27 अगस्त 2016 शनिवार
होटल पुलान तकलाकोट (तिब्बत)रात 8.10 (आईएसटी) / रात 10.40 (चाईना टाइम)
कल रात से लेकर आज रात,अभी तक का समय बेहद सनसनीखेज गुजरा। बीती रात आठ बजे सौ गए थे,क्यङ्क्षकि रात दो बजे लिपूलेख पास के लिए निकलना था। इससे पहले तक मौसम ने कहीं दगाबाजी नहीं की थी,लेकिन रात पौने आठ बजे से हलकी बूंदाबांदी शुरु हो गई थी,जिसने दस बजते बजते बूंदाबांदी का स्वरुप ले लिया था। रात पौने एक पर जब मैं उठा तो बारिश हो रही थी। कडाके की ठण्ड में बरसते पानी में बाहर निकलना कठिन था,लेकिन नित्यकर्म के लिए बाहर निकला। वैसे दो बार की आदत है,मौसम की प्रतिकूलता के कारण मैने एक बार में ही मामला खत्म कर दिया और यहीं गलती की।
ठीक दो बजे हम लिपूलेख के लिए निकल पडे। इस यात्रा के लिए पहली बार हमने ढाई हजार प्रतिव्यक्ति के हिसाब से दो घोडे भी किए थे। घोडे वाले ने डेढ बजे आने का कहा था,लेकिन हमारे निकलने तक वह नहीं आया। नतीजा यह हुआ कि अपना सामान अपने कंधों पर लाद कर हम निकल पडे। घोडे वाले करीब आधे घण्टे बाद रास्ते में हमसे मिले। हमने जी भर के गालियां दी और सामान उन्हे दे दिया। बारिश बदस्तूर जारी थी। घनघोर अंधेरे में टार्च की रोशनी में जैसे तैसे खडी चढाई पर हम चल रहे थे। करीब तीन किमी की चढाई के बाद पहला पडाव आया। यहां कुछ देर रुके। फिर चले। बारिश लगातार बरस रही थी। फिर पैदल चले। आगे बढते गए। अब धीरे धीरे जमीन पर बर्फ नजर आने लगी थी। मुझे मेरे घोडे वाले ने पूछा कि आप घोडे पर नहीं बैठ रहे हैं तो मैं बैठ जाऊं ? मैने सोचा कि ये बैठे तो मैं खुद ही बैठ जाता हूं। पौनी पर बैठने के चक्कर में मैं एक बार नीचे गिर गया। फिर घोडे पर सवार हुआ। थोडी देर में उसकी जीन गडबड हो गई। मुझे उतार कर उसने जीन कसी और मुझे बैठाया। अभी दस ही मिनट गुजरे थे कि दूसरा पडाव आ गया। दूसरा पडाव,यानी चारों ओर बर्फ ही बर्फ। यहां बताया गया कि हमें यहीं एक घण्टे इंतजार करना होगा। क्योकि लिपू पास पर चाइना के अधिकारी पंहुचेंगे नहीं। ऊं चाई पर इंतजार करने से ज्यादा अच्छा यहीं इंतजार करना है। यहीं पर एक दो महिलाओं को ठण्ड की प्राब्लम होने लगी। मेरे हाथ और आशुतोष के हाथ पूरी तरह ठण्डे हो गए थे। जो दस्ताने हमने पहने थे,उनमें पानी घुस गया था। हाथ पूरी तरह ठण्डे हो गए थे। दस्ताने उतारकर हाथ रगड रगड कर गर्म करने के प्रयास करते रहे। बर्फ लगातार गिर रही थी। करीब पैंतालिस मिनट इंतजार के बाद हमें बताया गया कि अब हम आगे बढ सकते हैं। मैने तो पैदल ही चलने का निश्चय किया। आशुतोष घोडे पर सवार हो गया। मैं एक एक कदम रखते रखते आखिरकार वहां पंहुच ही गया,जिसे लिपूलेख पास कहते है। मौसम की हालत यह थी कि रोशनी होने के बावजूद 20-30 मीटर से आगे कुछ नजर नहीं आ रहा था। हर ओर सफेद धुंध छाई हुई थी। लिपूलेख पास पार करते ही,आगे बर्फ में खतरनाक ढलान थी। बर्फ में इस ढलान पर जबर्दस्त फिसलन थी। हांलाकि उंचाई से नीचे उतरना दिल फैफडों के लिए बेहद आसान