- तुषार कोठारी
इस देश में युगों युगों से पूजित मर्यादा पुरुषोत्तम राम की लंका विजय के बाद लक्ष्मण जी ने उनसे कहा कि अयोध्या जाने की बजाय सोने की लंका में ही रहने में क्या बुराई है? तब भगवान राम ने वह जवाब दिया था,जो आज तक देश के प्रत्येक व्यक्ति के लिए मार्गदर्शक है। भगवान श्री राम ने लक्ष्मण से कहा था कि लक्ष्मण ये लंका चाहे सोने की हो,लेकिन जननी जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान होती है। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।
जिस देश में मर्यादा पुरुषोत्तम राम जन्म लेते है और इस देश को अपनी जननी जन्मभूमि बताते है,उस राष्ट्र का पिता कौन हो सकता है? यह सवाल अब इसलिए उठ खडा हुआ है कि देश की राजनीति पर कब्जा बनाए रखने के लिए आजादी के बाद से अब तक एक वर्ग द्वारा महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता का दर्जा दिया जाता रहा है। जब भी कभी इस बात पर किसी ने आपत्ति उठाने की,या वास्तविकता को सामने लाने की कोशिश की है,देश भर में एक तूफान सा खडा करने की कोशिश होने लगती है। न जाने कहां कहां के बुध्दिजीवी निकल कर सामने आ जाते है और बापू का नाम लेकर रोना धोना मचाना शुरु कर देते है। मीडीया में भी ये किस्से जम कर उछाले जाने लगते है। महात्मा जी की वास्तविकता सामने लाने वाले को दुनिया का सबसे नीच व्यक्ति साबित करने की होड सी लग जाती है। स्वयं को अंहिसा और सत्याग्रह का अनुयायी बताने वाले ठोस तथ्यों को सुनने तक के लिए राजी नहीं होते। इस मामले में किसी भी सीमा तक हिंसक होने को राजी हो उठते है। तब उनका अंहिसा और सत्य का आग्रह कहीं गायब हो जाता है।
वैसे तो इस बात पर भी बडे मतभेद है,कि देश को स्वतंत्रता दिलाने में किसका योगदान बडा है,लेकिन कुछ समय के लिए यह मान भी लिया जाए कि महात्मा गांधी के चर्खे और खादी के कारण देश को स्वतंत्रता मिल गई। लेकिन इस उपलब्धि के कारण यह कैसे माना जा सकता है कि महात्मा जी इस महानतम राष्ट्र के पिता हो गए। जिस राष्ट्र का अस्तित्व हजारों लाखों साल है। जहां राम,कृष्ण,बुध्द महावीर,चन्द्रगुप्त,चाणक्य,विक्रमादित्य जैसे महान व्यक्तियों ने जन्म लिया और इस भूमि को अपनी माता माना। जिस भूमि पर उस भरत ने जन्म लिया,जिसके नाम पर इस देश का नाम भारत वर्ष रखा गया। वह राजा भरत इस राष्ट्र के पिता का दर्जा नहीं पा सका,तो क्या महात्मा गांधी इन सारे महान व्यक्तियों से भी अधिक महान थे,कि वे इस राष्ट्र के पिता कहला सकते हैं। क्य इस देश के लोगों को राम कृष्ण बुध्द महावीर आदि की पूजा छोड कर बापू के मन्दिर बना देने चाहिए?
