-तुषार कोठारी
पूरी दुनिया में गैर राजनीतिक और बिना सरकारी मदद के चलाए जा रहे
स्वयंसेवी सामाजिक संगठनों की संख्या गिनी चुनी ही है। कुछ स्वयंसेवी
अन्तर्राष्ट्रिय संस्थाओं की शाखाएं भारत में भी सक्रीय है। लेकिन इस तरह
की संस्थाओं में सामान्य लोगों की भागीदारी न के बराबर है। किसी एक शहर में
इस तरह के क्लब या संस्था में दो तीन दर्जन लोगों से अधिक सदस्य नहीं
होते। इस लिहाज से इस प्रकार की संस्थाओं का वजूद महज अखबारी खबरों और
दस्तावेजों में होता है,लेकिन समाज में परिवर्तन ला सकने जैसे बडे उद्देश्य
के लिहाज से इस तरह की संस्थाएं पूरी तरह बेअसर है।विश्व का सबसे बडा गैर सरकारी स्वयंसेवी संगठन कौन सा है जो सबसे ज्यादा असरकारक है और सामाजिक व राजनैतिक व्यवस्था में परिवर्तन लाने में सक्षम है? यदि यह प्रश्न किसी प्रतियोगी परीक्षा में पूछा जाए तो इसका उत्तर क्या होगा? निश्चित रुप से अधिकांश प्रतियोगी इसका सही उत्तर नहीं लिख पाएंगे। यदि यही प्रश्न देश के उच्च प्रशासनिक पदों पर आसीन आईएएस अधिकारी,वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी,बुध्दिजीवी कहलाने वाले वर्ग के लोगों से पूछा जाए तो वे भी इसका सही उत्तर दे पाएंगे इसमें शंका ही है।
बहरहाल,इस तरह का संगठन भारत में ही है और निस्संदेह रुप से पूरे विश्व में इस तरह का विशाल सामाजिक व स्वयंसेवी संगठन मौजूद नहीं है। इस संगठन की कार्यप्रणाली न सिर्फ विचित्र है,बल्कि कई अर्थों में इसकी कार्यप्रणाली शोध का विषय भी है। इतना ही नहीं यह संगठन अपने आप में शोध का विषय है। लेकिन यह आश्चर्य भी भारत में ही संभव है कि इतना आश्चर्यजनक संगठन देश में होने के बावजूद न तो उसे लेकर आजतक कोई शोध किया गया और ना ही देश की बुध्दिजीवी और प्रभावशाली वर्ग को इस संगठन के बारे में कोई ठोस जानकारी है। इस संगठन के बारे में लोगों द्वारा बनाई जाने वाली धारणाएं अक्सर गलत होती है क्योकि शोध और अध्ययन का विषय होने के बावजूद बुध्दिजीवी और सक्षम लोग इस संगठन के बारे में बात करने से डरते है। इतना ही नहीं,अभी तक तो इस संगठन के अस्तित्र को नकारने तक की कोशिशें होती रहती थी। शासकीय स्तर पर कभी भी इस संगठन को किसी प्रकार की मान्यता नहीं दी गई। इस संगठन को लेकर इतनी अधिक गलतफहमियां है कि यह भी एक रेकार्ड है।
इस आलेख को पढ रहे कई पाठक अब तक शायद अंदाजा लगा चुके होंगे कि यह संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है। संघ की विचारधारा और कार्यप्रणाली को लेकर न केवल विवाद की स्थितियां है बल्कि भ्रमपूर्ण स्थितियां है।
वर्तमान समय में देश में भाजपा की सरकार है। भारत की स्वतंत्रता के बाद यह दूसरा मौका है कि संघ का प्रचारक रहा कोई व्यक्ति देश के सर्वोच्च पद पर आसीन है। लेकिन इसके बावजूद देश के सामान्य बुध्दिजीवी वर्ग और यहां तक कि प्रशासनिक और पुलिस उच्चाधिकारियों में भी आरएसएस को लेकर भ्रम की स्थितियां बनी हुई है।
अभी हाल ही में मध्यप्रदेश के एक सेवानिवृत्त वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने एक प्रमुख हिन्दी दैनिक में हिन्दुत्व पर एक लेख लिखा। इस लेख की अन्य बातों को अलावा उक्त लेखक महोदय ने संघ के बारे में कुछ तथ्य इतने गलत लिखे है कि उन्हे पढकर लेखक के सामान्य ज्ञान पर हंसी आती है। मुद्दा वही है। संघ की विचारधारा और अत्यन्त विशीष्ट कार्यप्रणाली को लेकर सामान्य से लेकर विशीष्टजनों तक में जानकारी का सर्वथा अभाव है और जानकारी का यही अभाव कई बार गलतफहमियों को जन्म देता है।