होता है,केवल पैरों को लिए कठिन होता है। हम उतरने लगे। सामने से सौलहवीं बैच के यात्री आ रहे थे। खडी ढलान उतरने के बाद,करीब ढाई किमी पैदल चलने के बाद नीचे चीनी सरकार की एक गाडी ने हमें लिफ्ट दी औव करीब दो किमी आगे खडी बस तक पंहुचाया। बस में करीब डेढ घण्टे इंतजार के बाद यह बस चली। आशुतोष चूंकि दूसरे पडाव से सीधे घोडे पर चला था,इसलिए लिपूपास पंहुचने वाला वह पहला यात्री था। लिपू पास से वह अपना बैग लेकर नीचे उतरा,तो करीब छ:-सात किमी पैदल चल कर बस तक पंहुचा था। हमने इससे आधा रास्ता तय किया था।
बस में लम्बे इंतजार के बाद बस चली। बस करीब एक घण्टे बाद तकलाकोट के कस्टम आफिस पर पंहुची। वहीं करीब एक घण्टे सामान की चैकींग के बाद हमें होटल लाया गया। होटल आते ही समय में ढाई घण्टे का परिवर्तन हो गया। अब यहां चाईना टाइम चल रहा है।
होटल में आए। थोडी देर सैटल हुए ही थे कि भोजन की आवाज लग गई। करीब एक बजे(आईएसटी) पर भोजन किया। बताया गया कि शाम का भोजन साढे आठ बजे होगा। यानी भारतीय समय के अनुसार शाम छ: बजे। समय बेहद कम था। इसी समय में दाढी बनाई। स्नान किया। शाम के भोजन से पहले बाजार घूमने गए। 3 लडके जो पार्टर के रुप में भारत से यहां आए थे,हमें मिल गए। उनसे हमारी दोस्ती हो गई। उन्ही के साथ बाजार घूमे। ठीक 5.50 पर होटल वापस आ गए। साढे छ: तक भोजन भी कर लिया। भोजन के बाद व्हाट्सएप कालिंग पर वैदेही,राजेश घोटीकर से विस्तार से चर्चा हो गई। भारत से आए लडकों के साथ बाजार घूमने का कार्यक्रम था,लेकिन थकान के चलते रद्द कर दिया। कल दोपहर में बाजार घूमेंगे।
रात को की गई ट्रैकींग में कई खास बातें थी। हमें कहा गया था कि टार्च लेकर आना। हम लाए नहीं थे। दिल्ली में चांदनी चौक से दस-दस रुपए के टार्च वाले की चेन लिए थे। इनकी रोशनी सिर्फ दिखावे की थी। इन्ही के सहारे लिपूलेख दर्रा चढ लिए। अब लगता है कि अच्छे किस्म के टार्च होना चाहिए। कल दो छाते भी खरीदेंगे। बारिश में छाते ही सबसे ज्यादा मददगार होते है। कल दिन भर यहीं आराम करना है। परसों बस का सफर है। इसलिए कोई दिक्कत नहीं है।
28 अगस्त 2016 रविवार
रुम न.209/होटल पुलान,तकलाकोट(तिब्बत)सुबह 6.00(आईएसटी)/8.30 चाइना टाइम
कल जैसे ही इस होटल में बस ने प्रवेश किया था,मन प्रसन्न हो गया था। बडे से गेट से बस ने भीतर प्रवेश किया। गेट के दोनो दो सुन्दर भवन थे। जिनके बडे से गेट और भीतर बडी सी लाबी। हमें बाई विंग में ले जाया गया। कांच के बडे गेट खोलकर भीतर विंग में सभी यात्री बैठ गए। चीन सरकार द्वारा नियुक्त गाइड गुरु चो,20 कमरों की चाबियां ले आया। हमें 209 न.का कमरा मिला था,जो पहले माले पर था।कमरे में पंहुचे तो यह भी बडा सुन्दर था। टीवी,दो पलंग।साफ स्वच्छ वाशरुम।