और उसे सड़क पार कर गली तक लाया गया। 


 यहीं तीर्थ क्षेत्र न्यास की तारीफ भी की जाना चाहिए। व्हील चेयर मिलने में देर जरुर लगती है,लेकिन हर व्हील चेयर के साथ एक हेल्पर भी साथ आता है। वृध्द व्यक्ति के साथ उनके परिवार के एक व्यक्ति को भी प्रवेश दिया जाता है। खास बात यह है कि व्हील चेयर लेने के लिए वृध्द व्यक्ति का आधार कार्ड जरुरी होता है।  एक बार वृध्द व्यक्ति व्हील चेयर पर सवार हो गया,तब दर्शन करके लौटने तक सारी समस्या हल हो जाती है।  


जैसे ही आई दादा व्हील चेयर पर सवार हुए उनके साथ प्रतिमा ताई और नारायण जी चले गए। बाकी बचे हम छ: लोग सामान्य दर्शन करने के लिए चले।   सामान्य दर्शन के लिए यूपी पुलिस ने सराहनीय व्यवस्था की है।जबर्दस्त भीड के बावजूद धक्कामुक्की नहीं और मात्र आधे घण्टे में दर्शन हो जाते है। यदि आप मोबाइल या अन्य ऐसी वस्तुएं साथ लेकर गए है,जिन्हे भीतर ले जाने की अनुमति नहीं है,तो आपको क्लाक रुम में सामान जमा करने में भी आधे से एक घण्टा लग जाएगा। जो कि हमे भी लगा। इस तरह हम करीब डेढ घण्टे में दर्शन कर बाहर आ पाए। 


  हम मोबाइल जमा करके चले थे,तब दस बजे थे और जब दर्शन करके बाहर निकले तब 10.45 हुए थे। लेकिन अब भीड और बढ चुकी थी। मुख्यमार्ग जिसे अब राम पथ कहा जाता है,पर जबर्दस्त भीड हो गई थी।  हम लौट रहे थे। सभी को भूख लग आई थी,लेकिन होटलों पर जबर्दस्त भीड थी। चलते चलते हम हनुमानगढी के नजदीक पंहुच गए। सोचा दर्शन कर लेते है। मुख्यमार्ग से एक गली पकड कर हनुमान गढी तो पंहुच गए,लेकिन यहां इतनी भीड थी कि 2-3 घण्टे से पहले दर्शन होना संभव नहीं था।  


वहां से लौटे तो एक रेस्टोरेन्ट में मासाला डोसा खाया,जो काफी स्वादिष्ट था। नाश्ता करके जानकी महल के लिए चल पडे। जानकी महल यहां से करीब ढाई किमी दूर था। धूप तेज हो गई थी। तेज धूप से मुकाबला करते हुए जानकी महल पंहुचे। तब तक आई दादा भी जानकी महल पंहुच चुके थे।   यहां पंहुचने पर पता चला कि मन्दिर के दर्शन करके निकलना तो आसान था,लेकिन वहां से आटो लेकर जानकी महल पंहुचना बेहद कठिन था। प्रतिमा ताई पहले तो दोनो वृध्द जनों को सड़क पार कराकर गली तक पंहुची। फिर उसे आटो ढूंढने में काफी मशक्कत करना पडी। वहां तैनात पुलिस वालों ने उसकी मदद की। तब जाकर वह यहां लौट पाई।


  अयोध्या में,मैं अभी पिछले दिसम्बर में ही आया था। लेकिन तब से भी अयोध्या काफी बदल गई है। तब इतनी भीड नहीं थी। विकास कार्य चल रहे थे,जोकि अभी भी चल रहे है,लेकिन अब काफी कुछ पूरे हो चुके है।  भारी भीड के कारण लूटपाट भी बढ गई है। आटो वाले मजबूरी देखकर मुंह मांगे दाम वसूलते है। राम पथ तो फोरलेन बन चुका है,परन्तु भारी भीड के चलते यह भी संकरा लगता है। भीतरी गलियां तो बेहद संकरी है और भीड का दबाव हर गली पर नजर आता है। यहाँ  स्वयं का वाहन लेकर आना बेहद परेशानी वाला हो सकता है। जैसा भी है यहां तो इ रिक्शा ही काम का है। 


 दोपहर को जानकी महल में भोजन के बाद सभी थक चुके थे और सोने के मूड में थे। लेकिन मैं नहीं।  मैं अकेला चल पडा अयोध्या के रास्ते समझने। मुझे पता था कि कारसेवक पुरम और जानकीघाट बडा स्थान ज्यादा दूर नहीं है।  मैं पैदल निकला। चलता चलता पंहुचा कारसेवक पुरम। फिर वहां से मन्दिर निर्माण कार्यशाला। वहां से मैं जाना चाहता था,जानकी घाट बडा स्थान,जहां कारसेवा के दौरान मैने लम्बा वक्त गुजारा था।  चलता चलता मैं वहीं पंहुच गया,जहां सड़क के दूसरी ओर जन्मस्थान मन्दिर का मुख्य द्वार था। मैं वहां से लौटा फिर भीतरी रास्तों पर पूछता पूछता जानकी घाट बडा स्थान पंहुचा। 


