Monday, March 27, 2017

Kailash Mansarovar Yatra -6 कैलाश मानसरोवर यात्रा- 6 (2 सितम्बर-3 सितम्बर 2016)

2 सितम्बर 2016 शुक्रवार

कुगु कैम्प मानसरोवर

मानसरोवर तट पर दूसरा दिन यज्ञ के साथ बीता। सुबह की शुरुआत आलू पराठे के नाश्ते से हुई। मौसम बहुत बढिया था। शानदार धूप खिली हुई थी। मानसरोवर का रंग बार बार बदल रहा था। मैं कैमरा लेकर मानसरोवर पर पंहुचा। ढेर सारे फोटो लिए। फिर आशुतोष झील पर स्नान करने आ गया। उसका विडीयो बनाया। तभी एलओ श्री गुंजियाल सा.,जगजीत और तनु मित्तल वहां आ गए। फिर उनके साथ आया। हमने कई फोटो खींचे।

कल ही यह तय हो गया था कि आज यज्ञ किया जाएगा। उत्तर प्रदेश से आए पं. आशुतोष मुकर्जी ने बडे ही विधि विधान से यज्ञ करवाया। यात्रादल के प्रत्येक व्यक्ति ने यज्ञ में आहूतियां दी। यह यज्ञ विश्व शांति के लिए तो था ही,२०१३ में उत्तराखण्ड में हुई त्रासदी के मृतकों की आत्मा की शांति के लिए भी था।
हमारे यात्रा दल के एलओ उत्तराखण्ड के आईजी संजय गुंजियाल ने २०१३ की त्रासदी में राहत और बचाव कार्यों में प्रमुख भूमिका निभाई थी। उन्होने वहां हजारों मृतकों का अंतिम संस्कार किया था। चर्चाओं के दौरान उन्होने बताया था कि कर्मकाण्ड में कम विश्वास के बावजूद उन्होने हरिद्वार जाकर सभी मृतकों का तर्पण किया था। उनकी इच्छा थी कि मानसरोवर पर भी उन मृतकों का तर्पण किया जाए। आज वैदिक मंत्रोच्चार के साथ यज्ञ किया गया। यहां घूमने आए कई तिब्बतियों के लिए यह यज्ञ कौतूहल का विषय था,और वे आसपास जमा हो गए थे। अंत में पूर्णाहुति के बाद उन्हे भी प्रसाद बांटा गया। यज्ञ की वजह से भोजन भी विलम्ब से हुआ। भोजन मे आलू की सब्जी पूडी और हलवा बनाया गया था।
 मानसरोवर तट पर आज हमारा अंतिम दिन है। सर्दी जुकाम के चलते मैं इन दोनो दिन स्नान से दूर ही रहा। कल तो मानसरोवर में जाकर हाथ मुंह धो आया था। आज तो वह भी नहीं किया। मैने २९ अगस्त को मानसरोवर में डुबकी लगाई थी। इसके बाद से आज तक स्नान नहीं किया। अब कल तकलाकोट में पंहुचकर ही स्नान किया जा सकेगा।


रात 8.00(आईएसटी)

चीनी समय के मुताबिक इस समय रात के साढे दस बज चुके हैं। आज दोपहर में मुझे बुखार आ गया था। हम लोग करीब एक किमी चलकर मानसरोवर का जल बाटलों में भरकर लाए थे। इसके बाद बुखार के कारण बडी थकान लगी। फ्लेक्सान और फेबरेक्स गोलियां खाकर करीब दो ढाई घण्टे में बुखार से छुटकारा पाया। शाम करीब छ: बजे (आईएसटी) चाय और पकौडे परोसे गए। बताया गया कि यही आज की डिनर है। मेरा स्वास्थ्य इजाजत नहीं दे रहा था कि मैं पकौडे खाउं। मैने चखने के लिए एक गोभी का पकौडा खाया और चाय पी। हमें लगेज भी पैक करके देना था। लगेज शाम को ही बसों में लाद दिया गया। लगेज बांधने की मशक्कत की। फिर लेटा रहा। शाम होते होते तबियत कुछ सुधरी। कल सुबह पांच बजे(आईएसटी) यानी चाइना टाइम से साढे सात बजे निकलना है। बसों से हम तकलाकोट जाएंगे,जहां एक रात रुक कर अगली सुबह लिपूलेख पास को पार कर भारत में प्रवेश करेंगे।
29 अगस्त से आज 2 सितम्बर तक के पांच दिन में हमने कैलाश और मानसरोवर की परिक्रमा की। लेकिन व्यवस्थाओं के लिहाज से ये बेहद कठिन दिन थे। चीनी सरकार ने रास्ते में ठहरने की जो व्यवस्थाएं की है,वे बेहद घटिया है। ठहरने के स्थानों पर शौचस्थान की व्यवस्था बेहद खराब है। यहां कुगु में भी सार्वजनिक सुविधाघर है,जो बेहद गन्दे और बदबूदार है। स्नान आदि के लिए तो कोई व्यवस्था है ही नहीं। श्रध्दा से भरे यात्री सारी असुविधाओं और प्रतिकूलताओं के बावजूद यात्रा करते हैं। चीनी व्यवस्थाओं का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि तकलाकोट के पुलान होटल के कमरों में पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है। खैर हमें कल के दिन उस होटल में शौच स्नान आदि की अच्छी सुविधा मिल जाएगी। अब कल से वापसी की यात्रा शुरु होगी।
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3 सितम्बर 2016 शनिवार

