Saturday, January 11, 2025

श्रीखण्ड महादेव कैलास यात्रा-7/ लगातार 19 घंटो की ट्रेकिंग और श्रीखंड कैलास के दिव्य दर्शन

 (प्रारम्भ से पढ़ने के लिए यंहा क्लिक करें )

18 जुलाई 2024 गुरुवार (शाम 5.45)

थाचडू बेस कैम्प.श्रीखण्ड यात्रा मार्ग


हम अब वापसी की यात्रा कर रहे है और इस वक्त भीमद्वार से चल कर थाचडू आ चुके हैं। आज हम 14 किमी चल चुके हैं। 


पहले बात कल की। श्रीखण्ड महादेव के दर्शनों के लिए गए हमारे दोनो साथी दशरथ जी और आदित्य रात को 9.30 पर लौटे,यानी लगातार 20 घण्टे चलते रहने के बाद लौटे थे। इसलिए आते ही उन्हे भोजन करवा कर सुला दिया। उनसे उनकी बेहद कष्टप्रद और कठिन यात्रा का वर्णन पूछने का भी समय नहीं मिला।


खैर सुबह जब उनसे उनकी यात्रा का वर्णन पूछा तो उनका कहना था कि अच्छा ही हुआ कि आप लोग पार्वती बाग से आगे नहीं गए। यात्रियों की भारी भीड के कारण चलने की गति धीमी हो जाती है। संकरी घाटियों पर उपर चढते और नीचे उतरते यात्रियों का जाम बार बार लग रहा था।


दशरथ जी ने जो बताया अब उन्ही के शब्दों में सुनिए।


पार्वती बाग कैम्प के सामने ही एक पहाडी की चोटी नजर आती है। इस पहाडी को पार करने के बाद पहाडी से नीचे उतरते है तो पूरा रास्ता बडे बडे पत्थरों मे से होकर है। करीब एक किमी इन पत्थरों पर चलने के बाद एकदम खडी चढाई शुरु होती है,जो नैन सरोवर जाकर खत्म होती है।


नैन सरोवर से और भी खडी चढाई शुरु होती है। यात्रियों को सामने एक बहुत उंची चोटी नजर आत है,जिस पर चढने के लिए बेहद संकरा रास्ता,जिस पर एक ही व्यक्ति चल सकता है। बडी मुश्किलों से हम दस दस कदम पर रुक कर सांसों को व्यवस्थित करते हुए धीरे धीरे आगे बढते है। यात्री का हर अगला कदम डेढ से दो फीट की उंचाई पर पडता है। राम राम करके यात्री जब चोटी के नजदीक पंहुचता है,तो उसे लगता है कि बस इसी के आगे श्रीखण्ड महादेव होंगे। लेकिन जैसे ही यात्री चोटी पर पंहुचता है,तो उसे सामने एक नई चोटी नजर आने लगती है। या्त्री को लगता है कि शायद इसके बाद श्रीखण्ड महादेव आएंगे,लेकिन इसी तरह एक के बाद एक पांच चोटियां पार करना पडी। तब जाकर वह पहाडी आई जिस पर श्रीखण्ड महादेव विराजित है।


रास्ते में चार ग्लैशियर भी पडते है। प्रशासन ने पहाडियों और ग्लैशियरों पर रस्सियां बान्ध रखी है ताकि यात्रियों को सहुलियत हो सके। लेकिन ग्लैशियरों की रस्सी पर एक वक्त में सौ डेढ सौ यात्री पकडे रखे थे। ये कभी भी खतरनाक हो सकता था। एक ग्लैशियर पर तो यह दृश्य उपस्थित हुआ ही,जहां आने जाने वालो के कारण जाम लग गया।  


पार्वती बाग से सुबह साढे चार पर चले थे। नैन सरोवर तक पंहुचने में करीब डेढ घण्टा लगा और करीब 6 बजे नैन सरोवर पंहुच गए थे। नैन सरोवर एक व्यक्ति गर्मागर्म चाय भी बेच रहा था।


नैन सरोवर से सुबह करीब 6.15 बजे चलने के बाद लगातार साढे पांच घण्टे चलने के बाद हम श्रीखण्ड महादेव के सामने पंहुच गए थे। साढे ग्यारह बजे के करीब श्रीखण्ड महादेव के दर्शन किए। करीब सवा घण्टा वहां गुजारा। 12.50 पर वहां से वापसी की यात्रा शुरु की। उन्ही खतरनाक रास्तो से उतरते हुए 3.45 पर नैन सरोवर पंहुच गए। 


लेकिन इस दौरान मेरा दूसरा साथी आदित्य बिछड गया था। मैं नैन सरोवर पर करीब डेढ घण्टा आदित्य का इंतजार करता रहा। करीब सवा पांच बजे तक जब आदित्य नहीं आया तो मैं नीचे की ओर चल पडा। नीचे चलने के दौरान नागपुर के एक बुजुर्ग और दिल्ली की एक युवती को सहारा दे देकर नीचे उतारा और अपने साथ में लेकर आया। शाम करीब 6.15 बजे मैं पार्वती बाग पंहुच गया। 