मैं यहां के महन्त नमेजय शरण जी से मिलना चाहता था। मुझे बताया गया कि वे चार बजे मिलेंगे। इस वक्त तीन बजे थे। मैं फिर से जानकी महल लौट आया। यहां सभी लोग सो रहे थे।   करीब साढे तीन पर थोडी देर मैने भी झपकी ले ली। करीब साढे चार बजे मैं,वैदेही,प्रतिमा ताई और रोचन फिर से जानकी घाट बडा स्थान के लिए चल पडे। महन्त जी से मुलाकात की इच्छा थी,लेकिन वे वहां नहीं थे। हमने आधे घण्टे वहां इंतजार किया,लेकिन वे नहीं आए। हम वहां से निकल पडे। 


  लौटते समय रास्ते में वाल्मिकी रामायण भवन और मणिराम दास छावनी में गए। वाल्मिकी रामायण भवन में  राम और लक्ष्मण वाल्मिकी के साथ मौजूद है। लेकिन इसकी खासियत यै है कि पूरी वाल्मिकी रामायण पत्थरों पर लिखी गई है। रामायण भवन देखकर आगे बढे तो मैने फिर से कारसेवक पुरम चलने को कहा।   


1989 में जब राम जन्मभूमि आन्दोलन में श्री राम शिला पूजन का अभियान चल रहा था,उस समय दादा इस अभियान के जिले के प्रभारी थे और आई विहिप की जिला प्रभारी थी । उस समय गांव गांव से पूजित रामशिलाएं अयोध्या भेजी गई थी,लेकिन एक आदिवासी गांव की राम शिला सबसे आखरी में पंहुची थी और उसे यहां नहीं भेजा जा सका था।  यह रामशिला तभी से घर पर रखी थी और इसकी रोज पूजा की जा रही थी। आई दादा की इच्छा थी कि जब अयोध्या जाएं तो यह राम शिला वहां पंहुचा दी जाए।  कुल मिलाकर हम राम शिला भी लेकर आए है,जो यहां देना है। 


कार सेवक पुरम में यही पता करना था कि राम शिला किसे और कैसे दें?  कारसेवक पुरम में हमें एक सज्जन मिले जो यहां के कार्यालय प्रभारी है। उनसे चर्चा हुई। उन्होने कहा कि अगर चंपतराय जी को ही देना है,तो सुबह आठ साढे आठ तक उनके मिलने की उम्मीद की जा सकती है। इसके बाद उनका कोई ठिकाना नहीं। वरना यहां दे दीजिए,राम शिला उन तक पंहुच जाएगी।  


कारसेवक पुरम में प्राण प्रतिष्ठा के समय देश भर के रामभक्तों द्वारा भेंट की गई विचित्र और विभिन्न भेंट उपहार रखे गए है। एक बडा सा स्वस्तिक,12 फीट लम्बी बांसुरी,10 फीट उंचा ताला,5 टन वजनी पीतल का घण्टा। जिसका जो भी श्रध्दाभाव था,वह रामलला को भेंट करने ले आया था। ऐसी कई सारी चीजें यहां रखी गई है। 


  कारसेवक पुरम से लौटे तो शाम के पौने सात बज चुके थे। मैं लता मंगेशकर चौराहे पर जाकर एक विडीयो बनाना चाहता था। इसके लिए चिंतन को तैयार किया और हम शाम साढे सात बजे चौराहे पर पंहुचे। मैं,चिंतन और रोचन। चिंतन ने विडीयो शूट किया। लता मंगेशकर चौराहा,यहीं बनाई गई राम की पौडी और रामपथ पर करीब दस मिनट का विडीयो बनाकर लौटे।   जानकी महल में भोजन शुरु हो चुका था। सभी लोग भोजन करने बैठे और मैं उपर आकर डायरी लिखने लगा।  कल सुबह वैदेही और ताई 6 बजे जन्मस्थान मन्दिर के दोबारा दर्शन करने जाएंगे। फिर 8-8.30 पर कारसेवक पुरम जाकर राम शिला भेट करेंगे। इसके बाद अयोध्या के कुछ और स्थान देखने जाने की योजना है।


  इस वक्त रात के दस बज चुके है। आज मैने पैदल बहुत ज्यादा भ्रमण किया है,इसलिे जल्दी सोने की इच्छा है।

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