Saturday, January 11, 2025

श्रीखण्ड महादेव कैलास यात्रा-6 श्रीखंड कैलास के लिए आधी रात को ट्रेकिंग

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आठवां दिन


17 जुलाई 2024 बुधवार (सुबह 9.15)

भीमद्वार बैस कैम्प


मैं,आशुतोष और प्रकाशराव हम तीनो इस वक्त भीमद्वार के उसी टेण्ट में मौजूद है,जहां बीती रात हम सोये थे। 


जैसा कल तय किया था कि आधी रात को एक बजे उठेंगे और दो बजे यात्रा प्रारंभ कर देंगे। बेहद कठिन ट्रेक शुरु करने से पहले यह बेहद जरुरी होता है कि पेट बिलकुल साफ हो। लेकिन आधी रात को एक बजे ना तो प्रैशर बन रहा था और ना पेट साफ होने की कोई उम्मीद थी। खैर बिना मुंह धोये मैने अपने साथियों के साथ ठीक दो बजे यात्रा प्रारंभ की।


हमारी पहली मंजिल पार्वती बाग थी,जो यहीं से साफ नजर आ रही थी। सामने वाले पहाड के टाप पर पार्वती बाग का कैम्प नजर आ रहा था। रात को बारह बजे से इस पहाड पर टार्च की मदद से चढाई करने वाले लोग नजर आ रहे थे। पूरी पहाडी पर जैसे बिजली की सीरीज लगा दी गई हो। हमें सामने वाली पहाडी पर सैंकडों रोशनियां नजर आ रही थी। कई लोगों ने बारह बजे से ही चलना प्रारंभ कर दिया था। हम लोगों ने लोगों की सुनी सुनाई के भरोसे दो बजे यात्रा शुरु करने का निर्णय लिया था,लेकिन शायद यही गलती थी। अगर हम चार बजे चलना शुरु करते तो हम छ: बजे उपर पार्वती बाग पंहुचते और साफ मौसम का पूरा फायदा हमें मिल जाता।


हम चले,रात का घनघोर अन्धेरा और यात्रियों के टार्च की रोशनियां। अपने टेण्ट से निकले। टेण्ट वाले से रास्ते के लिए 4 पराठे भी पैक करवाए थे। हम लोगों ने अपने बैग्स का सारा सामान एक बोरे में भरकर रख दिया था और बैग में केवल पानी की बोटलें और पौंचू रखा था ताकि वजन कम से कम हो।


हमने चलना शुरु किया। मेरा हेडटार्च पहले तो चालू ही नहीं हुआ,फिर चालू हुआ तो रोशनी बेहद कमजोर थी। पहाडी पर रात को ट्रेकिंग करने के लिए रोशनी बेहद जरुरी होती है। मेरे टार्च की रोशनी कम थी,इसलिए मैने अपनी स्टिक आशुतोष की स्टिक से बदल ली थी। आशुतोष की स्टिक में भी टार्च थी। अब मेरे पास भी पर्याप्त रोशनी हो गई थी। 


टेण्ट से चले तो दो नाले और एक ग्लैशियर पार करने के बाद भीमद्वार बेस कैम्प का दूसरा हिस्सा आया। असल में भीमद्वार का कैम्प एक किमी से ज्यादा में फैला हुआ है। यहां ऐसा लगता है,जैसे तम्बूओ का शहर बसा हो। भीमद्वार का दूसरा हिस्सा पार करते ही तीखी ढलान आती है,जो एक झरने तक जाती है। इस बेहद तेज बहाव वाले झरने को पार करने के लिए 4-5 बडे बडे पत्थर रखे हुए है,जिन पर कूद कर इसे पार करना होता है। झरना पार करते ही सामने वाली पहाडी की चढाई शुरु हो जाती है। एकदम खडी चढाई और रास्ता इतना संकरा कि एक समय में एक ही व्यक्ति चढ सकता है। आपके आगे वाला यात्री अगर अपनी उखडी सांसे व्यवस्थित करने के लिए रुका है,तो आपको भी झक मार कर रुकना पडेगा।


भक्तों की भारी भीड और इन चढाईयों पर बार बार लगने वाले जाम के कारण मुझे खीझ होने लगी थी। समस्या यह थी कि रुक कर सांस व्यवस्थित करने के लिए दो कदम तक रखने की जगह नहीं थी। मुझे लगा कि पार्वती बाग के उपर भी यही स्थिति होगी तो चढाई करना मुश्किल हो जाएगा। मेरा मन खराब होने लगा। 


सुबह दो बजे से चले हुए हम लोग ठीक चार बजे पार्वती बाग पंहुच गए। मेरा मन खराब हो ही रहा था पर फिर मैने सोचा कि अगर मैने उपर जाने से इंकार किया तो सबका मूड खराब हो जाएगा। मैने सोचा चल ही लिया जाए। ज्यादा हुआ तो थोडा आगे जाकर लौट जाउंगा। 