पार्वती बाग से भीमद्वार आने के दौरान भी कुछ यात्रियों की मदद की। तब जाकर रात 9.15 पर मैं भीमद्वार पंहुच पाया।


श्रीखण्ड महादेव से कुछ पहले भीम लिपि भी नजर आई थी,जिसके फोटो भी लिए लेकिन भीम लिपि के पत्थर रास्ते से काफी दूर थे। भीम लिपि के पत्थर भी अजूबा है जिस पर अज्ञात लिपि में कुछ लिखा हुआ है। जिसे आज तक पढा नहीं जा सका है। कहते हैं कि भीम ने इन पत्थरों पर लिखा था लेकिन क्या लिखा था कोई नहीं जानता।


 अब बात आज की। आज सुबह हम लोग बडे आराम से 9.30 पर भीमद्वार से निकले। हमारा अंदाजा था कि हम थाचडू या उससे भी आगे जहां तक जा सकेंगे वहां तक जाएंगे। 


भीमद्वार से निकलते ही पहाड चढना था। काफी उंचाई पर चढने के बाद ढलान शुरु हुई। इस तरह करीब 4 पहाड चढने उतरने के बाग हम करीब सवा घण्टे में करीब 11.45 बजे कुंषा पंहुच गए। कुंशा में मैगी का नाश्ता करने के बाद आगे बढे। कुंशा से भीमतलाब के बीच एक ग्लैशियर और कई झरने पार करना थे। ग्लैशियर पार करने के बाद भीमतलाब से ठीक पहले एक झरने पर प्रकाश राव ने नहाने का मन बना लिया। शानदार धूप खिली हुई थी। प्रकाश को देखकर दशरथ जी ने भी कपडे खोल लिए। पीछे मैं और नवाल जी और फिर आदित्य सभी का मन बन गया। सभी ने इस बर्फीले पानी में स्नान किया। 14 जुलाई को चले थे। 13 जुलाई को स्नान किया था। उसके बाद स्नान का मौका आज ही चार दिन बाद मिला था। पांचवे दिन नहाए और वहां से आगे बढे। लेकिन इसी दौरान अचानक धूप गायब हो गई और पूरा पहाड धुंध से ढंक गया। लेकिन हम कुछ ही मिनटों में भीमतलाब पंहुच गए। वहां मीठे दूध की बाटलें पी। फिर भण्डारे में प्रकाश और दशरथ जी ने दाल चावल खाए।


भीमतलाब के बाद सीधे काली घाटी की चढाई चढना थी,जो कि बेहद खडी चढाई थी। हम एक घण्टे में काली घाटी की चढाई चढ गए।  मैं करीब सवा चार बजे काली घाटी के टाप पर पंहुचा। नवाल सा. मुझसे पहले ही टाप पर पंहुच चुके थे। कालीटाप पर सुस्ताने के दौरान नवाल सा. की स्टिक गायब हो गई। पता नहीं कोई स्टिक ले गया या चुरा ले गया।


जब मैं उपर पंहुचा तो पता चला कि नवाल सा. की स्टिक गायब हो गई है। तब मैने अपनी स्टिक नवाल सा. को दी। अब यहां काली टाप से सीधे बराठी नाले तक सिर्फ तीखी ढलान ही है। उतरना मुझे आसान लगता है और मैं तेजी से उतरता हूं। पहाड पर अभी भी धुंध का कब्जा था। करीब एक घण्टे के बाद पेड दिखना शुरु हो गए। काली टाप और उससे उपर आक्सिजन कम होती है,इसलिए बडे पेड नजर नहीं आते। ट्री लाइन आने के कुछ ही देर बाद टेण्ट नजर आए। दशरथ जी पहले से वहां पंहुच चुके थे और टेण्ट पक्का कर चुके थे। दो फोरमेन टेण्ट थे,जिनमें से एक में मैं प्रकाश और नवाल सा. सोने वाले थे दूसरे टेण्ट में दशरथ जी और आदित्य थे। हम शाम करीब 6 बजे थाचडू के शुरुआती पाइन्ट पर पंहुच गए थे और यहीं रुक गए थे। यानी सुबह से हम 14 किमी की दूरी तय कर चुके थे।

(अगला भाग पढ़ने के लिए यंहा क्लिक करें)


No comments:

Post a Comment

श्रीखण्ड महादेव कैलास यात्रा-10/ जहा गुजारी पहली रात वही आखरी रात भी

 (प्रारम्भ से पढ़ने के लिए यंहा क्लिक करें ) 21 जुलाई 2024 रविवार (रात 11.45) प्रिन्स गेस्ट हाउस सवाई माधोपुर (राज.) इस वक्त हम उसी होटल में ...