होटल पुलान (दोपहर 1.00 आईएसटी)
12930 फीट

आज की हमारी सुबह मानसरोवर तट कुगुकैम्प (15160 फीट) पर हुई थी। हम सुबह 5.00 (आईएसटी) यानी चाइना टाइम साढे सात बजे  कुगु से रवाना हुए। सुबह सवा चार पर उठा,फ्रैश हुआ और फिर नाश्ता किया। सुबह कुगु में दूध और कार्नफ्लेक्स का हलका नाश्ता था। हमारा लगेज हम कल ही दोपहर को पैक कर चुके थे। चाइना टाइम 7.55 पर हमारी दो बसें  तकलाकोट के लिए रवाना हुई।

बीती रात सर्दी जुकाम की दवाई खाकर नौ-साढे नौ पर सोने का उपक्रम किया था। कमरे में आशुतोष के अलावा तीन अन्य लोग चैन्ने से मुरुगा पूपति,महाराष्ट्र से सुनील धम्मानी और  राजस्थान के महावीर राखेचा जी सो चुके थे। मैने सरसों के तेल की मालिश की और सोने लगा। कुछ ही देर में मुझे लगा कि मैं सांस नहीं ले पा रहा हूं। मैं हैरान था कि साढे अठारह हजार फीट की ऊं चाई घूम कर लौटने के बाद मुझे हाईअल्टीट्यूड का असर कैसे हो सकता है? मैने कमरे का दरवाजा थोडा सा खोल दिया। लेकिन कोई फर्क नहीं पडा। फिर उठकर मानसरोवर की तरफ पडने वाली खिडकी का पल्ला खोल दिया। अब कमरे में हवा बहने लगी। पूरे कमरे में ठण्डक भरा गई। लेकिन मुझे हो रही समस्या समाप्त हो गई। अब मैं सामान्य तौर पर सांस ले रहा था। पता नहीं कब नींद लग गई। सुबह चार बते कमरे के साथियों ने जगाया। 4.20 पर मैं उठा और तुरंत तैयार हो गया।
 हम निर्धारित समय पर बस में सवार हो गए।  तभी पं. आशुतोष मुकर्जी ने बताया कि आज कैलाश पूर्ण स्वरुप में दर्शन दे रहे हैं। कई लोग देखने गए। मैं भी गया। अब तक की पूरी यात्रा में कैलाश पर्वत पूरा कभी भी दिखाई नहीं दिया था।  हर वक्त बस बादल छाए हुए थे। लेकिन अभी कैलाश पूरा नजर आ रहा था। हांलाकि रोशनी अभी अपर्याप्त थी। सुबह अभी हुई नहीं थी,फिर भी मैने एक दो फोटो लिए। हमारी बसें वहां से आगे बढी और मानसरोवर के किनारे किनारे चलने लगी। आकाश में सूर्य बढते जा रहे थे और उधर कैलाश की चमक बढती जा रही थी। लेकिन रास्ता कच्चा और उबड खाबड था। इसलिए बस में से फोटो लेना संभव नहीं था। हमें बताया गया था कि हम एक ऐसे स्थान पर पंहुचेंगे जहां से कैलाश,मानसरोवर और राक्षस ताल एक साथ नजर आएगे। हमारी बसें एक पहाडी पर चढ रही थी। जैसे ही हमारी बसें पहाडी के टाप पर पंहुची,सबकुछ नजर आने लगा। हमारी दाहीनी ओर मानसरोवर दिखाई दे रहा था,जबकि बाई ओर राक्षस ताल। इन दोनों के बीच में बहुत दूर कैलाश का चमकता शिखर नजर आ रहा था। यहां के खूब सारे फोटो लिए।