बाथरुम की खासियत यह थी कि इसमें सिर्फ वाश बेसिन में नल था। स्नान के लिए नल नहीं था,सिर्फ शावर था। वाश रुम में बाल्टी भी नहीं थी। सिर्फ एक मग था। होटल के कमरे में सबकुछ था,लेकिन पानी पीने के लिए जार नहीं था। कैलाश यात्रियों को इस होटल में रुम तो दिए जाते है,लेकिन रुम सर्विस नहीं दी जाती। यात्रियों की व्यवस्था कामन फण्ड से की जाती है। होटल में गेट से घुसते ही,दायें व बाये विंग में तो होटल के कमरे है,जबकि ठीक सामने बने एक भवन में नीचे एक हाल और कीचन है। यह किचन कैलाश यात्रियों के लिए है। यहां यात्रियों द्वारा किराये पर लिए गए कुक भोजन बनाते है। यात्रियों को अल्पाहार,भोजन आदि के लिए इसी हाल में पंहुचना पडता है। कल हमें यहां के लंच,ब्रेकफास्ट आदि का समय बताया गया था। 9 बजे नाश्ता,२बजे भोजन,5 बजे चाय और शाम साढे आठ बजे डिनर। ये सभी समय चीनी समय है। यानी सुबह का नाश्ता हमें सुबह साढे छ: पर मिलेगा।
होटल पुलान,भारत के यात्रियों के अलावा,नेपाल,दिल्ली से प्राइवेट टूर आपरेटरों द्वारा लाए जाने वाले यात्रियों के लिए भी नियत है। कल यहां आने के बाद हमने कई ग्रुप्स यहां देखे।
चीनी अधिकार के बाद तिब्बत का ये व्यापारिक कस्बा पूरी तरह चीनी असर में नजर आता है। शहर की किसी दुकान पर अंग्रेजी के साइनबोर्ड नजर नहीं आते। सभी पर तिब्बति और चीनी भाषा में लिखा गया है। अंग्रेजी के शब्द भी यहां ढूंढना कठिन है। केवल सरकारी इमारतों पर उनके नाम अंग्रेजी में भी लिखे गए हैं। वाहनों के नम्बरों को छोड दिया जाए,तो कंपनी का नाम,माडल सब कुछ चीनी भाषा में है। हम भारतीयों के लिए यह सीखने की बात है कि सबसे क्लिष्ट और अवैज्ञानिक भाषा होने के बावजूद चीनी लोग अपनी ही भाषा का उपयोग हर जगह कर रहे हैं। यहां तक कि उनके टीवी के रिमोट के बटनों पर भी चीनी भाषा का ही उपयोग ै। कमरे के टीवी में चैनल तो नहीं चल रहे हैं,लेकिन टीवी की स्क्रीन चालू होते ही,चीनी भाषा के शब्द सामने आते है। दूसरी ओर हम भारतीय अपनी वैज्ञानिक सुन्दर भाषाओं का उपयोग करने में सकुचाते है और विदेशी भाषा अंग्रेजी पर गर्व करते हैं।
अब तक हुई चर्चाओं से मिली जानकारी के मुताबिक,चीन ने तिब्बत पर कब्जा करने के बाद यहां के जनसंख्या संतुलन को भी बदल दिया है। चीन के अन्य क्षेत्रों के लोगों को यहां लाकर बसाया गया है,ताकि मूल तिब्बतियों का प्रभाव कम हो सके। यूं तो पर्यटन के लिहाज से चीन की कोई पूछ परख अब तक सुनी नहीं गई है। एक चीन की दीवार के अलावा कोई बडा पर्यटन आकर्षण वहां सुनने में नहीं आता है। कम्यूनिस्ट कठोरता के चलते चीनी लोग भी शायद बाहरी पर्यटकों को अपने देश के भीतर तक आने देने के लिए राजी नहीं है। लेकिन वे तिब्बत के पर्यटन से खासी कमाई कर रहे हैं। लगता है कि तिब्बत के प्राकृतिक सौन्दर्य को चीन ने कमाई का जरिया बना रखा है।
28 अगस्त 2016 रविवार
होटल पुलान,तकलाकोटशाम 4.00(आइएसटी)/7.15 चीनी समय
