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12 जुलाई 2024 शुक्रवार (रात 10.45)
बुशहर सदन रामपुर बुशहर (हिप्र)
इस वक्त हम रामपुर बुशहर के इस सरकारी होटल या यूं कहे कि रेस्ट हाउस में है। हम यहां 7.45 पर पंहुच गए थे। बिना मशक्कत के बुशहर सदन मिल गया और यहां तीसरी मंजिल के दो कमरों में हम टिक गए। हम रतलाम से अब तक 1250 किमी दूर आ चुके है।
अब बात आज के सफर की। हम कालका के होटल से नहा धोकर निकले। जिस होटल में हम रुके थे,वहां खाना महंगा था,इसलिए यहां नाश्ता करने की बजाय आगे पहाड में नाश्ता करने का मन बनाया। पहाड बस यहीं से दी तीन किमी पर ही शुरु हो जाता है। लेकिन इससे पहले आज सुबह मेरा पेट गडबड हो गया था। मुझे आज दो बार जाना पडा। इतना ही नहीं पूरे दिन भर पेट गुडगुड करता रहा।
खैर हम कालका से चले,तो करीब एक घण्टे बाद हिमाचल की पहाडियों की शुरुआत में एक रेस्टोरेन्ट पर रुक कर नाश्ता किया। नाश्ता वही,पराठे,आलू के और आलू प्याज के। पराठे खाने के दौरान मुझे एहसास हो गया कि गडबड हो गई है। नाश्ता कर ही रहे थे कि तेज बारिश शुरु हो गई। 10-15 मिनट तक इंतजार करते रहे। बारिश इतनी तेज थी कि गाडी तक जाने में भी भीग सकते थे। होटल का वेटर छतरी ले आया तो हम लोग गाडी में सवार हुए और आगे बढे।
यहां से शिमला करीब 60 किमी दूर था। शिमला पंहुचते पंहुचते डेढ बज गया था। कल मैने शिमला के रेस्टहाउस की बुकींग के लिए आनलाइन एप्लिकेशन डाली थी,लेकिन मुझे बताया गया कि कन्फरमेशन शाम 5 बजे के बाद आएगी। इतने समय में तो हमने जाओ के नजदीक पंहुच जाना था।
शिमला पार करके भोजन करना था। मैने सुबह ही तय कर लिया था कि आज भोजन नहीं करुंगा। शिमला से 20-25 किमी आगे निकल कर एक रेस्टोरेन्ट पर दशरथ जी और नवाल सा. ने भोजन किया। प्रकाशराव और मैने सिर्फ चाय पी। यहां से गाडी मैने सम्हाल ली। रामपुर बुशहर यहां से 80 किमी दूर था। दोपहर के तीन बज चुके थे। इसी दौरान मैने रामपुर के एसडीएम निशांत तोमर से ठहरने की व्यवस्था के बारे में चर्चा की और उन्होने कहा कि बुशहर सदन में आपके लिए दो कमरे बुक करवा दिए जाएंगे। भोजन के बाद जब गाडी मैने सम्हाली तो कुछ 20 किमी तक लगातार उपर चढते रहे। इस दौरान हम कुफ्री और मशोबरा से गुजरे। इन दोनो स्थानों के बारे मे रतलाम एमडीएम संजीव पाण्डेय के यात्रा वृत्तान्त में बडे विस्तार से पढा था। लेकिन अभी हमारा लक्ष्य रामपुर था,यहां रुकने का कोई इरादा नहीं था,इसलिए इन इलाकों से गुजरते हुए पाण्डे जी को याद करता रहा। अपने मित्रो को वह कहानी भी सुनाई जिसमें पंजाब का महाराजा,वायसराय की लडकी को भगा कर ले गया था।
इस चढाई के बाद लगातार ढलान थी। इतनी ढलान कि रामपुर बुशहर भी नीचे ही मिला। हम साढे सात पर रामपुर में प्रवेश कर गए। यहां बुशहर सदन ढूंढने में कोई दिक्कत नहीं हुई। यह मेन रोड पर ही है। यहां पंहुचे तो यहां हमारे आने की खबर नहीं थी। फिर एसडीएम रामपुर को फोन किया। तुरंत हमारे ठहरने की व्यवस्था हो गई।
कमरो में आए,गाडी पार्क कर दी। भोजन यहीं बगल में नीचे हास्पिटल का केन्टीन है,वहीं हो गया। मेरे अलावा तीनो मित्रों ने बढिया भोजन किया। अब सभी लोग सो चुके है। मै डायरी के साथ हूं।
