Saturday, January 11, 2025

श्रीखण्ड महादेव कैलास यात्रा-3 - 12 घंटो में 12 किमी की खड़ी चढ़ाई

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पांचवा दिन 

14 जुलाई 2024 रविवार (शाम 6.50)

थाटीविल (श्रीखण्ड कैलास यात्रा मार्ग)


इस वक्त हम थाटी विल की एक दुकान में रात्रि विश्राम के लिए रुके हुए हैं। आज हम सुबह साढे छ: बजे से 12 घण्टे लगातार चल कर कुल 12 किमी की दूरी तय करके यहां पंहुचे है।


सुबह साढे छ: बजे हम डोगरी गांव के हमारे होम स्टे से चलना प्रारंभ हुए ते। हम जाओ गांव के उपर थे,इसलिए हमें रास्ता भी उपर वाला दिखाया गया था। असल में हमारे होम स्टे पर हिमाचल के कुछ पुलिसवाले भी रुके हुए थे। वे भी हमारे साथ ही चल रहे थे। उन्होने हमे एक ऐसा रास्ता बताया जिसमें सिंहगाड जाए बगैर ही बराठी नाले तक पंहुचा जा सकता था। हांलाकि वो रास्ता बेहद खतरनाक,बेहद संकरा,तीखी ढलान और खडी चढाईयों वाला पगडण्डी मार्ग था,जिसमें पांव के जरा ही फिसलते आप सैंकडों फीट गहरी खाई में गिर सकते थे।


इस खतरनाक रास्ते से चलते हुए बुराठी नाले के रास्ते पर जा पंहुचे। वहां कुछ लंगर लगे थे। हमे लगा कि यही बराठी नाला है। लेकिन करीब एक किमी आगे बराठी नाले का खास लंगर आया।


अब यहां से लगातार खडी चढाई वाला रास्ता था। यहां से 9 किमी की खडी चढाई पर थाचडू है,जो बेस केम्प है और थाचडू में लंगर भी है। थाचडू में प्रशासन द्वारा बेस कैम्प बनाया गया है,जहां मेडीकल सुविधा भी उपलब्ध है। अब हमने बराठी नाले से चलना शुरु किया। बराठी नाले के लंगर पर चाय और एक पुडी खाकर चलने की शुरुआत की।


यहां से लगातार खडी चढाई है। पूरा रास्ता बेहद संकरा है। उबड खाबड पत्थर। कई जगह तो दो दो फीट के पत्थरों पर चढना पडता है। घना जंगल है। बडे बडे पेड झाडियां। चढाई इतनी खडी है कि हर दस पन्द्रह कदम चलने पर सांस फूल जाती है और सांसे व्यवस्थित होने तक रुकना पडता है। इसी का नतीजा है कि 12 किमी की दूरी तय करने में हमे 12 घण्टे लग गए। यानी 1 किमी चलने में एक घण्टा।


इस ट्रेक पर हमारा हर अगला कदम कम से कम एक फीट उपर ही पड रहा था। हम जब बराठी नाले पर पंहुचे थे,तब मात्र सवा नौ बजे थे। इसलिए हमने सोचा था कि हम कम से कम चार घण्टे और चल सकते है। दोपहर दो बजे तक चलेंगे और दो बजने पर किसी भी दुकान में रुक जाएंगे।


लगातार खडी चढाईयों पर दम निकला जा रहा था,लेकिन दोपहर दो बजे तक चलने का तय किया था,इसलिए चलते जा रहे थे। रास्ते में एक दुकान पर यूट्यूबर बन्टी हिमाचली (ललित ठाकुर) से मेरी मुलाकात हुई। बन्टी के यू ट्यूब चैनल का नाम भी यही है। एक लाख से ज्यादा सबस्क्राईबर है।  हम दोनो ने एक दूसरे के इंटरव्यू लिए। मैने उसे अपने चैनल देशाटन की जानकारी दी। इसी दौरान बन्टी ने हमे कहा कि हम लोगों को थाटीविल रुकना चाहिए। बंटी भी वहीं रुकने वाला था। हमने वहीं से हमारे लिए भी बिस्तर बुक करवा लिए।