पार्वतीबाग कैम्प पर पुलिसवाले उपर जाने वाले यात्रियों के नाम लिख रहे थे। प्रकाशराव ने सभी के नाम लिखवा दिए। पार्वती बाग 4400 मीटर यानी करीब साढे चौदह हजार फीट की उंचाई पर है। यहां ठण्ड जबर्दस्त थी। हाथ सुन्न हो रहे थे।  इसी बाच नवाल सा. ने घोषणा कर दी कि वे आगे नहीं जाएंगे यहीं से लौट जाएंगे। लफडा ये था कि नवाल सा. अपना गर्म जैकेट लाना भूल गए थे और केवल एक इनर और टीशर्ट पहन कर उपर तक जाने की तैयारी में थे। लेकिन पार्वती बाग की ठण्ड ने बता दिया कि बिना जैकेट के उध्दार नहीं है। जैसे ही नवाल सा ने कहा कि उपर नहीं जाना है,मैने भी तय कर लिया कि मैं भी उपर नहीं जाउंगा। हम दोनो को देखकर प्रकाशराव ने भी उपर जाने का मन बदल लिया।


अब केवल दशरथजी और आदित्य आगे जाने वाले थे। नवाल सा. की इच्छा थी कि वे दो तीन घण्टे यहीं रुक जाए लेकिन किसी टेण्ट में जगह नहीं थी। मैने कहा कि वापस लौटना ही सबसे ठीक रहेगा,क्योकि चलते रहने से ठण्ड भी नहीं लगेगी और हम अपने रिजर्व टेण्ट में पंहुच जाएंगे। लगातार दो घण्टे जिस पहाड पर चढे थे,अब उसी पहाड  पर उतरना था। साढे चार बजे हमने उतरना शुरु किया।वही तीखी ढलान,ग्लेशियर,झरना। लेकिन उतरने में हमें डेढ घण्टा लगा और हम करीब 6 हबजे अपने टेण्ट में आ गए। आते ही सो गए। हमारे दोनो साथी श्रीखण्ड महादेव तक पंहुच गए होंगे। उनके आने पर हम वहां के विडीयो आदि देखेंगे और उनके वर्णन सुनेंगे।


आज का पूरा दिन हमें यहीं भीमद्वार में गुजारना है। हम टेण्ट में पडे हैं और बडे धीमे धीमे अपने नित्यकर्म निपटा रहे हैं।


भीमद्वार (दोपहर 12.15)


नित्यकर्म से निवृत्त हुए तो थोडी भूख सी महसूस हुई। याद आया कि हमने चलने से पहले चार पराठे पैक करवाए थे,जिनमें से दो मेरे बैग में थे। हम चैतराम के टेण्ट में है। चैतराम से पराठे गर्म कराए और खाए। जब से यात्रा शुरु की हे,चार दिनों में पहली बार मैने पराठे खाने की हिम्मत जुटाई। पराठे के बाद चाय पी और तब मन बना कि अब भीमद्वार घूमा जाए। 


भीमद्वार का सम्बन्ध भीम से है। अपने अज्ञातवास के दौरान भीम यहां करते थे,यहां भीमगुफा भी है। हम भीम गुफा ढूंढने गए,लेकिन पूछने पर पता चला कि एक पहाडी में गुफानुमा आकृति नजर आती है,इसी को भीमगुफा कहते है। यहां एक और चमत्कार है। यहां पहाड से जितने भी झरने उतर रहे है,सब का पानी बेरंग है,लेकिन एक झरने का पानी लाल है। इस झरने के नीचे की मिट्टी और पत्थर भी लाल  है। कहते है यहां बकासुर राक्षस श्रीखण्ड यात्रियों को परेशान करता था। भीम ने इसी स्थान पर बकासुर का वध किया था,तभी से यह झरना लाल हो गया।


श्रीखण्ड महादेव से जुडी कथा यह भी है कि भगवान शिव ने एक राक्षस की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि वह जिसके सिर पर हाथ रख देगा,वह भस्म हो जाएगा। वरदान मिलते ही भस्मासुर ने शिवजी को ही निपटाने की ठानी। शिवजी उससे बचकर भागने लगे। पहले उन्होने भगवान विष्णु से बचाने के लिए गुहार लगाई और भागते भागते इस क्षेत्र में आकर वे एक शिला में परिवर्तित हो गए। जिसे श्रीखण्ड महादेव कहा जाता है। इधर विष्णु जी ने मोहिनी का रुप धरकर भस्मासुर को इसी भीमद्वार पर रोका और साथ में नृत्य करने का प्रस्ताव दिया। मोहिनी रुप पर मोहित भस्मासुर,विष्णु जी के साथ नृत्य करने लगा। नृत्य करते करते वह इतना तल्लीन हो गया कि जब विष्णु जी ने अपना हाथ अपने सिर पर रखने की मुद्रा बनाई,भस्मासुर ने भी ऐसा ही किया. अपने सिर पर अपना हाथ रखते ही भस्मासुर भस्म हो गया। भस्मासुर के भस्म होने का स्थान भी यही भीमद्वार है।