भारतीय समय के अनुसार,सुबह साढे छ: पर नाश्ते का समय था। चूंकि आज आराम का दिन था,इसलिए सुबह फ्रैश होकर सीधे नाश्ता करने पंहुच गए। नाश्ते में नूडल्स बनाए गए थे। नूडल्स खाकर चाय पी। बाहर मैदान में शानदार धूप खिली हुई थी। तकलाकोट कस्बा 12930 फीट की ऊं चाई पर है। चारों ओर नंगे मटमैले पहाड है,इसलिए दिनभर ठण्डक तो रहती ही है। इस ठण्डक में धूप का एहसास बडा सुखद था। दूसरी मजेदार बात यह कि हमारे विंग के सामने वाले विंग में होटल का रिसेप्शन है। इसके नजदीक वाई-फाई बढिया चलता है। इसलिए ज्यादातर यात्री यहीं खडे होकर वाई-फाई का लाभ ले रहे थे। करीब एक डेढ घण्टे वहीं खडे रहे। फिर कमरे में लौटे। बडे आराम से शेविंग स्नान आदि किया। भारतीय समय के मुताबिक साढे ग्यारह पर दोपहर का भोजन था। हम लोग करीब साढे दस पर होटल से निकले। हमारे दल के साथ भारत से आए तीन पोर्टर धर्मू,नरेन्द्र और विकी(विक्रम) मिल गए। उनके साथ बाजार घूमे। करीब बारह बजे लौटे। सीधे भोजन करने पंहुचे। हमारे दल के सभी यात्री भोजन कर चुके थे। हमने भी भोजन किया। भोजन में दाल चावल और सब्जी थी। भोजन करके कक्ष में आए। मुझे सुबह से थ्रोट इन्फेक्शन हो रहा था। मैने सर्दी जुकाम के लिए एकोलेट पी तो खा ली थी,लेकिन ओफ्लोक्सिन ध्यान नहीं आ रही थी। भोजन के बाद फिर से एकोलेट गोली खाई। सो गया। नींद में ध्यान आया कि मैने दिल्ली में ओ फ्लोक्सिन खरीदी थी। बैग में टेबलैट मिल गई। फौरन खाई और फिर सो गया। करीब चार बजे आंख खुली। अब शाम के भोजन का समय नजदीक था। थोडा बाजार घूम कर आए। ठीक सवा छ: पर भोजन करने पंहुच गए। अभी भी रोटी नदारद थी। गोभी पुलाव बनाया गया था। लहसन की चटनी साथ ले गए थे। भोजन करके कमरे में लौटे। हमारे पोर्टर साथी शाम को डिस्को क्लब में ले जाने का वादा करके गए थे। वे रात करीब साढे पर आए। होटल से पचास कदम की दूरी पर ही क्लब था,जहां तिब्बति चीनी लडकियां स्टेज पर डांस करती है। तेज म्यूजिक,चीनी,नेपाली भाषा के गीत,लडकियों का डांस,उन्ही की सर्विस। करीब एक घण्टा वहां गुजारा। सौ युवान खर्च किए और होटल में लौट आए। अभी भारतीय समय के अनुसार रात के साढे दस हो रहे हैं। सुबह आठ बजे डारचेन के लिए निकलना है। भारतीय समय के मुताबिक पांच बजे उठना पडेगा।
शाम को होटल का विडीयो बनाने के लिए कैमरा लेकर उतरा था। होटल के भीतर शाट्स लिए। इच्छा हुई कि बाहर से मेन गेट का भी विडीयो ले लूं। एलओ साहब अपने दो साथियों जगजीत और तनु के साथ बाहर निकल रहे थे। इन्होने विडीयो बनाने से रोका,पर मैं बना चुका था। उन्होने नजदीक आकर बताया कि यहां रोड पर फोटोग्राफी प्रतिबन्धित है। जगह-जगह कैमरे लगे है। कोई भी कैमरा जब्त कर सकता है। धुकधकी हुई कि पता नहीं क्या होगा? लेकिन पर्याप्त समय गुजर चुका है। कुछ नहीं हुआ।
29 अगस्त 2016 सोमवार
होटल पुलान तकलाकोटसुबह 6.30 (आइएसटी)/ 9.00 चीनी समय
अब यहां से निकलने की तैयारी। लगेज बांधना बाकी है। सामान जमा दिया है। नाश्ता करके बस में सवार होना है। बस हमें डारचेन पंहुचाएगी। इससे पहले ही कैलाश के दर्शन भी हो जाएंगे और रास्ते में राक्षस ताल और मानसरोवर दोनो पडेंगे। वरिष्ठ यात्रियों का कहना है कि मानसरोवर का पहला स्नान आज ही किया जा सकता है।
शाम 7.49 (भारतीय समय)/रात 10.20 चाइना टाइम