अब हम आगे बढे। पसीने में कपडे लगातार भीगे जा रहे थे। हाथ पैर जवाब देने लगे थे। इसी दौरान पानी की बूंदाबांदी शुरु हो गई। इससे बचने के लिए एक दुकान पर रुके।कुछ ही देर में बूंदा बांदी रुक गई। आगे बढे। करीब एक किमी उपर चढने पर फिर कुछ दुकानें नजर आई। यह खुम्बा नामक स्थान था।इसी समय फिर से बूंदाबांदी होने लगी। वक्त भी दो बजे का हो रहा था। इसलिए यह तय किया कि यहीं रुक जाते है। दो लडकियां अंजली और उसकी छोटी बहन साक्षी दुकान चला रही थी। अंजली बीए (जर्नलिज्म) में पढ रही है। दोनो बहने पिछले एक महीने से दुकान चला रहा है। 


साढे तीन सौ रुपए मेें बिस्तर और भोजन। हमने तय कर लिया कि यहीं रुकेंगे। रुकने की बात हुई तो दशरथ जी और आदित्य ने यहीं दाल चावल खाए। पानी पिया। चाय पी। रुकना था,इसलिए जूते वूते खोलकर आराम से पसर गए। नींद भी आने को लगी। लेकिन इस बीच अंजली ने हमें बताया कि दो तीन दिन से यहां पानी नहीं है। खाने और पीने को तो पानी मिल जाएगा,लेकिन सुबह फ्रैश होने को पानी मिलेगा या नहीं इसका कोई भरोसा नहीं। यह सुनने के बाद यहां रुकने का कोई मतलब नहीं था।


इस समस्या पर विचार विमर्श के बाद तय किया कि एक किमी और उपर चढ कर थाटीविल ही चला जाए। फिर से जूते पहने,कपडे टाइट किए। शाम 4.15 पर खुम्बा से चलना शुरु किया।1 घण्टे की दूरी तय करने में हमें पौने दो घण्टे लग गए। हम शाम सवा छ: बजे थाटीविल के इस स्थान पर पंहुचे,जहां हम रुके हुए हैं। पूरा शरीर अकड गया है। हाथ पांव बुरी तरह दर्द कर रहे है। कल अब धीमे धीमे चलने का इरादा है।


 14 जुलाई 24 (शाम 8.25)

थाटीविल

हम लोग अपने टेण्ट में भोजन का इंतजार कर रहे हैं। इस यात्रा पर आने से पहले मेरी निरमण्ड एसडीएम मनमोहन सिंह जी से तीन-चार बार बात हुई थी। यात्रा की व्यवस्थाओं के सम्बन्ध में उन्होने कहा था कि इस बार यात्रा के बहुत तगडे इंतजाम किए गए है।


लेकिन आज हमे व्यवस्ताएं तो दूर,जबर्दस्त अव्यवस्थाएं देखने को मिली। ये पूरा रास्ता घने जंगल का पहाडी रास्ता है। उम्मीद थी कि पहाड में झरने होंगे,पानी होगा,लेकिन पानी नदारद है। इस वक्त पूरे रास्ते में करीब दो हजार यात्री है। सारे के सारे पानी के लिए तरस रहे हैं। 


हम पहले जहां खुम्बा में रुके थे,वहीं हमे पामी की समस्या का पता चला था। यहां अमूमन पानी की 20 रु. वाली बोटल 50 रु. में मिलती है,लेकिन अभी पानी की बाटलें तक उपलब्ध नहीं है। दुकानों पर पानी नहीं है। पानी की राशनिंग और वो भी पहाड पर। ये असंभव सा दृश्य था,जो हमे यहां देखने को मिला। 


मैने एसडीएम को फोन करके भी बताया तो उन्होने कहा कि मैं उपर मैसेज कराता हूं। मैने पूछा पानी आएगा या नहीं। उधर से जवाब आया मैं कैसे बता सकता हूं? मैने उपर मैसेज कर दिया है। 


हम वहां से करीब पौने दो घण्टे का ट्रेक करके यहां थाटीविल आ चुके है। पानी यहां भी राशनिंग से ही मिल रहा है। प्रशासन को शर्म आना चाहिए। प्रत्येक यात्री से रजिस्ट्रेशन के ढाई सौ रुपए लिए जा रहे है,इसके बावजूद यात्री पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं। हमने टेण्ट में आकर सीएम हेल्पलाइन पर भी शिकायत कर दी। अब देखते है इस पर कल क्या होगा?

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