यहां से तकलाकोट के रास्ते में आगे बढने लगे। वहीं शहीद जोरावर सिंह की समाधि पर पंहुचे। जोरावर सिंह काश्मीर के राजा का सेनापति था,जो मानसरोवर और कैलाश को भारत में मिलाने के लिए युध्द करता रहा। वह सफल नहीं हुआ,लेकिन उसकी वीरता के किस्से आज भी गांव गांव में सुनाए जाते हैं। यहां से हमारी बसें सीधे तकलाकोट के लिए रवाना हो गई। हमारी बसें तकलाकोट कस्बे में पंहुची,लेकिन यहां उतरे नहीं। बस वहां से होरचक नामक गांव में पंहुची,जहां प्राचीन राम मन्दिर है। सभी यात्री राम मन्दिर का दर्शन करने के लिए भीतर पंहुचे।

यह मन्दिर और गोम्पा करीब एक हजार साल पहले बना था। कहानी यह है कि एक बार सात साधु कैलाश का दर्शन के लिए निकले तो उन्होने यहां आकर एक व्यक्ति से कैलाश का रास्ता पूछा। ग्रामीण व्यक्ति ने नक्शा बनाकर कैलाश का रास्ता उन्हे समझा दिया। ये सातों साधु कैलाश जाने के पहले उस ग्रामीण को सात झोले थमा गए। बाद में उन झोलों में सोना निकला। ग्रामीण ने यह सोना राजा को सौंप दिया। उधर दूसरी ओर एक पंहुचा हुआ लामा,तांगे में सवार होकर इस स्थान से गुजर रहा था कि अचानक तांगा यहां रुक गया। तांगे वाले ने उतर कर देखा तो यहां कुछ गडा हुआ था।  लामा ने उतरकर देखा तो एक सिंहासन जैसी आकृति गडी हुई थी और इस पर राम,लक्ष्मण और सीता की प्रतिमाएं बनी हुई थी। लामा इसे देख रहा था कि आकाशवाणी हुई कि बस तुम्हारी खोज पूरी हुई,यहीं रुक जाओ। लामा वहीं रुक गया। बाद में लामा और राजा की भोंट हुई तो लामा को सारी बात समझ में आ गई। राजा ने सातों साधुओं से मिला सोना लामा को सौंप दिया। फिर यहां राम लक्ष्मण सीता की मूर्तियां ठोस सोने से बनवाकर स्थापित की गई। साथ ही बौध्द मठ भी बनाया गया। इसी घटना के कारण यहां का नाम होरचक पडा। होर का अर्थ है खोज और चक का अर्थ है पूरी होना। यहां लामा की खोज पूरी हुई इसलिए यह स्थान होरचक कहलाया। यह घटना करीब एक हजार साल पुरानी है। फिर करीब पांच सौ वर्ष पूर्व हिन्दू बौध्द विवाद जैसा कुछ हुआ,जिससे इस मूर्तियों की क्षति हुई। वर्तमान में यहां स्थापित मूर्तियों के सिर सोने के है,जबकि शेष हिस्सा चांदी का। इस मन्दिर में घोर अन्धकार में परिक्रमा की जाती है। कहते हैं कि जो जितना पापी होता है,उसे उतना ही अधिक भय लगता है। मैने भी यह परिक्रमा की। मुझे तो कोई डर नहीं लगा। कई लोग परिक्रमा में गए ही नहीं।

राम मन्दिर की दाई ओर शाक्य मुनि गौतम बुध्द का मन्दिर है।मन्दिर में प्रवेश करते ही सामने भगवान बुध्द की विशाल प्रतिमा है। इस प्रतिमा के बाई तथा दाई ओर बने कमरों में भगवान बुध्द की विभिन्न मुद्राओं में बनी प्रतिमाएं है। यहां मैने कई फोटो खींचे।

इस मन्दिर की प्रबन्ध समिति द्वारा सभी यात्रियों को सफेद दुपट्टे पहना कर स्वागत किया गया और चाय पिलाई गई। यहां से हम वापस होटल पुलान लौटे। अभी भारतीय समयानुसार करीब पौने दस बजे हैं। आने के बाद स्नान,दाढी इत्यादि का काम निपटाना था। देखा तो स्नान के लिए साबुन नहीं था। नीचे बाजार में जाकर बडी मुश्किल से साबुन खरीदा। स्नान किया। हमारा लगेज हमारे साथ ही आया था,जिसे हमें भोजन करने के बाद वापस देना था। बैग खोला तो पता चला कि मानसरोवर के जल की एक बाटल लीक कर गई थी। उसे नए सिरे से पैक किया और सो गए।
मानसरोवर यात्रा में लगेज को लेना,खोलना और वापस पैक करना बडी ही मशक्कत का काम है। आपका मुख्यलगेज वाटरप्रूफ बोरों में बांधकर देना पडता है,जो एक या दो दिन में आपको वापस मिलता है। उसे खोलकर जरुरत का सामान निकालना व बैकपैक का सामान बैग में भरकर पैक करना हर दूसरे दिन की बडी मशक्कत है। हम लगेज पैक कर चुके है। यह अब हमें गुंजी में वापस मिलेगा।