द माउन्टेन गार्डन होटल,डारचेन
चाइना टाइम के मुताबिक सुबर 10.45 पर हमारी दो बसें,एक 19 न.की और एक 57 न. की होटल से रवाना हुई। मौसम बेहद खुशगवार था। धूप खिली हुई थी। तकलाकोट कस्बे से निकलते ही चारो और भूरे मटमैले पहाड। इन पहाडों पर पेड पौधों का नामोनिशान तक नहीं। नीचे,हल्की सी घांस,कुछ घास के फूल। चारों ओर उंचे पहाड। कुछ पहाड बर्फ से ढंके,जिनपर सूर्य की रोशनी चकाचौंध का दृश्य उत्पन्न कर रही थी। इन पहाडों के बीच घाटी में चीन द्वारा शानदार सड़क बनाई गई है। करीब डेढ घण्टे के सफर के बाद हमारे सामने था राक्षस ताल। यहां लोग पत्थर इक_े करके शिवंलिंग बनाते है। शांत नीला जल। चारों ओर पहाड। उपर एकदम साफ नीला आसमान। पहाडों के आसपास नीले आसमान में सफेद बादलों की सुन्दर चित्रकारी। कुल मिलाकर अद्भुत दृश्य था। यहां,तीन चार लोगों ने स्नान किया। जहां बस रुकी थी,वहां से राक्षस ताल का किनारा काफी नीचे और दूर था। फिर भी जिन्हे नहाना था,वे जल्दी जल्दी चले गए। करीब चालीस मिनट यहां रुके। सभी ने फोटो विडीयो बनाए। एलओ श्री गुंजियाल सा. ने मेरे कैमरे से फोटो लिए। मैने उनके फोटो लिए। विडीयो भी बनाए।
राक्षस ताल से आगे बढे तो मात्र 20-25 मिनट में हम मानसरोवर के किनारे जा पंहुचे। मुख्यमार्ग से मानसरोवर के किनारे तक जाने के लिए कच्ची सड़क है। बस,बिलकुल किनारे पर जाकर रुकी। सारे यात्री उत्साह के साथ नीचे उतरे। यात्रा में उत्तर प्रदेश मैनपुरी से आए पं.आशुतोष मुकर्जी ने उतरते ही मानसरोवर को साष्टांग दण्डवत प्रणाम किया। फिर अचानक भाव विव्हल होकर रो पडे। उन्हे देखकर डेनमार्क से आया प्रतीक उपाध्याय भी रो पडा। मैने उनके विडीयो बनाए। सारे लोग मानसरोवर के ठण्डे जल में डुबकी लगाने उतर पडे। आठवीं बार कैलाश जा रहे पार्थसारथी जी अपने साथ शिव की पीतल की प्रतिमा लाए हैं। उन्होने प्रतिमा वहां रखकर पूजा अर्चना की। सारे यात्री इस पूजा में शामिल हुए। भजन कीर्तन भी हुए।
मानसरोवर को देखकर असीम शांति का अनुभव होता है।
मानसरोवर से स्नान पूजा कर आगे बढे और कुछ ही देर में डारचेन के द माउन्टेन गार्डन होटल में आ गए। होटल में एक एक कमरे में दो दो व्यक्ति है। रुम साफ सुथरे है,लेकिन व्यवस्थाएं नदारद। होटल में सामान टिकाते ही अधिकांश लोग हाई एल्टीट्यूड की आदत बनाने और खरीददारी करने बाहर सड़क पर पंहुच गए। इस छोटे कस्बे में एक ही मुख्य सड़क है,जिसके दोनो ओर तिब्बतियों ने दुकानें खोल रखी है। यहां दुनिया भर की चीजे मिलती है। हमें भी छाते और टार्च लेना था। दो-तीन दुकानों पर घूम कर प्रेमा नामक महिला की दुकान से साठ युवान में दो छोटे टार्च खरीदे। वापस होटल में लौटे। यहां के किचन ब्लाक के बीच में एक हाल है,जिसमें सोफे व टेबलें लगी है। साथ के दो कमरे भोजन बनाने के लिए है। हमारे साथ आए कुक रसोई में भोजन की तैयारी में जुटे थे। सारे यात्री हाल में एकत्रित हो गए थे। माहौल को देखते हुए एलओ श्री गुंजियाल सा. ने जयकारे लगवा कर माहौल को खुशनुमा बना दिया। फिर कीर्तन होने लगा। कीर्तन के बाद मैने आशुुतोष मुकर्जी से व अन्य यात्रियों से कहा कि वे अपने अनुभव सुनाएं। आशुतोष मुकर्जी का कहना था कि गूंगे को मिठाई खाने के बाद जो अनुभव होता है,वैसा अनुभव हो रहा है।