कल हमें यहां से सिर्फ जाओ तक जाना है,जो ज्यादा दूर नहीं है। हम दोपहर तक वहां पंहुच जाएंगे। परसों से हमारी यात्रा शुरु होगी। उम्मीद है कल तक मैं अपने पेट को भी ठीक कर लुंगा।
शुभ रात्रि.......।
चौथा दिन
13 जुलाई 2024 शनिवार (शाम4.40)
ग्राम डोगरी पोस्ट जाओ (होम स्टे)
इस वक्त हम जाओ गांव के उपर डोगरी गांव में भगतसिंह के होम स्टे में है। इस वक्त हम ट्रैकिंग की ट्रायल करके लौटे है।
आज सुबह हम बडे आराम से उठे थे। बुशहर सदन में बडे आराम से नहा धोकर निकले। पास के हास्पिटल के केन्टीन में नाश्ता किया। मैने सिर्फ दही चावल खाए। करीब दस बजे रामपुर से निकले।
यहां से जाओ जाने के लिए,रामपुर से फिर शिमला की ओर 5 किमी पीछे लौटना पडता है। फिर सतलुज नदी का पुल पार करके निरमण्ड और फिर जाओ का रास्ता है। ये करीब 40 किमी का रास्ता है। लेकिन बेहद संकरा और खराब रास्ता। रास्ता इतना संकरा कि सामने से गाडी आने पर किसी एक गाडी को आगे पीछे करके जगह ढूंढना पडती है,जहां से दोनो गाडियां पार हो सके। हम करीब साढे तीन घण्टे में दोपहर डेढ बजे जाओ पंहुचे। जाओ में गाडियों की भरमार। कई पेड पार्किंग बनाई गई है,जो कि फुल हो चुकी थी। हम जाओ के रास्ते पर करीब दो किमी चले,फिर लौट कर मुख्य चौराहे पर आए। तभी एक व्यक्ति से चर्चा हुई जिसने होम स्टे के साथ पार्किंग भी देने का प्रस्ताव रखा। प्रति व्यक्ति पांच सौ रुपए,जिसमें ठहरना खाना सब शामिल है। हमारे यात्रा पर जाने के दौरान गाडी पार्किंग का दो सौ रु. प्रतिदिन अलग से। यह भगतसिंह या भगतराम था,जो यहां भाजपा का बूथ अध्यक्ष है। भगतराम का होमस्टे उपर डोगरी गांव में है। जहां हम रुके हैं वहां से पूरा जाओ गांव नजर आ रहा है।
जाओ गांव में गौरा माता का मन्दिर है। कहा जाता है कि श्रीखण्ड कैलास की यात्रा करने से पहले गौरा माता का आशीर्वाद लेना जरुरी है।
हम यहां होम स्टे पर सडक़ से आए थे। उपर आने पर भगतराम ने कहा कि पहाड से सीधे नीचे उतरने का रास्ता है। हम इस रास्ते से नीचे जाकर गौरा माता के दर्शन कर सकते हैं। भगतराम भी नीचे जा रहा था। उसने हमे भी चलने को कहा। भगतराम के घर के ठीक पीछे से नीचे उतरने के लिए सीढियां बनी हुई है। इन्ही सीढियों से नीचे उतरे। एकदम खडी ढलान। सीढियों पर फिसलने का डर था। सम्हल सम्हल कर उतरे और नीचे पंहुचे। रास्ता सीधे गौरा माता मन्दिर पंहुचा। यहा माता के दर्शन किए। एक विडीयो बनाया।
अब बारी थी वापस जाने की। यह ट्रेकिंग का असल ट्रायल था। आशुतोष,प्रकाश और मैं आगे निकल गए थे। दशरथ जी पीछे थे। लेकिन हम रास्ता भटक गए और कहीं और निकल गए। दशरथ जी पीछे थे,लेकिन सही रास्ते पर थे। वे पहाड पर काफी उपर चढ गए थे। ये पहाड भी करीब 1 हजार फीट उंचा था। दशरथ जी ने मोबाइल पर काल करके बताया कि हम गलत रास्ते पर जा रहे है। तब जाकर हम वहां से पलटे और सही रास्ते पर आए।. ट्रैकिंग का पूरा ट्रायल हो गया। इस बीच हमारा पंजाबी साथी आदित्य भी यहां पंहुच चुका है। हम कल सुबह 5-6 बजे श्रीखण्ड कैलास की यात्रा शुरु करेंगे।
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