अब कुछ बातें यात्रा के बारे में। श्रीखण्ड महादेव की यात्रा वैसे तो 3 जून से प्रारंभ हो चुकी है,लेकिन प्रशासन की अधिकृत यात्रा 14 जुलाई से शुरु हुई है। इस यात्रा के लिए प्रशासन द्वारा प्रति यात्री 250 रु. रजिस्ट्रेशन चार्ज वसूला जा रहा है। वहींं यात्रा मार्ग में दुकाने लगाने वालों से भी बिस्तरों की संख्या के मान से राशि वसूल की जाती है। चैतराम के पास 50 बिस्तर की व्यवस्था है,इसलिए उसे 9 हजार रु देना पडेंगे।


यात्रियों और दुकानदारों से वसूली के बावजूद प्रशासन की व्यवस्था कुछ खास नहीं है। यात्रा के पडाव स्थलों पर सुविधाएं दी जाना जरुरी है। यहां तो हालत ये है कि प्रशासन सिर्फ आपातकालीन स्थितियों के लिए तैयारियां  करता है। इस बार यहां एसडीआरएफ तैनात की गई है। लेकिन यात्रियों की अन्य व्यवस्थाओं की कोई चिन्ता नहीं है। यात्रा के पहले दिन बराठी नाले से थाचडू के बीच कहीं पानी उपलब्ध नहीं था। इसकी शिकायत भी हमने सीएम तक को की थी।


इस बार यात्रा में जबर्दस्त भीड़ है। मध्यप्रदेश से भी बडी संख्या मे लोग यात्रा में आए हैं,जो हमे रास्ते में मिलते रहे हैं। प्रत्येक बेस कैम्प पर भण्डारे लगे हुए हैं,जहां यात्रियों को भोजन,चाय,बिस्कीट्स,आदि उपलब्ध कराए जाते हं। लगभग सभी भण्डारो का मैन्यू एक सा है। दाल चावल कढी या राजमा की सब्जी। एकाध जगह पुडी अचार भी मिल जाता है।


इस बार यात्रा में देश भर के लोग आए हैं। महिलाएं भी बडी संख्या में है। पिछले चार दिनों से मौसम बेहद खुशनुमा रहा है। केवल कल यानी 16 जुलाई को भीमद्वार में शाम को बारिश हुई थी,जो कुछ समय बाद थम गई थी। वैसे पहाडों का मौसम पल पल बदलता है। आज के दिन ही जहां सुबह बढिया धूप खिली हुई थी,अचानक धुंध फैलने लगी और देखते ही देखते इस धुंध ने पूरे भीमद्वार को अपने आगोश में ले लिया। टेण्ट के बाहर कुछ भी दिखाई देना बन्द हो गया। अचानक ठण्ड बढ गई। कुछ देर बाद धुंध गायब हो गई और फिर से धूप आ गई।


भीमद्वार कैम्प (दोपहर 2.30)

हमे उम्मीद थी कि हमारे दोनो साथी दो बजे तक श्रीखण्ड कैलास के दर्शन कर लौट आएंगे,लेकिन अब तक वे लौटे नहीं है। पार्वती बाग से श्रीखण्ड जाए बगैर फिर भीम द्वार लौट आने पर हम लोगों में यही चर्चा  हो रही थी,कि हमने क्या पाया और क्या खोया? जाओ से श्रीखण्ड की दूरी 32 या 35 किमी बताई जाती है। भीमद्वार से पार्वतीबाग 2 किमी और वहां से श्रीखण्ड महादेव तक 4 या 5 किमी। इस तरह हम पार्वती बाग तक कुल 35 में से 30 किमी का ट्रैक तो पूरा कर चुके है। हममे से किसी को भी हाई अल्टीट्यूड की समस्या नहीं है। भीमद्वार भी हाईअल्टी एरिया ही है। लेकिन नवाल सा. के पास ठण्ड से बचने के साधनों का अभाव था। मेरा मन भारी भीड के कारण खराब हो रहा था और प्रकाश का भी कुछ कुछ यही हाल था।  हमे लगा कि हमने प्रशासन की अधिकृत यात्रा में आकर गलती कर दी। क्योकि यदि प्रशासन की रोक ना होती तो हम पिछली रात सीधे पार्वती बाग में ही रुकते। पार्वती बाग में रात गुजारते तो बडे आराम से सुबह 5 बजे उपर की चढाई शुरु कर देते। लेकिन प्रशासन ने भीमद्वार से आगे रुकने पर ही रोक लगा दी है। हमने कोशिश की थी कि पार्वतीबाग में रात रुकने की व्यवस्था हो जाए,लेकिन ऐसा नहीं हुआ और हम श्रीखण्ड नहीं जा पाए। इसके विपरित हम यदि अपने पसन्दीदा सितम्बर महीने में किसी प्राइवेट टूर आपरेटर की मदद से ये यात्रा करते,तो बडे आराम से अपनी गति से श्रीखण्ड की यात्रा कर पाते। भविष्य में जब कभी इच्छा होगी तब श्रीखण्ड महादेव की यात्रा इसी तरह की जाएगी।


फिलहाल हम टेण्ट में अपने साथियों का इंतजार कर रहे हैं।

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