यह बात चलते चलते 2013 के केदारनाथ त्रासदी पर पंहुच गई। आईजी गुंजियाल सा. ने बचाव और राहत कार्यों के कई अनुभव सुनाए। उनके साथी जगजीत ने भी दिल दहला देने वाले कई अनुभव साझा किए। ये सिलसिला काफी देर तक चला। थोडी देर बाद भोजन तैयार होने की जानकारी मिल गई। दाल,चावल,सब्जी,रोटी का भोजन करते करते भारतीय समय के तीन बज गए। यानी कि चीनी समय के अनुसार शाम के साढे पांच हो गए। इसलिए शाम के भोजन की छुट्टी हो गई।
मुझे फिर हल्की हरारत महसूस हो रही थी। मैने कमरे में आकर गोली खाई और एक घण्टे बेहतरीन नींद निकाली। मुझे और आशुतोष को अबतक हाई एल्टीट्यूड का कोई असर होता नहीं दिख रहा था। हम अभी करीब साढे पन्द्रह हजार फीट की उंचाई पर हैं। यहां कुछ कदम चलने पर सांस फूल जाती है। इसी माहौल में हमें कल दस किमी ट्रेकिंग करना है।
शाम को माहौल से साम्य बैठाने के लिए फिर घूमने निकले। जिस इकलौती सड़क से चलकर यहां पंहुचे थे,उसके दूसरे सिरे तक पैदल चल कर गए। जाकर आने में करीब एक किमी चले होंगे। लौटने में उसी दुकान पर पंहुचे,जहां से टार्च व छाटे खरीदे थे। इस बार हमें कुछ मालाएं खरीदना थी। स्फटिक जैसी दिखने वाली दस मालाएं तीस युवान में ले आए। 5 युवान में हाथ में पहनने का कंगन जैसा आइटम लिया। कहते है जो मालाएं पहन कर कैलाश की परिक्रमा करते हैं वे मालाएं सिध्द हो जाती है। इसलिए हम भी ये मालाएं पहन कर चले थे।
दुकान वाली प्रेमा ने आशुतोष की उंगली से उसकी अंगूठी निकाल ली। कहने लगी गिफ्ट दे दो। फिर कहने लगी मै अविवाहित हूं,मुझसे शादी करलो। मैने कहा तुम्हे इण्डिया चलना पडेगा,वह बोली नहीं आशुतोष को यहां रहना पडेगा। हंसी मजाक चलता रहा। फिर उसने अंगूठी लौटाई। यहां की महिलाएं बेहद खुली हुई है।
बाजार से वापस लौटे। फिर डाइनिंग हाल मे ंजाकर बैठे। यहां भुवनेश्वर की पूरी कंपनी मौजूद थी। थोडी देर में एलओ सा.जगजीत,तनु भी आ गए। कल के कार्यक्रम की थोडी चर्चा हुई। पता चला कि कल हमें चाइना टाइम दस बजे यानी भारतीय समय से सुबह साढे सात पर यहां से डेराफुक के लिए निकलना है। नौ किमी यमद्वार तक बस जाएगी। वहां पौनी पोर्टर मिलेंगे। वहां से करीब बारह किमी डेराफुक है। यदि कोई यात्री चरणस्पर्श तक जाना चाहता है तो उसे करीब तीन किमी खडी चढाई चढना होगी। चरण स्पर्श कैलाश पर्वत की तलहटी है। कई श्रध्दालु वहां तक जाते हैं लेकिन शर्त यह है कि यह समय पर करके निर्धारित समय पर कैम्प में आना होगा क्योकि कल रात दो बजे पूरी यात्रा का सबसे दुष्कर,दुर्गम कठिन हिस्सा डोलमा पास पास करना है। डोलमा पास के लिए रात दो बजे निकलना है। हम भी सोच रहे है कि चरण स्पर्श तक जाए। देखते हैं क्या होता है?