एक दूसरा पहलू देखिए। जिलों में प्रशासन को सुव्यवस्थित ढंग से चलाने के लिए कलेक्टर व एसपी जिम्मेदार होते है। कोई भी प्रशासन बिना सामान्यजन की भागीदारी के व्यवस्थित नहीं चल सकता। धार्मिक उत्सवों के दौरान विभिन्न जिलों के प्रशासनिक अधिकारी शांति समिति की बैठकें आयोजित करते है। इन बैठकों में विभिन्न धर्मों और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों को बुलाया जाता है,ताकि किसी प्रकार का विवाद न हो और यदि विवाद हो भी जाए तो ये प्रभावशाली लोग उसे आपसी सहमति से सुलझा लें। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश का सर्वाधिक सक्रीय और प्रभावशाली गैर सरकारी संगठन है। लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों को अपने जिलों के आरएसएस के पदाधिकारियों के बारे में कोई जानकारी नहीं होती। संघ के महत्व को न समझने और उपेक्षापूर्ण रवैया रखने का आलम यहां तक है कि अधिकांश जिलों के पुलिस अधीक्षक और विशेष शाखा के कर्मचारियों को भी इस संगठन के पदाधिकारियों की कोई जानकारी नहीं होती। इतना ही बल्कि अधिकांश प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों को तो आरएसएस के संगठनात्मक ढांचे की कोई जानकारी नहीं है। वे तो कार्यवाह को कार्यवाहक ही बोलते और कहते है।
संघ अपने कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को मीडीया और प्रचार से दूर रहने की नसीहत देता है। यही एक बडा कारण है कि अपनी स्थापना के 90 वर्षों के बाद भी संघ पूरी तरह मजबूती के साथ कार्यरत है और उसके पास निष्ठावान समर्पित कार्यकर्ताओं की लाखों करोडों की संख्या मौजूद है। प्रचार से दूर रहकर काम करने की संघ की नीति का ही असर है कि संघ के कार्यकर्ताओं में पद और नाम की लालसा वाली बीमारी नहीं है। इन्ही बीमारियों की वजह से राजनीतिक दलों में विवाद की स्थितियां बनती है।
लेकिन इसके बावजूद यह तथ्य अपनी जगह कायम है कि संघ के प्रति महत्वपूर्ण लोगों में जानकारी के सर्वथा अभाव है। प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों में देश ही नहीं विश्व के सर्वाधिक प्रभावशाली संगठन के बारे में जानकारी का अभाव होना उनकी अक्षमता ही कहा जा सकता है। इसी तरह समाचार पत्रों के लेखक और टीवी चैनलों पर बहस करते बुध्दिजीवियों में संघ के प्रति जानकारी के अभाव को उनका अज्ञान कहा जा सकता है। लेकिन सबसे दुखद पहलू यह है कि जानकारी न होने के बावजूद ये बुध्दिजीवी और विद्वान अपने आपको उस संस्था का विशेषज्ञ साबित करने का प्रयास करते है। वे बेहिचक पूरे आत्मविश्वास के साथ उटपटांग जानकारियां और तथ्य पेश करते है।
जो संगठन देश में इतना बडा बदलाव ला चुका हो,कम से कम उसके बारे में भ्रम का वातावरण बनाए रखना और बिना जानकारी के उटपटांग निष्कर्ष निकालने का दौर अब समाप्त होना चाहिए। संघ से जुडे लाखों कार्यकर्ता मंगल ग्रह से नहीं उतरे है,वे इसी देश में रहते है और देश प्रेम की बातें करते है। उनकी आलोचना की जा सकती है लेकिन इसका आधार वास्तविक तथ्य होना चाहिए न कि सुनी सुनाई बाते या अनुमान। संघ के कार्यकर्ता,जब जब टीवी चैनलों पर बहस करते या अखबारों में कालम लिखने वाले बुध्दिजीवी लेखकों के लेखों में संघ के प्रति जानकारी का अभाव पाते है,उन्हे उनकी बुध्दिजीविता पर तरस आता है। केन्द्र में भाजपा सरकार बनने के बाद से अखबारों और न्यूज चैनलों की सुर्खियों में आरएसएस को ज्यादा जगह मिलने लगी है,लेकिन मीडीया के बडे वर्ग का रवैया संघ के प्रति अब भी वही है। संघ उनके लिए बडी विचित्र सी चीज है। वे संघ को राष्ट्र के प्रति समर्पित एक स्वयंसेवी संगठन के रुप में देख समझ ही नहीं पाते। उनकी खबरों में संघ के प्रति जानकारी का अभाव स्पष्ट रुप से झलकता है।
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