इस महानतम और दुनिया के सबसे प्राचीन राष्ट्र का कोई पिता हो ही नहीं सकता। इस देव निर्मित भारत भूमि को तो देवताओं तक ने अपनी मातृभूमि बनाया है। इस जननी जन्मभूमि का किसी सामान्य मानव को पिता कहना अपने आप में पाप की पराकाष्ठा है। लेकिन क्षुद्र राजनीति के चलते आजादी के बाद से आज तक लगातार यह पाप किया जा रहा है।
१५ अगस्त १९४७ को देश को जैसी भी आजादी मिली,सत्ता कांग्रेस के हाथ आ गई। तत्कालीन कांग्रेस के जवाहर लाल नेहरु जैसे चतुर नेताओं ने बडी जल्दी यह समझ लिया कि सत्ता पर लम्बे समय तक कब्जा जमाने के लिए कुछ तो ऐसा करना पडेगा,जिससे देश के लोग भ्रम में पडे रहें और कांग्रेस को चुनते रहे। महात्मा गांधी तो सत्ता से बाहर थे ही,नाथुराम गोडसे ने उनकी हत्या करके उन्हे शहीद बना दिया। कांग्रेस के चतुर नेताओं ने इस घटना का चतुराईभरा लाभ लेते हुए महात्मा गांधी को देश का राष्ट्रपिता कहना शुरु कर दिया और सबसे महत्वपूर्ण स्थान देश की मुद्रा पर उनकी तस्वीरें छापना शुरु कर दिया। हर सरकारी दफ्तर में उनकी तस्वीरें टांगना अनिवार्य कर दिया गया। स्कूल के इतिहास में यह पढाया जाने लगा कि आजादी सिर्फ और सिर्फ बापू ने ही दिलाई। अन्य सभी देशभक्तों और कालेपानी की सजा भुगतने और फांसी के फन्दे पर चढजाने वाले शहीदों तक को महत्वहीन बना दिया गया। बापू के चित्र को चुनाव जीतने की गारंटी बना दिया गया और महात्मा जी का कापीराइट उस कांग्रेस ने अपने पास रख लिया,जिसे भंग करने की सलाह स्वयं गांधी जी दे चुके थे।
बहरहाल,राष्ट्रपिता की यह तथाकथित पदवी संवैधानिक तौर पर नहीं दी जा सकी थी। यह पदवी केवल उनके नाम का लाभ लेने वालों की देन थी। लेकिन देश की आजादी के सत्तर साल गुजर जाने के बाद अब समय आ गया है कि इस पुरानी घिसी पिटी मान्यताओं पर पुनर्विचार किया जाए। महात्मा गांधी ने निश्चित तौर पर देश की आजादी के लिए अंहिसक लडाई का एक नया रास्ता ढूंढा था,लेकिन अब इस बात का,ठोस तथ्यों और तर्को के आधार पर निरपेक्ष विश्लेषण किया जाना चाहिए कि देश की आजादी में किसका कितना योगदान था और वास्तव में आजादी मिली किस वजह से? चन्द्रशेखर आजाद,भगतसिंह,सुभाष चन्द्र बोस और वीर सावरकर जैसे क्रान्तिकारियों का इस आजादी में योगदान गांधी जी से कम था या अधिक?और क्या ऐसे देशभक्तों के साथ अभी तक अन्याय नहीं हुआ है। देश के नोटों पर सिर्फ गांधी ही छाये हुए है,नोट पर सुभाष या आजाद क्यों नहीं है?
देश की नई पीढी को तथ्यात्मक सत्य बताए जाने चाहिए। गांधीवाद ही अंतिम सत्य नहीं है और इसलिए गांधी जी के बारे में प्रतिकूल विचार रखना कोई अपराध नहीं है। गांधीवादियों के मुताबिक अगर देश की आजादी गांधी के प्रयत्नों का परिणाम है,तो इसके विपरित विचार वालों की मान्यता है कि गांधीवाद पर चल कर देश को फायदे की बजाय नुकसान अधिक हुआ है। यही कारण है कि खादी,दिखावे की ही चीज बनी रही,उपयोग की नहीं बन पाइ। गांधी जी नीतियों की आलोचना कर देना ऐसा भी गुनाह नहीं है कि माफी मांगना पडे। बच्चों को यह सिखाया जाना चाहिए कि महानतम राष्ट्र के हम सब बच्चे है,इसका पिता तो भगवान भी नहीं बन सकता। इस देश का कोई राष्ट्रपिता नहीं हो सकता।
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