घडी गुम हुई-
मानसरोवर पर मैरी घडी समर्पित हो गई। जैसे ही हम मानसरोवर पंहुचे,आशुतोष तो फौरन कपडे खोलकर सरोवर में उतर गया। मैने कई फोटो विडीयो बनाए। इसके बाद मैने अपने कपडे खोले। अमूमन मैं घडी सीधे पेन्ट की जेब में डालता हूं। पता नहीं क्यों शायद इस बार मैने घडी नीचे रख दी। कपडे खोले और स्नान करने उतर गया। बर्फीले पानी में उतरना वैसे ही बडा कठिन था। स्नान कर निकला। कपडे पहने,लेकिन शायद घडी उठाना भूल गया। बस चलने के बाद घडी याद आई। अब तक मिली नहीं है। मैने भी मान लिया कि घडी मानसरोवर को समर्पित हो गई।
श्रावण का अंतिम सोमवार
पूरी यात्रा की विशीष्ट बात यह रही कि मैने श्रावण मास के अंतिम सोमवार को मानसरोवर में स्नान किया और कैलाश के प्रथम दर्शन भी किए। पिछले वर्ष सितम्बर माह में उत्तराखण्ड की चारधाम यात्रा के पहले मन में कहीं यह भाव था कि श्रावण सोमवार के दिन ही केदारनाथ के दर्शन हो तो कितना अच्छा हो? ठीक यही हुआ था। हम सोमवार को ही केदार बाबा के पास पंहुचे थे। उस दिन तो पूरे दिन का उपवास भी रखा था। आज उपवास वैसा तो नहीं हुआ लेकिन भोजन दिन में एक ही बार मिला। इसलिए इसे उपवास कहा जा सकता है। बहरहाल इस बार भी यह विशीष्ट संयोग ही रहा कि ठीक सोमवार के दिन मानसरोवर में स्नान हुआ और कैलाश के दर्शन भी। पता नहीं अन्य यात्रियों के ध्यान में यह संयोग आया कि नहीं।
30 अगस्त 2016 मंगलवार
द माउण्टेन गार्डन होटल,डारचेन(6.30 आइएसटी/9.00 चाइना टाइम)
हम यहां से डेराफुक के लिए निकलने को तैयार है। यहां से नाश्ता करके बस से ९ किमी यमद्वार पंहुचेंगे,जहां हमें हमारे पोर्टर मिल जाएंगे। करीब बारह किमी कम आक्सिजन के क्षेत्र में चलना है। यहां मौसम अभी साफ है,लेकिन ठण्ड जोरदार है। देखते है आगे क्या होता है?
शाम 5.07 आईएसटी/ 7.37 चाइना टाइम
डेराफुक कैम्प (16600फीट)
डेराफुक में फाइबर से बने कमरो में हम लोग रुके है। हमारे कमरों के पीछे ओर कैलाश पर्वत है। कई लोग कैलाश दर्शन के लिए चरण स्पर्श नामक स्थान तक जा रहे है,जो यहां से करीब तीन किमी खडी चढाई है। कहते हैं वहां से कैलाश के और नजदीक पंहुच जाते है। मैं और आशुतोष तो यमद्वार से डेराफुक तक की बारह किमी कठिन यात्रा से ही संतुष्ट है।
मेरी यात्री आइएसटी 9.15 पर यमद्वार से शुरु हुई थी। यमद्वार पर पोर्टर के लिए करीब डेढ घण्टा इंतजार करना पडा। आशुतोष को भारतीय पोर्टर मिल गया था,वह साढे आठ पर निकल गया था। बारह किमी का यह पूरा ट्रैक जीप मोटर साइकिल के चलने योग्य बना दिया गया है। इसमें ज्यादातर समतल रास्ता है। खडी चढाई नहीं है,लेकिन आक्सिजन की कमी कारण छोटी चढाई चढना भी कठिन है। मैं एक-एक कदम रखता हुआ चलता रहा। पूरे रास्ते में कहीं नहीं रुका। मेरा पोर्टर जुम्बाल मुझसे पीछे रह गया था। रास्ते में एलओ गुंजियाल सा. दो बार मिले। वे अच्छे पर्वतारोही है। काफी तेज चलते हैं। धीरे धीरे कदम बढाते हुए सांस पर नियंत्रण करते करते मैं चलता रहा। यमद्वार