रात 11.00 (आईएसटी)/1.30 चाईना टाईम

होटल पुलान तकलाकोट


दिन में करीब एक बजे भोजन किया था। शाम को साढे चार बजे यानी चाईना टाईम सात बजे फिर से भोजन की आवाज लग गई। सब लोग हैरान थे कि इतनी जल्दी क्यो? बताया गया कि शाम 7.30(चाईना टाइम) यानी भारतीय समय के पांच बजे चीन सरकार की तरफ से अंतिम यात्रा जत्थे का बिदाई समारोह है। हमारे किचन वाली बिल्डिंग की पहली मंजिल पर यह कार्यक्रम था। भोजन करके नासिक से आए सीए फणिराज के साथ बाजार जाकर उसे एक सिगरेट का पैकेट खरीदवाया,जो उसे अपने किसी मित्र को भेंट करना था। बाजार से लौटा,कमरे में जाकर फ्रैश हुआ। कार्यक्रम के हाल में पंहुचा। यहां चीनी विदेश मंत्रालय के अधिकारी श्री नवांग और उनके तीन-चार सहयोगी मौजूद थे। हमारा गाइड गुरु सीरींग दुभाषिये का काम कर रहा था। श्री नवांग ने चीनी भाषा में यात्रियों को सम्बोधित किया। श्री नवांग का कहना था कि भारत चीन के मैत्री सम्बन्धों के चलते,हर साल यात्रियों के लिए सुविधाएं बढाई जा रही है। डोराफुक और जुनझुई  पू में पहले यात्रियों के ठहरने की अच्छी व्यवस्था नहीं थी,लेकिन अब व्यवस्थाएं बहुत अच्छी कर दी गई है। अब इसे और सुधारा जा रहा है। आगामी एक दो वर्षों में व्यवस्थाएं और अच्छी कर दी जाएगी। उन्होने यात्रियों से उनके सुझाव भी मांगे। यात्रियों की ओर से रुपा ने अंग्रेजी में कुछ मुद्दे उठाए। रुपा ने कहा कि ठहरने के कैम्पस में शौचस्थान की व्यवस्थाएं ठीक नहीं है। गन्दगी है। पेयजल की व्यवस्था ठीक नहीं है।  डोलमा पास पर मेडीकल सुविधा होना चाहिए।  फिर एलओ संजय गुंजियाल ने हिन्दी में संक्षिप्त उद्बोधन में चीन को धन्यवाद दिया। उन्होने भी कुछ सुझाव दिए।  चीन सरकार की इस बिदाई पार्टी में प्रत्येक यात्री के सामने कोकाकोला,पेप्सी,केले,सेवफल, ढेर सारी चाकलेटें रखी गई थी। यात्रियों से कहा गया कि वे इसे ग्रहण करे। मैने और आशुतोष ने ढेर सारी चाकलेटें जेबों में भर ली,ताकि घर पर बच्चों को दी जा सके। बिदाई समारोह में चीनी दल के कुछ लोगों ने गीत सुनाए। यात्रियों ने थोडा सा कीर्तन किया। चीनी अधिकारी ने भी चीनी भाषा में एक गीत सुनाया। समारोह के अंत में यात्रियों को चीन सरकार की ओर से स्मृति चिन्ह के रुप में कैलाश पर्वत का एक कैलेण्डर भेंट किया गया। साथ ही सभी को सपेद दुपट्टे औढा कर सम्मानित किया गया। मुझे बताया गया कि पिछले वर्षों तक यात्रियों को चीनी सरकार की ओर से अच्छे मजबूत बैग व अन्य उपयोगी व महंगी सामग्रियां भेंट की जाती थी,लेकिन इस साल सिर्फ कैलेण्डर देकर बिदा कर दिया गया। कार्यक्रम के बाद एलओ सा.हमें बाजार घुमाने ले गए। एक चीनी रेस्टोरेन्ट में चीनी वेज सब्जी व जडी बूटी से बना पेय आदि खिलाए पिलाए। रात करीब ग्यारह बजे हमारा दिन समाप्त हुआ।

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