से डेराफुक तक का शुरुआती रास्ता दोनो ओर पहाडों के बीच की घाटी से हैं। चलते समय दाई ओर कैलाश पर्वत का सिरा नजर आता है। कई लोगों को जैसी ही कैलाश का प्रथम दर्शन मिलता है,वे रुक कर प्रणाम करते है। कई बौध्द लोग तो उस दिशा में दण्डवत प्रणाम कर रहे थे। घाटी का यह रास्ता आगे चलकर दाई ओर ही मुडता है। फिर कुछ देर बूच में पहाड आ जाते है। जैसे जैसे हम डेराफुक के पास पहुंचते है,कैलाश फिर दृष्टिगोचर होने लगते हैं। यमद्वार से मिलने वाले पोर्टरों के चेहरे भी शिव के गणों की तरह ही नजर आते है। ये सभी लोग अटपटे चेहरों और शरीर वाले लोग है,जो इस क्षेत्र के मूल निवासी है और पोर्टर और घोडों का व्यवसाय करते हैं।
मैं पौने एक बजे डेराफुक के कैम्प में पंहुचा था। आशुतोष करीब एक घण्टा पहले से यहां पंहुचा हुआ था। रास्ते भर चल रही बर्फीली ठण्डी हवाएं यहां भी वैसे ही चल रही थी। रास्ते में एक स्थान पर हल्की बूंदा बांदी भी हुईथी। इस समय मेरा पोर्टर मुझसे काफी पीछे था। मुझे डर लगा कि यदि तोज बारिश आ गई तो क्या होगा,क्योंकि छतरी और बरसाती पोर्टवर के पास ही थी। लेकिन भगवान में मुझे कष्ट नहीं दिया। उस समय बारिश नहीं हुई। लेकिन मेरे कैम्प में पंहुचने के थोडी देर बाद तेज बारिश होने लगी। उपर बर्फबारी भी होने लगी थी। यहां आते ही गर्मागर्म चाय और बिस्कीट्स मिल गए थे। चाय पीने के थोडी देर बाद वेज सूप भी आ गया। इसके बाद हमारे कमरे में मोजूद धनबाद (बिहार) के धनंजय झा बारिश रुकने के बाद चरणस्पर्श के लिए निकल पडे। डॉ.कर्मवीर राणा और नरेन्द्र सैनी पहले ही चरण स्पर्श जाकर आ चुके थे। डॉ.राणा बता रहे थे कि उन्हे उपर जाकर अदुभत अलौकिक अनुभूति हुई। वे लगातार तीसरी बार कैलाश आए हैं।
डॉ.राणा और सागर मध्यप्रदेश के अनिल राय सुन्दरकाण्ड का पाठ करने लगे। मुझे नींद आ रही थी। मैं करीब एक डेढ घण्टा सोया रहा। बताया जा रहा है कि आज भोजन छ: बजे मिलेगा। भोजन का इंतजार है। मौसम अभी भी खराब है। बारिश बर्फबारी चल ही रही है। यदि यहां से चलते वक्त भी मौसम इसी तरह का रहेगा तो हम आगे बढने के बारे में पुनर्विचार करेंगे।
शाम 6.39 (आईएसटी)
इस कमरे के बाहर जबर्दस्त ठण्ड है। बर्फीली हवाएं चल रही हैं। बीच बीच में बूंदाबांदी भी हो रही है। सुबह साढे छ: बजे सब्जी पूडी का नाश्ता करके चले थे। अब अभी शाम छ: बजे मसालेदार खिचडी या दलिया भोजन के रुप में परोसा गया था। डिस्पोजल डिब्बों में यही भोजन किया। शाम को फ्रैश होने की आदत है। यहां पीछे देशी सुविधाघर बने है। ठण्ड के मारे वहां जाने की भी हिम्मत नहीं हो रही है। पूरी यात्रा का सबसे कठिन हिस्सा कल सामने आएगा। कल हमें डोलमा पास पार करना है,जो कि 18600 फीट है और करीब नौ किमी है। पूरा ट्रैक 20 किमी का है। यह पार होने का बद फिर यह यात्रा पूरी आसान हो जाएगा। सुबह शायद चाढे चार बजे किलना होगा। देखते है आगे कैसे क्या होता है?
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